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''केवल कानूनों में बदलाव करने से महिलाओं की स्थिति नहीं सुधरेगी, बल्कि इसके लिए व्यापक सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता है।' यह कहना था राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय महिला समन्वय प्रमुख गीता ताई गुंडे का। वे 'महिलाओं के लिए बने संपत्ति व विवाह कानूनों की प्रभावशीलता' विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रही थीं। संगोष्ठी का आयोजन 'चेतना' तथा 'राष्ट्रीय महिला आयोग' के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था। उन्होंने कहा कि मनुष्य ने जब समूह में रहना आरम्भ किया, तब से ही उसके अपने लिए उचित, अनुचित के नियम बना लिये थे। परम्परा के ज्ञान के आधार पर दंड व्यवस्था के भी नियम बने। भारतीय शास्त्रों में सती प्रथा जैसी रूढि़यां नहीं थीं। कालांतर में महिलाओं का पक्ष कमजोर पड़ता गया। वर्तमान में खाप पंचायतों के फैसलों पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि आज ऑनर किलिंग जैसी घटनाएं हो रही हैं, वह पिछले 50-60 साल पहले सुनने को नहीं मिलती थीं। जैसे समाज की अवनति हुई, उससे ज्यादा महिलाओं की अवनति हुई है। इस पर विचार करने की आवश्यकता है। भारतीय दृष्टिकोण में जहां अधिकारों की बात कही गई है, वहीं कर्तव्य को भी प्रमुखता से बताया गया है। कर्तव्य को धर्म से जोड़ा गया है, किन्तु धर्म यहां उपासना नहीं, बल्कि परिवार, समाज एवं देश के प्रति कर्तव्यों के पालन को कहा गया है। एक मनुष्य के नाते जो हमको करना चाहिए, वह धर्म है। उन्होंने कहा कि वंचित व समाज से ठुकराई महिलाओं के लिए भी हमारे समाज में व्यवस्थाएं थीं। कुंआरी मांओं के लिए भी हमारा धर्म उदारता भाव बताता है। उसके बच्चे को अनाथाश्रम नहीं भेज कर नाना-नानी अथवा समाज के लोग संभालते हैं। अपने यहां ये व्यवस्थाएं थीं, हमें मानसिक उदारता का धर्म सिखाया जाता था। कानूनों में बदलाव भी इसी उदारता को ध्यान में रखकर होते रहते हैं। आज महिलाओं के संबंध में सर्वव्यापी विचार करने की आवश्यकता है। समाज में टुकड़ों-टुकड़ों पर विचार न करते हुए, इन विषयों पर एक समग्र विचार करेंगे तो मानवता के आधार पर, समाज को एक अच्छी दिशा की ओर अग्रसर कर सकते हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कानूनविद् ज्योतिका कालरा ने कहा कि समाज में बदलाव के लिए केवल कानून बना लेना अथवा सरकार के प्रयास ही पर्याप्त नहीं होते, अपितु उसके लिए एक-एक व्यक्ति को तैयार करने की जरूरत होती है। ऐसे सम्मेलनों में व्यक्ति निर्माण के ऐसे ही प्रयास किए जा रहे हैं। कानून होने के बाद भी आज 50 प्रतिशत शादियां तय सीमा से कम उम्र में हो रही हैं। महिला-पुरुष के समानाधिकार कानून बने हैं, आवश्यकता उनको सही से लागू करने की है। इससे पूर्व चेतना की महासचिव प्रज्ञा परांडे ने कहा कि हम सभी के अन्दर अनेक क्षमताएं हैं। चेतना संस्था इसे एकत्र कर महिलाओं व बच्चों के लिए अनेक उपक्रम चला रही है, जिसमें लिंग, समानता, महिला सुरक्षा, आत्मरक्षा प्रशिक्षण संबंधित गतिविधियां सम्मिलित हैं। प्रतिनिधि
दूरदर्शन के अत्युपयोग से आ रही दूरियां
गत दिनों मेरठ के विश्व संवाद केन्द्र में दूरदर्शन दर्शक मंच द्वारा 'दूरदर्शन की परिवार में घुसपैठ' विषय पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. गगन अग्रवाल ने दूरदर्शन के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि भारत में लोग घंटों टीवी के सामने बैठे रहते हैं लेकिन विदेशों में 20 से 30 मिनट ही देखते हैं। कार्यक्रम के अध्यक्ष व वरिष्ठ संवाददाता दूरदर्शन अनुज यादव ने कहा कि आम आदमी दूरदर्शन पर निर्भर होता जा रहा है। घर-परिवार में टीवी का अत्युपयोग होने के कारण रिश्ते तार-तार हो गए हैं और सामाजिक मूल्यों में गिरावट आई है। विभिन्न समाचार चैनल समाचार नहीं, विचारों का प्रसारण कर रहे हैं। प्राइम टाइम में लगभग सभी समाचार चैनलों पर बहस कार्यक्रम प्रसारित हो रहे हैं। यह केवल एजेंडा सेटिंग का कार्य कर रहे हैं। दर्शक अथवा समाज क्या चाहता है, इसकी परवाह उन्हें नहीं है।
मुख्य वक्ता राष्ट्रदेव के सम्पादक अजय मित्तल ने कहा कि आजकल मीडिया सकारात्मक बातों को छिपाकर नकारात्मक बातों को उभारता है। इससे न केवल समाज दिग्भ्रमित होता है बल्कि उसपर गलत असर पड़ता है। इस बात पर चिंतन की आवश्यकता है। प्रतिनिधि
'गाय है परिवार का अंग'
गत दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जोधपुर प्रांत द्वारा गो विज्ञान परीक्षा के राज्य स्तरीय सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर संघचालक श्री ललित शर्मा ने गाय की महत्ता पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि गाय हमारे परिवार के एक सदस्य की ही तरह है और हमारे लिए सदैव से पूज्य रही है। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में राज्य के शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी उपस्थित रहे।
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