काबुल से मिल रहे संकेत चिंताजनक हैं। तालिबानी लड़ाके लगातार इलाकों को कब्जाते जा रहे हैं। कई स्थानों पर अफगान फौज उनका जबरदस्त प्रतिकार कर रही है, लेकिन बर्बर हत्यारों को पाकिस्तानी समर्थन उनके हौसले बढ़ा रहा है
जानकारों का कहना है कि 20 साल पहले जिस तरह तालिबान ने यहां अपना जंगल का कबीलाई राज जैसा चलाया था, उसके लौटने के आसार बढ़ते जा रहे हैं। अपने दबदबे में आए इलाकों में अभी से तालिबानी जिहादियों ने अपने फरमानों की मुनादी कर दी है। लड़कियों की तालीम अब बंद कर दी गई है, इसलिए लड़कियों के कई स्कूलों को ताला लगा दिया गया है।
तालिबान के इस दावे से लोगों में भय बढ़ रहा है कि 90 फीसदी देश उसके हाथ आ चुका है। लोगों को भय है कि अगर तालिबानी फिर से सत्ता में आए तो फिर से बर्बर कबीलाई कायदे लागू कर दिए जाएंगे और लोगों का जीना मुहाल बना दिया जाएगा। ऐसी खबरें आई हैं कि तालिबान ने अपने हाथ आए जिलों में लड़कियों के स्कूलों को बंद कर दिया है। लोगों पर दूसरे फरमान भी मानने की सख्ती की जा रही है कि अफगानी परिवार अपनी लड़कियों की शादी जिहादी हत्यारों से करें। पुरुष दाढ़ी बढ़ाएं और मस्जिदों में जाएं।
बता दें कि अफगानिस्तान में 1996 से 2001 तक चली तालिबानी हुकूमत के दौरान पाकिस्तान की तरफ से उसे सैन्य और राजनीतिक सहयोग व समर्थन मिलता रहा था। तब औरतों के नौकरी करने, लड़कियों के स्कूल जाने या किसी पुरुष के साथ के बिना घर से निकलने पर रोक थी। पुरुषों को दाढ़ी बढ़ाने और टोपी या पगड़ी पहनने को कहा गया था। गीत—संगीत और दिल बहलाने के दूसरे तरीकों पर रोक थी।
अफगानिस्तान में 1996 से 2001 तक चली तालिबानी हुकूमत के दौरान पाकिस्तान की तरफ से उसे सैन्य और राजनीतिक सहयोग व समर्थन मिलता रहा था। तब औरतों के नौकरी करने, लड़कियों के स्कूल जाने या किसी पुरुष के साथ के बिना घर से निकलने पर रोक थी। पुरुषों को दाढ़ी बढ़ाने और टोपी या पगड़ी पहनने को कहा गया था। गीत-संगीत और दिल बहलाने के दूसरे तरीकों पर रोक थी।तालिबान के इन फरमानों को न मानने वालों को सरेआम कोड़े मारना, पीटना या बेइज्जत करना आम बात थी।
तालिबान के इन फरमानों को न मानने वालों को सरेआम कोड़े मारना, पीटना या बेइज्जत करना आम बात थी। इन नियमों की अवहेलना करने वाली औरतों को कई बार पत्थर मार—मार कर मार भी दिया जाता था। तालिबान एक बार फिर से अपने कब्जे वाले इलाकों में इसी वहशी चलन को लाने की ओर है।
समझौतों, करारों और दिखाने की वार्ताओं से इतर तालिबान अफगानिस्तान में बर्बरता की सभी हदें फिर से तोड़ने लगे हैं। अंरराष्ट्रीय बिरादरी में इसे लेकर चिंता तो है लेकिन धरातल पर उनकी कोशिशें प्रभवी होती नहीं दिख रही हैं। आने वाला वक्त अफगानिस्तान में क्या दृश्य दिखाने वाला है इस पर अभी संशय बना हुआ है।
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