|
गत दिनों चित्रकूट के सुरेन्द्र पाल ग्रामोदय विद्यालय खेल प्रांगण में संस्कृति वाचनालय, म.प्र. द्वारा जिला प्रशासन सतना व दीनदयाल शोध संस्थान एवं चित्रकूट की जनता के सहयोग से तीन दिवसीय शरदोत्सव का आयोजन किया गया। इसमें विभिन्न कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति देकर दर्शकों का मनोरंजन किया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में कंेद्रीय ऊर्जा एवं खनिज मंत्री श्री पीयूष गोयल ने कहा कि संस्कृति के संरक्षण हेतु आयोजित यह आयोजन अविस्मरणीय है। राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख के जन्मोत्सव से शुरू शरदोत्सव पर साहित्य, कला और संगीत तीनों का ही समावेश दिख रहा है। कई वषार्ें से नानाजी मुझसे आग्रह कर रहे थे कि चित्रकूट आओ लेकिन मैं उनके रहते नहीं आ पाया। आज जब पूरा देश उनकी जन्मसदी मना रहा है, ऐसे पावन अवसर पर मुझे चित्रकूट आने का सौभाग्य मिला। नानाजी के जो प्रकल्प चल रहे हैं उनके अवलोकन का सौभाग्य मुझे आज मिला। उन्होंने कहा कि नानाजी के साथ बचपन से मेरा जुड़ाव रहा है, उनके कृतत्वांे की जानकारी मुझे बहुत छोटी सी उम्र में मिली है। मेरी नजर में जो पांच संस्कार हैं— संकल्प, सहयोग, संवेदना, सेवा और समर्पण। पांचों संस्कार में एक प्रकार से नानाजी के जीवन का परिचय दिखता है। श्रद्धेय नानाजी ने ग्रामोदय और स्वावलम्बन दोनों विषयों को भलि-भांति समझा है। आज की सरकार का भी यही मानना है ग्राम का विकास होे, गांव का उत्थान हो। आने वाले समय में गंाव की क्रान्ति की जो कोशिश हम कर रहे हैं, इसका संकल्प नानाजी देशमुख का जन शताब्दी पर हम पूर्ण करने का प्रयास करेंगे। कामदगिरि प्रमुख द्वारा के संत श्री मदनगोपाल दास जी ने अपने आर्शीवचन में कहा कि हमारा सौभाग्य है कि हम पं. दीनदयाल उपाध्याय एवं नानाजी देशमुख की जन्मशताब्दी मना रहे हैं। शरदोत्सव जो कार्यक्रम है, उसमें पूज्य नानाजी चित्रकूट के संत समाज को बुलाकर मंच से गौरवान्वित करते थे, वह काम आज भी चल रहा है। जो काम त्रेतायुग मे श्रीराम जी ने किया था वही काम नानाजी ने करके दिखाया है। उन्होंने एक शिल्पी के रूप में लोगों को तराशने का कार्य किया है। जब-जब चित्रकूट के विकास की बात आयेगी तो उसमें सर्वप्रथम नानाजी का स्मरण जरूर होगा। कार्यक्रम का संचालन महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विवि.के दूरस्थ शिक्षण संस्थान के निदेशक प्रो. वीरेन्द्र व्यास ने किया। ल्ल
'भारत ने सदैव सद्भाव ही बढ़ाया है'
विजयादशमी का उत्सव- एक ओर देवी की पूजा अर्थात् शक्ति की पूजा का उत्सव है तो दूसरी ओर श्रीराम जी की अयोध्या वापसी पर प्रकाशोत्सव अद्भुत संयोग है। सभी देवताओं ने मिलकर शक्ति का आवाह्न किया और सारी शक्तियों ने एकजुट होकर असुरों का विनाश किया। यह प्रतीकात्मक है लेकिन जब-जब समाज पर संकट आता है तो ऐसा ही होता है। ये बातें रा.स्व.संघ के सहसरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने स्वयंसेवकों का संबोधित करते हुए कहीं। गत दिनों नई दिल्ली के द्वारका,पालम में विजयादशमी के अवसर पर पथ संचलन एवं शस्त्र पूजन का कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि अर्जुन, भीम, विक्रमादित्य, हर्ष, चन्द्रगुप्त मौर्य का देश पराजित कैसे हुआ होगा! बाहर से आने वालों ने हमारे मन्दिर, ग्रन्थ, शिक्षालय नष्ट किए। इस सब के बावजूद धीरे-धीरे संघर्ष कर देश स्वाधीन हुआ। लेकिन यह तो तब भी सोचा जा रहा था कि ऐसी कौन सी बात थी जिसने हमें पराधीन कर दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का विचार था कि इतनी श्रेष्ठ थाती होते हुए भी देश पराजित क्यों रहा। एक ही बात समझ में आयी कि आपसी विघटन था। राज्य का ऊंच-नीच का, पढ़े-लिखे का, धनवान-गरीब का, भाषा, जाति, आर्थिक दृष्टि से भेदभाव आ गया था। स्वाभाविक है, सारा समाज मिलकर संघर्ष की स्थिति में नहीं था। आज हम सभी को भेदभाव को मिलाकर कंधे से कंधा मिलाकर साथ चलना होगा। तभी हम जिस परम वैभव की बात करते हैं, वह हमारी आंखों के सामने होगा। ल्ल
टिप्पणियाँ