अलख आयुर्वेद की
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अलख आयुर्वेद की

by
Oct 27, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 27 Oct 2016 13:13:58

 नितिन अग्रवाल   46 वर्ष  बिलिस आयुर्वेदा

प्रेरणा
स्वामी वासुदेवानंद जी
उद्देश्य
आयुर्वेद के प्रति लोगों को जागरूक करना
जीवन का अहम मोड़
2006 में अपनी दवा कंपनी की नींव रखना

ज्ञान और धन के प्र्रति दृष्टि
किताबी नहीं, व्यावहारिक ज्ञान से धन कमाया जा सकता है

दिलचस्प तथ्य
15 से अधिक देशों में दवाइयां जाती हैं

-अरुण कुमार सिंह-

बात 1995 की है। युवा नितिन अग्रवाल हरिद्वार के ऋषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज से बी.ए.एम.एस. कर चुके थे। लेकिन उन्हें इस बात की पीड़ा थी कि लोगों में आयुर्वेद के प्रति जागरूकता नहीं है, साथ ही एक गलत धारणा है कि आयुर्वेदिक दवाइयां जल्दी काम नहीं करती हैं। इसलिए उन्होंने लोगों को जगाने का मन बनाया, पर धन और संसाधन की कमी आड़े आ रही थी। इस कमी को दूर करने के लिए उन्होंने हरिद्वार के एक सरकारी अस्पताल में नौकरी  शुरू की। अस्पताल के बाद जो समय मिलता था उसमें वे कुछ महत्वपूर्ण लोगों से मिलते थे और आयुर्वेद की स्थिति पर चर्चा करते थे। इसी क्रम में एक दिन वे बद्रिकाश्रम पीठ के शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद जी से मिले और अपने मन की बात उन्हें बताई। स्वामी जी ने उन्हें महर्षि महेश योगी से मिलने को कहा। उनके आदेश के बाद नितिन महेश योगी से मिले। आयुर्वेद के प्रति नितिन की तड़प से योगी जी बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उन्हें अपने साथ जोड़ लिया। इसके बाद तो नितिन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे योगी जी के साथ आठ वर्ष तक रहे और आयुर्वेद पर शोध के साथ लगभग 30 देशों में आयुर्वेद का प्रचार-प्रसार किया। वे जर्मनी, मॉरीशस, हॉलैण्ड और अमेरिका में काफी समय तक रहे भी। उल्लेखनीय है कि इन देशों में महर्षि महेश योगी के संस्थान द्वारा पंचकर्म केन्द्र चलाए जा रहे हैं। इन केन्द्रों के जरिए स्थानीय लोग आयुर्वेद की ताकत से परिचित हो रहे हैं। नितिन ने कई केन्द्रों का संचालन भी किया और विदेशियों को आयुर्वेद की जीवन-पद्धति से अवगत कराया।  उन्हीं दिनों उन्हें महसूस हुआ कि दुनिया में आयुर्वेदिक दवाइयों की मांग तो है, पर उसकी आपूर्ति नहीं हो पा रही है और जो दवाइयां हैं भी उनमें गुणवत्ता की भारी कमी है। इन सबको देखते हुए उन्होंने तय किया कि वे खुद दवा तैयार करेंगे। इसके बाद वे भारत वापस आ गए।  2006 में उन्होंने 'बिलिस आयुर्वेदा' नाम से एक कंपनी बनाई और हरिद्वार में आयुर्वेदिक दवाइयों का उत्पादन करने लगे। शुरू में उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा। नितिन खुद ही दवाई बनाने से लेकर बेचने तक का काम करते थे। पर जैसे-जैसे काम बढ़ा, मानव संसाधन भी बढ़ाया गया। इन दिनों प्रत्यक्ष रूप से 25 लोग कंपनी में काम करते हैं। यह कंपनी प्राय: सभी बीमारियों की दवाइयां बनाती है। इसके कुल 80 उत्पाद हैं। मात्र 10 वर्ष में इस कंपनी का कारोबार इतना बढ़ा है कि इस समय 15 से अधिक देशों में इसकी दवाइयां जाती हैं। डॉ. नितिन के अनुसार एक वर्ष में केवल रूस और यूक्रेन को ही एक लाख से अधिक दवाई की पेटियां भेजी जाती हैं।
डॉ. अग्रवाल दिल्ली के नजदीक कौशांबी (उत्तर प्रदेश) में पंचकर्म केन्द्र भी चलाते हैं। उनका कहना है कि आयुर्वेदिक जीवन-पद्धति अपनाने से ही आज के युग में हम निरोग रह सकते हैं। इसके लिए लिए आवश्यक है आपको आयुर्वेद पर भरोसा करना होगा। वे कहते हैं मैंने सरस्वती की आराधना की और लक्ष्मी पीछे-पीछे आ गईं। जब लक्ष्मी साथ आईं तो कारोबार भी सागर पार तक पहुंच गया।     

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