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पाकिस्तान एक असफल देश साबित होता जा रहा है। कट्टरवादी ताकतों, मजहबी उन्मादियों, आतंकवादियों और फौजी तानाशाही ने वहां ऐसा माहौल बना दिया है कि देश के अनेक हिस्सों से बगावत की बू आने लगी है। जानकार मान रहे हैं कि आने वाले समय में पाकिस्तान पूरी तरह बिखर सकता है
सुधेन्दु ओझा
भारत-पाकिस्तान सुरक्षा विषयों के जानकार पिछले कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान की बहुत तेजी से गिरती साख पर निगाहें गड़ाए बैठे थे। तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों से दुत्कारे गए पाकिस्तान से होने वाली किसी भी पहल का उन्हें आभास था। उरी में भारतीय सेना के शिविर पर हुए फिदायीन हमले को इसी कड़ी में देखे जाने की आवश्यकता है।
1971 में दो भागों में बंटने जाने के पश्चात पाकिस्तान आज फिर उस मुहाने पर आ खड़ा हुआ है जहां उसे अपना भविष्य अनिश्चित ही नहीं, अंधकारमय नजर आ रहा है।
अमेरिका की नेशनल इंटेलिजेंस काउंसिल (एनआईसी) और वहां की गुप्तचर एजेंसी सीआईए ने 2005 के अपने एक अध्ययन में स्पष्ट कर दिया था कि आने वाले वषोंर् में यूरोप में यूगोस्लाविया की तरह ही पाकिस्तान कई टुकड़ों में बंट जाएगा। दोनों ही एजेंसियों के अनुसार पाकिस्तान 2015-16 तक अपनी गलत प्राथमिकताओं, गरीबी, सामाजिक विद्वेष, आर्थिक कुप्रबंधन और आतंकवाद के चलते एक विफल देश बन जाएगा और धीरे-धीरे विघटन के कगार पर पहुंच जाएगा। ब्रिटेन में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त वाजिद शम्सुल हसन ने एक प्रमुख समाचार पत्र में अमेरिकी नेशनल इंटेलिजेंस काउंसिल और सीआईए की इस रपट पर टिप्पणी करते हुए लिखा था कि इस्लामी पार्टियों की गहरी पैठ के चलते नाममात्र के प्रजातांत्रिक सुधारों का कोई विशेष परिणाम नहीं निकलेगा और धीरे-धीरे ऐसी स्थिति आएगी कि पाकिस्तान पंजाब तक ही सिमट कर रह जाएगा।
सिंध का अलग होना
सिंध में सबसे अधिक कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का उत्पादन होता है। पाकिस्तान का लगभग 70 फीसदी कर सिंध प्रांत से ही आता है। इसके बावजूद सिंध पाकिस्तान के सबसे निर्धन और पिछड़े इलाकों में से एक है। बंटवारे के वक्त सिंध की जनता ने ही पाकिस्तान में शामिल होने का समर्थन किया था। लेकिन उसके बाद से पाकिस्तान ने जिस तरह से यहां के लोगों का दमन किया है, उससे उनका मोहभंग हो गया। इस वर्ष पाकिस्तानी स्वतंत्रता दिवस पर सिंध के लोगों ने काला दिवस मनाया। जिये सिंध मुत्ताहिदा महाज नामक एक संगठन काफी वक्त से अपनी जमीन की आजादी के लिए लड़ रहा है। दूसरे देशों में बसे सिंध के लोग भी समय-समय पर विरोध-प्रदर्शन करके अपनी आवाज पहुंचाने की कोशिश करते रहे हैं। सिंधी लोगों का आरोप है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी हाफिज सईद जैसे आतंकवादियों को पैसे और मदद देकर इस इलाके में इस्लामी आतंकवाद को बढ़ावा दे रही है। ऐतिहासिक रूप से सिंध की जनता मजहबी सद्भाव की सोच रखती है, लेकिन अब उन्हें कट्टरपंथ की तरफ मोड़ने की कोशिश हो रही है। इसका विरोध करने वाले कई सिंधी लोगों को अगवा कर उनकी हत्या कर दी गई है।
अलग होने की पुरानी मांग
पाकिस्तान का तेल और गैस का भंडार है बलूचिस्तान। यहां लगभग छह ट्रीलियन बैरल तेल भंडार होने का अनुमान है। अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि इस तेल भंडार के चलते कई पश्चिमी राष्ट्र बलूचिस्तान की स्वतंत्रता को हवा दे सकते हैं। बलूचिस्तान का संघर्ष सिंध से कहीं अधिक पुराना है। यहां आएदिन पाकिस्तान के खिलाफ आंदोलन और आजादी के लिए प्रदर्शन होते रहते हैं। पाकिस्तान आरोप लगाता रहा है कि भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ यहां अलगाववाद को हवा देती है। लेकिन आज तक वह इसके पक्ष में कोई सबूत पेश नहीं कर सका है। बलूच नेता नायला कादरी के मुताबिक, ''रॉ का बलूचिस्तान में कोई दखल नहीं है। हम 1947 के पहले से आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। पाकिस्तान रॉ पर आरोप लगाकर यहां के असली मुद्दों से दुनिया का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहा है। बंटवारे के वक्त भी बलूचिस्तान ने स्वतंत्र देश बनने की मांग की थी। लेकिन तब पाकिस्तान ने सेना भेजकर इस इलाके पर कब्जा कर लिया था।'' आंदोलन के चलते पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को विकास की मुख्यधारा से पूरी तरह काट रखा है। बीते 70 साल में यहां हजारों बलूच कार्यकर्ताओं का अपहरण कर हत्या की जा चुकी है। अमेरिका द्वारा मुखर विरोध के बावजूद एनआईसी और सीआईए की रपट के अनुसार वह बलूच विद्रोहियों की सहायता कर सकता है। अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट कर्नल राल्फ पीटर्स ने अमेरिका की पत्रिका द आर्मड फोर्सेस जर्नल में 2006 में अपने लेख में स्पष्ट किया था कि पाकिस्तान से अलग कर ग्रेटर बलूचिस्तान बना दिया जाना चाहिए।
'फाटा'-कबायलियों का देश
यह पाकिस्तान का उत्तरी-पश्चिमी इलाका है, जिसे 'फेडरली एडमिनिस्टर्ड ट्रायबल एरिया' कहा जाता है। इस इलाके में पाकिस्तानी सेना तालिबान के साथ काफी समय से लड़ाई लड़ रही है। इन जनजातीय इलाकों के लोगों ने कभी भी पाकिस्तान का आधिपत्य स्वीकार नहीं किया। अफगानिस्तान के करीब होने की वजह से यह इलाका हमेशा से वहां के कट्टरपंथी संगठनों के प्रभाव में रहा है। फिलहाल पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई के चलते यहां इस्लामाबाद के प्रति भारी गुस्सा है।
पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर
भारतीय प्रभुत्व वाले कश्मीर में भले ही पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगते हों, लेकिन दूसरी तरफ पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर में हालात बिल्कुल अलग हैं। यहां शिया मुसलमानों की बहुतायत है, किन्तु पाकिस्तान इस स्थिति को बदलने के लिए वहां सुन्नी मुसलमानों को तरजीह दे रहा है। मुजफ्फराबाद और गिलगित समेत यहां के तमाम इलाकों में पाकिस्तान विरोधी प्रदर्शन और नारेबाजी आम बात है। पिछले दिनों इस इलाके में चुनाव हुए थे, जिसमें नवाज शरीफ की पार्टी विजयी घोषित हुई थी। यहां के लोगों का कहना है कि यह बोगस चुनाव था और लोगों के सही वोटों की गिनती ही नहीं की गई। इसके बाद से पूरा इलाका हिंसा की चपेट में है। लोगों की मांग है कि पाकिस्तानी सेना को इस इलाके से हटाया जाए। नई पीढ़ी के लोग यह महसूस करने लगे हैं कि अगर वे भारत का हिस्सा होते तो यह उनके भविष्य के लिए अच्छा होता।
कश्मीर में आई बाढ़ और भूकंप के वक्त भी भारत की तरफ के इलाकों में राहत कार्यों को बहुत अच्छे तरीके से अंजाम दिया गया था, जबकि पाकिस्तान के इलाके में लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया था।
पंजाब का प्रभुत्व
पाकिस्तान की राजनीति में पंजाब प्रांत का वर्चस्व रहा है। इसे लेकर बाकी देश में नाराजगी देखने को मिलती है। लेकिन पिछले कुछ साल में जिस तरह से पाकिस्तान में कट्टरपंथी ताकतें मजबूत हुई हैं और रोज-रोज आतंकवादी हमले हो रहे हैं, ऐसे में एक देश के तौर पर पाकिस्तान से लोगों का भरोसा उठता जा रहा है। एनआईसी और सीआईए की इस रपट ने जो परिदृश्य रखा है, उसके अनुसार पाकिस्तान दशकों की अपनी गलत नीतियों, राजनैतिक एवं आर्थिक कुप्रशासन, इस्लामी विभाजक नीतियों, छिन्न-भिन्न कानूनी व्यवस्था, भ्रष्टाचार और आतंकवादियों के दोहरे मापदण्डों के चलते केवल पंजाब प्रांत तक सिमट के रह जाएगा।
संभावित विभाजन के कारण
अमेरिका ने पाकिस्तान की आर्थिक सहायता लगभग बंद कर दी है। वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान के साथ खड़ा नहीं होना चाहता। भारत के साथ अमेरिका के सामरिक संबंधों ने पाकिस्तान के साथ-साथ उसके मित्र चीन की भी नींद उड़ा दी है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ मानते हैं कि तात्कालिक सफलता हासिल करने और भारत से आगे निकलने की ईर्ष्या में पाकिस्तान एक के बाद एक ऐसे गलत निर्णय लेता गया कि आज उसे स्वयं के अस्तित्वहीन होकर शेष विश्व से अलग-थलग पड़ जाने की संभावना नजर आ रही है।
मजहबी कट्टरता और फिरकापरस्ती
पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश अनवर जहीर जमाली ने 21 सितंबर को 2016-17 के नए न्यायिक सत्र की शुरुआत करते हुए कहा कि पाकिस्तान में आतंक कहीं बाहर से नहीं आ रहा है, बल्कि विभिन्न राजनैतिक दल अपने-अपने स्वार्थ के लिए इन तत्वों को शह देते हैं। उन्होंने सभी राजनैतिक पार्टियों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि कराची से लेकर बलूचिस्तान तक हर जगह इन आतंकवादी ताकतों को राजनैतिक दलों का संरक्षण प्राप्त है। उन्होंने कहा कि इस संरक्षण के चलते आम लोगों को न्याय नहीं मिल पाता और न्यायाधीश भी दबाव में रहते हैं।
आतंकवाद समर्थक नीति
समूचे विश्व में आज जनमत किसी भी प्रकार के आतंकवाद के विरोध में है, परंतु पाकिस्तान स्वतंत्रता के बाद से ही छद्म आतंकवाद का पोषक रहा है। उसे 1947-48 में कश्मीर के अधिकांश भाग पर कब्जा इन्हीं ताकतों की सहायता से प्राप्त हुआ था। किन्तु अफगानिस्तान में रूस समर्थित सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए अंतरराष्ट्रीय ताकतों द्वारा जो खेल खेला गया, उसमें पाकिस्तान को आतंकवाद को एक औजार के रूप में इस्तेमाल करने की स्वतंत्रता मिल गई, जिसका प्रयोग वह आज भी भारत और अफगानिस्तान के विरुद्ध कर रहा है।
अमेरिका, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और तालिबान सुलह वार्ता प्रक्रिया पर पाकिस्तान द्वारा पानी फेरे जाने की वजह से अमेरिका को अफगानिस्तान को पाकिस्तानी पिट्ठू तालिबानियों से सुरक्षित रख पाने में कठिनाई अनुभव हो रही है। वहीं पाकिस्तान आतंकवादियों के समूह से अफगानी सरकार को बेदखल कर हक्कानियों और तालिबानियों के लिए जमीन की तलाश कर रहा है जिससे उसके और अमेरिका के संबंध टूटने की कगार पर हैं। परमाणु अप्रसार में पाकिस्तान के चीन की शरण में जाने से अमेरिकी दुविधा में कमी नहीं हुई है, वहीं पाकिस्तान और चीन की साठगांठ से भारत की परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की सदस्यता में बाधा के प्रयास को भी अमेरिका ने अनदेखा नहीं किया है। यही कारण है कि अब अमेरिका तथा उसके समूह के देश पाकिस्तान को घेरने की प्रक्रिया में हैं।
आतंक का दोहरा खेल
अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, पाकिस्तान में चल रही कई धाराएं गलत दिशा में जाती दिखाई दे रही हैं। पिछले कई साल से पाकिस्तान ने भारत के साथ अपने संघर्ष और हमलों के लिए जिहादी आतंकियों के इस्तेमाल को जायज ही ठहराया है। वह आतंक को लेकर दोहरी चालें चल रहा है। उसने इस्लामवादी कट्टरपंथियों का समर्थन किया है जो भारत के खिलाफ अपना हमला जारी रखे हुए हैं, जबकि दूसरी तरफ वह कट्टरपंथियों को 'नियंत्रित करने की कोशिश' में लगा हुआ है। आतंक को लेकर खेला जा रहा यह दोहरा खेल ही पाकिस्तान को नीचे ला रहा है।
स्वयं अमेरिका में पाकिस्तान की आतंकवादी नीतियों के विरोध में जनमत तैयार हो रहा है। उसके 'दोहरे खेल' से तंग आकर अमेरिकी सांसदों ने अमेरिकी कांग्रेस में एक सुनवाई आयोजित की है। इस सुनवाई के दौरान इस बात पर चर्चा की गई कि पाकिस्तान आतंक के खिलाफ युद्ध में अमेरिका का 'दोस्त है या दुश्मन'। कांग्रेस सदस्य और सदन की विदेशी मामलों की समिति की आतंकवाद, परमाणु अप्रसार एवं व्यापार से संबंधित उप समिति के अध्यक्ष टेड पो ने कहा कि सुनवाई से सदस्यों को आतंकी समूहों के साथ पाकिस्तान के पुराने संबंधों के बारे में जानने और उसे अमेरिका की विदेशी नीति के बेहतर पुनर्मूल्यांकन का मौका मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका पाकिस्तान को सहायता देने वाले प्रमुख देशों में है। अमेरिका द्वारा 2002 के बाद से अब तक 33 अरब डॉलर की धनराशि पाकिस्तान को सहायता के रूप में दी गई है।
अभी भी आतंकियों से संपर्क
एशिया एवं प्रशांत से जुड़ी उप समिति के प्रमुख कांग्रेस सदस्य मैट सैलमोन ने पाकिस्तान के कथित 'दोहरे खेल' को लेकर कहा कि अमेरिका ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले (9/11 हमला) के बाद से करदाताओं के अरबों डॉलर पाकिस्तान को मदद देने के लिए खर्च किए। उन्होंने कहा कि 15 साल बाद पाकिस्तान की सैन्य और खुफिया सेवाओं के तार अब भी आतंकी संगठनों से जुड़ रहे हैं और क्षेत्र को स्थिर करने में बहुत कम सफलता मिली है। उन्होंने बताया कि सुनवाई में पाकिस्तान को लेकर प्रशासन की नाकाम नीति व आगे की योजना पर बहस होगी। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की सैन्य खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलीजेंस (आईएसआई) अपने देश के क्षेत्रीय विरोधियों पर प्रभाव डालने के लिए तालिबान, अलकायदा और हक्कानी नेटवर्क सहित विभिन्न आतंकी समूहों को समर्थन देती है।
पाकिस्तान पर अफगानिस्तान का दबाव
अपने इलाके में तालिबानी हमलों को लेकर अफगानिस्तान ने पाकिस्तान पर जबरदस्त दबाव बनाया हुआ है। पूर्व राष्ट्रपति से लेकर वर्तमान राष्ट्रपति अशरफ गनी द्वारा लगभग हर अंतरराष्ट्रीय मंच से अफगानिस्तान पाकिस्तान को आतंकवादी मुल्क बताता रहा है। यहां तक कि उसने भारत के साथ अफगान व्यापारियों के कारोबार के लिए वाघा बॉर्डर के रास्ते को न खोलने पर पाकिस्तान के लिए मध्य एशिया को जाने वाले 'ट्रांजिट रूट' को बंद करने की धमकी दी है। रपट के अनुसार, अफगानी राष्ट्रपति अशरफ गनी ने ब्रिटेन के विशेष दूत ओवेन जेनकिंस से मुलाकात के दौरान कहा कि यदि पाकिस्तान ने अफगान व्यापारियों को उनके सामान के आयात और निर्यात के लिए वाघा बॉर्डर का इस्तेमाल नहीं करने दिया तो अफगानिस्तान भी पाकिस्तान को अफगान 'ट्रांजिट रूट' का उपयोग नहीं करने देगा। अफगान 'ट्रांजिट रूट' के जरिए पाकिस्ताान मध्य एशिया और अन्य देशों से कारोबार करता है। गनी ने आगे कहा कि अफगानिस्तान अब पहले की तरह जमीन से घिरा हुआ देश नहीं है, उनका आशय भारत-ईरान-अफगानिस्तान व्यापार के लिए चाबहार बन्दरगाह से था। इसके पास आयात और निर्यात के लिए कई रास्ते हैं।
अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच कई मुद्दों पर तनातनी है। पाकिस्तान ने हाल ही में तोरखम सीमा पर प्रत्येक अफगानी नागरिक के लिए पासपोर्ट और वीजा लाना अनिवार्य कर दिया है। गनी ने कहा कि पाकिस्तान हमेशा अफगानिस्तान के ताजे फलों को भेजे जाने के रास्तों को बंद कर देता है। इससे व्यापारियों को करोड़ों रुपए का नुकसान होता है। अफगानिस्तान चाहता है कि क्षेत्र में आर्थिक सहयोग बढ़े और इसके लिए सभी तकनीकी समस्याओं को दूर किया जाए। अफगानिस्तान के अधिकारियों ने बताया कि उनका देश पाकिस्तान से वाघा बॉर्डर पर स्थित भारतीय शहर अटारी से व्यापार की छूट की लंबे वक्त से मांग करता रहा है। पर वह इससे इनकार कर देता है। अफगानिस्तान आतंकवाद के मुद्दे पर भी पाकिस्तान को घेरता रहा है। उसका कहना है कि पाकिस्तान ने कई आतंकियों को शरण दे रखी है।
बढ़ते भारत-अमेरिकी संबंध
भारत और अमेरिका के मध्य बढ़ते सामरिक संबंधों, सैन्य समझौतों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सक्रिय 'मेक इन इंडिया' नीति के चलते पश्चिम के प्रमुख रक्षा संस्थानों द्वारा अपनी विनिर्माण इकाई इत्यादि की भारत में प्रस्तावित स्थापना के दु:स्वप्न ने भी पाकिस्तान को बेचैन कर दिया है। वह एफ-16 विमानों के भारत में बनाए जाने और राफेल विमानों के भारत में आने पर चिंतित है। पाकिस्तान के पूर्व विदेश सचिव रियाज मोहम्मद खान अनुसार अमेरिका के सामरिक संबंध एक लंबे समय की हकीकत हैं। वे मानते हैं कि ये संबंध पाकिस्तान को असुरक्षा प्रदान करते हैं। उनका मानना है कि पाकिस्तान के अनुरोध पर चीन ने जिस तरह से एनएसजी में भारत के प्रवेश पर अड़ंगा लगाया, उससे भी अमेरिका पाकिस्तान से खासा नाराज है। उनका यह भी मानना है कि पाकिस्तान को भारत के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से उसका ही विघटन होगा।
असफल विदेश नीति
पाकिस्तान में प्रजातंत्र एक मुखौटा है। असल में वहां सत्ता का उपभोग सेना प्रमुख करता है। यही वजह है कि सेना द्वारा प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपने मंत्रिमंडल में एक स्वतंत्र विदेश मंत्री नियुक्त करने का मौका नहीं दिया गया। प्रधानमंत्री सेना प्रमुख के हाथों की कठपुतली मात्र है। संयुक्त राष्ट्र में सम्बोधन से पूर्व नवाज शरीफ का सेनाध्यक्ष से राय-मशविरा करना इस बात को प्रमाणित करता है।
विदेश नीति से लेकर तमाम सामरिक नीतियों जिनमें जिहादी तत्व भी शामिल हैं, का निर्णय सेना द्वारा ही लिया जाता है जो कूटनीति में आवश्यक दांव-पेंच से अनभिज्ञ है।
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के राजदूत रहे मुनीर अकरम का भी मानना है कि किसी विशिष्ट विदेश नीति के अभाव में पाकिस्तान को अमेरिका में निरंतर मार पड़ रही है। उन्होंने 18 सितंबर को डॉन अखबार में लिखा कि पाकिस्तान अफगानिस्तान और तालिबान के मध्य सुलह-वार्ता कराने में असफल रहा जिसके चलते मुल्ला मंसूर को अमेरिका ने ड्रोन से मार गिराया। इसी कारण पाकिस्तान को एफ-16 विमान नहीं मिले और कई लाख डॉलर की अमेरिकी सहायता भी हाथ से जाती रही।
मुनीर ने आगे लिखा कि जुलाई में अमेरिकी विशेषज्ञों ने इस बात पर अपने गुस्से का इजहार किया कि पाकिस्तान हक्कानी के विरुद्ध कार्रवाई करने में असफल रहा और लश्करे तोयबा और जैशे मोहम्मद के आतंकी खुले घूमते रहे। उन्होंने अफगानिस्तान में पूर्व अमेरिकी राजदूत अफगानी मूल के जल्मे खलीलजाद के उस कथन का उल्लेख किया जिसमें मांग की गई थी कि पाकिस्तान को आतंकवादी देश करार देकर उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाएं।
मुनीर अकरम ने आगे लिखा कि सीनेटर दाना रोहरबाइकर, जो स्वतंत्र बलूचिस्तान और स्वतंत्र सिंध की हिमायती हैं, के विचारों को यदि समय रहते प्रभावित नहीं किया गया तो पाकिस्तान के बुरे दिनों की शुरुआत मान लेनी चाहिए। उन्होंने स्वीकार किया कि आज पाकिस्तान के मित्रों की संख्या कम और शत्रुओं की अधिक है। पाकिस्तान के पूर्व विदेश सचिवों इनामुल हक, रियाज हुसैन और रियाज मोहम्मद खान तथा पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मेजर जनरल महमूद दुर्रानी ने भी माना है कि पाकिस्तान इस समय अपने इतिहास के सबसे खतरनाक मोड़ पर है। ऐसे में उसे चीन की शरण में जाना चाहिए।
पाकिस्तानी विशेषज्ञों को छोड़कर विदेशी मामलों के लगभग सभी जानकार इस बात पर एक मत हैं कि पाकिस्तान पिछले कई दशकों से परमाणु अप्रसार और आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दों पर विश्व समुदाय की आंखों में धूल झोंकता रहा है और सदैव आर्थिक सहायता का रोना रोता रहा है। जबकि विश्व के सारे खूंखार आतंकवादी पाकिस्तान में ही ठिकाना बनाए हुए हैं। ऐसे में उसकी अंतरराष्ट्रीय साख खत्म हो चुकी है। वह विश्व समुदाय में अलग-थलग हो चुका है। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों के अनुसार आने वाले दिन पाकिस्तान पर भारी पड़ सकते हैं।
पाकिस्तानी वायुसेना हुई सतर्क
अमेरिका की लताड़ के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनके सेना प्रमुख के बीच चर्चा हुई। सूत्रों के अनुसार पाकिस्तान ने इस्लामाबाद हवाई अड्डे से कई उड़ानें रद्द कर दी हैं। साथ ही अपनी सेनाओं को पूरी तरह तैयार रहने के लिए कहा है। पाकिस्तानी सेना का मानना है कि भारतीय सेना उस पर हमला बोल सकती है। वहीं इस्लामाबाद से देश के उत्तरी हिस्सों में जाने वाली सभी उड़ानें रद्द कर दी गई हैं। वायुसेना को सतर्क कर दिया गया है। कुछ सड़कों को खाली करा लिया गया है। आपातस्थिति में इन सड़कों पर वायुसेना के जेट उतर सकते हैं या इनसे उड़ान भर सकते हैं।
इस्लामाबाद का आसमान : उड़े एफ-16 विमान
पाकिस्तान के न्यूज चैनल जियो टीवी के संपादक हामिद मीर ने ट्वीट किया कि इस्लामाबाद के आसमान में रात को 10 बजकर 20 मिनट पर कुछ एफ-16 लड़ाकू विमान उड़ते देखे गए। कुछ दूसरे लोगों ने भी ट्वीट कर इसकी पुष्टि की। इसके बाद इस्लामाबाद के कुछ इलाकों में अफरा-तफरी मच गई और लोग सड़कों पर आ गए। मीडिया रपटों के मुताबिक, इस्लामाबाद-पेशावर राजमार्ग बंद कर दिया गया है। हामिद मीर ने आज तक से बातचीत में कहा कि उनकी सेना जंग के लिए तैयार है और सतर्क है। उन्होंने कहा कि एफ-16 विमानों ने इस्लामाबाद के आसमान में 3-4 चक्कर लगाए।
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