|
अंधेरा भय का कारक है। अंधेरा ठिठकाता है, अनजाना भय घेरता है। जो ज्ञात नहीं उसकी आशंकाएं घेरती हैं, डराती हैं। ऐसे में रोशनी की एक लकीर मानो हर मुश्किल आसान कर देती है। अंधेरे में घिरे, सहमे, ठिठके, ठिठुरते मानव मन का संबल प्रकाश ही तो है।
…प्रकाश अज्ञात को ज्ञात में बदलता है, ज्ञान कराता है। यानी कहा जा सकता है कि ज्ञान ही वह मशाल है जिसके आसरे हम आगे बढ़ते हैं। यह रोशनी पास हो तो तमाम अंधेरे छंट जाते हैं। फिर दीपावली तो उत्सव ही प्रकाश का है। तो क्यों न इस बार संपन्नता के उजास में ज्ञान के इसी प्रकाश की तलाश की जाए। सिर्फ दीये की लौ और फुलझडि़यों की चमक नहीं बल्कि इससे कुछ ज्यादा। केवल मां लक्ष्मी ही नहीं, इनके आगे-आगे चलकर आई मां सरस्वती को भी देखना…ऐश्वर्य को टिकाऊ आधार देने वाले ज्ञान की यह खोज दिलचस्प है।
सो, इस बार के दीपावली विशेषांक के लिए हम इसी खोज पर निकले। इस बात की खोज कि किसी के घर लक्ष्मी जी आई तो इसलिए क्योंकि उसने सरस्वती जी की साधना में भी कोई कोर-कसर नहीं रखी। समृद्धि की कहानियों में ज्ञान के योगदान की ऐसी छान-फटक दिलचस्प है? इस बार पाञ्चजन्य के पाठकों के लिए हमने यही छान-फटकार की है।
कहते हैं, लक्ष्मी-सरस्वती का संयोग सरल नहीं, अति दुर्लभ है परंतु ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्थाओं के बढ़ने के दौर ने इस संयोग का मुहूर्त बना दिया है। भारतीय प्रतिभाएं, उद्यमिता और मेधा के पुंज बार-बार दुनिया को इस स्वर्णकांचन संयोग के दर्शन करा रहे हैं।
साधारण व्यापार के बढ़ने की संभावनाओं के थमने के बाद ऐसा होना ही था। नवोन्मेष, अनुसंधान, तकनीकी गुत्थियां सुलझाना…जब भविष्य की सब जरूरतें ज्ञान पर और उपलब्ध जानकारियों के परिष्कार पर टिक गईं तो अर्थव्यवस्थाओं का रूप बदलना ही था। पूरी दुनिया में कुनबा कंपनियों का कारोबार सिमटने लगा। थुलथुल व्यापार मॉडल भरभराकर गिरे या बचने के लिए छरहरे होने का संकल्प पकड़ा। थोथे पैसे के प्रभाव की यह गिरावट वैश्विक थी और इसने कारोबार में ज्ञान और विशेषज्ञता को स्थापित कर दिया।
जिनके पास ज्ञान है, तज्ञता है, जो नए विचार और समस्याओं के हल दे सकते हैं, वे ही कारोबार के नए खिलाड़ी हैं। समृद्धि के नए सोपानों को छूने के लिए खास उपनाम और पहचान की पुरानी लग्घियां अब छोटी पड़ रही हैं। ऊंचा जाना है तो ज्ञान चाहिए।
लक्ष्मीजी को बुलाना है तो सरस्वतीजी के पास जाना ही है।
नरक चतुर्दशी की रात में लिखे जाने वाले 'शुभ-लाभ' का माघ शुक्ल पंचमी यानी विद्यारंभ के वसंती मुहूर्त से नाता ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्थाओं के युग में साफ होने लगा है। आइए इस संबंध को समझें, इसके साक्षी बनें। ज्ञान से उपजी उद्यमिता की प्रेरणाओं को अपने जीवन में उतारें और बढ़े चलें।
पाठकों, वितरकों, विज्ञापनदाताओं और शुभचिंतकों को दीपपर्व की ढेरों शुभकामनाएं।
टिप्पणियाँ