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देश की अर्थव्यवस्था को कालेधन के दुष्चक्र से मुक्त करने के चुनावी वादे के साथ सत्ता में आई भाजपानीत सरकार की 'आय घोषणा योजना-2016' में 65,250 करोड़ रुपए की घोषित राशि स्वाधीनता के बाद काले धन की सबसे बड़ी स्वैच्छिक घोषणा है। इस अघोषित आय पर कर और शास्ती (पेनल्टी) मिलाकर 45 प्रतिशत दर से सरकार को 29,362 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त होगा। इस कर राशि के भुगतान के बाद सभी घोषणाकर्ताओं के पास बचने वाली अनुमानित 36,000 करोड़ रुपए की राशि भी अब देश में वैध पूंजीनिवेश का अंग बनेगी। योजना के अधीन घोषित यह पूरी की पूरी राशि अर्थतंत्र में अब तक कहीं न कहीं कालाबाजारी और कर चोरी वाले सौदों को ही बढ़ा रही होगी। इस घोषणा राशि के अतिरिक्त मोदी सरकार ने विगत दो वर्ष में रिकार्ड 87,300 करोड़ रुपए की अघोषित आय पर कर चोरी पकड़ कर राजस्व में और भी वृद्धि की है। इसमें 2015 में घोषित विदेशों में जमा 4,147 करोड़ रुपए की आय को और जोड़ देने पर मोदी सरकार के लिए कुल 1,56,697 करोड़ रुपए तक की अघोषित आय उजागर करा लेना भी एक अपूर्व सफलता है। वस्तुत: यह देश के सकल घरेलू उत्पाद की एक प्रतिशत राशि है। आय घोषणा की इसके पूर्व की योजनाओं में 1975, 1985-86 और 1997 में क्रमश: इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी और इन्द्र कुमार गुजराल के नेतृत्व वाली सरकारों द्वारा कराई स्वैच्छिक आय घोषणाओं से क्रमश: 1,590 करोड़ रु., 2,940 करोड़ रु. तथा 33,000 करोड़ रु. की रकम से यह कहीं अधिक है। इसके पूर्व की योजनाएं अत्यन्त उदार थीं, पर आय घोषाणाओं की राशि और कर की राशि अत्यन्त कम थी। वर्ष 1997 में वित्त मंत्री चिदंबरम के काल में लाई आय घोषणा योजना में बिना शास्ति के ही मात्र सामान्य रूप से प्रचलित कर की दर पर एवं सम्पत्ति के मामले में उसके 10 वर्ष पुराने बाजार भाव पर कर निर्धारण की पेशकश पर भी मात्र 33,000 करोड़ रु. की आय की घोषणा की गई थी, जिस पर कर के रूप में मात्र 10,100 करोड़ रु. प्राप्त हुए थे। वर्तमान आय घोषणा से इसका तिगुना 29,362 करोड़ रु. का कर राजस्व प्राप्त होगा। ताजा अनुमानों के अनुसार 2016 की आय घोषणा योजना के अधीन घोषित राशि 10,000 करोड़ रु. से ज्यादा हो सकती है और 65,250 करोड़ रु. से बढ़कर 75,000 रु. या उससे भी आगे बढ़ सकती है। कुल मिलाकर विगत ढाई वर्ष में सरकार के प्रयासों से 1,56,697 करोड़ रु. की अघोषित आय सामने आई है। यह राशि जहां देश में जमाखोरी, कालाबाजारी या अन्य भी बेनामी सौदों को ही बढ़ाने वाली सिद्ध होती, वहीं अब यह देश के अर्थतंत्र में आर्थिक वृद्धि, विकास और लोक कल्याण के कार्यों में काम आ सकेगी। इसलिए इस प्रकार की स्वैच्छिक आय घोषणा योजनाओं की मात्र सैद्धान्तिक आधार पर आलोचनाओं से डर जाने की स्थिति में पिछले वर्ष में विदेशों में जमा आय की घोषणाओं की 4,147 करोड़ रु. की राशि सहित इस वर्ष की घोषित 65,250 रु. करोड़ की राशि मिलाकर दशकों से कर चोरी की यह लगभग 70,000 करोड़ रु. की राशि अर्थतंत्र को कमजोर ही कर रही थी। वही राशि अब अर्थतंत्र की मुख्यधारा में आकर आर्थिक वृद्धि में योगदान देगी और इस पर प्राप्त कर की राशि लोक कल्याण में काम आ सकेगी। आलोचकों का यह दृष्टिकोण कि जिन्होंने करापवंचना की, उन्हें यह सुविधा क्यों दी जाए, निर्मूल हो जाती है कि कम से कम यह लगभग 80,000 करोड़ रु. की राशि श्वेत होकर देश के अर्थतंत्र में योगदान तो देगी। इसीलिए दूसरी ओर इस 'आय घोषणा योजना' के आलोचकों के विपरीत विशेषज्ञों का एक वर्ग ऐसा भी है, जो इस प्रकार घोषित आय पर कर दर और भी कम रखने का पक्षधर है। इस वर्ग का कहना है कि पिछले वर्ष की विदेशों में जमा धन की घोषणा पर 60 प्रतिशत की उच्च दर से कर लगाने के कारण अब कई विशेषज्ञों का मानना है कि इतनी उच्च कर दर के कारण तब घोषणाकर्ताओं ने मात्र 4,164 करोड़ रु. की ही घोषणा की थी। अभी घरेलू आय की घोषणा हेतु 45 प्रतिशत के अपेक्षाकृत अल्प कर और शास्ति के प्रावधान के कारण ही आय घोषणा 65,250 करोड़ रु. तक पहुुंची है। काले धन की घोषणा पर कर और शास्ति की अल्प दर रखने के पक्षधर विशेषज्ञों का कहना है कि जो आय एक बार घोषित हो जाती है, वह देश की श्वेत पूंजी का अंग बन कर आर्थिक वृद्धि, विकास और प्रतिवर्ष कर राजस्व में योगदान देना प्रारंभ कर देती है। वहीं इंडोनेशिया और अर्जेण्टाइना में अल्प दर पर कर लगाने के प्रस्ताव से कई गुना अधिक राशि घोषित की गई है। विशेषज्ञों द्वारा उसके उदाहरण दिए जा रहे हैं। भारत में पिछले वर्ष की 60 प्रतिशत की कर दर से घोषित मात्र 4,147 करोड़ रु. और इस वर्ष 45 प्रतिशत की दर पर घोषित 65,250 करोड़ रु. की तुलना में जुलाई, 2016 में मात्र 31 प्रतिशत की कर दर लागू करने से इण्डोनेशिया की 9 माह की अवधि वाली आय घोषणा योजना के प्रथम चरण के तीन महीनों में ही 25,40,000 करोड़ रु. की राशि घोषित की गई है। इण्डोनेशिया में प्रथम चरण के बाद, कर दर में 1-3 प्रतिशत और अन्तिम तीसरे चरण की तिमाही में कर दर में 10 प्रतिशत की वृद्धि का प्रावधान है। 30 सितम्बर, 2016 को ही इण्डोनेशियाई आय घोषणा योजना की इस नौ माह की अवधि वाली योजना की पहली तिमाही पूरी हुई और कुल 379 अरब डॉलर (25,40,000 करोड़ रु.), जबकि भारत में 2015 की योजना के अधीन 4,147 करोड़ रु. और 2016 की योजना के अधीन 65,250 करोड़ रु. अर्थात् कुल 69,397 करोड़ रु. की ही घोषणा हुई है।
विश्लेषकों का अनुमान है कि पिछले वर्ष की 60 प्रतिशत और इस वर्ष की 45 प्रतिशत की दर को न्यून रखने पर यह राशि काफी अधिक हो सकती थी। अर्जेण्टाइना में भी अघोषित आय की घोषणा पर कर की दर कम होने से 80 अरब डॉलर (5,36,000 लाख रु.) के काले धन की घोषणा हुई है। इण्डोनेशिया में कालेधन की घोषणा की नौ माह की अवधि के प्रथम चरण में हुई 36,000 खरब इण्डोनेशियाई रु. (379 अरब डॉलर) में से जो 9,250 खरब इण्डोनेशियाई रु. की विदेशों में जमा काले धन की घोषणा सामने आई उसमें 70 प्रतिशत राशि, जो लगभग 4,42,200 करोड़ भारतीय रु. तुल्य राशि होती है, अकेले सिंगापुर में जमा थी। दूसरे स्थान पर कैमेने द्वीप और तीसरा स्थान हांगकांग का था।
भारत में चार माह की इस आय घोषणा योजना के प्रारंभिक चरण में तो नगण्य सी ही घोषणाएं हुई थीं। लेकिन बाद में आय कर विभाग द्वारा जारी 62,000 से अधिक नोटिस और इस अवधि में किए सर्च अभियानों से बने दबाव और अपनी काली आय की घोषणा नहीं करने पर अवधि के उपरान्त कठोरतम कार्रवाई की प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री की चेतावनियों का ही असर था कि अन्तिम दिन अप्रत्याशित घोषणाएं हुईं। भारत जैसे धर्मभीरू देश में कर अनुपालना और व्यवसाय में सत्यनिष्ठा तथा नैतिकता का अत्यन्त उच्च स्तर रहा है। स्वाधीनता के बाद चोरी, चलन बढ़ा उसके पीछे नेहरू-इन्दिरा शासन में समाजवादी जुनून से अति प्रगतिशील कर रचना उत्तरदायी रही है। वस्तुत: 1950 से 1985 तक कर दरें अत्यन्त अव्यावहारिक रूप से उच्च रही हैं। वर्ष 1970-71 में 10 प्रतिशत से 85 प्रतिशत तक की कर दरों के 11 स्तर थे। आय कर की अधिकतम 85 प्रतिशत दर पर 10 प्रतिशत सरचार्ज जोड़ने से करदाता का उच्चतम कर दायित्व 93़ 50 प्रतिशत तक पहुंच जाता था और 1973-74 में तो व्यक्तिगत आय पर अधिकतम 97़ 50 प्रतिशत कर दायित्व बन जाता था। स्व़ नानी पालखीवाला ने तो 1973-74 की दरों पर गणना करके सिद्ध किया था कि व्यक्ति की भूमि, भवन और सम्पदा पर देय कर दायित्व को भी जोड़ देने पर उसकी आय के शत प्रतिशत से भी ऊंचा कर दायित्व बन जाता था। ऐसे समाजवादी जुनून प्रेरित आय कर की दरों के आतंक के दौर में ही देश में मजबूरीवश करापवंचना और कर चोरी का चलन बनने लगा था और देश काले धन के दुष्चक्र में फंसता चला गया।
समाजवाद के नाम पर स्वाधीनता के बाद जो अति उच्च आयकर दरें रखी गईं, वह हमारे प्राचीन नीति शास्त्रों के सिद्धान्तों के भी विरुद्ध रही हैं। हमारे यहां शुक्र नीति, याज्ञवल्क्य नीति और महाभारत के अनुसार राजा को इस प्रकार से कर लगाने चाहिए, जिस प्रकार मधुमक्खी पुष्प को बिना कष्ट पहुंचाए पराग ग्रहण करती है। इन नीति ग्रंथों में यह भी विधान है कि विशेष परिस्थितियों में राजस्व के अतिरिक्त कर प्रदान करने का आग्रह करना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर देश में एक करोड़ लोगों ने रसोई गैस के अनुदान का स्वेच्छापूर्वक परित्याग कर दिया। इसके बाद ही आज केन्द्र सरकार ने उज्जवला योजना के अंतर्गत पांच करोड़ महिलाओं को रसोई गैस के कनेक्शन प्रदान किए हैं। सरकार ने आर्थिक स्वावलंबन के लिए मुद्रा बैंक के माध्यम से छोटे ऋण, जनधन योजना, जन बीमा, कौशल विकास और 'स्टार्ट-अप-स्टेण्ड-अप भारत' जैसी आर्थिक समावेशीकरण की योजनाओं का सूत्रपात किया है। इस वर्ष की स्पेक्ट्रम नीलामी से जो पांच लाख करोड़ रु. के लगभग राजस्व मिलेगा, उससे देश संसाधन संकट से भी उबर जाएगा। इन सबके परिणामस्वरूप भारत एक समर्थ और समृद्ध देश के रूप में विश्व में अग्रणी स्थान बना सकेगा।
-भगवती प्रकाश शर्मा
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