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सोशल मीडिया-कांग्रेस फिर नरम हिंदुत्व की ओर

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Dec 11, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Dec 2017 11:25:31

पं. नेहरू ने हिंदुओं से दूरी बनाकर रखी, जबकि इंदिरा गांधी ने नरम हिंदुत्व की नीति अपनाई थी। लेकिन राजीव गांधी हिंदुत्व और सेकुलरिज्म के बीच उलझ गए, जबकि सोनिया-मनमोहन युग में कांग्रेस खुलकर हिंदू विरोध पर उतर आई थी। अब राहुल को शिवभक्त बताकर कांग्रेस पुराने रास्ते पर चलती दिख रही है

यह सच है कि सोमनाथ मंदिर का पुनरुद्धार पं. नेहरू के सेकुलर एजेंडे में नहीं था। सरदार पटेल की पहल पर ही इसका पुनरुद्घार संभव हुआ था। नेहरू की लोकप्रियता शिखर पर थी। इसके चलते हिंदुओं के प्रति उन्होंने दूरी रखी। नेहरू ने बड़े संकोच में घुमा-फिरा कर यह इच्छा व्यक्त की थी कि मरणोपरांत उनकी अस्थियों की एक मुट्ठी राख संगम में भी विसर्जित की जाए। उस समय नेहरू के बाद आए लालबहादुर शास्त्री परंपरावादी थे। राजनेता के साथ लोहिया सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रखर अग्रदूत थे। भारतीय जनसंघ उभार ले रहा था। इस परिदृश्य में इंदिरा गांधी ने नरम हिंदुत्व की नीति अपनाई। मां आनंदमयी के यदा-कदा दर्शन, गले में रुद्राक्ष की माला और सिर पर पल्लू उनके बहुत काम आया। हालांकि गोवध निषेध आंदोलन में साधु-संतों पर निर्ममता से लाठीचार्ज इंदिरा गांधी सरकार ने ही करवाया था लेकिन राजीव गांधी नरम हिंदुत्व व सेकुलरिज्म के बीच उलझ गए। राम जन्मभूमि का ताला खुला तो मुसलमान तिलमिला गए। राजीव ने उन्हें खुश करने को शाहबानो मामले में संसद में विधेयक पारित करा कर सुप्रीम कोर्ट का आदेश निष्प्रभावी कर लाखों मुस्लिम महिलाओं का हक छीना। सोनिया-मनमोहन युग में कांग्रेस खुल कर हिंदू विरोध पर उतर आई। जो कांग्रेस नेता यह कहते नहीं थकते थे कि आतंकवाद का कोई रंग और मजहब नहीं होता, उसी कांग्रेस सरकार के गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भगवा आतंकवाद की खोज कर ली। सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर मनमोहन सरकार ने राम के अस्तित्व से ही इनकार कर उन्हें कवि की कोरी कल्पना बताने का पाप किया। उसी दौर में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था—‘संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है।’ सेना में भी मजहब के आधार पर सिर गिनने की कोशिश हुई थी। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद सोनिया, राहुल और मनमोहन सिंह ने राहत शिविरों में दंगा पीड़ित अल्पसंख्यकों का हालचाल तो जाना पर किसी भी पीड़ित हिंदू के घर जाने से परहेज किया। वे कहने को एक हिंदू राजेश वर्मा के घर गए, वह भी इसलिए कि वह पत्रकार था। बहुत से लोगों को याद होगा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की शर्मनाक पराजय के कारणों की पड़ताल के लिए गठित एंटनी समिति ने बहुसंख्यक समाज की उपेक्षा को एक बड़ा कारण माना था। इस रिपोर्ट के बाद भी कांग्रेस का रवैया नहीं बदला पर एक के बाद एक प्रदेशों में पराजय के बाद अब गुजरात में कांग्रेस को नरम हिंदुत्व की राह दिखी है। अब तो राहुल बाबा खुद को शिव भक्त बता रहे हैं। मंदिर-मंदिर जाकर दर्शन-पूजन कर रहे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता उनके हिंदू होने के सबूत के तौर पर जनेऊ वाले चित्र दिखा रहे हैं।       (जितेंद्र दीक्षित की फेसबुक वॉल से)

विवाद पैदा कर पार्टी को किया शर्मसार
राहुल गांधी के सोमनाथ मंदिर में प्रवेश पर विवाद का जो सूत्रपात कांग्रेस प्रवक्ताओं ने किया, उससे पूरी पार्टी शर्मिंदा हो गई। राहुल शिव भक्त हैं, जनेऊधारी हैं जैसे बयानों ने पार्टी उपाध्यक्ष की विश्वसनीयता को बौना कर दिया। नतीजा यूपी में भाजपा की महाविजय, जिसका असर गुजरात पर होगा, ऐसी प्रबल संभावना है। सोनिया गांधी को इंदिरा गांधी की तर्ज पर पार्टी की प्रासंगिता बनाए रखने के लिए कांग्रेस में छंटनी के कदम उठाने होंगे, क्योंकि अब केंद्र के बाद निगम निकायों में भी भाजपा मजबूती से स्थान बना रही है।
कबीरदास ने कहा है, ‘‘निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय। बिन पानी, साबुन बिना निर्मल करे सुभाय।’’ इसका अर्थ है—व्यक्ति को सदा चापलूसों से दूरी और अपनी निंदा करने वालों को पास रखना चाहिए, क्योंकि निंदा सुनकर ही स्वयं को निर्मल करने का विचार आ सकता है और यह निर्मलता पाने के लिए साबुन-पानी की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन देशव्यापी प्रथा चल रही है जिसमें चाटुकार प्रमुखता से अर्थ और सत्ता सुख पा रहे हैं। यह सुख मिलते रहने की संभावना क्षीण होने तक भी वे ताली बजाते रहेंगे। इसका जीवंत उदाहरण देखने को मिल रहा है राहुल गांधी के सोमनाथ मंदिर में प्रवेश पर। देश के कई सनातन मंदिरों में विधर्मियों का प्रवेश वर्जित है, इंदिरा गांधी को भी इस नियमानुसार मंदिरों में प्रवेश की अनुमति नहीं मिली थी। तब कोई शोर नहीं मचा और न किसी प्रवक्ता ने आधिकारिक रूप से कुछ कहा या सफाई दी। एक बुलबुला उठा, फिर सब शांत।     (सतीशचंद्र शर्मा की फेसबुक वॉल से)

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