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28 अगस्त, 2016
आवरण कथा 'हटे नापाक कब्जा' से स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सही समय पर पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर का मामला उठाकर एक कुशल राजनीतिज्ञ होने का परिचय दिया है। पाकिस्तान अभी तक कश्मीर की आग में घी डालने का काम कर रहा था लेकिन भारत के प्रधानमंत्री द्वारा सिर्फ गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों के प्रति सद्भावना जताना ही उसे कचोट गया।
—गिरीश, सोनीपत (हरियाणा)
पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर में पड़ोसी देश द्वारा चलाई जा रही आतंक की पाठशाला विश्व के लिए किसी खतरे से कम नहीं है। मानवता का दुश्मन बनकर वह बलूचिस्तान, गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों पर अत्याचार ढा रहा है। लेकिन वह कब तक इन लोगों की आवाज दबाता रहेगा, कभी न कभी तो इनकी आवाज उभरकर सामने आएगी ही।
—हरिहर सिंह चौहान, मेल से
पाकिस्तान हालांकि कश्मीर में आतंक न फैलाने की बात करता है। लेकिन जब से आतंकी बुरहान वानी मारा गया है तब से तिलमिलाया हुआ है। नवाज शरीफ बोलते हैं कि घाटी में बल प्रयोग गैर कानूनी है, लेकिन खुद बलूचिस्तान में मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। आज पाक का नकाब वाला चेहरा दुनिया ने देख लिया और जिन लोगों ने नहीं देखा है वे भी कुछ दिनों बाद इसकी हकीकत से रूबरू हो जाएंगे। पाकिस्तान भारत के खिलाफ चाहें कितनी भी साजिश कर ले, अपने नापाक इरादों में कभी कामयाब नहीं हो पाएगा।
—शुभम वैष्णव, सवाई माधोपुर (राज.)
कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, इसमें किसी भी भारतीय को शक नहीं होना चाहिए। जम्मू-कश्मीर का विलय ठीक उसी प्रकार से हुआ था जैसा अन्य रियासतों का हुआ था। तुष्टीकरण और सांप्रदायिक दृष्टिकोण वर्तमान समस्या के प्रमुख कारणों में से एक हैं जिसके चलते अभी तक कश्मीर में अलगाववादी सिर उठाये हुए हैं। सरकारी संरक्षण में अभी तक इन अतिवादियों और अलगाववादियों का सत्कार किया गया है। जिसका परिणाम ये हुआ कि सैकड़ों कश्मीरी पंडितों का नसंहार हुआ और वे भागने को मजबूर हुए। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि उसके द्वारा अपने ही नागरिकों (कश्मीरी पंडित) को सुरक्षा नहीं दी गई। जबकि पाकिस्तान की भाषा बोलने वाले और देशविरोधी काम करने वाले अलगाववादियों को यहां की सरकारों ने पालने-पोसने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यही तो तुष्टीकरण है।
—जोगिंद्र ठाकुर, कुल्लू (हि.प्र.)
दुर्भाग्य से कुछ लोगों ने घाटी को अशंात करके रखा हुआ है। पाकिस्तान की शह पर ये यहां देश के खिलाफ आग उगलते हैं और देशविरोधी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। ऐसे लोगों को चिह्नित करके उन पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करना चाहिए। इसमें किसी भी तरह की कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए।
—अंशुल वर्मा, हरिद्वार (उत्तराखंड)
पाकिस्तान जिस प्रकार गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों पर जुल्म ढहा रहा है ठीक ऐसा ही जुर्म पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं पर ढहाया जा रहा है। वर्ष 1950 में नेहरू और लियाकत अली खान के बीच दिल्ली में एक संधि हुई थी जिसके अनुसार भारत में मुस्लिमों और पाक में हिंदुओं की सुरक्षा के लिए प्रावधान किये गए थे। भारत ने इस संधि पर अधिक कार्य किया। पर पाकिस्तान में हिंदुओं को राहत देना तो दूर की बात उलटे उन पर अत्याचारों की बाढ़ आ गई। इस संधि को 6 दशक हो गए हैं पर हिंदुओं की दशा दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है।
—ओमप्रकाश त्रेहन, मुखर्जीनगर (नई दिल्ली)
कश्मीर में देशभक्त मुस्लिमों की कमी नहीं है। इनके बच्चे सिविल सेवा से लेकर अन्य क्षेत्रों में अच्छा काम करके देश और राज्य का नाम रोशन कर रहे हैं। लेकिन कुछ मुट्ठीभर लोग अलगाववादियों और आतंकवादियों द्वारा गुमराह होकर अपने ही देश के खिलाफ जंग पर आमादा हैं। पूरी दुनिया में आज इस्लाम को अपने ही चाहने वालों से खतरा है। कश्मीर के उन लोगों जो इस्लाम को शांति का मजहब कहते हैं, के लिए अब मौका है वे अपने बच्चों को इन आतंकियों से बचाएं।
—सत्देव गुप्ता, मेल से
जिस उम्र में हाथ में कलम होनी चाहिए, उस उम्र में पाकिस्तान में मासूम बच्चों को हथियार थमा दिया जाता है। इस तरह से पाकिस्तान बारूद की ऐसी फसल बो रहा है, जिसके पकने के बाद वह खुद लहूलुहान हो रहा है। जहां सारी दुनिया रचनात्मक कार्य कर अपने अपने को तरक्की की होड़ में सबसे आगे करने को बेचैन है, वहां इन लोगों को भारत से लड़ने की पड़ी है। भारत को स्थिर करने की इच्छा रखने वाले ये मूर्ख शायद भूल जाते हैं कि उनकी हर मुसीबत में भारत एक जिम्मेदार पड़ोसी की भूमिका में तैयार रहता है। लेकिन पाकिस्तान है कि पीठ में खंजर घोंपने से बाज ही नहीं आ रहा। कश्मीर में पनप रही अलगाववाद की आग भारत को नुकसान पहुंचाने का सोची-समझी साजिश है।
—प्रीति चंचल, मेल से
पाकिस्तान की नाक में नकेल डालने के बाद मोदी जी को अब चीन की बढ़ती दादागीरी पर अंकुश लगाने के लिए जुट जाना चाहिए। साथ ही भारत को उन देशों को भी अपने साथ लाना चाहिए जो चीन के जुल्मों से परेशान हैं। चीन अवसरवाद और विस्तारवाद की मानसिकता में विश्वास रखने वाला देश है। वह शंाति में विश्वास नहीं रखता बल्कि पराक्रम और शक्ति के दम पर छोटे देशों को बंदर घुड़की देता रहता है।
—आनंद मोहन भटनागर, लखनऊ (उ.प्र.)
दुनिया में पैर पसार रहे इस्लामी आतंक ने बड़े-बड़े विचारकों को यह कहने पर मजबूर किया है कि आतंकवाद की जड़ें कट्टर इस्लामिक विचारधारा से ही पनपती है। जब तक यह कट्टर विचारधारा बनी रहेगी तब तक आतंकवाद पनपता और फलता-फूलता रहेगा और दूसरे मत-पंथों पर हमले जारी रहेंगे। और जो भी देश पंथनिरपेक्षता के छलावे में रहेगा, वह अलगाववाद, आतंकवाद, सांप्रदायिकता और विभाजन का दंश सहने को मजबूर होगा।
—कुमुद कुमार, बिजनौर (उ.प्र.)
पूर्वाग्रह के मारे
रपट 'सेकुलर ठंडे अमन में आग' (21 अगस्त 2016) राज्य सरकारों की तुष्टीकरण की नीति को उजागर करती है। उज्जैन में मदरसों द्वारा यह कहकर मध्याह्न भोजन न लेना कि यह इस्कॉन संस्था में बनाया जाता है और भगवान को इसका भोग लगाया जाता है जिससे हमारे मजहब को खतरा है। इसे सुनकर किसी को भी ऐसे लोगों पर तरस आएगा। जिन्हें पवित्र रसोई में बना भोजन मजहब विरोधी लगता है।
—हरिओम जोशी, भिंड (म.प्र.)
कुछ लोगों द्वारा जानबूझकर ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया जाता है और मीडिया में आने के बाद उनका जो मतंव्य होता है वह सफल हो जाता है। असल में इनका एक ही काम होता है कि समाज को बांटना।
—अनिरुद्ध सिंह, रोहतक (हरियाणा)
नकारात्मक रुख
चौथा स्तंभ 'कब सुधरेंगे ये प्रतिबद्धता के मसीहा' (28 अगस्त, 2016) मीडिया को राह दिखाने वाला स्तंभ है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ विचारों और सूचनाओं का प्रमुख जरिया है। लेकिन अगर वही संक्रमित हो जाए तो आम जनता ही नहीं, देश में विषम परिस्थितियों का वातावरण पैदा होगा। खासकर अंग्रेजी मीडिया का रुख कश्मीर के मामले में बेहद नकारात्मक है। हालांकि आलोचना करना पत्रकारिता की एक कड़ी है लेकिन एक सीमा में। पर जिस तरह से अंग्रेजी मीडिया ने हाल के दिनों में अलगाववादियों और आतंकियों का पक्ष रखा है, वह बेहद ही गलत है और इस कार्य की जितनी भी निंदा की जाए कम है।
—सरिता राठौर
अंबेडकर नगर (दिल्ली)
कुत्सित मानसिकता
अभी कुछ दिन पहले सपा नेता आजम खान ने बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर को 'भूमाफिया' ठहरा दिया और संविधान निर्माता के ऐसे अपमान के लिए आजम पर मुकदमा चलना चाहिए। वे अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री को नहीं देखते। सांसद, विधायक बनने पर मिलने वाली कोठियों को वे पद से हटने के बाद भी खाली नहीं करते। मुलायम सिंह सहित उ.प्र. के कई पूर्व मुख्यमंत्री अपनी आवंटित कोठियों पर कब्जे किये बैठे हैं। सर्चोच्च न्यायालय ने इन्हें खाली करने का आदेश दिया तो सपा सरकार ने कानून बदलकर सहूलियत दे दी। आजम की पार्टी के माफिया नेता पूरे सूबे में अवैध कब्जे में लगे हैं। अवैध कब्जे में धंधे में फंसे ऐसे दल के नेता द्वारा बाबा साहेब पर ऐसी प्रतिक्रिया करना उनकी कुत्सित मानसिकता का ही परिचय देता है।
—अजय मित्तल, मेरठ (उ.प्र.)
आतंक की जड़ें हैं गहरी
कश्मीर में हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकवादी बुरहान वानी को जब से सुरक्षाकर्मियों ने मार गिराया तब से घाटी में हिंसा जारी है और पाकिस्तान इस आग में घी डालने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। रपट 'हटे नापाक कब्जा (28 अगस्त, 2016)' से यही बात जाहिर होती है कि गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ पनपता गुस्सा उसके भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। बलूचिस्तान आजादी की जंग लड़ रहा है। तो पाक अधिक्रांत कश्मीर पाकिस्तान के कब्जे को नामंजूर करके भारत के साथ मिलने को छटपटा रहा है। उसकी यह छटपटाहट उचित है क्योंकि वह संवैधानिक रूप से भारत का भाग है। यहां के लोग अपनी स्तंत्रतता के लिए खुलकर सामने आए हैं। पिछली सरकारें पाक अधिक्रांत कश्मीर को अपना कहकर अपने कर्तव्य की इतिश्री करती रही हैं। उन्होंने कभी भी भारत को अखंड बनाने का प्रयास नहीं किया और न ही अपने भूभाग से विदेशी कब्जे को हटाने का प्रयास किया। केवल कागजी घोड़े दौड़ाते रहे। लेकिन मोदी सरकार ने इस ओर बड़ी ही रणनीतिक तरीके से कदम बढ़ाने शुरू कर दिये हैं। 15 अगस्त को प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से पाकिस्तान को उसी के शब्दों में करारा जवाब दिया। तो गृह मंत्री ने और तीखे होते हुए यह कहकर पाकिस्तान को परेशान कर दिया कि भारत अब कश्मीर पर बात नहीं करेगा वरन पाकिस्तान से अब वह पाक अधिक्रांत कश्मीर पर बात करेगा जो भारत का अभिन्न अंग है। यह उचित समय है जब सरकार दृढ़संकल्प से इस ओर आगे बढ़े और भारत के अभिन्न हिस्से को मिलाकर महर्षि अरविंद जैसे अन्य महापुरुषों के अखंड राष्ट्र के स्वप्न को मूर्त रूप दे।
—चन्द्रमोहन चौहान, 165-सी तलवंडी, कोटा (राज.)
खटिया खड़ी कांग्रेस की
राहुल की खटिया लुटी, दुखी प्रशांत किशोर
मक्खी मुंह में भर गयी, था पहला ही कौर।
था पहला ही कौर, बहुत की थी तैयारी
दिल्ली से मंगवाई थीं वे खाटें सारी।
कह 'प्रशांत' इस पंचायत का देख तमाशा
मिली धूल में बची-खुची थी जो भी आशा॥
—प्रशांत
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