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बिहार में शहाबुद्दीन के छूटने के बाद सियासी गलियारों में मचा तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा। सुशासन का दंभ भरने वाली नीतीश सरकार माफिया के छूटने के बाद खामोश है
भागलपुर केंद्रीय कारागार से 11 सितम्बर को छूटे एक अपराधी के साथ लंबा काफिला, सैकड़ों की संख्या में गाडि़यों का हुजूम, अगुआई में कई मंत्री और सरकार में रसूख वाले लोग, सीवान की तरफ कूच करते हैं और बिहार सरकार के मुखिया को 'बेऔकात' बताकर लालू यादव को बिहार का नेता घोषित करते है। सुनने में ऐसा लग रहा है की कोई '1857 का संग्राम' का पाठ कर रहा है, लेकिन रुकिए यह कोई संघर्ष की कहानी नहीं अपितु एक अपराधी सैयद शहाबुद्दीन की सुनियोजित रिहाई का नजारा है। सैयद शहाबुद्दीन की इस रिहाई ने कई ऐसे प्रश्न खड़े किये हैं जिनका उत्तर समय रहते सत्ता में बैठे लोगों को ढूंढना होगा अन्यथा बिहार की बड़ी दुर्दशा होगी। न्यायिक प्रक्रिया की कमजोरी का फायदा उठा कर एक अन्यायी का छूट जाना एक बात होती है लेकिन अन्यायी द्वारा सत्ता का उपयोग करके पूरी की पूरी न्यायिक प्रक्रिया को बौना बना देना लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है।
शहाबुद्दीन 90 के दशक में आपराधिक पृष्ठभूमि से उठ कर राजनीति में अपने गुरु लालू यादव का साथ पा कर पूरे देश के लिए चर्चा का विषय बन चुके थे। दो बार बिहार विधानसभा में चुने जाने के अलावा वे राजद के टिकट पर सांसद बने। इस दौरान कई संगीन मामलों में नामजदगी और अपराध की पुष्टि भी हुई परन्तु राजनीतिक संरक्षण के कारण शहाबुद्दीन अपराध जगत के बेताज बादशाह के रूप में उभर आये। 2000 के दशक तक बिहार के सीवान जिले में शहाबुद्दीन ने अपनी समानांतर सरकार चलाई। हर दिन अपराध जगत के इस माफिया द्वारा अदालत लगाई जाती और अपने तरीके से मामलों का निपटारा किया जाता रहा।
आज इस बाहुबली की रिहाई को लेकर जहां एक ओर सरकार और न्यायपालिका के बीच सांठ-गांठ का आरोप लग रहा है, दूसरी ओर सीवान में आम लोगों के मन में माफिया के छूटने से खौफ पसरा हुआ है। अपने तीन बेटों की हत्या का दर्द झेल चुके और शहाबुद्दीन के खिलाफ लंबी कानून लड़ाई लड़ चुके चंदा बाबू और कलावती देवी फिर दहशत में हैं। कलावती रुंधे गले से कहती हैं, '' … अब फिर से यहां पहले जैसा ही माहौल हो जाएगा। हमारे तीनों बेटे मारे जा चुके हैं, हम आखिर सीवान छोड़कर कहां जाएंगे? हमारे 2 बेटों की मौत के बाद तीसरे की भी हत्या करवा दी गई। न्यायालय में शहाबुद्दीन ने खड़े होकर कहा था कि लड़के का ब्याह हो गया है, श्राद्ध भी करवा लेना। हमारा सबकुछ छीन लिया गया।''
गौरतलब है कि सीवान के इस परिवार में 6 लोग थे, लेकिन अब तीन ही बचे हैं। तीन जवान बेटों की हत्या कर दी गई लेकिन अब जो बुजुर्ग मां-बाप बचे हैं, उन्हें शहाबुद्ीन के छूटने के बाद फिर से अपनी जान का डर सताने लगा है। चंदा बाबू के तीनों बेटों की हत्या का आरोप शहाबुद्दीन पर है। 2 बेटों को अगवा करने के बाद तेजाब से नहलाकर मार दिया गया था जबकि तीसरा और सबसे बड़ा बेटा केस का चश्मदीद गवाह था, उसे भी माफिया ने सरेआम मार डाला था। अब चंदा बाबू, उनकी पत्नी और एक दिव्यांग बेटा बचा है। तीन जवान बेटों को गंवा चुके इस पिता को इंसाफ की उम्मीद थी लेकिन अब वह भी खत्म हो चुकी है। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने जेल से रिहा राजद के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन को राज्य बदर किए जाने की मांग करते हुए कहा कि शहाबुद्दीन और सुशासन साथ-साथ नहीं चल सकते। उन्होंने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर शहाबुद्दीन पर जेल में रहते हुए हत्या की साजिश रचने, गवाहों को धमकाने का आरोप लगाते हुए पूछा कि क्या उनके जेल से बाहर रहते पत्रकार राजदेव रंजन हत्याकांड की निष्पक्ष जांच और राजीव रोशन हत्याकांड सहित अन्य मामलों का 'ट्रायल' संभव है?
सुशील मोदी ने शहाबुद्दीन को आतंक का पर्याय बताते हुए पूछा कि उनको भागलपुर से सीवान तक सैकड़ों गाडि़यों के काफिले के साथ जुलूस निकालने की अनुमति कैसे मिली? काफिले की सैकड़ों गाडि़यों से टोल नाकों पर टैक्स क्यों नहीं वसूला गया? उन्होंने यह भी पूछा कि क्या शहाबुद्दीन के 'आतंक के प्रदर्शन' पर सरकार अविलम्ब सख्ती से रोक लगाएगी?
वहीं दूसरी ओर राजद प्रमुख लालू यादव से इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने शहाबुद्दीन का समर्थन किया और उनके द्वारा दिए गए बयानों के उपर टिप्पणी करते हुए कहा, ''शहाबुद्दीन ने कोई ऐसी बात नहीं कही है, उसने कहा कि लालू जी उसके नेता हैं। नीतीश जी को इसकी कोई तकलीफ नहीं है और इस बात का महागठबंधन की सरकार पर कोई असर नहीं पडे़गा।'' इससे पहले लालू के बेटे और सरकार में मंत्री तेजस्वी ने कहा था कि शहाबुद्दीन को न्यायालय ने छोड़ा है, उनकी रिहाई में हमारी कोई भूमिका नहीं है। जबकि, शहाबुद्दीन ने नीतीश कुमार को परिस्थितियों का मुख्यमंत्री बताया था। इसके साथ ही उनकी तुलना झारखंड के पूर्व सीएम से करते हुए कहा था कि नीतीश कोई जननेता नहीं हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अदालत में सरकारी पक्ष को पूरी निष्ठा, जवाबदेही और गंभीरता से रखा गया है। शहाबुद्दीन उनके लिए कोई अहमियत नहीं रखता। वैसे यह न्यायिक प्रक्रिया है और वे अदालत के आदेश पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। सूत्रों के मुताबिक नीतीश ने जेडीयू के बड़े नेताओं के साथ इस मसले पर बातचीत की है। इसके साथ ही उस पर सीसीए भी लगाए जाने को लेकर चर्चा गर्म है। यदि ऐसा होता है तो शहाबुद्दीन फिर से जेल जा सकता है। अब जेडीयू के कुछ नेता भी इस मामले में सक्रिय हो गए हैं और बिहार में गठबंधन सरकार के नेताओं को 'गठबंधन धर्म' याद दिलाया जा रहा है।
बिहार में महागठबंधन पर राजद के बाहुबली नेता की रिहाई का असर दिखने लगा है। उसके जमानत पर रिहा होने के बाद राज्य में सियासी बयानबाजी तेज है। दिलचस्प है कि विपक्ष के बाद अब बयानों के तीर महागठबंधन के अंदर भी चलने लगे हैं। नीतीश के खिलाफ रघुवंश प्रसाद सिंह के बयान से भड़की कांग्रेस ने जहां साफ शब्दों में कह दिया है कि जिनको दिक्कत है वे गठबंधन छोड़ दें। वहीं लालू ने कहा है कि वह रघुवंश से सफाई मांगेंगे। असल में रघुवंश ने कहा कि महागठबंधन ने नीतीश कुमार को नेता चुना है लेकिन वे व्यक्तिगत रूप से उन्हें पसंद नहीं करते है। कांग्रेस ने महागठबंधन में चल रही बयानबाजी पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है,''जिसको रहना है रहे, जिसको जाना है जाए।'' कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और सरकार में मंत्री अशोक चौधरी राजद नेता रघुवंश प्रसाद और शहाबुद्दीन द्वारा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर की गई टिप्पणी से बेहद खफा हैं। उनका कहना है कि अगर किसी को कोई समस्या है तो मिल बैठकर उसे सुलझाएं न कि मीडिया में बयानबाजी करके। शाहबुद्दीन की रिहाई के बाद बिहार में इस बात की चर्चा है कि इतने अपराध करने के बाद भी कानून की जंजीर से अपराधी कैसे बाहर निकल सकता है। हालांकि इस राजद नेता की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। सियासी गलियारों से जो खबरें छनकर आ रही हैं उन पर विश्वास करें तो शहाबुद्दीन की जमानत के खिलाफ बिहार सरकार सर्वोच्च न्यायालय में अपील करेगी और इस माफिया की जमानत को रद्द कराने की कोशिश करेगी। राज्य में मचे सियासी तूफान पर केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि बिहार में फिर से जंगल राज लौट आया है।
हर दिन अपहरण, हत्या की खबरें आ रही हैं। ऐसे समय में शहाबुदद्ीन को जमानत मिलना राज्य के लिए किसी भी हालत में ठीक नहीं है। उस प्रदेश सरकार की ढील की वजह से जमानत मिली है। बिहार की जनता में दहशत का वातावरण है। उन्होंने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि ''जब से महागठबंन की सरकार बनी है तब से अपराधी बेलगाम हो गए हैं। कानून को ताक पर धर दिया गया है। राजद, जदयू और कांग्रेस का गठबंधन स्वार्थ का महागठबंधन है। लेकिन शहाबुद्दीन की रिहाई ने न्यायपालिका की निष्पक्षता पर जरूर सवाल खड़े किये है? बिहार के लोग सरकार से सवाल कर रहे हैं कि सरकार कैसा समाज चाहती है?
डॉ. आतिश पाराशर
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