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वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक हरियाणा की धरती साहित्य सर्जकों की जन्मस्थली रही है। प्राचीन तथा गौरवपूर्ण सांस्कृ तिक संपदा को समेटे भारत का यह प्रदेश साहित्य रचना के क्षेत्र में अपनी ध्वजा निरंतर फहरा रहा है।
वंदना पाण्डे
हरियाणा के नाम से प्रख्यात, सरस्वती एवं दृषद्वती का मध्यवर्ती प्रदेश प्राचीन काल से ही अनुपम व अद्वितीय काव्य की रचना स्थली रहा है। डा़ॅ ओ. पी. भारद्वाज के अनुसार, तैत्तिरीय आरण्यक में कुरुक्षेत्र प्रदेश के भौगोलिक सीमांकन का संदर्भ मिलता है जिसके अनुसार कुरुक्षेत्र के दक्षिण में खाण्डव अर्थात् इन्द्रप्रस्थ अथवा वर्तमान दिल्ली, उत्तर में तूर्ध्न अथवा सुघ्न अर्थात् वर्तमान का जगाधरी एवं पश्चिम में उत्कर मरुस्थल अर्थात् राजस्थान क्षेत्र था :
तेषां कुरुक्षेत्रं वेदिरासीत् । तस्यै खण्ड्वो दक्षिणार्ध आसीत् ।
तुर्घ्नमुत्तरार्ध:। परीणज्जधनार्ध:। मरव उत्कर:।
महाभारत के युद्घ के समय श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में ही अर्जुन को गीता का संदेश दिया। सरस्वती नदी के तट पर ही महर्षि वेदव्यास द्वारा महाभारत की रचना की गयी थी। डॉ. जयभगवान गोयल के अनुसार 7वीं-8वीं शताब्दी में यहां संस्कृत काव्य-कृतियों का सृजन हुआ। सम्राट हर्षवर्धन ने रत्नाावली, प्रियदर्शिका, नागानन्द जैसे नाटकों की रचना की, तो वहीं उनके राजकवि बाणभट्ट ने कादम्बरी एवं हर्षचरित जैसी कालजयी कृतियों का सृजन किया।
आधुनिक काल के अनेक लेखकों ने संस्कृत भाषा को साहित्य सेवा का माध्यम बनाकर साहित्य की अनेक विधाओं में मौलिक कृतियों की रचना की है। सनातन संस्कार विधि, शिक्षा सूत्र, परतत्व दिग्दर्शन एवं शास्त्रार्थपंचक जैसी कृतियों के रचयिता करनाल के पंडित माधवाचार्य; विष्णु्स्तोत्र, वेदान्ताचम्पूृ, मातृदशक कुरुक्षेत्र के रचयिता पंडित भिक्षाराम; वेद प्रवचन, सुभाषितचयनम्, रामचरितम् आदि पुस्तकों के रचयिता बुवाना लाखू के विष्णुमित्र शास्त्री ; शिवकथामृत, दुर्गा अभ्यु्दय, परशुरामदिग्विजय इत्यादि पुस्तकों एवं अनेक टीकाओं के रचनाकार जींद के पंडित छाजूराम सहित अन्य अनेक साहित्यकारों को हरियाणा सरकार ने उनके अमूल्य योगदान के लिए सम्मानित किया है।
संस्कृत ही नहीं, वरन् उर्दू भाषा एवं साहित्य में भी हरियाणा की धरती ने अविस्मरणीय योगदान दिया। जहांगीर के समय में, अफजल पानीपती को हरियाणा का प्रथम उर्दू लेखक माना जाता है। हिन्दी साहित्य के अध्येता अफजल पानीपती द्वारा रचित बारहमासा में कालिदास के ऋतुसंहार का प्रभाव परिलक्षित होता है। डॉ. जयभगवान गोयल मुहब्बे-आलम (झज्जर), अब्दु्ल वहीद (हांसी), हजरत शाह गुलाम जिजलानी, मौलवी मुहम्मद मज़ान (रोहतक), फरुखसियर के समकालीन मीर ज़फर जटली (नारनौल) आदि को हरियाणा के ख्यातिप्राप्त उर्दू साहित्यकार बताते हैं। यहां न केवल उर्दू, वरन् फारसी साहित्य की रचना भी हुई। शेख गुलाम कादिर जालानी, शेख महबूब, अनवर रोहतकी एवं अब्दुल वासय हांसीवी का नाम हरियाणा के फारसी साहित्यकारों में शामिल है।
नाथ एवं जैन साहित्य में भी प्रचुर रचनाओं का जन्म हरियाणा की धरा पर ही हुआ है। नाथ परम्परा के बाबा मस्तनाथ का काव्य, हरियाणा में जन्में जैन कवि पुष्प का साहित्य हरियाणा की ही देन है। गरीबदास, नितानन्द, जैतराम, रामरूप, भाई संतोख सिंह हरियाणा के संत कवियों में गिने जाते हैं। भारतेन्दु काल एवं द्विवेदी काल में भी हरियाणा में प्रचुर साहित्य की रचना हुई। सन् 1884 में प्रकाशित जैन प्रकाश को हरियाणा की प्रथम पत्रिका माना जाता है।
भिवानी के तुलसी राम ने श्याम सतसई, सत्याग्रही एवं प्रह्लाद जैसी अविस्मरणीय कृतियों की रचना की। हिसार के प्रख्यात कवि भाई परमानन्द ने भूदान आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी की। भिवानी में जन्मेे पंडित नेकीराम शर्मा ने हिन्दी में संदेश नामक पत्रिका आरंभ की। दीदार सिंह, साहिब सिंह मृगेन्द्र , बग्ग सिंह, उज्जवल सिंह एवं जोगिन्दर सिंह हरियाणा के नामचीन साहित्यिकारों में सम्मिलित किये जाते हैं। डॉ. जयभगवान गोयल द्वारा सम्पादित हरियाणा की साहित्य सम्पदा पुस्तक में संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, संत साहित्य, खड़ी बोली गद्य में हरियाणा के योगदान की विस्तृत चर्चा की गई है।
रोहतक में जन्मे बाबू बालमुकुन्द गुप्त 22 वर्ष की आयु में मिर्जापुर से निकलने वाले उर्दू अखबार 'अखबार-ए-चुनर' एवं कुछ समय बाद लाहौर से प्रकाशित 'कोहेनूर' पत्र के संपादक बने। वे उर्दू, फारसी, हिन्दी व अंग्रेजी में पारंगत थे और उन्होंेने हिन्दुस्तान, बंगवासी, भारत मित्र आदि पत्रों में कार्य किया। भारतेंदु काल एवं द्विवेदी काल के संक्रमणकाल में दैदीप्यमान रहे गुप्त जी के मौलिक ग्रंथों में स्फुट कविता, शिव शम्भू का चिट्ठा, हिंदी भाषा, चिट्ठे और ख़त, खिलौना, खेल तथा तमाशा तथा सर्पाघात चिकित्सा का उल्लेखनीय स्थान है।
प्रसिद्घ लोक कवि एवं गायक मान सिंह के शिष्य पंडित लखमीचंद ने रागनी को न सिर्फ हरियाणा बल्कि आस-पास के राज्यों में भी लोकप्रिय बनाया। 'दुख मैं बीतैं जिन्दगी न्यूं दिन रात दुखिया की', 'यो भारत खो दिया फर्क नै इसमैं कोए कोए माणस बाकी सै' समेत बीस से अधिक रचनाओं व अनुपम गायन ने पंडित लखमीचंद को अमर कर दिया है।
इनके अतिरिक्त, पंडित मांगे राम, जैमिनी हरियाणवी, कवि नरसिंह, कंवल हरियाणवी, श्रीकृष्ण गोतान मंजर, श्याम सखा श्याम, सत्यवीर नाहडि़या, सतपाल स्नेही, चंदरलाल, आशा खत्री 'लता', रिसाल जांगड़ा, विनोद मैहरा, संदीप कंवल भुरटना, मंदीप कंवल भुरटना, नरेश कुमार शर्मा, विरेन सांवगिया, जितेन्द्र दहिया हरियाणा की हरित धरा से जुड़े ऐसे नाम हैं जिन्होंने अपने गायन एवं लेखन से आम जन तक अपनी पैठ बनायी और हरियाणवी जन-जीवन को अपने सृजन का अंग बनाया। हरियाणा के लोक साहित्य के लिपिबद्घ नहीं होने के कारण इसे नगण्य माना जाता है। सत्य इसके उलट है और हरियाणवी लोक साहित्य बहुत समृद्घ है।
हरियाणवी कविता कोश में अमर सिंह छाछिया, करतार सिंह कैत, कृष्ण चंद, रामफल चहल, मांगेराम समेत लगभग तीस कवियों की रचनाएं उपलब्ध हैं। इन कवियों ने हरियाणवी लोक जीवन के विविध आयामों को अपनी रचनाओं में शामिल किया है। सीधी, सरल एवं ठेठ शैली में रचित अधिकांश रचनाएं लोक जीवन के धार्मिक, आर्थिक, पारिवारिक, सामुदायिक, ग्रामीण जीवन को प्रतिबिंबित करती हैं और साथ ही सामाजिक कुरीतियों, अपसंस्कृति, जीवन के कष्टों व दुखों का वर्णन भी करती हैं।
हरियाणा में साहित्य एवं संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए इस समय हरियाणा साहित्य अकादमी, हरियाणा ग्रंथ अकादमी, हरियाणा उर्दू अकादमी, हरियाणा संस्कृत अकादमी, हरियाणा इतिहास एवं संस्कृत अकादमी कार्यरत हैं। ये संस्थाएं न सिर्फ हरियाणा के लोक काव्य, वरन् आधुनिक गद्य एवं पद्य साहित्य को संरक्षित करने एवं प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न पुरस्कार देती हैं एवं विविध योजनाएं व गतिविधियां संचालित करती हैं। हरियाणा साहित्य अकादमी हरिगंधा नामक मासिक पत्रिका एवं हरियाणा ग्रंथ अकादमी कथा समय व सप्त सिंधु नामक मासिक पत्रिकाओं का प्रकाशन करती हैं। हरियाणा के आधुनिक साहित्यकारों में, मनमोहन, रामकुमार आत्रेय, भगवानदास मोरवाल, अशोक भाटिया, ज्ञानप्रकाश विवेक, डॉ. ऋषिपाल, डॉ. रोहिणी अग्रवाल, कंवलनयन कपूर, राज्य कवि उदयभानु हंस, मधुसूदन पाटिल, कुमार रवीन्द्र, अमृतलाल मदान, जयनाथ नलिन एवं डा. राधेश्याम शुक्ला प्रमुख हैं।
'पिलूरे तथा अन्य कहानियां', आग, फूल और पानी', 'सिर्फ कहानी नहीं' नामक कथा संग्रहों, एवं 'बुझी मशालों का जुलूस', 'बूढ़ी होती बच्ची', 'आंधियों के खिलाफ' नामक कविता संग्रहों के रचनाकार रामकुमार आत्रेय हरियाणा के कवि एवं लघु कथाकार हैं। हिसार के मधुसूदन पाटिल प्रख्यात व्यंग्यकार हैं। उनकी रचनाओं में 'अथ व्यंपग्यम्', 'हम सब एक हैं', 'शिकायत है उनसे', 'देखन में छोटे लगे' शामिल हैं। हरियाणा के पहले राज्य कवि उदयभानु हंस के गीत संग्रहों में 'हंस', 'मुक्तावली', 'धड़कन', 'सरगम', 'अमृतकलश', 'वन्देतमातरम्', 'प्रीत लगा बैठा' उल्लेखनीय हैं। हिसार के गीतकार कुमार रवीन्द्र के 'आहत हैं वन', 'चेहरों के अंतरीय', 'पंख बिखेरे रेत पर', 'सुनो तथागत' काव्य् संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग की प्रोफेसर रोहिणी अग्रवाल द्वारा रचित 'हिन्दी उपन्यास में कामकाजी महिला', 'इतिवृत्त की संरचना और स्वरूप', 'समकालीन कथा साहित्य : सरहदें और सरोकार' ने राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें पहचान दिलायी। डॉ. ऋषिपाल ने स्वातन्त्रयोत्तर हिन्दी काव्य, हिन्दी सन्त-साहित्य, समकालीन हिन्दी कहानी एवं आधुनिक हिन्दी काव्य सहित भारतीय संस्कृति से जुड़े विविध विषयों पर निबंध एवं शोध-पत्रों की रचना की है।
हरियाणा में न सिर्फ हरियाणवी भाषा और साहित्य में नित नये प्रयोग हो रहे हैं, वरन् इस क्षेत्र से हिन्दी के लेखक व कवि भी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान स्थापित कर रहे हैं। हरियाणा प्राचीन भारत के सबसे सभ्य, शिक्षित व संस्कृति से संपन्न केंद्रों में से एक रहा है। औपनिवेशिक गुलामी एवं हरियाणवी के समुचित विकास के अभाव एवं राजनीतिक अनदेखी ने इस क्षेत्र को क्षति पहुंचाई है। परंतु इसके बाद भी साहित्य के अध्ययन, लेखन एवं शोध की दिशा में यहां गंभीर कार्य हो रहे हैं। आवश्यकता है तो इस बात की कि पूर्वजों की धरोहर को नयी पीढ़ी तक पहुंचाया जाये और हरियाणवी को भाषा का दर्जा दिये जाने की दिशा में गंभीर प्रयास हो, तथा हरियाणा के साहित्य व संस्कृति पर चिंतन को बल दिया जाए। प्राचीन तथा गौरवपूर्ण सांस्कृतिक संपदा को समेटे भारत का यह पवित्र प्रदेश हरियाणा साहित्य की रचना के क्षेत्र में अपनी ध्वजा निरंतर फहरा रहा है। इस क्षेत्र को ही ऋगवेद, यजुर्वेद, आरण्यकों, उपनिषदों, ब्राह्मण ग्रंथों, स्मृतियों की रचना का श्रेय है। वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक यह धरा अनगिनत साहित्य, सर्जकों की जन्मस्थली रही है। खेद का विषय है कि साहित्य के इतिहास, विशेषकर हिन्दी साहित्य के इतिहास में हरियाणा के साहित्यिक अवदानों की उपेक्षा होती रही है, तथापि साहित्य की धरा पर जो कृतियां इस क्षेत्र ने उकेरी हैं, भविष्य उनका उचित मूल्यांकन करेगा।
(लेखिका गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय, हिसार के पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष हैं)
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