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उत्तर प्रदेश के सामने अवसर है, एक ऐसे बदलाव का, जो पूरी तस्वीर बदलकर रख दे। सहज सी बात है कि अगर उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदली, तो पूरे देश की तस्वीर भी बदल जाएगी। कैसे?
उत्तर प्रदेश बीमारू कहे जाने वाले राज्यों में सबसे भारी भरकम है। यहां गरीबी एक राजनीतिक शर्त बन चुकी है। लगभग 29़ 4 प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा से नीचे हैं। यहां परिवारों की औसत आमदनी भी भारत के राष्ट्रीय औसत से लगभग आधी है। उत्तर प्रदेश के पास गरीबी दूर करने को पूंजी नहीं है। फिर क्या हो? गरीबी अभिशाप होती है। लेकिन जब राजनीति धूर्तता से भर जाए, तो गरीबी ही वोटों की खेती भी हो जाती है। गौर से देखिए, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी को उनके पक्ष में पूरी लहर चलने पर भी अधिकतम करीब-करीब उतने प्रतिशत ही वोट मिलते हैं, जितने प्रतिशत लोग यहां गरीबी रेखा से नीचे हैं। माने लगभग 30 प्रतिशत। सिर्फ भाजपा इस मामले में अपवाद रही है, जिसे 1990 के दशक में 35 प्रतिशत से अधिक और 2014 में लगभग 42 प्रतिशत वोट मिले।
नितांत भुखमरी और वोटों के आंकड़ों का आपस में जो संबंध है, उसके विस्तार में जाना यहां संभव नहीं है। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि जब गरीबी जड़ पकड़ ले, तो उस पर वोटों की, अपराधों की खेती पनपने लगती है। इनका भ्रष्टाचार और राजनीति के साथ एक जीवनचक्र बन जाता है। और गरीबी सहित ये सारी चीजें एक दूसरे पर अमरबेल की तरह चिपक जाती हैं। जैसे आज यह कहना मुश्किल है कि उत्तर प्रदेश को पहले क्या चाहिए-शिक्षा या पानी, सड़क या अस्पताल, बिजली या मंडी, दक्ष पुलिस या कारखाने, अच्छी खेती या रोजगार? ईमानदार प्रशासन या पूंजी निवेश? वास्तव में उत्तर प्रदेश अगर सिर्फ केन्द्र सरकार की योजनाओं को ईमानदारी से लागू कर ले, सूचना के अधिकार का कड़ाई से पालन करे, और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोटोंर् को पूरी गंभीरता से लेना शुरु कर दे तो भी उसका व्यापक कायाकल्प शुरू हो जाएगा। और यह सब करने के लिए जिस पूंजी की आवश्यकता है, उत्तर प्रदेश के पास वह पूंजी बहुत बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। वह है वोट की पूंजी। इससे पूरे देश में वैसा ही संदेश जाएगा, जैसा 2014 में भारत ने पूरे विश्व में भेजा था। यह कि भारत एकजुट है, आत्मविश्वास से भरा हुआ है, आगे बढ़ने जा रहा है। सिर्फ वोट की पूंजी नहीं, उत्तर प्रदेश के पास इतिहास की, संस्कृति की, ज्ञान की, संभावनाओं की, उम्मीदों की पूंजी भी बहुत बड़ी मात्रा में है। इस पूंजी को सिर्फ सुप्तावस्था से जागना होगा। अगर उत्तर प्रदेश सिर्फ अपने इतिहास और संस्कृति की पूंजी को जागृत कर लेता है, स्वयं को सिर्फ शिक्षा के एक बड़े केन्द्र के रूप में सामने लाता है, सिर्फ अगली हरित क्रांति का, या श्वेत क्रांति के विश्वस्तरीय केन्द्र के रूप में उभरता है, तो दुनिया भर में उसका और साथ-साथ भारत का दबदबा कैसा होगा? भारत की पहचान को परिभाषित करने वाली राम और कृष्ण की यह धरती पूरे विश्व पर अपना असर छोड़ सकती है।
विश्व पटल पर भारत की हैसियत का अगला चरण सिर्फ उत्तर प्रदेश के बूते निर्धारित होना है। भारत महाशक्ति बनेगा, तो उत्तर प्रदेश के बूते। भारत के कुल निर्यात में, भारत की तकनीकी क्षमता में, भारत के सकल घरेलू उत्पादन में, मानव विकास सूचकांक में उत्तरप्रदेश का योगदान- आंकड़ों को बदल कर देंखिए, पूरे भारत की तस्वीर बदलती देखी जा सकती है। बाकी बातों के अलावा, भारत को औपनिवेशिक उत्तरजीविता से पूरी तरह बाहर निकालने का दायित्व भी उत्तर प्रदेश पर ही है। आजादी की लड़ाई का सबसे बड़ा योद्घा उत्तर प्रदेश रहा है और उत्तर प्रदेश का नाम ही अपने आपमें एक औपनिवेशिक विरासत है। अंग्रेजों ने 1937 में, अप्रैल फूल मनाते हुए, कुछ रियासतों को मिलाकर यूनाइटेड पो्रविन्सेज का गठन किया था। नाम पड़ा यूपी, जिसे 1950 में उत्तर प्रदेश कर दिया गया। तब से यह प्रश्न प्रदेश बना हुआ है। उसे अपनी विरासत, अपनी संभावनाओं, अपने भविष्य को नए सिरे से खोजना होगा। आजादी की लड़ाई फिर एक बार लड़नी होगी। आखिर उसके भविष्य में ही भारत का भविष्य जो निहित है।
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