कॉर्बेट टाइगर रिजर्व, रामनगर फॉरेस्ट और तराई वेस्ट फॉरेस्ट में इन दिनों वन विभाग की गश्त बढ़ा दी गई है। वजह है उल्लू! जानकार मानते हैं कि दीवाली के दिनों में वन्यजीव शिकारी उल्लू पकड़ते हैं और उन्हें मुंहमांगे दामों में बेचते हैं। ऐसा अंधविश्वास है कि दीवाली के दिन लक्ष्मी जी के प्रिय उल्लू की बलि देकर उन्हें खुश किया जाता है। इस बात को मद्देनजर रखते हुए उत्तराखंड के उन जंगलों में गश्त बढ़ाई गई है, जहां उल्लुओं की मौजूदगी रहती है।
16 प्रजातियां हैं
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व उससे लगते हुए रामनगर और तराई वेस्ट फॉरेस्ट डिवीजन में उल्लू की 16 प्रजातियां पाई जाती हैं। वैसे भारत के जंगलों में कुल 36 प्रजातियों के उल्लुओं को देखा गया है। इसे भारतीय वन्यजीव अधिनियम 1972 की अनुसूची(1) के तहत संरक्षित प्राणी का दर्जा मिला है। इसलिए जंगलों में इसके संरक्षण और सुरक्षा की जिम्मेदारी वन विभाग की है।
जीपीएस से है नजर
दीवाली पूजन से पहले बहेलिए और वन्य जीव शिकारी उल्लू पकड़ने के लिए जंगलों में चोरी छिपे आते हैं। उत्तराखंड के जंगलों में वनकर्मी दिन-रात गश्त लगा रहे हैं। आमतौर पर उल्लू की मौजदूगी रात्रि में ज्यादा आसानी से पता चलती है, इसलिए रात्रि गश्त पर विशेष जोर दिया गया है। कुमाऊं वन संरक्षक डॉ तेजस्वनी पाटिल धकाते ने बताया कि कुछ साल पहले उल्लू के साथ वन्य जीव तस्कर पकड़ में आए थे तब से हर साल दीवाली से पहले जंगलों में वनकर्मियों की गश्त बढ़ा दी जाती है। खासतौर पर रात में, इन सभी वनकर्मियों पर रेंज अधिकारी और डीएफओ की जीपीएस से नजर रहती है। वन्य जीव तस्करी को रोकने वाले संगठन ट्रैफिक इंडिया के प्रमुख डॉ साकेत बडोला ने बताया कि दीवाली पर उल्लू के संरक्षण और सुरक्षा के लिए देश भर में फॉरेस्ट डिवीजन के संरक्षकों को एडवाइजरी जारी की गई है।
टिप्पणियाँ