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नतीजों के निहितार्थ
नोटबंदी के बाद देश के कई हिस्सों में उपचुनाव हुए। इन चुनावों में भाजपा को जबरदस्त जन समर्थन मिला। दिलचस्प यह कि पश्चिम बंगाल के उपचुनाव में भाजपा ने माकपा को भी पीछे कर दिया। वहीं महाराष्ट्र और गुजरात के स्थानीय निकाय चुनावों में भी वह सब पर भारी पड़ी।
अंबिकानंद सहाय
नोटबंदी से उभरे अफरातफरी के माहौल में जनता जनार्दन की लंबी कतारें लगी थीं। खेतों और खलिहानों में किसान बीज, खाद और नकदी को लेकर परेशान थे। राष्ट्रीय राजमार्गों पर गाडि़यों का काफिला था और खाली थे ढाबे। सब्जी मंडिया सब्जियों से भरी थीं, लेकिन खरीदार गायब थे। एक अजीबोगरीब माहौल था, चारों ओर। चौंकाने वाली बात थी कि लोगों में धैर्य था। उनकी आंखों में उम्मीदें थीं, और मन में थे खुशहाल भविष्य के सपने। विश्वास था अपने प्रधानमंत्री पर। इसकी गवाही लंबी कतारों में खड़े लोगों का धैर्य दे रहा था, जो नोटबंदी के तीन हफ्ते बाद भी सहनशील बने हुए थे। देशभर में कुछेक छिटपुट झड़पों को छोड़ दें तो, कहीं भी भीड़ को उपद्रवी होते नहीं देखा गया। इन्हीं ऊहापोहों के बीच, नोटबंदी के ऐलान के तीन हफ्तों के भीतर, महाराष्ट्र और गुजरात में स्थानीय निकायों के लिए चुनाव हुआ। और हुआ क्या?
महाराष्ट्र की 147 नगरपालिकाओं और पंचायतों के 3,510 सदस्यों के लिए हुए चुनाव में भाजपा को 980 सीटें मिलीं। गौरतलब है कि पिछले चुनाव में भाजपा इन्हीं स्थानों पर सिर्फ 298 सीटें ही जीत सकी थी। जी हां, ये इलाके कांग्रेस-एनसीपी के गढ़ रहे हैं। नगरपालिका में भाजपा को 52, शिवसेना को 23, कांग्रेस को 19 और एनसीपी को 16 सीटें मिलीं। वहीं पंचायत चुनाव में भाजपा ने सबको जोरदार पटखनी दी। इसमें भाजपा को 851 सीटें मिलीं। जबकि कांग्रेस के खाते में 643, एनसीपी को 638, शिवसेना को 514 और मनसे को 16 सीटें मिलीं। विचारणीय है कि 2011 में 127 नगर पालिकाओं में भाजपा की मौजूदगी कहीं नहीं थी। वहीं पंचायतों में भी भाजपा का मात्र 298 सीटों पर ही कब्जा था। उसके मुकाबले एनसीपी को 916, कांग्रेस को 771 और शिव सेना को 264 सीटों पर जीत मिली थी।
अब बात करें गुजरात की। तो यहां भी निकाय और पंचायतों के उपचुनाव में भाजपा को जबरदस्त जीत मिली। वापी नगरपालिका चुनाव में भाजपा ने 44 में से 41 सीटों पर कब्जा जमाया। जबकि कांग्रेस के खाते में मात्र तीन सीटें ही गईं। वहीं सूरत की कनकपुर-कनसाड़ नगरपालिका की 28 में से 27 सीटों पर भाजपा जीती। कांग्रेस को यहां सिर्फ एक सीट मिली। वहीं जिला पंचायत, तालुका पंचायत और नगरपालिका उपचुनावों में भाजपा ने 23 और कांग्रेस ने 8 सीटें फतह कीं। राजकोट में कांग्रेस का गढ़ रही गोंडल तालुका पंचायत सीट भी भाजपा ने झटक ली। तालुका पंचायत की 22 सीटों में से 18 सीटें भाजपा की झोली में गिरीं।
जाहिर है, जनता की सही नब्ज टटोलने का दावा करने वाले दिग्गज राजनीतिक भविष्यवक्ता गलत साबित हुए। ये लोग अनुमान लगाए बैठे थे कि महाराष्ट्र की मराठा क्रांति, गुजरात का पाटीदार आंदोलन और ऊना दलित विवाद स्थानीय उपचुनावों में भाजपा का सूपड़ा साफ कर देंगे। यही नहीं, उन्हें लगता था कि केंद्र सरकार द्वारा नोटबंदी का फैसला आग में घी का काम करेगा। लेकिन, हकीकत में नतीजे इन अनुमानों के बिल्कुल उलट आए।
यह सब हुआ कैसे और क्यों? आप, मानें या ना मानें। यह कमाल है सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि का। जी हां, राजनीति छवि से चलती है, तथाकथित तथ्यों और आंकड़ो से नहीं। वैसे भी पुरानी कहावत है कि झूठ के तीन प्रकार होते हैं— झूठ, सफेद झूठ और आंकड़े। उदाहरण के तौर पर, पलभर के लिए ही सही, जरा सोचिए, क्या इस देश का सबसे बड़ा व्यक्ति राष्ट्रपति, या फिर सबसे अहम शख्सियत प्रधानमंत्री, जनाब लुटियन की बसाई नई दिल्ली में एक बंगला खरीद सकते हैं? कदापि नहीं। ऐसी ही है कालेधन की विद्रूपता।
आंकड़ों की बाजीगरी या बयान बहादुरों को छोडि़ए और जनमानस की सुनिए। देश के आम जनमानस में आज पांच भावनाएं घर कर गई हैं- पहली, इस देश में कालेधन का विशालकाय दैत्य सफेद रुपयों के साम्राज्य से ज्यादा ताकतवर है। दूसरी, आजादी के बाद से 8 नवंबर की रात 8 बजे तक भ्रष्टाचार बेखौफ, बेलगाम बढ़ता ही गया। तीसरी, गरीब, गरीब ही रहा, जबकि अमीरों ने दिन दूनी-रात चौगुनी तरक्की की। चौथी, वैश्वीकरण के चक्कर में किसानों की हालत बद से बदतर हुई। और पांचवीं— राजनीति, भ्रष्टाचार और अपराध एक-दूसरे के पूरक हैं।
अब लौटते हैं नरेंद्र मोदी की आम छवि की ओर। जनता की नजर में मोदी ईमानदार हैं। अरविंद केजरीवाल, दिग्विजय सिंह या कपिल सिब्बल सरीखे नेता चाहे लाख 'सबूतों के कागज' हवा में लहराते रहें, इन सब बातों का लोगों के दिलो-दिमाग पर कोई असर नहीं पड़ा। जनता यह मानती है कि, मोदी बेऔलाद हैं और उन्हें कुछ दूसरे नेताओं की तरह सात पुश्तों तक के लिए कमाने की जरूरत नहीं है। और रही बात नोटबंदी की मंशा की। तो आम लोग यह भी मानते हैं कि, मोदी ने राष्ट्रहित के लिए पार्टी के सियासी नफे-नुकसान को भी दांव पर लगा दिया।
इन सबके अलावा मोदी में एक और गुण है। वे गजब के वक्ता हैं। उनकी भाषा सरल है। वे विरोधियों पर तलवार की धार की तरह कटाक्षपूर्ण चुटकी भी लेते हैं। और, कायम होता है लोगों के साथ सीधा संवाद। चाहे अमेरिका का मैडीसन स्क्वायर हो, या आगरा की रैली, मोदी श्रोताओं को झकझोरते ही नहीं, भावविभोर भी कर देते हैं। मुरादाबाद की हालिया रैली में मोदी के जोशीले भाषण को मिसाल के तौर पर देख सकते हैं। मसलन— ''और भी सरकारों ने आपकी लाइनें लगवाई हैं। देश 70 साल से लाइन में है। चीनी के लिए लाइन, मिट्टी तेल के लिए लाइन और राशन के लिए लाइन। लेकिन मैंने जो लाइन लगवाई है, यह आखिरी लाइन है। उन सब लाइनों को खत्म करने वाली लाइन है।''
इसी रैली में जनधन खातों में जमा हुए कथित काले धन का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा, ''आप मुझसे वादा करो, आप इनके एक भी पैसे को उठाइए मत़..अगर ऐसा किया, तो मैं आपको बता दूं कि, मैं रोज दिमाग लगा रहा हूं़..कि कैसे इन भ्रष्टाचारियों को, जिन्होंने गलत तरीके से गरीबों के खाते में पैसे डाले हैं, वे जाएं जेल में और गरीबों के घरों में जाए वह रुपया।'' उन्होंने इशारों-इशारों में अपनी कुर्सी की भी चर्चा करते हुए कहा कि ''मेरा क्या है़.़ मैं तो फकीर हूं़.़ झोला उठाकर चल दूंगा।'' जैसे ही मोदी ने ये कहा, लोग उत्साह में
झूमने लगे।
प्रखर वक्ता होने के साथ-साथ मोदी बेहद ऊर्जावान हैं। कभी अमेरिका, तो कभी इंग्लैंड। कभी पाकिस्तान, तो कभी अफगानिस्तान। कभी गोवा, तो कभी गाजीपुर, मुरादाबाद, आगरा और पंजाब। मानो पंख लगे हुए हों। वे पूरे जोश-खरोश से जनता से संवाद करते नजर आते हैं। आजादी के बाद देश को शायद पहली बार ऐसा प्रधानमंत्री मिला है, जो हर वक्त चलायमान नजर आता है। वह भी पूरे दमखम के साथ।
आम जनता नोटबंदी को लेकर उत्साहित है, लेकिन उसकी भी कोई सीमा है। अभी भी लोगों को नकदी के लिए जूझना पड़ रहा है। विरोधी उन्हें भड़का भी रहे हैं। इसलिए जितनी जल्दी हो, लोगों को राहत मिलनी चाहिए। जैसा कि मोदी कहते हैं, जल्दी ही सब सामान्य हो जाएगा तो आने वाले पांच राज्यों के चुनावों में भाजपा का परचम लहरा सकता है। कारण साफ है कि मोदी की छवि से पिछले 15 साल से जूझने के बावजूद विपक्ष के हाथ कुछ नहीं लगा। और अब, काले धन के विध्वंसक मोदी का मुकाबला तो विरोधी शायद ही कर पाएं। लगता कुछ ऐसा ही है।
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