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जैथलिया जी ने मध्यवर्गीय धार्मिक परिवार से मिले तथा बाद में राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ से प्राप्त देशभक्ति और समाज सेवा के संस्कारों को अपने जीवन में उतार लिया था। उनके आचार, व्यवहार तथा विचारों में ये संस्कार सजीव दिखाई देते थे। उनके संपर्क में जो भी आया, वह उन्हीं का हो गया। उनकी आत्मीयता मन मोह लेती। वे अजातशत्रु थे। उनका रचनात्मक चिंतन, समर्पण भाव और सबको साथ लेकर काम करने की कला के सब मुरीद थे। संघ के हर सेवा प्रकल्प को सदा उनका सक्रिय सहयोग प्राप्त रहा।
1958 में दिल्ली में नगर निगम की स्थापना हुई थी और चुनावों में भारतीय जनसंघ को अच्छी सफलता मिली थी। मैं सदन में नेता प्रतिपक्ष था। दिल्ली नगर निगम सीधे केंद्र सरकार के अधीन था। गृह मंत्री श्री गोविन्द वल्लभ पंत थे। निगम की पहली सभा में उनका अभिनंदन होना था। उनको भेंट किए जाने वाले सम्मान-पत्र के मसौदे में महात्मा गांधी जी के लिए ‘राष्टÑपिता’ शब्द का प्रयोग किया गया था। मैंने उस शब्द को बदलने और उसके स्थान पर गांधी जी के लिए ‘भारत माता के अनन्य सपूत’ शब्द लिखने का संशोधन, यह कह कर प्रस्तुत किया था कि ‘राष्टÑपिता’ शब्द का प्रयोग देश भर में इस धारणा को फैलाने वाला है कि जैसे हमारा राष्टÑ 1947 में ही बना हो जबकि हमारा राष्टÑ तो अति प्राचीन है। यह भी कहा कि ‘राष्टÑ’ शब्द का प्रयोग तो वेद काल से है और हमारे देश में भगवान राम और भगवान कृष्ण तक को अवतारी पुरुष भले ही कहा हो, किंतु उन्हें भी भारत माता के सपूत ही माना है। लंबी बहस हुई और देशभर में वह समाचार प्रमुखता से छपा। जैथलिया जी ने बताया कि इस बहस ने ही मुझे अपने गांव में वाचनालय स्थापित करने की प्रेरणा दी थी।
(केदारनाथ साहनी, पूर्व राज्यपाल, सिक्किम एवं गोवा द्वारा जैथििलया जी के निधन के पश्चात दी गई श्रद्धांजलि)
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