सुनील राय
8 सितम्बर को फिरोज गांधी की पुण्यतिथि थी. उनकी कब्रगाह पर गांधी परिवार का कोई सदस्य प्रयागराज नहीं पहुंचा. हर वर्ष की तरह गिने चुने चार – पांच कांग्रेसी वहां पर पहुंचे. उन लोगों ने इस बात पर आक्रोश व्यक्त किया कि गांधी परिवार का कोई सदस्य और कोई बड़ा कांग्रेसी नेता फिरोज गांधी की कब्रगाह पर नहीं पहुंचा.
जिनके ससुर, पत्नी और पुत्र भारत के प्रधानमंत्री रहे, पुण्यतिथि पर पुष्प को तरस गई कब्रगाह
वर्ष 2009 में जब राहुल गांधी प्रयागराज आये थे तब फिरोज गांधी की कब्रगाह पर गए थे. इसके पहले सोनिया गांधी वर्ष 2007 में वहां पर गई थीं. आमतौर पर गांधी परिवार, फिरोज गांधी से दूरी बनाए रखता है. उनकी जन्मतिथि और पुण्यतिथि पर गांधी परिवार का कोई भी सदस्य उन्हें याद नहीं करता और ना ही उनकी कब्रगाह पर पुष्प अर्पित करता है.
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी प्रयागराज आई थीं. ‘लेटे हनुमान’ जी के मंदिर में दर्शन -पूजन और आरती की और संगम भी गई थीं. प्रियंका गांधी ने अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत के लिए प्रयागराज को चुना था. मंदिर में दर्शन और गंगा जी के जलमार्ग पर यात्रा करके, हिन्दुओं के प्रति अपनत्व प्रदर्शित करने की भरपूर कोशिश की थी. मगर प्रियंका गांधी अपने दादा फ़िरोज़ गांधी से किनारा करके निकल गई थीं. प्रियंका गांधी अपनी दादी इंदिरा गांधी की छवि को भुनाने का हर संभव प्रयास करती रहीं हैं. मगर दादा फ़िरोज़ गांधी शायद उनके किसी काम के नहीं हैं.
जानकार बताते हैं कि फ़िरोज़ गांधी की मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी भी उनके कब्रगाह पर नहीं गईं. विगत दो दशकों में एक बार वर्ष 2007 में सोनिया गांधी और वर्ष 2009 में राहुल गांधी पारसी कब्रिस्तान गए थे और वहां पर फिरोज गांधी की कब्रगाह पर पुष्प चढ़ाये थे.
फिरोज गांधी के ससुर- जवाहरलाल नेहरू, भारत के पहले प्रधानमंत्री थे. उनकी पत्नी – इंदिरा गांधी भी प्रधानमंत्री थीं और उनके पुत्र – राजीव गांधी, भारत के पांच वर्ष तक प्रधानमंत्री थे. ऐसे फ़िरोज़ गांधी को उनकी जन्म तिथि और पुन्य तिथि पर उनके परिवार का कोई भी सदस्य उन्हें याद नहीं करता है. प्रियंका गांधी को अपनी दादी की सुनाई हुई कहानियां तो याद आती हैं मगर अपने दादा को वे भूल गईं. फिरोज गांधी का जन्म 12 सितंबर 1912 और मृत्यु 8 सितम्बर 1960 को हुई थी. फिरोज गांधी का जन्म मुंबई में हुआ था. फिरोज गांधी की उम्र जब 8 वर्ष की थी तब उनके पिता जहांगीर का निधन हो गया था. फिरोज से बड़े दो भाई थे उन दोनों लोगों ने मुम्बई में ही रहने का निर्णय लिया. वर्ष 1920 में फिरोज गांधी और उनकी माँ रत्तीबाई प्रयाग आ गई थीं.
फ़िरोज़ गांधी, ऐसे सांसद थे जिन्होंने केन्द्र सरकार के मंत्री के खिलाफ इतने तर्क और सबूतों के साथ मामले को उठाया कि जवाहरलाल नेहरू सरकार के वित्त मंत्री, तिरुवेल्लोर थट्टई कृष्णमचारी को इस्तीफा देना पड़ा था . संसदीय इतिहास में इसे मूदणाकाण्ड के नाम से जाना जाता है. तब से आज तक कोई ऐसा सांसद नहीं हुआ जो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपनी ही सरकार के मंत्री को इस्तीफे तक जाने को विवश कर दे. वित्त मंत्री के इस्तीफे के बाद जवाहर लाल नेहरू, फिरोज गांधी से बेहद नाराज हो गए थे. नेहरू ने प्रधानमंत्री निवास तीन मूर्ती भवन में फिरोज गांधी के प्रवेश पर रोक लगा दी थी. हालांकि वह सांसद भी थे ,संविधान सभा के भी सदस्य थे और परिवार के इकलौते दामाद थे. अपराध बस एक था कि सरकार के भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़े होने का उन्होंने साहस किया था. 8 सितम्बर 1960 की शाम अन्तिम बार तीन मूर्ति भवन कुछ समय के लिए लाया गया था – वहीं पर ससुर, पत्नी और बच्चों ने उन्हें अंतिम विदाई दी थी.
टिप्पणियाँ