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भारत सरकार की कड़ाई से वे विदेशी गैर-सरकारी संगठन भारत छोड़ने लगे हैं, जो सेवा की आड़ में कन्वर्जन कराते थे या कन्वर्जन कराने वालों की मदद करते थे
आशीष कुमार ‘अंशु’
भारत में सबसे बड़ी विदेश से चंदा देने वाली संस्था कंपेशन इंटरनेशनल ने दस महीने की उठापटक के बाद तय कर लिया है कि वह भारत में अपना बोरिया बिस्तर समेट लेगी। यह साबित हो गया है कि संस्था अपने पैसों का इस्तेमाल भारत में कन्वर्जन कराने के लिए करती थी। यह भी पाया गया है कि संस्था ने भारतीय एफसीआरए (फॉरन कन्ट्रीब्यूशन (रेगुलेशन) एक्ट) कानून को धता बताकर अपनी मर्जी से कई जगह पैसों का दुरुपयोग किया है। ऐसा सिर्फ कंपेशन इंटरनेशनल के साथ नहीं हुआ है। विदेशी दान लेने और खर्च करने में संस्थाओं द्वारा ईमानदारी बरती जा रही है या नहीं, इस विषय को लेकर जब से गृह मंत्रालय सतर्क हुआ है, तब से अनेक गैर-सरकारी संस्थाओं के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं।
बता दें कि ईसाई संस्थाओं द्वारा भारत में दिखाई जाने वाली रुचि और बिना किसी बाधा के भारत में चलने वाली कन्वर्जन की कबड्डी कई महीनों तक पूर्व राष्ट्रपति ओबामा के समय अमेरिकी प्रशासन और भारत सरकार के बीच तनाव की वजह भी रही। अब ट्रंप प्रशासन के विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने कहा है कि वह कंपेशन इंटरनेशनल के भारतीय अध्याय के बंद होने के मामले को गंभीरता से लेंगे। पिछले साल भी पूर्व विदेश मंत्री जॉन केरी ने कंपेशन इंटरनेशनल पर की जा रही कार्रवाई पर भारत सरकार से नरमी दिखाने का आग्रह किया था। उस वक्त खबर यही आई थी कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने केरी के साथ हुई बैठक में कहा था कि भारत सरकार चाहती है कि यहां काम करने वाले सभी एनजीओ भारतीय नियम और शर्तों का पालन करें और फिर में काम करें। केरी चाहते थे कि कंपेशन इंटरनेशनल से विदेश से भारतीय एनजीओ को सीधा पैसा भेजने का जो अधिकार छीन लिया गया है, उसे फिर से बहाल कर दिया जाए। कंपेशन इंटरनेशनल के अलावा यूएस की द नेशनल इनडाउनमेन्ट फॉर डेमोक्रेसी एंड जॉर्ज सोर्स, मर्सी कॉर्पस, ओपन सोसायटी फाउंडेशन जैसी संस्थाएं भी थीं, जिन पर गृह मंत्रालय के एफसीआरए इकाई की नजर थी।
कंपेशन इंटरनेशनल की तरफ से भारत की गैर-सरकारी संस्थाओं के खाते में भेजे जाने वाले पैसों पर लंबे समय से गृह मंत्रालय की नजर थी। यह नजर और टेढ़ी तब हुई जब संस्था की तरफ से चेन्नई स्थित एक संदेहास्पद गैर-सरकारी संस्था और कुछ ऐसी संस्थाओं को पैसा भेजा गया, जिनके पास एफसीआरए तक नहीं था। इनमें वे संस्थाएं शामिल थीं, जिन पर कन्वर्जन का आरोप लगता रहा है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार कंपेशन इंटरनेशनल भारत में 2012-13 की सबसे बड़ी विदेशी दाता संस्था थी। इस साल संस्था ने भारत की गैर-सरकारी संस्थाओं को 18,383 करोड़ रुपए बांट दिए। कंपेशन इंटरनेशनल पिछले 30 साल से भारत में काम कर रही थी। लगभग 292 करोड़ रुपए यह संस्था प्रतिवर्ष 344 भारतीय गैर सरकारी संस्थाओं को बांटा करती थी। संस्था की विदाई की ताबूत पर अंतिम दो कील जो दो गैर-सरकारी संस्थाएं बनीं, उनमें एक चेन्नई स्थित करुणा बाल विकास ट्रस्ट है। दूसरी संस्था है, कंपेशन ईस्ट इंडिया। इन्हीं संस्थाओं को मिले धन में एफसीआरए के नियमों की अनदेखी होते हुए पाकर गृह मंत्रालय सतर्क हुआ था।
इसी साल जनवरी में अमेरिका से कंपेशन इंटरनेशनल के उपाध्यक्ष स्टीफन ओकले खास तौर से विदेश सचिव एस. जयशंकर से मिलने के लिए भारत आए। उन्हें सारे सबूत दिए गए। उन्हें बताया गया कि भारत में जो गैर-सरकारी संस्थाएं कंपेशन इंटरनेशनल के साथ सम्बद्ध हैं, उन्होंने एफसीआरए के नियम और शर्तों का उल्लंघन किया है। यहां तक कि उन पैसों का बड़ा हिस्सा कन्वर्जन में खर्च हुआ है।
भारत ने स्पष्ट कर दिया कि कंपेशन इंटरनेशनल को भारत में काम करने के लिए उसी प्रकार भारतीय नियम और शर्तों को मानना पड़ेगा जिस प्रकार वह अमेरिकी नियमों को मानती है। उसे किसी तरह की रियायत नहीं दी जाएगी।
गृह मंत्रालय की एक रपट अनुसार सिर्फ 2013-14 में 12,000 करोड़ रुपए एफसीआरए के माध्यम से भारत में आया। इनमें से 200 करोड़ रुपए कन्वर्जन के लिए चर्च समर्थित संस्थाओं के पास गया। 18 विदेशी दानदाताओं ने ऐसी संस्थाओं की मदद की जो लोभ और लालच देकर कन्वर्जन करते थे। गृह मंत्रालय की रपट के अनुसार जिन संस्थाओं को चंदा मिला वे छोटी-मोटी घटनाओं को सांप्रदायिक रंग देने का भी काम करती थीं।
उद्गम ट्रस्ट (अमदाबाद) के निदेशक डॉ. मयूर जोशी बताते हैं, ‘‘गुजरात में मकवाना उपनाम वंचित परिवार भी लगाते हैं। मेरा एक मित्र, जिसका उपनाम मकवाना था, चर्च के स्कूल में जाता था। एक दिन ईसाई बन गया।’’ वे कहते हैं, ‘‘गांधीनगर में मेरे घर के पड़ोस में ही एक घर में चर्च चलता है, चर्च आॅफ नॉर्थ इंडिया। इस चर्च से 100 मीटर पर कैथोलिक चर्च है। कैथोलिक चर्च में चर्च आॅफ नॉर्थ इंडिया में आने वाले नहीं जाते और जो चर्च आॅफ नॉर्थ इंडिया में आते हैं, वे कैथोलिक चर्च में नहीं जाते। अब जो लोग कहते हैं कि वंचितों के साथ भेदभाव की वजह से हिन्दू धर्म छोड़ रहे हैं। यह भेदभाव ईसाई हो जाने पर कौन-सा पीछा छोड़ रहा है? उसके बावजूद यह कड़वा सच है कि गुजरात के अंदर कैथोलिक रिलिफ सर्विसेज (सीआरएस) ने बड़ी संख्या में कन्वर्जन कराया है। इनके पास भी विदेशों से पैसा आता था।’’
मध्य प्रदेश में ईसाई मिशनरी की गतिविधियों पर केन्द्रित एक समिति का गठन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने नागपुर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एम. भवानी शंकर नियोगी की अध्यक्षता में किया। इसमें एम.बी. पाठक, घनश्याम सिंह गुप्ता, एस.के. जॉर्ज, रतनलाल मालवीय और भानु प्रताप सिंह पांच सदस्य थे। समिति ने 700 गांवों के 11,360 लोगों से संपर्क किया। 375 लिखित बयान मिले और 385 लोगों ने लिखित सवाल पर अपनी प्रतिक्रिया को लिखकर भेज दिया। समिति मध्य प्रदेश के 14 जिलों के अंदर चर्च, अस्पताल और अन्य संस्थानों में गई। रपट में यह बात आई कि राज्य में बड़े पैमाने पर कन्वर्जन हो रहा है। इसके बाद रपट को नेहरू सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया।
रांची विश्वविद्यालय में प्राध्यापक डॉ. दिवाकर मिंज कहते हैं, ‘‘वनवासियों को चर्च प्रेरित एनजीओ झारखंड में मूर्ख बनाते हैंं। उन्हें सरकारी आरक्षण और छात्रवृत्ति की वजह से तरक्की मिली है। लेकिन इसका श्रेय झारखंड के चर्च प्रेरित एनजीओ ले लेते हैं।’’
एफसीआरए में एक फॉर्म एफसी 03 होता है। इसमें यह बताना होता है कि आपका संबंध किसी मजहबी संगठन या विचार से है या नहीं? यदि आप किसी मजहबी गतिविधि का हिस्सा हैं तो उसका नाम फॉर्म में लिखना होता है। दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर राकेश सिन्हा कहते हैं, ‘‘मेरे पास 128 एनजीओ की सूची है। कहने को तो ये विकास का काम करते हैं, लेकिन ये सब मजहब का काम करते हैं। उनमें एक है वर्ल्ड विजन। वेबसाइट पर इसे क्रिश्चियन ह्यूमेनेटेरियन आॅर्गेनाइजेशन लिखा गया है, लेकिन एफसीआरए के फॉर्म में यह संस्था लिखती है कि हमारा किसी मजहब से संबंध नहीं है। ऐसी संस्थाओं की कमी नहीं है।’’
उम्मीद है कि सरकार की कार्रवाई से वे संगठन भी सतर्क हो जाएंगे, जो भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं।
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