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उद्यमिता का उजास : : जुझारपुर में जमा मुनाफे का बीज

by सुनील राय
Nov 7, 2021, 10:22 am IST
in भारत, उत्तर प्रदेश
अपने खेत में खड़ी फसल के साथ ज्ञानेंद्र वर्मा

अपने खेत में खड़ी फसल के साथ ज्ञानेंद्र वर्मा

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कोरोना काल में नौकरी छूटने पर पेशे से इंजीनियर ज्ञानेंद्र वर्मा ने गांव लौट कर जैविक खेती शुरू की। सबसे पहले तो उनके पिता ने ही उन पर भरोसा नहीं किया और आसपास के लोगों ने मजाक उड़ाया। परंतु फसल आने पर सबकी आंखें फटी रह गईं और अब इलाके में जैविक खेती के प्रति आकर्षण बढ़ गया है

कोरोना की पहली लहर में जब लॉकडाउन हुआ तो पेशे से अभियंता ज्ञानेंद्र वर्मा की नौकरी छूट गई। उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जनपद के जुझारपुर में आकर ज्ञानेंद्र वर्मा ने आपदा में अवसर अंतत: खोज ही लिया। उन्होंने देखा कि उनके पास पर्याप्त कृषि भूमि है मगर केमिकल युक्त खेती से कुछ खास प्रगति नहीं हो पा रही थी।

ज्ञानेन्द्र ने जब प्राकृतिक खेती की दिशा में कदम आगे बढ़ाया। तब सबसे पहले उनके पिता ही उन पर विश्वास करने को तैयार नहीं हुए। उनके पिता का कहना था कि वे इतने वर्षों से खेती कर रहे हैं, जब वे ऐसा कुछ नहीं कर पाए तो प्राकृतिक और केमिकल मुक्त खेती पर दांव लगाना बिल्कुल ठीक नहीं रहेगा।

ज्ञानेंद्र ने अपने पिता से सात बीघा भूमि प्रयोग के तौर पर ली और उस पर गेहूं की फसल उगाई। इस सात बीघा खेत के आधे हिस्से में उन्होंने जैविक देसी गेहूं उगाया और आधे हिस्से में जैविक काला गेहूं उगाया। काले गेहूं का बीज उन्हें मध्य प्रदेश से मंगाना पड़ा। ज्ञानेंद्र बताते हैं कि ‘आसपास पारम्परिक खेती कर रहे लोगों का काफी उपहास झेलना पड़ा मगर मैंने दोनों प्रकार के गेहूं की फसल को आर्गेनिक तरीके से उगाया।’

तकनीक के प्रयोग और प्राकृतिक खेती के दम पर ज्ञानेन्द्र ने खेती की लागत घटाई और उत्पादन में वृद्धि भी हुई। काले गेहूं और देशी गेहूं की अच्छी फसल मिलने के बाद किसान उनकी फसल को देखने आए। इस बार पांच परिवारों ने ज्ञानेन्द्र से वादा किया है कि वे लोग भी केमिकल मुक्त खेती करेंगे।

साढ़े तीन बीघा में जैविक देशी गेहूं का उत्पादन तीन कुंतल प्रति बीघा के हिसाब से हुआ जबकि जैविक काले गेहूं का उत्पादन दो कुंतल प्रति बीघा की दर से हुआ। काले गेहूं के लिए माना जाता है कि मिट्टी की गुणवत्ता अच्छी होने पर दो कुंतल प्रति बीघा की पैदावार होती है। ज्ञानेन्द्र को पहली ही बार में काले गेहूं के उत्पादन में उम्मीद से अधिक सफलता प्राप्त हुई।

परम्परागत देशी गेहूं की अपेक्षा काला जैविक गेहूं अधिक स्वास्थ्यवर्धक है। बाजार में इसकी अच्छी मांग है। पहली बार प्राकृतिक खेती का प्रयोग करने वाले ज्ञानेन्द्र को 9 कुंतल जैविक देशी गेहूं से 27 हजार रुपये प्राप्त हुए जबकि जैविक काले गेहूं से 6 कुंतल में ही 30 हजार रुपये की आय हुई। इसी प्रकार मशरूम से सात हजार रुपये की आय हुई।

ज्ञानेन्द्र काले गेहूं की दलिया बनवाकर उसकी स्वयं मार्केटिंग कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह तो महज शुरुआत है। गेहूं, गन्ना एवं केला आदि का मूल्य हम लोगों को बाजार मूल्य से अधिक मिल रहा है। हमारा सपना है कि हम लोग अपने गांव को आधार बनाकर आर्गेनिक उत्पादों का निर्यात करें।
 

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