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औरंगजेब के समय धर्मरक्षा के लिए बलिदान देने वाले भाई मतिदास के वंशज और भाई परमानंद जैसे स्वतंत्रता सेनानी के सुपुत्र डॉ. भाई महावीर ने एक शिक्षाविद् और राजनेता के नाते आजीवन इस देश की सेवा की और बदले में किसी तरह की कोई कामना नहीं
प्रदीप सरदाना
पूर्व राज्यपाल और प्रख्यात शिक्षाविद् डॉ. भाई महावीर के निधन का समाचार 3 दिसंबर को आया तो मन उदास हो गया। उनसे मेरी पहली मुलाकात 1980 में तब हुई थी जब वे दिल्ली के पीजीडीएवी कॉलेज (सांध्य) में प्राचार्य थे और मैं वहां कला स्नातक की पढ़ाई कर रहा था। तब से मेरा भाई महावीर जी से बातचीत और मिलने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह उनके निधन से कुछ माह पहले तक चलता रहा।
यूं उनकी उम्र 94 वर्ष की हो चुकी थी। उन्होंने अपने जीवन मेंे काफी मान-सम्मान पाया। वह पिछले करीब एक वर्ष से स्मरण शक्ति क्षीण जैसी समस्या से ग्रस्त थे। उन दिनों जब वे कॉलेज में थे तब छात्र संघ चुनावों में मेरा सुझाव पोस्टरों और पर्चों पर फिजूलखर्ची होती है। इससे कॉलेज की दीवारें जो गन्दी होती हैं वे अलग और इस सबसे मतदान करने वाले छात्र उन प्रत्याशियों और उनके विचारों को नहीं जान पाते जो चुनाव में खड़े हैं। क्यों न आप मतदान से पहले किसी दिन महाविद्यालय प्रांगण में एक ऐसी सभा का आयोजन हो जिसमें सभी छात्रों और प्रत्याशियों को आमंत्रित किया जाए। सभी प्रत्याशी लगभग पांच मिनट में उपस्थित छात्रों को अपने बारे में बताने के साथ ये भी बताएं कि उन्हें वोट क्यों दिया जाए और वे विजयी होने पर क्या करेंगे। इससे व्यर्थ पैसा भी खर्च नहीं होगा और एक ही दिन में छात्रों और प्रत्याशियों का प्रत्यक्ष परिचय भी अच्छे से हो जाएगा। सुझाव सुन भाई महावीर ने कहा, सुझाव अच्छा है और उन्होंने दो दिन बाद ही वैसा आयोजन करा दिया और वह स्वयं भी उस कार्यक्रम में मौजूद होकर प्रत्याशियों के विचार सुनते रहे। कार्यक्रम के बाद उन्होंने कहा कि आपके इस सुझाव से छात्रों को ही नहीं हमको भी यह जानने का मौका मिला कि कौन प्रत्याशी कैसा है।
उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी कि किसी भी छात्र में कुछ अच्छा देखते तो उसे मान देने के साथ सभी के सामने उसकी प्रशंसा करने से नहीं चूकते थे। एक प्रसंग वे अक्सर सुनाते थे। एक बार एक विदेशी महिला ने कलकत्ता में जगह-जगह गंदगी देखी तो उसने हैरानी से वहां किसी से पूछा कि यह खूबसूरत शहर जगह-जगह इतना गन्दा क्यों है? इस पर उस व्यक्ति ने जवाब दिया कि आखिर इस शहर में 70 लाख (उस समय कलकत्ता की जनसंख्या) लोग रहते हैं तो यह साफ कैसे रह सकता है? यह सुन वह विदेशी महिला बोली कि यह तो और भी आश्चर्य की बात है कि 70 लाख लोग भी एक शहर को साफ नहीं रख सकते। डॉ. महावीर की यह बात उन लोगों के लिए अच्छी सीख साबित हुई जो कॉलेज में जहां-तहां गंदगी फैलाते रहते थे।
30 अक्तूबर, 1922 को लाहौर में जन्मे भाई महावीर के पिता भाई परमानंद एक जाने- माने स्वतंत्रता सेनानी थे। जीवन में सिद्धांतों से कभी अडिग न होने की शिक्षा और सादगी उन्हें विरासत में मिली। पिता के आदशोंर् को अपनाने के साथ उन्होंने जीवन भर समाज सेवा और परोपकार के मार्ग को अपनाया। इस सबकी प्रेरणा उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मिली। संघ कार्य करते हुए उन्होंने अर्थशास्त्र में एमए करने के साथ एलएलबी और पीएचडी की। देश विभाजन से पूर्व ही वे डीएवी कॉलेज, लाहौर में व्याख्याता नियुक्त हो गए थे। विभाजन के बाद वे दिल्ली में अध्यापन करने लगे। इसके साथ ही उनकी राजनीतिक पारी भी शुरू हुई। वे भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में एक थे। इसी के साथ वे जनसंघ के प्रथम महासचिव भी बने। 1968 में दिल्ली प्रदेश जनसंघ के अध्यक्ष बनने के साथ ही वे इसी वर्ष दिल्ली से पहली बार जनसंघ की ओर से राज्यसभा सदस्य भी बने। उसके बाद 1978 में उन्हें दोबारा राज्यसभा सदस्य बनाया गया। भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के बाद उन्हंें पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाने के साथ भाजपा की केन्द्रीय अनुशासन समिति का अध्यक्ष भी बनाया गया। भाई महावीर आयु में अटल जी से दो साल और आडवाणी जी से पांच साल बड़े थे। आपातकाल के समय भाई महावीर भी जेल गए।
वे तेजस्वी नक्षत्र थे
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अत्यन्त निष्ठावान स्वयंसेवक श्री भाई महावीर जी का शरीर 3 दिसम्बर, 2016 को शांत हो गया। भाई मतिदास जैसे बलिदानी तथा भाई परमानन्द जैसे स्वतंत्रता सेनानी वाली परिवार परंपरा के वे इस युग के तेजस्वी नक्षत्र थे। पंजाब की धरती पर जन्मे भाई महावीर बाल्यकाल में ही संघ के स्वयंसेवक बने और लाहौर में शिक्षा प्राप्त करते-करते संघ कार्य में भी रत रहे। कुछ वषार्ें के लिए वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक भी रहे। पूजनीय गुरुजी का आदेश मान, विभाजन के कठिन समय में सभी हिन्दुओं को सुरक्षित भारत भेजने के कार्य में जी-जान से जुटे और अंतिम समय में किसी प्रकार खाली हाथ भारत आए। वे लाहौर में शिक्षक थे। यहां दिल्ली विश्वविद्यालय मंे भी शिक्षक हो गए। भारत की उस समय की परिस्थितियों में जब ऐसा लगा कि एक राजनीतिक दल बनना चाहिए तब प्रारंभ में 1951 से ही उसके लिए लगे और जनसंघ के प्रथम महामंत्री बने। दो बार राज्यसभा के सदस्य तथा मध्य प्रदेश के राज्यपाल भी रहे। अपने दीर्घ राजनीतिक यात्रा के निष्कलंक, आदर्श, कर्मठ और विचारवान जीवन से हजारों कार्यकर्ताओं को उन्होंने प्रेरणा दी है और सैकड़ों वषार्ें की महान यशस्वी परंपरा को और अधिक आलोकित किया है। वे एक श्रेष्ठ चिंतक, आदर्श राजनीतिक कार्यकर्ता तथा योग्य शिक्षाविद् थे। उन्होंने अपने स्वयंसेवक भाव को सदैव गौरवान्वित किया। हम प्रार्थना करते हैं कि प्रभु उनकी पवित्र दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में अखण्ड वास दें। – वी. भागैया, सह सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
1998 में भाजपा के नेतृत्व में राजग सरकार बनी तो उसके कुछ दिन बाद ही 22 अप्रैल को उन्हें मध्य प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया। राज्यपाल बनने के बाद भी उनकी सादगी देखने लायक थी। उनकी पोशाक कुर्ता-पाजामा तक ही सीमित रही। वे उम्र और पद में छोटे व्यक्ति को भी उतना ही महत्व देते थे, जितना कि बड़ों को देते थे। साधारण से साधारण व्यक्ति का भी काम बेहिचक कर देते थे।
असल में भाई महावीर जी का सारा जीवन सिद्धांतों, न्याय, सत्य और समाज सेवा के लिए समर्पित रहा। वह कितने ही उच्च पदों पर रहे, लेकिन अहंकार और दिखावे को उन्होंने अपने से कोसों दूर रखा। वे अपनी महानता और कायार्ें का कभी बखान नहीं करते थे। हां, वे अपने पिता के आदशार्ें और सिद्धांतों को जरूर लोगों के सामने लाना चाहते थे। अपने पिता भाई परमानंद जी की स्मृति में उन्होंने कई कार्य किए।
उन्होंने दिल्ली में भाई परमानंद विद्या मंदिर के नाम से एक स्कूल और वहां एक क्रिकेट एकेडमी भी बनवाई। बच्चों की शिक्षा को लेकर वह शुरू से ही अत्यंत गंभीर रहते थे, खासकर समाज के हाशिए पर पड़े वर्ग में शिक्षा के अभाव को लेकर उन्हें अत्यधिक चिन्ता रहती थी। एक सच्चे शिक्षक के नाते वे अक्सर युवाओं को उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित करते रहते थे।
सच में वे महान थे। इतने मान-सम्मान और प्रतिभावान होने के बावजूद उन्होंने अपने आपको सदैव चकाचौंध से दूर रखा। एक बार उनके संपर्क में जो आया उनका कायल हो गया। आज के जमाने में डॉ. भाई महावीर जैसे लोग विरले ही हैं। उस विलक्षण व्यक्तित्व को
विनम्र श्रद्धाञ्जलि अर्पित है।
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