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-अजय विद्युत-
यह दीपावली है क्या? मोटे तौर पर देखें तो यह शब्द अपने स्थूल अर्थांे में ही पूरी मानवीय चेतना के लिए ज्ञान से कल्याण का स्रोत खोल देता है। इस शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों से हुई है- 'दीप' अर्थात् दीया और 'अवली' अर्थात शृंखला। इस उत्सव में घरों के द्वारों, मंदिरों, बाजारों और सब जगह पर लाखों दीपक प्रज्वलित किए जाते हैं। अलग-अलग क्षेत्रों और भाषाओं में इसे अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। असमिया, कन्नड़, मलयाली, तमिल और तेलुगू में दीपावली कहा जाता है तो वहीं गुजराती, मराठी, कोंकणी और पंजाबी में दीवाली। सिंधी भाषा में यह दियारी है तो नेपाली में तिहार। दीपावली मनाने के संदर्भ भी भिन्न हैं। इतनी विविधताओं के बावजूद उद्देश्य एक ही है-अनेक दीपों से जो ज्योति निकलती है वह संपूर्ण मानवता को प्रकाशित करे।
विविध दीपों-रिवाजों की दीपावली
पूरे देश में उत्सवी बहार है। दीपावली मनाने की तैयारियां जोरों पर हैं। विभिन्न क्षेत्रों के लोगों द्वारा त्योहार मनाने के रीति-रिवाज और उत्सव का तरीका भले ही कुछ अलग न हो, पर उत्साह सब जगह एक समान ही रहता है …और उद्देश्य भी।
हफ्ताभर पहले दीपावली
छत्तीसगढ़ में एक ऐसा गांव भी है, जहां के लोग चार प्रमुख त्योहार हफ्तेभर पहले ही मना लेते हैं। यह गांव है धमतरी जिले का सेमरा (सी) जहां सिर्फ दशहरा ही अपनी निर्धारित तिथि पर मनाया जाता है। लगभग दो सौ की अबादी वाले इस गांव में लोग अपने ग्राम देवता सिरदार देव के स्वप्न को साकार करने के लिए दीवाली, होली पोला और हरेली का त्योहार एक सप्ताह पहले ही मना लेते हैं।
हिमाचल की बुड्ढी दीवाली
हिमाचल में बुड्ढी दीवाली त्योहार देशभर में मनाई जाने वाली दीपावली के बाद पड़ने वाली पहली अमावस्या से शुरू होता है। परंपरा के अनुसार इस त्योहार पर ढोल-नगाड़ों के बीच देवी-देवताओं की प्रार्थना की जाती है, लोकगीत गाए जाते हैं और खुशियां मनाई जाती हैं। परंपरा के अनुसार ग्रामीण अपने पशुओं को नजदीक के मंदिर में ले जाते हैं। त्योहार की पहली रात पशु बलि दी जाती है।
बस्तर में दीवाली नहीं 'दियारी'
वनवासी बहुल बस्तर अंचल के ग्रामीण इलाकों में 'दीपावली' नहीं मनाई जाती। शहरी क्षेत्रों की दीपावली से अलग यहां आज भी दियारी' का त्योहार परंपरागत तरीके से मनाया जाता है। जहां शहरों में कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली आमतौर पर लक्ष्मीजी का पूजन करके घरों के बाहर रोशनी कर और पटाखे फोड़कर मनाई जाती है,वहीं ग्रामीण इलाकों में इसके उलट 'दियारी' पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है। इस दौरान मुख्य रूप से फसल रूपी लक्ष्मी, मिट्टी और पशुधन की पूजा की जाती है।
जिन पंजाब नहीं वैख्या…
कहते हैं कि दुनिया की सबसे अच्छी दीवाली अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में मनाई जाती है। गुरुद्वारे को इस प्रकार सजाया जाता है मानो आकाश के तारे जमीन पर उतर आए हों। पंजाब में भी लक्ष्मी पूजा व आतिशबाजी के साथ दीपावली का त्योहार मनाया जाता है।
हरियाणा में अंदाज कुछ अलग
हरियाणा के गांवों में त्योहार से कुछ दिन पहले घरों में पुताई और साफ-सफाई के बाद घर की दीवार पर अहोई माता की तस्वीर बनाई जाती है जिस पर घर के हर सदस्य का नाम लिखा जाता है। उसके बाद पूरे आंगन को रोशनियों और दीयों से सजाया जाता है। हर घर से चार दीपक चौराहे पर रखे जाते हैं।
महाराष्ट्र में चार दिन की दीवाली
दीपावली का उत्सव महाराष्ट्र में चार दिन चलता है। पहला दिन वसु बरस। इस दिन आरती गाते हुए गाय-बछड़े की पूजा करने की परंपरा है। धनतेरस का दिन व्यापारियों के बहीखाता पूजन के लिए शुभ माना जाता है। उसके अगले दिन यानी नरक चतुर्दशी पर सूर्योदय से पहले उबटन लगाकर स्नान की परंपरा है। स्नान के बाद पूरा परिवार मंदिर जाता है। चौथे दिन दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही करंजी, चकली, लड्डू, सेव आदि पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं।
पूरे उत्तर भारत में श्रीराम का स्वागतोत्सव
रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम राक्षसराज रावण को युद्ध में हराया तब चौदह वर्ष के वनवास के बाद वे लक्ष्मण व सीता सहित कार्तिक मास की अमावस्या को अयोध्या पहुंचे थे। आनंदविभोर अयोध्यावासियों ने घरों में दीपक जलाए और आतिशबाजी के साथ उनका स्वागत किया। तभी से दीपावली का त्योहार धूम-धाम से मनाया जाता है। मध्यप्रदेश, मेघालय, झारखंड आदि वनवासी बहुल क्षेत्र हैं। वहां दीपदान का रिवाज है। स्त्री-पुरुष नृत्य कर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। धनतेरस के दिन से यमराज के नाम का भी एक दीया लगाया जाता है। यह दीप घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है ताकि घर में मृत्यु का प्रवेश न हो।
दक्षिण में नरक चतुर्दशी का विशेष महत्व
दक्षिण भारत के तमिलनाडु में दीपावली के एक दिन पहले पड़ने वाली नरक चतुर्दशी को ही मुख्य उत्सव होता है। यहां यह पर्व आइपसी या थुलम के महीने में मनाया जाता है। दीवाली के एक दिन पहले यानी नरक चतुर्दशी का यहां विशेष महत्व है। इस दिन मनाया जाने वाला उत्सव दक्षिण भारत के दीवाली उत्सव का सबसे प्रमुख दिन होता है। इस दिन विशेष तरह के पारंपरिक स्नान की तैयारियां की जाती हैं। सुबह के समय सभी अपने घरों का आंगन धोकर रंगोली बनाते हैं। नए कपड़े पहनना और मिठाई खाना शुभ माना जाता है।
नवविवाहित जोड़ों की दीवाली
दक्षिण भारत में दीवाली से जुड़ी एक सबसे अनोखी परंपरा है जो नवविवाहित जोड़ों से संबंधित है। इसे थलाई दीवाली कहा जाता है। इस रिवाज के अनुसार नवविवाहित जोड़े को दीवाली मनाने के लिए लड़की के घर जाना होता है। लड़की के घरवाले उनका स्वागत करते हैं। उसके बाद जोड़ा घर के बड़े लोगों का आशीर्वाद लेता है। फिर वे दीवाली के शकुन का एक पटाखा फोड़ते हैं और मंदिर जाते हैं। दोनों परिवार जोड़े को उपहार देते हैं।
परदेस में दीपावली
दुनियाभर में धूम है दीपावली की। भारतीय संस्कृति की समझ और भारतीय मूल के लोगों के वैश्विक प्रवास के कारण दीपावली मनाने वाले देशों की संख्या लगातार बढ़ रही है। श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फिजी, मॉरीशस, केन्या, तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो, नीदरलैंड, कनाडा, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात से लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका तक में दीपावली को विशेष रूप से हिंदू, जैन और सिख समुदाय के लोग मनाते आए थे, लेकिन पिछले कुछ समय में वहां के स्थानीय लोगों की भागीदारी और दिलचस्पी काफी बढ़ी है। तमाम देशों में यह त्योहार वहां की स्थानीय संस्कृति का हिस्सा बनता जा रहा है। हालांकि तमाम जगहों पर दीपावली मनाने के कारण भले अलग हैं लेकिन इन अनेक दीपों की ज्योति का संदेश एक ही है-अज्ञान पर ज्ञान, अंधेरे पर प्रकाश और असत्य पर सत्य की विजय। नेपाल, भारत, श्रीलंका, म्यांमार, मारीशस, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, मलेशिया, सिंगापुर, फिजी, पाकिस्तान और आस्ट्रेलिया की बाहरी सीमा पर स्थित क्रिस्मस द्वीप पर दीवाली एक सरकारी अवकाश है।
नेपाल : दीपावली जैसा तिहार
पहले एक नजर एशिया पर डालते हैं। नेपाल में दीपावली को 'तिहार' या 'स्वन्ति' के रूप में जाना जाता है। यह पांच दिन मनाया जाता है। परंतु परम्पराएं भारत से भिन्न हैं। पहले दिन काग तिहार। कौए को परमात्मा का दूत मानते हुए प्रसाद दिया जाता है। दूसरे दिन कुकुर तिहार। कुत्तों को उनकी ईमानदारी के लिए भोजन कराते हैं। काग और कुकुर तिहार के बाद गाय तिहार और गोरु तिहार में गाय और बैल को सजाया जाता है। तीसरे दिन लक्ष्मी पूजा की जाती है। नेपाल संवत् के अनुसार यह साल का आखिरी दिन होता है। इस दिन व्यापारी अपने सारे खातों को साफ कर उन्हें खत्म कर देते हैं। लक्ष्मी पूजा के दिन तेल के दीपक मुख्यत: दरवाजों और खिड़कियों के पास जलाए जाते है। चौथा दिन नए वर्ष के रूप में मनाते हैं। सांस्कृतिक जुलूस और अन्य समारोह होते हैं। पांचवें और अंतिम दिन भाईदूज को 'भाई टीका' के नाम से मनाते हैं। भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और बहनें उन्हें भोजन कराती हैं।
मलेशिया: पंथों, जातियों में मैत्री का पर्व
दीपावली पर मलेशिया में सार्वजनिक अवकाश रहता है। यहां भी यह काफी हद तक भारतीय उपमहाद्वीप की परंपराओं के साथ ही मनाया जाता है। 'ओपन हाउसेस' मलेशियाई हिन्दुओं (तमिल, तेलुगू और मलयाली) द्वारा आयोजित किये जाते हैं। इसमें अपने घर में अलग-अलग जातियों और पंथों के मलेशियाई लोगों को भोजन के लिए आमंत्रित किया जाता है और उनका स्वागत किया जाता है।
श्रीलंका: पटाखों की निराली छटा श्रीलंका में विशेषकर तमिल समुदाय द्वारा इसे मनाया जाता है। देश में सार्वजनिक अवकाश रहता है। इस दिन लोग सामान्यत: सुबह के समय तेल से स्नान करते हैं। नए कपड़े पहनते हैं। उपहार दिए जाते हैं। पुसै यानी पूजा के लिए कोइल अर्थात् हिंदू मंदिर जाते हैं। त्योहार की शाम पटाखे निराली ही छटा बिखेरते हैं। हिंदुओं द्वारा भगवान के आशीर्वाद व घर से सभी बुराइयों को सदा के लिए दूर करने के लिए धन की देवी लक्ष्मी को तेल के दीए जलाकर आमंत्रित किया जाता है।
ऑस्ट्रेलिया : एक सप्ताह चलता है जश्न
एशिया के परे भी दीपावली की धूम कम नहीं रहती। ऑस्ट्रेलिया में भारतीय मूल के लोग स्थानीय लोगों के साथ सार्वजनिक तौर पर दीपावली मनाते हैं। मेलबोर्न के फेडरेशन स्क्वायर पर दीपावली को विक्टोरियन आबादी और मुख्यधारा द्वारा गर्मजोशी से अपनाया गया है। 2006 में मेलबोर्न में प्रतिष्ठित फेडरेशन स्क्वायर पर सेलिब्रेट इंडिया इंकॉर्पोरेशन ने दीपावली समारोह की शुरुआत की थी। आज यह समारोह यहां के कला कैलेंडर का हिस्सा बन गया है और जश्न पूरे सप्ताह से अधिक समय तक चलता है। पिछली दीपावली पर 56 हजार से अधिक लोग समारोह के अंतिम दिन फेडरेशन स्क्वायर पर आए थे जो यारा नदी पर शानदार आतिशबाजी देख झूम उठे थे।
ऑस्ट्रेलिया में विक्टोरियन संसद, मेलबोर्न संग्रहालय, फेडरेशन स्क्वायर, मेलबोर्न हवाई अड्डे और भारतीय वाणिज्य दूतावास सहित कई प्रतिष्ठित इमारतों को इस स्प्ताह अधिक सजाया जाता है। इतने लंबे समय तक दीपावली की रौनक तो भारत में भी देखने को नहीं मिलती। दीपावली की यह विविध और जीवंत प्रस्तुति राष्ट्रीय संगठनों एएफएल, क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया, व्हाइट रिबन, मेलबोर्न हवाई अड्डे जैसे संगठनों और इसके अलावा वहां के कलाकारों को आकर्षित करती है। विभिन्न वर्गांे की भागीदारी और योगदान से यह एक विशाल आयोजन के रूप में भारतीय समुदाय की कला, संस्कृति और दर्शन को प्रदर्शित करता है।
अमेरिका : गैर हिंदू भी मनाते हैं जश्न
अमेरिका में तीन लाख से ज्यादा हिंदू रहते हैं। हिंदू तो दीपावली मनाते ही हैं, व्हाइट हाउस तक में दीपावली मनाई जाती है। 2003 में पहली बार व्हाइट हाउस में दीपावली मनाई गई थी। फिर पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने 2007 में अमेरिकी कांग्रेस से इसे आधिकारिक दर्जा दिलाया। 2009 में बराक ओबामा व्हाइट हाउस में व्यक्तिगत रूप से दीपावली में भाग लेने वाले पहले राष्ट्रपति बने। संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में भारत की अपनी पहली यात्रा की पूर्व संध्या पर ओबामा ने दीपावली की शुभकामनाएं बांटने के लिए एक आधिकारिक बयान जारी किया था।
दीपावली मनाने का ढंग अनूठा है अमेरिका में। 2009 में काउबॉय स्टेडियम में दीपावली मेले में एक लाख से ज्यादा लोग मौजूद थे जिसमें बड़ी संख्या में गैर हिंदू थे। प्राय: इतनी भीड़ वहां सामान्य उत्सवों में कम ही देखी जाती है।, सैन एन्टोनियो ऐसा अमेरिकी शहर है जिस पर दीपावली का रंग सबसे पहले चढ़ा। जी हां, 2009 में वहां एक आधिकारिक दीपावली उत्सव आयोजित किया गया जिसमें आतिशबाजी प्रदर्शन भी शामिल था। इस तरह अधिकारिक दीपावली उत्सव को प्रायोजित करने वाला सैन एन्टाोनियो पहला अमेरिकी शहर बन गया। इसी तरह न्यूयॉर्क शहर के पियरे में, जो कि अब टाटा समूह के ताज होटल द्वारा संचालित है, 2011 में दीपावली उत्सव की शुरुआत हुई।
ब्रिटेन: नेता भी आते हैं समारोह में
दीपावली पर पूरा ब्रिटेन दीपावलीमय हो जाता है। ब्रिटेन में विभिन्न पंथों और देशों के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। दीपावली भले हिंदुओं का त्योहार हो लेकिन अब वहां के तमाम दूसरे समुदायों के लोग भी इसमें उत्साह से भाग लेते हैं। यहां तक कि नेता भी दीपावली के अवसर पर हिंदुओं के मंदिरों में जाते हैं और भारतीयों को बधाई देते हैं। 2009 से प्रतिवर्ष ब्रिटिश प्रधानमंत्री के निवास स्थान, 10 डाउनिंग स्ट्रीट पर दीपावली मनाई जा रही है। यह भारतीयों की वहां के समाज में बढ़ती स्वीकार्यता का प्रमाण भी है।
भारतीय लोग अपने घरों की साफ सफाई करते हैं, उसे दीपों और मोमबत्तियों से सजाते हैं। दीपावली पर एक-दूसरे को मिठाई बांटते हैं। धार्मिक समारोह के लिए इकट्ठा होते हैं। व्यस्तताओं से भरी जिंदगी में भारतीय समुदाय के लोगों का एक दूसरे के घर आना-जाना प्राय: कम ही हो पाता है। लिहाजा दीपावली पर अपने परिवार और मित्रों से संपर्क करने और उपहारों का आदान-प्रदान कर संबंधों को एक नई ऊर्जा देने के लिए भी एक बहुत अच्छा अवसर मिल जाता है।
ब्रिटेन में अब गैर हिंदू नागरिक भी भारतीयों के इस उत्सव की उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं और इसमें शामिल होते हैं। जश्न मनाते है। पिछले एक दशक के दौरान ब्रिटेन के नेताओं और राजपरिवार में दीपावली समारोह में शामिल होने का चलन बढ़ा है। उन्होंने इसे ब्रिटेन की तरक्की में भारतीय समुदाय की प्रशंसा करने के एक अवसर के रूप में लिया है। इसी के साथ ब्रिटेन में दीपावली की लोकप्रियता और प्रासंगिकता भी बढ़ी है। प्रिंस चार्ल्स और अन्य ब्रिटिश राजनेता नेसडेन स्थित स्वामीनारायण मंदिर और कुछ अन्य प्रमुख मंदिरों में आयोजित दीपावली समारोहों में शामिल होते हैं। ब्रिटेन के सामाजिक, आर्थिक, औद्योगिक व अन्य क्षेत्रों में भारतीयों, खासकर हिंदू समुदाय के योगदान की मुक्तकंठ से प्रशंसा करते हैं।
न्यूजीलैंड: दक्षिण एशियाई प्रवासियों का पर्व
न्यूजीलैंड में दीपावली भारतीय संस्कृति ही नहीं बल्कि वहां बसे दक्षिण एशियाई प्रवासी सांस्कृतिक समूहों द्वारा साथ मिलकर मनाया जाने वाला पर्व है। न्यूजीलैंड में एक बड़ा समूह दीवाली मनाता है जिसमें भारत-फीजी समुदायों के लोग शामिल होते हैं। 2003 से न्यूजीलैंड की संसद में भी दीपावली मनाई जा रही है। मां लक्ष्मी को पूजा जाता है। वहां कई तरह की मिठाइयां और व्यंजनों से मेहमानों का स्वागत दीवाली को सामाजिक संपर्क का एक खास मौका भी बना देता है।
फिजी : पूरे साल रहता है दीपावली का इंतजार
फिजी में तो मानो पूरा फिजी ही दीवाली मनाता है। हर पंथ-समुदाय के लोग पूरे साल दीपावली के आने की प्रतीक्षा करते हैं। आतिशबाजी और दीपावली का जश्न एक सप्ताह पहले से ही शुरू हो जाता है। इस दिन सार्वजनिक अवकाश रहता है। फिजी की आबादी का करीब एक तिहाई भाग हिंदू है। वे अपने इस धार्मिक त्योहार को वहां रहने वाले बाकी सभी लोगों के साथ मनाते हैं।
फिजी ब्रिटिश शासन के दौरान उनका उपनिवेश रहा है और 19वीं सदी के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप से गए गिरमिटिया मजदूरों ने इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया है। फिजी में तीन बड़े पांथिक समुदायों के लोग रहते हैं- ईसाई, हिंदू और इस्लाम। दीवाली पर वे सभी हिंदुओं के साथ साझा होकर यह पर्व मनाते हैं।
फिजी में दीपावली पारंपरिक धार्मिक उत्सव तो है ही, इसके साथ ही यह एक वृहद सांस्कृतिक उत्सव भी है। दीपावली के सांस्कृतिक उत्सव में हिंदू, ईसाई, सिख या अन्य सांस्कृतिक समूहों के साथ मुस्लिम भी दोस्तों और परिवार के साथ मिलने और फिजी में छुट्टियों के मौसम की शुरुआत के संकेत के रूप में दीपावली का जश्न मनाते हैं। फिजी के बाजारों को भी दीपावली आने की विशेष प्रतीक्षा रहती है क्योंकि इस दौरान वस्तुओं की खरीदारी बहुत बढ़ जाती है। भारत की तरह ही तमाम जगहों पर मूल्य में छूट के साथ 'सेल' लगती है और समझदारीभरी खरीदारी का यह सही समय होता है।
फिजी में दीपावली समारोह ने जैसे वहां के मुख्य सामाजिक और सांस्कृतिक समारोह का रूप ले लिया है। दीवाली हर जगह दीवाली जैसी ही मनाई जाती है। नए कपड़े लिए जाते हैं। महिलाओं की रुचि साड़ी व अन्य भारतीय परिधानों में अधिक देखी जाती है। शायद यह भारत से दूर होकर भी उन्हें भारत में होने का अहसास कराता है। घर के लिए जरूरी सामानों और उपहार में देने के लिए जमकर खरीदारी होती है। पूरे घर और आसपास साफ-सफाई की जाती है। घरों, बाजारों में खूब जगमग रहती है।
मॉरीशस : लगेगा, आप भारत में ही हैं
अफ्रीकी हिंदू बहुल देश मॉरीशस में दीपावली पर आधिकारिक अवकाश होता है। यूं अगर भारत से बाहर कहीं बिल्कुल भारत जैसी ही बेहद खूबसूरत और भारी उत्साह से दीपावली मनती है तो उनमें एक प्रमुख जगह है मॉरीशस। पूरा देश जगमगाता है दीपावली पर। हर जगह रोशनी और उत्सवी माहौल। मॉरीशस की 63 प्रतिशत आबादी भारत से आए लोगों की है और उनमें भी 80 प्रतिशत हिंदू हैं। वहां यह त्योहार भगवान राम की रावण पर या भगवान कृष्ण की राक्षस नरकासुर पर विजय के उत्सव रूप में मनाया जाता है। घरों में भीतर-बाहर तेल के दीये जलाए जाते हैं। पूरा द्वीप रोशनी में नहाया अठखेली करता नजर आता है। व्यापारी इस दिन अपने खातों की पूजा करते हैं।
बंगाल में कालीपूजा
बंगाली यूं भी उत्सवधर्मी माने जाते हैं। बंगाल में दीवाली का त्योहार लोग बहुत उत्साह व उमंग से मनाते हैं। पंद्रह दिन पहले से इसकी तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। घर के बाहर रंगोली बनाई जाती है। दीपावली की आधी रात में लोग महाकाली की पूजा अर्चना करते हैं।
पूर्व के राज्यों असम, मणिपुर व त्रिपुरा आदि में भी काली पूजा-किए जाने का चलन है। दीपावली की मध्य रात्रि तंत्र साधना के लिए सबसे विशिष्ट और सिद्धि प्रदायिनी मानी जाती है। इसलिए तंत्र को मानने वाले इस दिन कई तरह की साधनाएं करते हैं।
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