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आवरण कथा 'नया दौर' से जाहिर है कि अमेरिका-भारत दोनों देश मित्रता के नए आयाम गढ़ रहे हैं। विश्व में अफगानिस्तान, भारत और अमेरिका मिलकर शांति कायम करने का प्रयास कर रहे हैं। भारतीय विदेश नीति दशकों पुरानी चुनौतियों से निबटने के लिए अब बिल्कुल नए तेवर के साथ नई जमीन पर कदम बढ़ा रही है।
—अनुज सक्सेना, गुना (म.प्र.)
ङ्म भारत अमेरिका और अफगानिस्तान तीनों देशों के हित समान हैं, इसलिए तीनों स्वाभाविक साझेदार बनकर उभरे हैं। लेकिन पाकिस्तान के लिए यह चिंता की बात बन गई है। वह नहीं चाहता कि भारत किसी भी क्षेत्र में मजबूत हो। इसलिए वह भारत की जितनी भी हानि कर सकता है, करता है। वह सिर्फ भारत के लिए ही नहीं बल्कि एशिया के लिए दिन-प्रतिदिन खतरा बनता जा रहा है।
—निशा भाटिया, सारण (बिहार)
ङ्म अन्तरराष्ट्रीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदृष्टि से भरपूर नीतियों के चलते ही भारत विश्व पटल पर धीरे-धीरे महत्वपूर्ण स्थान बनाने में कामयाब हुआ है। विश्व के अनेक देशों में भारत के प्रति लोकप्रियता स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है। भारत-अमेरिका की बढ़ती निकटता से वैश्विक राजनीति नई दिशा में बढ़ चली है। तो वहीं पाकिस्तान को अब बचने की जगह नहीं मिल रही। वह धीरे-धीरे अपने ही बनाए जाल में फंसता जा रहा है और उसका आतंकवाद को पोषित करने वाला चेहरा दुनिया के सामने आ चुका है।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा(हरियाणा)
ङ्म भारत के प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी स्पष्ट नीतियों को उल्लेख किया। उन्होंने निर्भीक होकर कहा कि आज बलूचिस्तान, सिंध और गिलगित-बाल्टिस्तान और पाक कब्जे वाले कश्मीर में मानवाधिकारों का हनन हो रहा है। कश्मीर पर राग अलापने वाले पाकिस्तान को यह सुनकर बड़ी पीड़ा हुई। अब उसको उसी की भाषा में जवाब जो मिला है।
—राकेश जायसवाल, कटवारिया सराय (नई दिल्ली)
न्याय की आस में जनसामान्य
रपट 'इंसाफ की आस' (11 सितंबर, 2016) से स्पष्ट है कि देश में मौजूदा न्याय व्यवस्था में पर्याप्त सुधार की आवश्यकता है। न्यायालय में लंबित मुकदमों की संख्या में हो रही वृद्धि इस बात का स्पष्ट प्रमाण है
कि न्यायालयों की कार्य क्षमता बेहद कम है। सरकार को इस दिशा में तुरंत फैसला करते हुए विभिन्न न्यायालयों में खाली पदों पर न्यायाधीशों की नियुक्ति करनी चाहिए।
—रजनीश कुमार चंदेल, पटना (बिहार)
ङ्म आज लाखों की संख्या में ऐसे लोग मिल जाएंगे जिन्हें न्याय पाने के लिए न्यायालय के चक्कर काटते हुए एक दशक से भी ज्यादा का समय बीत गया, पर न्याय नहीं मिला। अब कोई यह बताए कि ऐसे न्याय का वे क्या करेंगे? न्याय पाने की अपनी एक समय सीमा होनी चाहिए। देर से मिला न्याय न्याय नहीं होता। आज जब देश-दुनिया में तेजी से काम हो रहा है तो हमारे न्यायालयों में 'कच्छप गति' से काम चल रहा है। इस व्यवस्था में तत्काल सुधार की आवश्यकता है।
नैना खन्ना, चडीगढ़ (हरियाणा)
घर के दुश्मन
रपट 'सत्य नकारते सेकुलर' से स्पष्ट है कि अलगाववादियों की हठधर्मिता एवं चंद लोगों की गलत राह के कारण कश्मीर की अशांति वादियां आज भी प्रदेश के लिए कलंक के समान हैं। राज्य और केंद्र सरकार बराबर कश्मीरियों के साथ संवाद मंथन व चिंतन करने का काम कर रही है लेकिन कुछ लोग हैं जो यह चाहते ही नहीं यहां हिंसा का दौर थमे। आतंक फैलाने वाले दुश्मन अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहे, क्योंकि इन्हें अमन-चैन पसंद नहीं है।
—हरिहर सिंह चौहान, इंदौर (म.प्र.)
राजनीतिक पूर्वाग्रह
रपट 'लाल दमन का शमन कब' केरल में स्वयंसेवकों की पीड़ा को जाहिर करती है। यहां संघ के स्वयंसेवकों की निर्मम हत्याओं का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा। यह देश और लोकतंत्र के लिए घातक है। इतना सब कुछ हो रहा है लेकिन वामपंथी सरकार अपना मुंह सिले हुए है। तो वहीं उसके गुंडे खुलेआम संघ के स्वयंसेवकों और हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकर्ताओं पर हमले कर रहे हैं और मौत के घाट उतार रहे हैं। और वे सेकुलर जो शाम होते ही टीवी पर ज्ञान बघारने में लग जाते हैं, इन घटनाओं पर अपना मुंह सिल लेते हैं?
—अखिलेश आनंद, जयपुर (राज.)
समृद्ध विरासत को सहेजें
रपट 'लहरों में घुलती सांस्कृतिक धरोहर' (11 सितंबर, 2016) मन को खूब भायी। मैं अनेक पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ता हूं लेकिन इन धरोहरों के बारे में पहली बार पढ़ा और जानने का अवसर मिला। इतनी बड़ी सांस्कृतिक धरोहर हमारे पास है। अभी तक हममें से बहुत सारे लोग इस क्षेत्र के बारे में अनजान हैं। सरकार और सामाजिक संस्थाओं को लगकर इस विरासत को सहेजना होगा, क्योंकि ऐसी ही समृद्ध धरोहर हमारी असली थाती हैं।
—नितिन कश्यप, हल्द्वानी (उत्तराखंड)
ङ्म माजुली जैसे सांस्कृतिक केन्द्र ही भारत की असली धरोहर हैं। यहां भारतीय संस्कृति की महक तो मिलती ही है, साथ ही सभ्यता के साक्षात् दर्शन होते हैं। विविधता और समृद्ध विरासत को अपनी गोद में समाये इस द्वीप को संरक्षण की जरूरत है। न तो यहां का विकास हुआ और न ही इसविरासत को सहेजने के कुछ प्रयास हुए। अब नई सरकार से आशा है।
—श्रीकांत वर्मा, रामपुर (उ.प्र.)
ङ्म इस द्वीप पर रहने वाले लोगों का जीवन बड़ा कठिन है। हर दिन उनकी जान को खतरा रहता है। बाढ़ से कब क्या हो जाए कुछ पता नहीं। लेकिन दूसरी ओर रिपोर्ट पढ़कर जहां सनातन संस्कृति की झलक मिली, वहीं यहां रहने वालों की पीड़ा और दर्द भी दिखा। मूलभूत जरूरतों का अभाव, चिकित्सा की कमी, आवागमन का संकट आज के समय बड़ा कठिन है। राज्य-केंद्र सरकार को चाहिए कि वे इस समृद्ध द्वीप और यहां रहने वाले लोगों को सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराएं ताकि वे भी सामान्य लोगों की भांति जीवन जी सकें।
—आनंद सिंह, विकासपुरी (दिल्ली)
सुधार की जरूरत
रियो ओलंपिक में देश के बेटियों ने जहां सिर गर्व से ऊंचा कराया वहीं अन्य खिलाडि़यों ने निराश किया। इतना बड़ा देश होने के बाद भी इतने कम पदक लाना भारत को शोभा नहीं देता। यह किसी पर दोषारोपण करने की बात नहीं है लेकिन सीखने की बात जरूर है। इस बार के ओलंपिक में भारत का
प्रदर्शन निराशाजनक रहा। इसके पीछे के कारण स्पष्ट है। हमारे यहां खिलाडि़यों को न तो उतना अच्छा प्रशिक्षण उपलब्ध हो पाता है और न ही अत्याधुनिक सुविधाएं। जबकि अन्य
देशों में खिलाडि़यों को सभी कुछ उपलब्ध है। इसका परिणाम यह होता है कि वे अपने
क्षेत्र में अच्छा करते हैं और विजयी होते हैं। अगर भारत के खिलाडि़यों को सभी सुविधाएं
और उचित प्रशिक्षण मिले तो आने वाले
दिनों में भारत के लिए खेलकर वे भी अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। 'पदक कम सबक ज्यादा' (4 सितंबर, 2016)।
—राममोहन चंद्रवंशी, हरदा (म.प्र.)
निशाना बनते हिन्दू
चाहे उत्तर प्रदेश के कैराना का मामला हो या बंगाल के मालदा का या फिर देश के अन्य किसी क्षेत्र का। सभी जगह हिन्दुओं को उन्मदियों के कारण मजबूरन पलायन को विवश होना पड़ा है। इन सभी जगहों पर मुस्लिम बहुसंख्यक हो गए और हिन्दू अल्पसंख्यक। जब भी कोई हिन्दू यहां विरोध करता है तो या तो उसकी हत्या कर दी जाती है या फिर उसे इतना उत्पीडि़त कर दिया जाता है कि उसे क्षेत्र को छोड़ना ही पड़ता है। आखिर क्यों किसी भी सरकार का इस ओर ध्यान नहीं जाता? ये सभी लोग हिन्दू हैं इसलिए इनके साथ ऐसा हो रहा है?
—रामआसरे, भोपाल(म.प्र.)
ङ्म जो सेकुलर देश में राजनीति से प्रेरित होकर एक समुदाय के मामलों को हवा देने से नहीं चूकते, उन्हें हिन्दुओं का दुख-दर्द क्यों दिखाई नहीं देता? वे क्या सिर्फ एक ही मजहब के पैरोकार हैं? अगर ऐसा है तो वे स्वार्थी हैं और समाजद्रोही। समाज को ऐसे लोगों को पहचानना होगा क्योंकि ये लोग समाज में खाई पाटने के बजाए खाई को चौड़ी करने का काम करते हैं।
—मनोहर मंजुल, प.निमाड (म.प्र.)
ङ्म वसुधैव कुटुम्बकम् और सर्वे भवंतु सुखिन: के सनातन उद्घोष के साथ हिन्दुत्व जगत के प्राणियों में सद्भावना बढ़ाने वाला कल्याणकारी धर्म है। यहां परोपकार, अहिंसा और समर्पण शुरू से ही
सिखाया जाता है जबकि अन्य मत-पंथों
में ऐसा नहीं है। यहां आत्मा को परमात्मा माना जाता है।
—अखिलेश कुमार शुक्ल, रायबरेली (उ.प्र.)
पुरस्कृत पत्र : कब रुकेंगी हत्याएं?
हिन्दू आबादी जहां भी घटती है, वहीं उनका का दमन शुरू हो जाता है। रपट 'लाल दमन का शमन कब' से केरल में वामपंथियों के अत्याचार का पता चला। केरल में हिंदुओं की आबादी घट रही है और ईसाई और मुस्लिम आबादी बराबर बढ़ रही है। प्रदेश में संघ स्वयंसेवकों की हत्या बदस्तूर जारी है। अब तक सैकड़ों की संख्या में हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिन्दू समाज को जोड़ने व संगठित करने का कार्य करता है जो वामपंथियों को रास नहीं आ रहा। क्योंकि उन्हें पता है कि अगर हिन्दू समाज संगठित और जागरूक हो गया तो उनके मंसूबों पर पानी फिर जाएगा। केरल में जानाधार न खोने पाए और लोगों में डर का माहौल बना रहे, इसलिए राज्य सरकार संघ कार्यकर्ताओं पर हमले करवाती है। केरल में आए दिन हिंदुओं की जान जा रही है। पर देश की मुख्य धारा का मीडिया चुप्पी साधे है। देश के दूसरों हिस्सों में छोटी-छोटी बातों पर हायतौबा मचाने वाला यह मीडिया इन हत्याओं पर मौन साधकर अपने आप को सेकुलर दर्शाने में लगा रहता है। पर उत्तर प्रदेश में एक मुस्लिम की हत्या पर यही मीडिया देश की सहिष्णुता पर प्रश्न चिह्न लगा देता है? उसे निष्पक्षता के साथ घटनाओं को देश व समाज के सामने लाना चाहिए और घटना की तह में जाना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं होता। आज जब देश में हिन्दुओं की आबादी बहुसंख्यक है तब तो यह हालात हैं। अगर हिन्दुओं की आबादी धीरे-धीरे इसी तरह से कम होती जाएगी तो क्या हालात होंगे, इन घटनाओं से समझा जा सकता है।
जयप्रकाश जांगिड़, 486, बसंत विहार, कोटा (राज.)
प्रति सप्ताह पुरस्कृत पत्र के रूप में चयनित पत्र को प्रभात प्रकाशन की ओर से 500 रु. की पुस्तकें भेंट की जाएंगी।
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