इतिहास के पन्नों से : पं. नेहरू निम्न कोटि की दलबंदी से ऊपर उठें
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इतिहास के पन्नों से : पं. नेहरू निम्न कोटि की दलबंदी से ऊपर उठें

by
Feb 20, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 20 Feb 2017 15:41:52

—जम्मू केशरी पं. प्रेमनाथ डोगरा—

जम्मू-कश्मीर प्रजा परिषद् के अध्यक्ष श्री प्रेमनाथ डोगरा ने एक वक्तव्य में श्री नेहरू के 9 मार्च को लोकसभा के वक्तव्य की कटु आलोचना करते हुए कहा कि-चंथांग में नमक की झील पर चीनियों द्वारा किए गए अनधिकृत कब्जे के संबंध में नेहरू जी ने प्रजा परिषद् को तथ्यहीन समाचार प्रकाशित करने वाली अनुत्तरदायी संस्था घोषित किया है।

यह सत्य है कि यह अनधिकृत कब्जा कोई बिल्कुल नई घटना नहीं है। हम लोगों की शिकायत यह थी कि राज्य तथा केंद्रीय दोनों ही सरकारें इस तथ्य को छिपा रही थीं! जैसे ही प्रजा परिषद् को इसका पता चला तो उसका यह कर्तव्य था कि इसकी सत्यता का पता लगाए।  18 फरवरी, 1960 को दिए वक्तव्य द्वारा जनता को इस तथ्य से अवगत कराया गया। भारतीय पत्रों ने19 की प्रात:काल यह समाचार प्रकाशित किया। यह जानकर हम लोगों को आघात पहुंचा कि पं. नेहरू के वैदेशिक मंत्रालय ने उसी दिन प्रजा परिषद् के रहस्योद्घाटन के विरुद्ध एक वक्तव्य प्रसारित किया। उसके तत्काल बाद ही कश्मीर के मुख्यमंत्री बख्शी गुलाम मुहम्मद ने भी वैदैशिक विभाग के वक्तव्य का पृष्ठ-पोषण किया। दूसरे ही दिन 20 फरवरी को, जैसा वक्तव्य में स्पष्ट था कि यह समाचार प्रजा-परिषद् द्वारा प्रसारित हुआ है तो भी राज्य के इंसपेक्टर जनरल पुलिस ने संवाददाताओं को लिखित रूप से पूछा कि वे इसका सूत्र बताएं, क्योंकि वे इस समाचार को नितांत झूठ और आधारहीन समझे थे। बहुतों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि अभी जम्मू-कश्मीर पब्लिक सिक्युरिटी एक्ट की धारा 29 के अंतर्गत चंगथांग नामक झील पर चीनी अधिकार का समाचार प्रसारित करने के विरुद्ध राज्य की पुलिस द्वारा केस तैयार किया जा रहा है।

यह अच्छा हुआ कि अंततोगत्वा श्री नेहरू तथा बख्शी गुलाम मुहम्मद ने भी प्रजा परिषद् के समाचार की पुष्टि कर दी है। परंतु प्रजा परिषद् के विरुद्ध इतनी दुर्भावना क्यों? प्रजा परिषद् को बधाई देने के स्थान पर देश के प्रधानमंत्री ने इतने असम्मानित ढंग से संस्था पर आक्रमण किया है। यह दु:ख का विषय है कि देश का प्रधानमंत्री सीमा-सुरक्षा ऐसे विषय पर निम्न कोटि की दलबंदी से ऊपर नहीं उठ सका। हम लोगों को तो यही प्रसन्नता है कि प्रजा परिषद् के 12 वर्ष के जीवन में यह पहला ही अवसर नहीं है कि श्री नेहरू ने हमारे ठोस तथ्यों को बुरी तरह ठुकराया हो।

कांग्रेसी सरकार संविधान की उपेक्षा कर रही है

''यदि खाद्य समस्या सुलझानी है तो गोवध पर कानूनी रोक लगाइए''

18 मार्च, 1960 को लोकसभा में  कांग्रेस के ही सदस्य सेठ गोविंद दास ने सरकार की गो हत्या नीति की कटु आलोचना की थी और उन्होंने मांग की थी कि तुरंत गोहत्या बंद करने के लिए कानून बनाया जाए। उनके उस भाषण के प्रारंभिक अंशों को यहां प्रकाशित किया जा रहा है।

अध्यक्ष जी,  मैं आपका बहुत अनुगृहीत हूं कि आपने इस अनुदान पर सबसे पहले मुझे समय दिया है। इन चालीस वर्षों के सार्वजनिक जीवन में तीन मेरे प्रधान क्षेत्र रहे हैं, एक देश की स्वतंत्रता, दूसरे देश की भाषा और तीसरे देश का खाद्य और देश की तन्दुरुस्ती। लोग कहते हैं कि मैंने हिंदी और गो-रक्षा इन दोनों को एक साथ कैसे मिलाया है। मैं कहना चाहता हूं कि इन दो चीजों का एक-दूसरे से जितना

संबंध है,  उतना शायद किसी चीज से नहीं है। हिंदी से हमारे मस्तिष्क का संबंध है और गो-रक्षा से हमारे शरीर का संबंध है। शरीर के बिना मस्तिष्क निरर्थक है और मस्तिष्क के बिना शरीर निरर्थक है।

यह देश कृषि प्रधान देश है, इसे सब जानते हैं और सदा इस देश में एक बात उठा करती है कि उत्पादन बढ़ाया जाए। परंतु उस दिन शिक्षा के अनुदानों पर बोलते हुए जो बात मैंने भाषा के संबंध में कही थी और कहा था कि भाषा के विषय पर ध्यान न देने का अर्थ यह होता है कि मूल का ध्यान न रखकर केवल शाखा और पत्र गिनते हैं, उसी प्रकार मैं यह कहना चाहता हूं कि हम गो-रक्षा पर ध्यान नहीं देते हैं तो उत्पादन बढ़ाने की बात करना मूल को न देखकर शाखा और पत्र गिनना है।

इस देश में हमारी जमीन की जैसी स्थिति है और भिन्न-भिन्न राज्यों में अधिकतम सीमा निर्धारित होने के बाद जैसी स्थिति हो जाएगी उसमें और उतने अच्छे बैलों के बिना हमारे देश में खेती नहीं हो सकती।

अधिक अन्न उत्पादन करने के लिए हमको बैल चाहिए। उसी प्रकार से यह देश निरामिष भोजी है। जितना यह देश निरामिष भोजी है दुनिया का कोई देश नहीं है। अपने शरीर को बलिष्ठ रखने के लिए हमको घी और दूध की आवश्यकता है। हमारे ऋषि-मुनियों, हमारे तत्ववेत्ताओं ने एक बात देखी थी कि यथार्थ में यह सृष्टि एक ही तत्व है और हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी, इस वैज्ञानिक युग में भी इस खोज के आगे अभी तक कोई चीज नहीं गई है। मैं वही हूं जो आप हैं, आप वही हैं जो मैं हूं और समस्त सृष्टि वही हूं जो आप हैं, आप वही हैं जो मैं हूं इसलिए 'वसुधैव कुटुम्बकम्' हमारे यहां का सिद्धांत था और यदि समस्त वसुधा हमारा कुटुम्ब है फिर अहिंसा तो आपसे आप आ जाती है। इसलिए कांग्रेसवादी रहते हुए भी, कांग्रेस सरकार का बड़ा भारी समर्थक रहते हुए भी जब मैं देखता हूं कि हमारी सरकार मछली के रोजगार को प्रोत्साहन देती है, अंडों के रोजगार को प्रोत्साहन देती है तो मैं आपसे कहंू कि सिर से पैर तक मुझे आग लग जाती है।

दिशाबोध

'370 को समाप्त कर देना चाहिए'

'कुछ लोग कश्मीर को शेष भारत के अन्य प्रान्तों के मुकाबले अधिक स्वायत्तता की वकालत करते हैं। यह विचार पृथकतावादी तथा भारत की राष्ट्रीय एवं संवैधानिक मान्यताओं के खिलाफ है। हम असंदिग्ध रूप से स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि भारतीय जनसंघ और देश की जनता ऐसे किसी भी कदम को बर्दाश्त नहीं करेगी जिसमें भारत के साथ कश्मीर के पूर्ण एकीकरण की प्रक्रिया को उलटा जाए। यद्यपि संविधान का अनुच्छेद 370 हमारी अपनी व्यवस्था है तथा उसके कारण कश्मीर की भारत संघ के अटूट अंग होने के विषय में किसी भी प्रकार की अनिश्चतता नहीं पैदा होती, फिर भी वह एक अपवादजनक प्रावधान है; उसे समाप्त कर देना चाहिए। उसका अब कोई व्यावहारिक महत्व नहीं बचा है, किन्तु उसकी समाप्ति का मनोवैज्ञानिक दृष्टि से बहुत लाभ होगा। कश्मीर के बारे में जो तरह-तरह की अटकलबाजियां लगाई जाती हैं, वे सब बंद हो जाएंगी।'

—पं. दीनदयाल उपाध्याय (विचार-दर्शन, खण्ड-7, पृ. 83)

 

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