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अमरावती, महाराष्ट्र निवासी कृषक सुभाष पालेकर भारत में शून्य लागत कृषि के जनक हैं। गत वर्ष भारत सरकार से पद्मश्री से सम्मानित श्री पालेकर देश में घूम-घूमकर कार्यशालाएं आयोजित करते हैं और सीधे किसानों से संवाद करते हैं। प्रस्तुत हैं शून्य लागत खेती और ऐसे ही कुछ विषयों पर उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश :
यह शून्य लागत खेती क्या है?
कृषि में आजकल सबसे ज्यादा लागत आती है फर्टिलाइजर एवं कीटनाशकों पर। शून्य लागत कृषि पद्धति में रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होता इसलिए इस पर खर्च नहीं होता है। पानी की खपत भी कम हो जाती है। प्राकृतिक तरीके से खेती होने के कारण लागत शून्य हो जाती है। देसी गाय का गोबर एवं गोमूत्र इस खेती की प्रमुख आवश्यकताएं हैं।
इसमें गाय की क्या उपयोगिता है?
इस कृषि में गाय की नहीं देसी गाय की उपयोगिता है। देसी गाय के एक ग्राम गोबर में असंख्य सूक्ष्म जीव होते हैं। ये जीव फसल के लिये आवश्यक 16 तत्वों की पूर्ति करते हैं। इस विधि में खास बात यह है कि फसलों को बाहर से भोजन देने के स्थान पर भोजन का निर्माण करने वाले सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ा दी जाती है। इस तरह इस प्रक्रिया के द्वारा 90 प्रतिशत पानी व खाद की बचत होती है।
आपके रासायनिक खेती के विरोध के पीछे क्या वजह है?
रासायनिक खेती प्राकृतिक संसाधनों के लिये खतरा है। इसमें लागत भी ज्यादा आती है और इनके द्वारा जहरीले पदार्थ का रिसाव होता है। यह दो तरह से नुकसान करती है। एक तो यह हमारे शरीर को प्रभावित करती है एवं दूसरे, इसके प्रयोग से जमीन धीरे-धीरे बंजर होती चली जाती है।
शून्य लागत कृषि को जनांदोलन बनाने का फैसला कैसे किया?
मैंने 1988 से 1995 के बीच शून्य लागत कृषि पर लगातार प्रयोग किये। इसके परिणाम आश्चर्यजनक एवं विलक्षण रहे। इसके बाद अपने अनुभवों को मैंने अन्य प्रांतों के किसानों के साथ साझा किया। इस तरह मैंने इसे जनांदोलन बनाने का निर्णय किया। आज यह आंदोलन सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों तक फैल चुका है। यदि भारत की ही बात करें तो लगभग 40 लाख किसान इस शून्य लागत कृषि पद्धति का प्रयोग कर रहे हैं।
आप इस आंदोलन के लिये क्या प्रयास कर रहे हैं?
मैं भारत भर में कार्यशालाएं आयोजित करता हूं। किसानों को पूरी प्रक्रिया समझाता हूं। देश के बाहर भी मैंने कार्यशालाएं की हैं। इस तकनीक को अमेरिका, अफ्रीका समेत लगभग आधा दर्जन देशों में अपनाया जा चुका है। वहां के किसान इस तरीके के परिणामों से आश्चर्यचकित एवं उत्साहित हैं।
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