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यह भारत के विदेश नीति निर्धारकों की सूझबूझ ही है कि सार्क में पाकिस्तान को उघाड़ने के बाद उसके सबसे खास दोस्त चीन को भी एक कड़ा संकेत दिया गया है। इस मंच पर बेहद महत्वपूर्ण रक्षा समझौते करके रूस ने भारत से अपनी परंपरागत दोस्ती को और पुख्ता किया है
प्रतिनिधि
उरी आतंकी हमले को लेकर पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राइक के माध्यम से कड़ा सबक सिखाने के बाद गोवा में 15-16 अक्तूबर को हुए बेहद महत्वपूर्ण 'ब्रिक्स' देशों के सम्मेलन में दुनिया ने एक बार फिर से भारत की कूटनीति का लोहा माना। सार्क देशों में पाकिस्तान को अलग-थलग करने के बाद भारत को ब्रिक्स सम्मेलन में भी सीमा पार आतंकवाद के सवाल पर बड़ी कूटनीतिक सफलता हासिल हुई। पाकिस्तान की पैरोकारी पर उतरे चीन को न सिर्फ ब्रिक्स देशों में अलग-थलग होने की शर्मिंदगी झेलनी पड़ी, बल्कि ब्रिक्स की विस्तारित बैठक में शिरकत करने वाले 'बिम्सटेक' के सदस्य देशों ने सीमा पार आतंकवाद पर भारत के सुर में सुर मिलाकर पाकिस्तान के लिए सहानुभूति दिखाने की रणनीति बनाकर आए चीन की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। ब्रिक्स की सबसे अहम उपलब्धि रही आर्थिक संकट से घिरे रूस का रिश्ते दरकने की तमाम भविष्यवाणियों को झुठलाते हुए सीमा पार आतंकवाद पर भारत का साथ देना और उसे दुनिया की आधुनिकतम एस-400 ट्रायम्फ एयर मिसाइल रोधी रक्षा प्रणाली का तोहफा देना। रूस ने यह कदम तब उठाया है जब आर्थिक संकट से निकलने के लिए उसे चीन के साथ की अहम जरूरत है। क्योंकि संकट की इस घड़ी में 70 फीसदी विदेशी मुद्रा उसे चीन को निर्यात करके ही हासिल होती है। विदेश मामलों के विशेषज्ञ एवं पूर्व राजदूत जी. पार्थसारथी कहते हैं कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीति का ही कमाल है कि भारत ने एक साथ रिश्तों के सवाल पर दो विपरीत ध्रुवों पर खड़ी दुनिया की दो महाशक्तियों को साधने में सफलता हासिल की। ब्रिक्स सम्मेलन से यह साफ हो गया कि भारत चीन के इतर दुनिया की सभी महाशक्तियों से कूटनीतिक संतुलन साधने में कामयाब रहा है।
दरअसल ब्रिक्स सम्मेलन केंद्र की मोदी सरकार के लिए अहम चुनौती था। सवाल था कि उरी आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान को दुनिया से अलग-थलग करने की मुहिम की तरह सार्क देशों से झटका दिलाने वाला भारत क्या यही करिश्मा ब्रिक्स सम्मेलन में भी दुहरा सकेगा? वह भी तब जब चीन खुल कर अमेरिका की पैरोकारी कर रहा था और रूस ने नाराजगी जताते हुए पाकिस्तान के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास की घोषणा कर रखी थी? जाहिर तौर पर इन विपरीत कूटनीतिक परिस्थितियों में मोदी सरकार के समक्ष चीन को किनारे करते हुए पाकिस्तान को कड़ा संदेश देने की अहम चुनौती थी। लेकिन मोदी सरकार ने कूटनीतिक चतुराई दिखाते हुए न सिर्फ पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया, बल्कि चीन को भी यह जता दिया कि विश्व बिरादरी में पाकिस्तान का साथ देने पर उसे भी अलग-थलग पड़ने का खतरा उठाना पड़ सकता है। दरअसल इस चुनौती से निपटने के लिए मोदी सरकार ने ब्रिक्स की विस्तारित बैठक में 'बिम्सटेक' के सदस्य देशों को भी आमंत्रित कर लिया। इसके अलावा उसने चीन के इतर ब्रिक्स के अन्य सदस्य देशों रूस, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील को अलग-अलग साधने की रणनीति बनाई। नतीजा यह हुआ कि रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका ने न सिर्फ सीमा पार आतंकवाद पर भारत का साथ दिया, बल्कि परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह एनएसजी की सदस्यता पर भारत का समर्थन किया। रही सही कसर 'बिम्सटेक' के सदस्यों ने सीमा पार आतंकवाद पर खुलकर भारत का साथ देकर पूरी कर दी। अगर बिम्सटेक की जगह सार्क देशों को आमंत्रित किया जाता तो इसमें शामिल पाकिस्तान और ब्रिक्स में शामिल चीन एक सुर में बात कर अलग संदेश देने में सफल हो सकते थे। चूंकि 'बिम्सटेक' में शामिल सदस्य देश नेपाल, बंगलादेश, श्रीलंका, नेपाल और थाइलैंड आतंकवाद के सवाल पर पहले से ही भारत के साथ खड़े हैं, इसलिए चीन की पाकिस्तान के लिए सहानुभूति हासिल करने की चाल औंधे मुंह गिरी।
दरअसल करीब तीन दशक से सीमा पार से आतंकवाद के रूप में लगातार परोक्ष युद्ध झेल रहे भारत की चुनौती इस मुद्दे को दुनिया का मुख्य एजेंडा बनाना है। यही कारण है कि 2014 में सत्ता की कमान संभालते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद के खात्मे को एजेंडे में प्रमुखता से लिया। इस कड़ी में उन्होंने सबसे पहला हमला आतंकवाद के प्रति दुनिया के अलग-अलग दृष्टिकोण पर किया। उन्होंने लगातार कहा कि आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं बल्कि बस बुरा होता है।
इस दौरान फ्रांस सहित कई देशों में हुए आतंकी हमलों के बाद दुनिया ने उनके दृष्टिकोण का समर्थन किया। इसी बीच पठानकोट और फिर उरी के सैन्य बेस पर हुए आतंकी हमले के बाद आतंकवाद को ही केंद्र मानकर भारत ने पाकिस्तान को अलग-थलग करने का अभियान छेड़ा। इस अभियान की पहली कड़ी में दुनिया के कई ताकतवर देशों सहित पाकिस्तान के पैरोकार माने जाने वाले अरब देशों का समर्थन हासिल करने के बाद भारत ने पाकिस्तान को सार्क देशों में अलग-थलग कर दिया। ऐसे में यह जरूरी था कि इसके बाद होने वाले ब्रिक्स सम्मेलन में भी भारत आतंकवाद को न सिर्फ मुख्य एजेंडा बनाए बल्कि सदस्य देशों का समर्थन हासिल करे। इसी रणनीति के तहत खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में पाकिस्तान को आतंकवाद की जननी करार दिया। इस दृष्टि से बात करें तो चीन की पाकिस्तान की पैरोकारी के बावजूद ब्रिक्स और 'बिम्सटेक', दोनों मंचों पर आतंकवाद का प्रमुख एजेंडा बनना मोदी सरकार की बड़ी कूटनीतिक कामयाबी है। हालांकि चीन के रुख और रूस की मजबूरी के कारण ब्रिक्स घोषणापत्र में सीमा पार आतंकवाद और लश्करे तैयबा तथा जैशे मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों का जिक्र नहीं हो पाया। इसके बावजूद घोषणापत्र में भारत ने आतंकवाद का समूल नाश करने की प्रतिबद्धता को शामिल करके कूटनीतिक जंग तो जीत ही ली है। जाहिर तौर पर इस बड़ी जीत के बाद भारत आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ विश्वव्यापी अभियान और तेज करेगा। ब्रिक्स सम्मेलन में मिली सफलता के अलावा भारत को द्विपक्षीय वार्ताओं में भी बड़ी सफलता हासिल हुई है। इसमें सबसे बड़ी सफलता रूस से रक्षा क्षेत्र में हुए तीन अहम समझौते हैं। इनमें से एक एस- ट्रायम्फ एयर मिसाइल रोधी रक्षा प्रणाली हासिल करने संबंधी समझौते से चीन और पाकिस्तान की नींद हराम होना स्वाभाविक है। दरअसल इस प्रणाली में शामिल छोटी, मध्यम और लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें किसी भी तरह के परमाणु हमले को नाकाम करने में सक्षम हैं। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि कि पाकिस्तान की हमेशा से परमाणु युद्ध छेड़ने की गीदड़ भभकी उसके किसी काम नहीं आएगी। इसके अलावा हवाई सुरक्षा क्षेत्र में हमारी ताकत बढ़ने से चीन की चिंता भी बढ़ेगी।
'आतंकवाद पर भारत ने दिखाया चीन को आईना'
राकेश सूद
पूर्व राजदूत एवं दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ
ब्रिक्स और इसके विस्तारित सत्र में 'ब्रिक्स-बिम्सटेक' सम्मेलन में सीमा पार आतंकवाद के सवाल पर हालांकि चीन अपने पुराने रुख पर कायम रहा, मगर भारत इन वैश्विक मंचों में शामिल सदस्य देशों के जरिए आतंकवाद के सवाल पर चीन को आईना दिखाने में कामयाब रहा। उरी हमले के बाद अलग-थलग पड़े पाकिस्तान के पक्ष में सहानुभूति भरा माहौल बनाने की चीन को कोशिश परवान नहींं चढ़ पाई। चीन को उम्मीद थी कि अमेरिका से बढ़ती निकटता से भारत और रूस की दशकों पुरानी दोस्ती में दरार पड़ेगी। इसके बाद वह इस परिस्थिति का इस्तेमाल पाकिस्तान के पक्ष में सहानुभूति हासिल करने के लिए करेगा। हालांकि रूस ने आतंकवाद के मामले में भारत के सुर में सुर मिलाने के अलावा एस-ट्रायम्फ मिसाइल रोधी रक्षा प्रणाली का तोहफा देकर चीन को सबसे बड़ा झटका दिया। 'बिम्सटेक' देशों ने भी आतंकवाद के मामले में भारत का साथ देकर चीन की मुहिम को सफल होने से रोक दिया।
मुझे लगता है कि भारत की अमेरिका और रूस दोनों से दोस्ती में आई गर्माहट के बाद चीन भारत के पड़ोसी देशों को साधने का कूटनीतिक लक्ष्य निर्धारित करेगा। इस मोर्चे पर पहले ही श्रीलंका और नेपाल को साधने की मुहिम में जुटे चीन की निगाहें भारत के एक अन्य पड़ोसी देश बंगलादेश पर हैं। बंगलादेश को 24 अरब डालर का अब तक का सबसे बड़ा कर्ज देने की चीन की तैयारी इसी मुहिम का हिस्सा है। हालांकि इसमें चीन की सफलता 2018 की जनवरी में बंगलादेश में होने वाले आम चुनाव के नतीजों पर निर्भर है। बंगलादेश की वर्तमान शेख हसीना सरकार से भारत सरकार के मधुर रिश्ते हैं। सर्जिकल स्ट्राइक पर सबसे पहले भारत का समर्थन कर बंगलादेश सरकार ने इस आशय का सबसे ताजा सबूत दिया है। हालांकि यहां की मुख्य विपक्षी पार्टी बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी और इसकी मुखिया खालिदा जिया अपने भारत विरोधी रुख के लिए जानी जाती हैं। अगर आम चुनाव में खालिदा ने बाजी मारी तो भारत-बंगलादेश रिश्तों में दरार पड़ने की संभावना बढ़ेगी। हालांकि चीन भारत के जिन पड़ोसियों पर डोरे डाल रहा है, उनकी भारत से बेहतर संबंध बनाए रखना मजबूरी भी है। नेपाल भारत के सहयोग के बिना आगे नहीं बढ़ सकता तो श्रीलंका भारत को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकता। हालांकि चीन इन देशों के साथ भारत के विवादास्पद मुद्दों को गर्माने की कूटनीतिक चालें चलने से बाज नहीं आएगा। जहां तक पाकिस्तान के प्रति चीन की सहानुभूति का सवाल है तो आतंकवाद के खिलाफ मोदी सरकार के सफल अभियानों के कारण दुनिया भर में आतंकवाद विरोधी माहौल तैयार हुआ है। इस ताकतवर माहौल के कारण फिलहाल कोई भी देश खुलकर पाकिस्तान का पक्ष लेने में संकोच ही दिखाएगा। वैसे भी भारत की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जिस प्रकार चीन को मजबूरी भरी चुप्पी साधनी पड़ी और पाकिस्तान के स्वाभाविक मित्र माने जाने वाले अरब देशों ने उससे किनारा किया, उससे भी इस तथ्य को बल मिलता है। (बातचीत पर आधारित)
रूस ने दिए दोस्ती पुख्ता करने के संकेत
मेजर जनरल (से.नि.) जी. डी. बख्शी
वरिष्ठ रक्षा विश्लेेषक
गोवा में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में रूस ने फिर साबित किया कि वह भारत के लिए इतना अहम क्यों है। यह भी साबित हुआ कि भारत के साथ रिश्तों के सवाल पर रूस की जगह कोई नहीं ले सकता। दरअसल उरी आतंकी हमले के बाद जब भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए पाकिस्तान को सबक सिखाने के साथ उसे अलग-थलग करने की कूटनीतिक मुहिम छेड़ी, उसी दौरान रूस की ओर से पाकिस्तान के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास की घोषणा की गई। ऐसे में दुनिया भर में ये कयास लगने शुरू हुए कि दशकों तक अभिन्न मित्र रहे भारत-रूस की मित्रता की कहीं उलटी गिनती तो शुरू नहीं हो गई। मगर रूस ने आतंकवाद पर खुलकर भारत का साथ दिया, साथ ही रक्षा क्षेत्र में तीन अहम करार कर चीन, पाकिस्तान के साथ-साथ दुनिया के सभी देशों को अपनी पुरानी और विश्वसनीय दोस्ती कायम रहने का प्रमाण दे दिया। आतंकवाद पर रूस का साथ तो महत्वपूर्ण है ही, इससे भी महत्वपूर्ण रक्षा समझौते हैं, जिनके अमली जामा पहनते ही भारत की वायु सेना की हैसियत दुनिया के शक्तिशाली देशों से आंखों में आंख डाल कर बात करने की हो जाएगी।
निश्चित रूप से भारत-रूस के बीच रिश्तों में नए सिरे से आई गर्माहट से सबसे ज्यादा तिलमिलाहट चीन को होगी। चीन की तिलमिलाहट को जानने-समझने के लिए हमें रक्षा समझौतों को बारीकी से देखना होगा। सबसे पहले दोनों देशों के बीच हुए एस-ट्रायम्फ एयर मिसाइल रोधी रक्षा प्रणाली हासिल करने के समझौते की बात करें तो यह दुनिया की आधुनिकतम मिसाइल रोधी प्रणाली है। इसमें शामिल छोटी, मध्यम और लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें 400 किलोमीटर की दूरी से आ रहे विमानों, मिसाइलों और ड्रोन को मार गिराने की क्षमता रखती हैं। इसमें पाकिस्तान-चीन की परमाणु ऊर्जा संचालित बैलिस्टिक मिसाइलों को एक साथ मार गिराने की क्षमता है। यह अमेरिका के फाइटर जेट एफ-35 को भी एक झटके में गिरा सकती है। दूसरा बड़ा रक्षा सौदा कामोव-टीके हेलीकप्टर खरीदने का है तो तीसरा रूस से एडमिरल ग्रीगोरोविच श्रेणी के चार मिसाइल रोधी युद्धपोत मिलने का। आधे युद्धपोत और आधे से ज्यादा हेलीकप्टर भारत में बनेंगे। इससे देश के मेक इन इंडिया अभियान को भी ताकत मिलेगी। जाहिर है, इससे भारत की हवाई सुरक्षा के अकाट्य होने पर चीन और पाकिस्तान का तिलमिलाना स्वाभाविक है। इसके बाद आतंकवाद के जरिए भारत से परोक्ष युद्ध लड़ रहे और बार-बार परमाणु युद्ध की धमकी दे कर दुनिया को ब्लैकमेल करने वाले पाकिस्तान ही नहीं, भारत के खिलाफ उसकी हर बुराई को गले लगाने और शह देने वाला चीन भी 'बैकफुट' पर है। फिर बीते एक दशक में यूपीए सरकार ने जिस प्रकार सेना के आधुनिकीकरण को ठंडे बस्ते में डालकर देश की सुरक्षा को ताक पर रखा, इन समझौतों से उसकी बहुत हद तक भरपाई भी हो गई है। हमें रूस की इस बात के लिए सराहना करनी चाहिए कि भारत से दोस्ती का दम भरने वाले ताकतवर देश मिसाइल रोधी प्रणाली देने में आनाकानी कर रहे थे। इन समझौतों के बाद अब रूस-पाकिस्तान संयुक्त सैन्याभ्यास का मामला बेहद गौण हो गया है। (बातचीत पर आधारित)
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