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पाठकों के पत्र
12फरवरी, 2017
आवरण कथा ‘सहजता का सम्मान’ अच्छी लगी। अंक में साहित्य, श्रम, चिकित्सा, कला व शिक्षा क्षेत्र से जुड़े उन तपस्वियों के गुपचुप काम प्रकाशित किए जो अभी तक समाज की नजरों से ओझल थे। समाज के लिए ऐसे लोग गर्व का विषय हैं और प्रत्येक व्यक्ति को इनसे शिक्षा लेनी चाहिए।
—रामेन्दु सिरोही, जयपुर (राज.)
आज के आपाधापी और आर्थिक युग में जब किसी के पास एक पल भी समय नहीं है, ऐसे में इन वीर रथियों का समाज के प्रति कार्य और जज्बा काबिलेतारीफ है। ऐसे महान लोगों को केन्द्र सरकार ने पद्मश्री प्रदान करके इस सम्मान की गरिमा बढ़ाई है।
—अनुज राठौर, सासाराम (बिहार)
जीवन तो हर कोई जीता है, लेकिन असल जीवन तो वह है जो किसी दूसरे के काम आए। इस अंक में ऐसे ही कुछ विशिष्ट लोगों के बारे में जानकर न केवल अच्छा लगा बल्कि इनसे प्रेरणा मिली। ये वे लोग हैं जो अपना जीवन जीते हुए दूसरे के दुखों को दूर करने का काम करते हैं। इन के काम को जानकर खुद के जीवन में अपार ऊर्जा का मानो संचार हो गया।
—रंजना सेठाना, बड़वाह (म.प्र.)
अंक गागर में सागर के समान है। पद्मश्री सम्मान हो या फिर अन्य कोई राष्ट्रीय सम्मान, वर्षों से इन पुरस्कारों पर राजनीति की छाया दिखती थी। लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं दिखा, जबकि पांच राज्यों में चुनाव भी थे। इस बार जिन्हें सम्मान दिए गए वह असल में जमीनी स्तर पर गुपचुप काम करने वाले योद्धा हैं। उनकी नि:स्वार्थ राष्ट्र, समाज के प्रति सेवा को सम्मान मिलना राष्ट्र के लिए गौरव का विषय है।
—सुनंदा गौर, पटना (बिहार)
कपटी मिशनरियां
रपट ‘सेवा या षड्यंत्र’ (5 फरवरी,2017) में चर्च और ईसाई मिशनरियों का एजेंडा उजागर हुआ है। गौर करने वाली बात ये है कि मिशनरियां अब शहरी क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटी हैं। यहां के नवयुवकों-युवतियों को वे अपना निशाना बना रही हैं और उनका कन्वर्जन करने के लिए षड्यंत्र रच रही हैं। समाज और खुफिया एजेंसियों को इसका संज्ञान लेना चाहिए ताकि इन पर लगाम लगे और कोई अप्रिय घटना न घटे।
—राघव चड्ढा, चंडीगढ़ (हरियाणा)
बदलती बयार
रपट ‘बदलाव को बेचैन’ से जाहिर होता है कि अब उत्तर प्रदेश की जनता राज्य का विकास चाहती है। अभी तक वह सपा-बसपा के छलावे में आती रही और ये दल उसे ठगते रहे। जनता को जितना मूर्ख बनाया जा सकता, इन्होंने बनाया और वोट के नाम पर आज भी बना रहे हैं। लेकिन अब वह मूर्ख न बनकर इन दलों के कार्यकाल को तोल रही है और आक रही है कि इन्होंने राज्य का पांच साल में विकास किया या फिर विनाश।
—राममोहन चन्द्रवंशी, मेल से
सपा ने चुनाव से पहले जो सियासी चालें चलीं, उसमें वह खुद फंस चुकी है। जिस कांग्रेस के साथ उसने हाथ मिलाया उसी के युवराज राहुल गांधी सपा सरकार की बखिया उधेड़ देते हैं। ऐसी स्थिति में अखिलेश को मुंह छिपाते नहीं बनता। लेकिन करें भी तो क्या करें। राज्य की जनता सपा-कांग्रेस के जुमलों और नौटंकी पर हंस कर अपना मनोरंजन कर रही है। इस चुनाव में उन्हें अखिलेश और राहुल के रूप में दो हंसाने वाले किरदार जो
मिले हैं।
—अनुराग भट्टाचार्य, कोलकाता (प.बंगाल)
अखिलेश ने चुनाव के पहले जो ड्रामा किया, उससे वे समझते हैं कि उन्होंने जनता को बेवकूफ बना लिया, पर यह उनकी भूल है। राज्य की जनता चुनाव के समय उनके ड्रामे को बहुत अच्छी तरह समझती है और चुनाव परिणामों में यह दिखाई भी देगा।
—कमलेश ओझा, इमेल से
संघे शक्ति कलौयुगे
‘90 बरस राष्ट्र सेवा के’ (11 दिसंबर, 2016) संग्रहणीय विशेषांक न केवल पठनीय है बल्कि संघ के बारे में अनेक जिज्ञासाओं को शांत करता है। विरोधियों की भ्रान्तियों, गफलतों को दूर करने का स्तुत्य प्रयास है। राष्ट्र निर्माण में 90 वर्ष, सामाजिक भूमिका, पं. दीनदयाल जी का एकात्म मानववाद तथा भारतीय संस्कृति की पृष्ठ भूमि प्रस्तुत कर राष्ट्र के चहुंमुखी प्रगति की विस्तृत दशा और दिशा का चित्रण इस अंक में है। संघ की 90 वर्षों की यात्रा राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने के लिए प्रयासरत है।
—वीरेंद्र गौड़, इन्दौर (म.प्र.)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सामाजिक विषमताओं को दूर कर हिन्दुत्व को आधार बनाकर एक समग्र राष्ट्र का निर्माण करने की दिशा में अग्रसर है। लेकिन फिर भी सेकुलर संघ और उसके कार्यों के बारे में अनेक भ्रान्तियों को फैलाते रहते हैं। लेकिन मजे की बात ये हैं कि वे जितना संघ का दुष्प्रचार करते हैं, संघ कार्य उतना ही बढ़ता है।
— शुभम राठौर, समस्तीपुर (बिहार)
कुछ वर्षों में समाज में एक सकारात्मक बदलाव दिखाई दे रहा है। हर समय समाज के अंदर बुराई देखने वालों को इसे महसूस करना चाहिए। जो वर्ग कभी संघ के नाम से चिड़ता था या फिर किसी के बहकावे में ऐसा करता था वह अब संघ के निकट आ रहा है। यथार्थ को समझ रहा है। वह जान रहा है कि संघ के बारे में जो गलत बातें समाज में एक वर्ग द्वारा फैलाई गर्इं वे निहायत कोरी हैं और उनमें कोई दम नहीं है। इस सभी के चलते संघ कार्य निरंतर बढ़ता जा रहा है।
— राकेश, मेरठ (उ.प्र.)
पुरस्कृत पत्र
क्या ये संविधान से बढ़कर हैं?
देश का संविधान सभी भारतवासियों को समान अधिकार और समान अवसर देने के लिए प्रतिबद्ध है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए उसमें पंथ निरपेक्षता स्वीकार की है। इस पंथ निरपेक्षता का लाभ सबको तो मिला लेकिन हिन्दुओं को नहीं। हिन्दू रीति-रिवाज, परंपरा, और मान्यता के विरुद्ध, दहेज प्रथा विरोधी कानून, संबंध विच्छेद जैसे कानून बने और हिन्दुओं ने उन्हें स्वीकारा। लेकिन अन्य मत-पंथों ने ऐसे किसी भी कानून को नहीं माना। बल्कि उल्टे मजहब के मामले में दखल देने के लिए समय-समय पर आखें तरेरीं। आजकल तीन तलाक का मामला सुखिर्यों में है। मुल्ला-मौलवी और राजनीतिक दल अपने-अपने विचार रख रहे हैं। लेकिन अधिकतर मुसलमान तीन तलाक के मामले में महिलाओं पर होते अत्याचारों पर बोलने से कतराते हैं। दरअसल वैधानिक और मजहबी रवायतों के अनुसार कोई भी मुसलमान किसी भी स्त्री को जबरदस्ती अपनी बीवी नहीं बना सकता। इसलिए ही जब निकाह पढ़ा जाता है और मौलाना लड़की से पूछता कि उसे निकाह कबूल है? यदि लड़की न कहे तो वह निकाह नहीं हो सकता। इससे स्पष्ट है कि बलात् किसी लड़की से निकाह किया तो यह गैर इस्लामिक होगा। अब सवाल बनता है कि जब निकाह के समय स्त्री का कबूलनामा जरूरी है तो फिर तीन तलाक के समय यह क्यों नहीं जरूरी? समाज को ऐसे प्रश्नों पर विचार करना चाहिए। भारत का संविधान और कानून सबके लिए समान है। कोई भी मत-पंथ संविधान के ऊपर नहीं है। इस्लाम में महिलाओं पर होते जुल्म पर केन्द्र सरकार को कानून बनाना ही चाहिए। साथ ही मुस्लिम महिलाओं को भी जागरूक होना चाहिए, ताकि उन पर होने वाले जुल्म रुकें। यद्यपि विश्व के कई इस्लामिक देशों तक में यह कुप्रथा बंद हुई है और इसका विरोध हुआ है। अब भारत में भी इस पर तत्काल प्रतिबंध लगना चाहिए और कड़ा कानून बनना चाहिए।
—जमना प्रसाद गुप्त, 557,द्वितीय पथ, सदर बाजार, जबलपुर (म.प्र.)
दुनिया हैरान।
वाणी की स्वाधीनता, दिल्ली के मैदान
देश विरोधी जुट रहे, है दुनिया हैरान।
है दुनिया हैरान, यहीं की रोटी पानी
खा पीकर जीते हैं पर ऐसी नादानी।
कह ‘प्रशांत’ ऐसों के मुंह में आग लगाओ
लात मारकर सीमाओं के पार पठाओ॥
— ‘प्रशांत’
कसे शिकंजा
रपट ‘केरल या कसाईखाना’ (5 फरवरी, 2017) से जाहिर है कि केरल और पश्चिम बंगाल में वामपंथी और अल्पसंख्यक समुदाय आएदिन असामाजिक गतिविधियों में लिप्त हंै। जहां केरल में कम्युनिस्ट तत्व संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं को निशाना बनाकर उनकी हत्या कर रहे हैं तो वहीं बंगाल में ममता सरकार की तुष्टीकरण की नीति के चलते मुसलमानों के हौसले बुलंद हैं। ऐसी घटनाओं ने समाज का न केवल माहौल खराब किया है बल्कि हिन्दू समाज को आक्रोशित भी किया है। छोटी-छोटी बातों पर तूफान खड़ा करने वाला मीडिया केरल और बंगाल की घटनाओं पर कुछ नहीं बोलता और न ही बहस चलाता है।
—मनोहर मंजुल, मेल से
आज केरल में कम्युनिस्टों द्वारा जो भी किया जा रहा है, उसने मानवता को शर्मसार किया है। क्या वैचारिक असहमति होने पर इस तरह का कृत्य किया जाएगा? केरल के मुख्यमंत्री को इसका जवाब देना चाहिए। क्योंकि आएदिन राज्य में भाजपा-संघ कार्यकताओं को मार दिया जाता है और वहां का शासन-प्रशासन कुछ नहीं करता? असहिष्णुता का मुदद बनाकर सम्मान लौटाने वाले अब कहां हैं? क्या उन्हें ये सब नहीं दिख रहा?
—किरण मजूमदार, लाजपत नगर (नई दिल्ली)
क्यों नहीं होती कार्रवाई?
जम्मू-कश्मीर में आएदिन अशांति फैलाने वालों को कांग्रेस एवं अन्य सेकुलर दलों के नेता खुलेआम संबल प्रदान कर रहे हैं और उनकी पैरोकारी करते दिख रहे हैं। इस मामले में जितना उन नेताओं का है, उतना ही खामी हमारे कानून व्यवस्था की भी है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर यहां कोई भी कुछ भी बोल देता है और उसके खिलाफ कुछ भी कार्रवाई नहीं होती। क्या देश और सेना के खिलाफ लड़ने वालों को जो हौसला देते हैं, वे देशविरोधी नहीं हैं?
—कुमुद कुमार, बिजनौर (उ.प्र.)
हाल ही में सेनाध्यक्ष ने कहा कि ‘आतंकवादियों का साथ देने वाला आतंकवादी ही होता है।’ यह पहली बार है कि सेनाध्यक्ष ने खुले तौर पर बिलकुल स्पष्ट बोला है। यह देश के लिए शुभ संकेत है। आएदिन होती पत्थरबाजी पर सेना को समय रहते कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है।
—दिनेश निगम, सोनीपत (म.प्र.)
जब पत्थरबाजों पर पैलेट गन के छर्रे बरसते हैं तो सेकुलरों के पेट में मरोड़ उठने लगती है लेकिन सेना पर पत्थरबाजी करते समय उनके कारनामे किसी कोई दिखाई नहीं देते। आएदिन सैनिकों को इनसे जूझना पड़ता है। शायद ही ऐसा कोई दिन जाता हो जब कोई सैनिक आतंकवादियों के हमलों से शहीद न होता हो। यह क्रम दसकों से चला आ रहा है। अब इस पर रोक लगनी चाहिए और असामाजिक एवं देशद्रोहियों पर कड़ी कार्रवाई करने से ही इन हौसले पस्त होने वाले हैं।
—सूर्यप्रताप सोनगरा, कांडरवासा (म.प्र.)
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