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मुलायम कुनबे में मचा घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा। सार्वजनिक हो चुकी चचा-भतीजे की लड़ाई में कोई भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। लेकिन यह तय है कि कोई न कोई व्यक्ति इस लड़ाई में कुर्बानी देगा या फिर कुनबे में किसी की नाक कटेगी
चुनाव से पहले मुलायम-अखिलेश खेमे में बंटा सपा परिवार
मुलायम के तेवर कड़े तो अखिलेश भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं
हिमांशु
साल 2012 में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव जब अपने बेटे अखिलेश यादव की ताजपोशी के लिए सियासी शतरंज की बिसात पर मोहरे सजा रहे थे, तब शायद उन्हें इसके अंतिम परिणाम का अंदाजा नहीं रहा होगा। मुलायम को इसका भी अंदाजा नहीं रहा होगा कि जिस अखिलेश के लिए उन्होंने समाजवादी पार्टी को परिवार की पार्टी बनाया, उसी परिवार के सदस्य सत्ता के लिए एक दूसरे के खिलाफ म्यान से तलवारें निकाल कर आमने-सामने खड़े हो जाएंगे। मगर हुआ वही जिसकी उम्मीद कम से कम मुलायम सिंह यादव ने तो सपने में भी नहीं की होगी। आज 'सत्ता का केंद्र कौन' के सवाल पर मुलायम का कुनबा बुरी तरह दो खेमों में बंटकर एक दूसरे पर हमला करने से बाज नहीं आ रहा। इस महाभारत में दो भाई मुलायम और शिवपाल यादव एक तरफ हैं तो मुलायम के मुख्यमंत्री बेटे अखिलेश मुलायम के दूसरे भाई रामगोपाल यादव के साथ दूसरी तरफ। इस सत्ता संघर्ष में अमर सिंह मुलायम खेमे के साथ डटे हैं तो वरिष्ठ मंत्री आजम खां अखिलेश खेमे के साथ। इस सियासी महाभारत की पटकथा में मुलायम की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता और उनके पुत्र प्रतीक यादव की भी प्रमुख भूमिका है। इनकी शिवपाल से नजदीकी छिपी नहीं है।
दरअसल इस सत्ता संघर्ष का बीज अखिलेश की मुख्यमंत्री पद पर हुई ताजपोशी के दौरान ही पड़ गया था, जब अखिलेश के चाचा और मुलायम के भाई शिवपाल राज्य की सत्ता का एक दूसरा मगर बेहद प्रमुख केंद्र बन कर उभरे। अखिलेश मंत्रिमंडल में शिवपाल को कहने को तो नंबर दो की हैसियत दी गई, मगर परोक्ष रूप से कमान उन्हीं के हाथ रही। बतौर मंत्री कई प्रमुख विभागों के मुखिया बनने के साथ ही शिवपाल ने शासन- प्रशासन में भी अपनी अलग धमक बनाई। कई बार प्रशासनिक निर्णयों में मुख्यमंत्री तक की नहीं सुनी गई। मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और जिलों में पुलिस अधीक्षक और जिलाधिकारियो तक की नियुक्तियांे में शिवपाल ने अपनी चलाई। चूंकि शिवपाल को मुलायम का आशीर्वाद प्राप्त था, इसलिए अखिलेश शुरू में चुपचाप तमाशा देखते रहे। इसी दौरान शिवपाल ने बेहद होशियारी से अपनी भाभी और मुलायम की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता और उनके बेटे को साध लिया। साधना को साधने के लिए प्रतीक की कई कंपनियां खुलवाईं। बात तब बिगड़ी जब अखिलेश के लिए उत्तर प्रदेश की राजनीति से दूर किए गए पार्टी महासचिव और मुलायम के दूसरे भाई प्रो. रामगोपाल यादव की सियासी महत्वाकांक्षा जागी। उत्तर प्रदेश की सियासत से दूर किए जाने से पहले से ही खफा चल रहे रामगोपाल ने शिवपाल की तरह ही सियासी चतुराई दिखाते हुए सीधे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को ही साध लिया। इसके बाद अमर सिंह की वापसी से नाराज मंत्री आजम खान भी रामगोपाल के साथ अखिलेश खेमे से जा मिले। इसके साथ ही मुलायम के कुनबे में दोनों खेमों के बीच सियासी शह और मात के खेल की मजबूत जमीन तैयार हो गई।
शुरुआत में अंदरखाने जारी शह और मात का खेल तब सार्वजनिक हो गया जब शिवपाल ने कौमी एकता दल और सपा के विलय की राह तैयार की। नाराज अखिलेश ने न सिर्फ विलय रुकवाया बल्कि इस दिशा में मजबूत पहल करने वाले शिवपाल के करीबी मंत्री बलराम यादव को बर्खास्त कर दिया। बाद में मुलायम के बीच-बचाव के पश्चात बलराम फिर से मंत्रिमंडल में तो शामिल किए गए, मगर अखिलेश ने कौमी एकता दल का सपा मंे विलय नहीं होने दिया। इस पहली सार्वजनिक लड़ाई में शिवपाल को पटखनी देने में कामयाब हुए मुख्यमंत्री अखिलेश को दूसरा मौका तब मिला जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य के 36 जिलों में अवैध खनन के मामले में सीबीआई से जांच न कराने की राज्य सरकार की दलील ठुकरा दी। अखिलेश ने इसी बहाने शिवपाल के दो और करीबी मंत्रियांे खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति और पंचायती राज मंत्री राजकिशोर सिंह को बर्खास्त कर दिया। हालांकि जब सरकार में शिवपाल की चलती थी तब लोकायुक्त की दो साल पहले प्रजापति के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने और अवैध खनन की जांच कराने संबंधी सिफारिश को ठुकरा दिया गया था। यहां तक कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सरकार की ओर से सीबीआई जांच न कराने की दलील दी गई थी। इस निर्णय के बाद पहली बार मुलायम और अखिलेश आमने-सामने आए। मुलायम ने अपनी ताकत का एहसास कराते हुए अखिलेश यादव से राज्य संगठन का जिम्मा ले कर शिवपाल को राज्य का अध्यक्ष बनाया तो इस निर्णय के दो घंटे बाद ही अखिलेश ने शिवपाल से न सिर्फ राजस्व, सिंचाई और लोकनिर्माण विभाग वापस ले लिया, बल्कि उनके करीबी मुख्य सचिव दीपक सिंघल को भी आनन-फानन बाहर का रास्ता दिखाकर अपने पिता को जवाब देने में देरी
नहीं दिखाई।
अब हालत यह है कि कुनबे की कलह सुलझाने में मुलायम खुद उलझ गए हैं। कलह थामने की उनकी कोशिश तब नाकाम हो गई जब बुधवार को इधर उनके बुलावे पर शिवपाल सिंह यादव सैफई से दिल्ली पहुंचे तो उधर पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव दिल्ली से सैफई के लिए रवाना हो गए। मुलायम के बुलावे के बावजूद मुख्यमंत्री न सिर्फ लखनऊ में ही जमे रहे, बल्कि उन्होंने परोक्ष रूप से सरकार में बाहरी व्यक्ति के हस्तक्षेप पर अपनी नाराजगी भी जता दी। इस बीच अपने बेटे आदित्य के साथ दिल्ली पहुंचे शिवपाल ने मुलायम के साथ करीब ढाई घंटे तक बातचीत की। इससे पहले बर्खास्त खनन मंत्री गायत्री प्रजापति ने भी बुधवार को मुलायम से एक घंटे तक उनके आवास पर बातचीत की। महाभारत को थामने के लिए सपा प्रमुख की ओर से अब संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाने की योजना बनाई जा रही है। मुलायम ने यह कह कर विवाद बने रहने का साफ संकेत दे दिया है कि शिवपाल प्रदेश अध्यक्ष के साथ साथ अखिलेश मंत्रिमंडल में भी बने रहेंगे। ऐेसे में निकट भविष्य में कुनबे में जारी जंग के बंद होने के आसार नहीं दिख रहे।
मुलायम-अखिलेश में नाक का सवाल
कुनबे में मची महाभारत में अब सपा प्रमुख मुलायम और मुख्यमंत्री अखिलेश दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है। अगर मुलायम ने अखिलेश को शिवपाल से लिए गए विभाग वापस दिलाने और अध्यक्ष के रूप में स्वीकार करने में सफलता हासिल कर ली तो नाक मुख्यमंत्री की कटेगी। इसके उलट अगर अखिलेश ने अपने कदम पीछे नहीं खींचे तो भद सपा प्रमुख की पिटेगी। हालांकि बीच का रास्ता निकालने की फिलहाल संभावना नहीं दिख रही। अखिलेश ने मुलायम के बुलावे के बावजूद दिल्ली न आकर और सरकार में बाहरी व्यक्ति के हस्तक्षेप को स्वीकार न करने का संकेत देकर साफ कर दिया है कि फिलहाल उनका इरादा पीछे हटने का नहीं है। जबकि मुलायम ने गुरुवार को शिवपाल को अध्यक्ष बनाने के निर्णय पर कायम रहने और महत्वपूर्ण विभाग छीन लिए जाने के बावजूद शिवपाल के अखिलेश मंत्रिमंडल में शामिल रहने की घोषणा कर अपने इरादे जता दिए हैं। ऐसे में परिवार में जारी कलह के थमने के बदले और बढ़ने के आसार अधिक हैं। फिलहाल दोनों पक्ष अपने -अपने रुख पर कायम हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कुनबे की महाभारत को थामने के लिए बीच का रास्ता क्या होगा। सार्वजनिक हो चुकी इस लड़ाई में मुलायम अपनी नाक कटाएंगे या फिर अखिलेश अपनी नाक की कुबार्नी देंगे। क्योंकि बिना किसी एक के नाक की कुबार्नी के विवाद का हल संभव नहीं दिख रहा।
क्या है दूसरी पत्नी से जुड़ा विवाद
सत्ता संघर्ष के केंद्र में मुलायम की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता और उनके बेटे प्रतीक गुप्ता की भी बड़ी भूमिका है। साधना न सिर्फ पार्टी के मामले मंे दखल देती हैं, बल्कि वह मुलायम की दुखती रग भी हैं। साधना और प्रतीक फिलहाल शिवपाल के साथ हैं। खासतौर पर प्रतीक और शिवपाल में बेहद करीबी है। राज्य में अवैध खनन मामले में प्रतीक की भूमिका बताई जाती है। प्रतीक की खनन से जुड़ी कई कंपनियां हैं। चर्चा तो यह भी है कि खनन मामले में नपे गायत्री प्रजापति ने इन्हें भरपूर लाभ पहुंचाया। अखिलेश खेमे का आरोप है कि मुलायम अपनी दूसरी पत्नी के कहने पर चलते हैं। चूंकि दूसरी पत्नी को शिवपाल से लाभ हो रहा है, इसलिए वह मुलायम से शिवपाल की पैरवी करती हैं।
मुख्य सचिव से अपमान का लिया बदला
कुनबे की सियासी लड़ाई में मुख्य सचिव रहे दीपक सिंहल को बड़ी कीमत चुकानी पड़ गई। दरअसल शिवपाल और अमर सिंह के करीबी सिंहल ने कई बार सार्वजनिक मंच पर मुख्यमंत्री का अपमान किया। एक बार उन्होंने मुख्यमंत्री को दिल और दिमाग दोनों मामले में बच्चा बता कर उनकी किरकिरी की तो दूसरी बार सार्वजनिक मंच पर मुख्यमंत्री को बातचीत करने पर टोक दिया। उस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री अपने सलाहकार आलोक रंजन से बात कर रहे थे तभी सिंहल ने माइक पर कहा कि मुख्यमंत्री जी बात बाद में कीजिएगा। अभी जो मैं कह रहा हूं वह महत्वपूर्ण है, इसलिए पहले मेरी बात सुनें। इस दौरान सिंहल ने मुख्यमंत्री के सलाहकार को भी कार्यक्रम के बीच बातचीत न करने की सलाह दे डाली। अखिलेश तब भी अपने मुख्य सचिव से खफा हुए जब उन्होंने बिना बताए अमर सिंह की पार्टी में शिरकत की। यह पार्टी हाल ही में दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में हुई थी। बैठक में अमर सिंह के साथ मुलायम, शिवपाल भी शामिल थे। इसी बैठक में अखिलेश की जगह शिवपाल को प्रदेश संगठन की कमान देने का फैसला लिया गया था। यही कारण है कि शिवपाल से अहम विभाग छीने जाने के साथ ही अखिलेश ने लगे हाथों सिंहल की भी मुख्य सचिव के पद से छुट्टी कर दी।
गायत्री प्रजापति का डर
गायत्री प्रसाद प्रजापति की मंत्रिमंडल से विदाई मामले में मुलायम और शिवपाल दोनों बेहद चिंतित हैं। इन्हें इस बात का डर सता रहा है कि नाराज प्रजापति कहीं बसपा से विदाई के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य की तरह बगावत का रास्ता न चुन ले। दरअसल अवैध खनन मामले का तार मुलायम के परिवार से जुड़ता है। खासतौर से इस मामले में मुलायम की दूसरी पत्नी के बेटे प्रतीक यादव की भूमिका बेहद संदिग्ध मानी जा रही है। ऐसे में अगर प्रजापति ने बगावत का रास्ता चुना तो वह अवैध खनन के खेल में मुलायम परिवार की भूमिका का भी खुलेआम जिक्र करेंगे। यही कारण है कि मुलायम और शिवपाल दोनों गायत्री को साधे रखने के पक्ष में हैं। दूसरी ओर अखिलेश खेमे को लगता है कि प्रजापति अगर बागी हुए तो नुकसान दूसरे पक्ष का होगा। खासतौर से इस मामले में शिवपाल ही नहीं प्रतीक भी घिरेंगे। यही कारण है कि अखिलेश खेमा जहां प्रजापति को घास नहीं डाल रहा, वहीं मुलायम ने बर्खास्ती के बाद प्रजापति से बुधवार और गुरुवार को घंटों चर्चा की। लेकिन आने वाले दिनों मे ये देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि कुनबे में मचा संग्राम थमेगा या वंशवादी राजनीति की नई जमीन तैयार करेगा।
शिवपाल को अध्यक्ष बनाने का फैसला मेरा है। वह अध्यक्ष हैं और अखिलेश मंत्रिमंडल में भी बने रहेंगे।
— मुलायम सिंह यादव, अध्यक्ष, सपा
झगड़ा पार्टी या परिवार का नहीं सरकार का है। ज्यादातर फैसले नेताजी की सलाह से लेता हूं, मगर कुछ फैसले खुद भी करता हूं। सरकार में बाहरी व्यक्ति हस्तक्षेप करेगा तो काम कैसे चलेगा।
— अखिलेश यादव, मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश
इनका कहना है
विवाद का हल निकल जाएगा। यह परिवार का झगड़ा नहीं है। हालांकि अखिलेश को अध्यक्ष पद से नहीं हटाया जाना चाहिए था। अगर इस आशय का निर्णय लिया जाना था तो मामले की पूर्व जानकारी मुख्यमंत्री को दी जानी चाहिए थी।
— प्रो. रामगोपाल यादव, महासचिव, सपा
सरकार में किसे मंत्री बनाना है और किसे हटाना है, यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है। हालांकि मेरे लिए नेताजी का आदेश ही सर्वोपरि है।
— शिवपाल सिंह यादव, मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष, सपा
यह हाईवोल्टेज फैमिली ड्रामा है। सारी कवायद अखिलेश और सरकार की बर्बाद हो चुकी छवि को सुधारने की है। हालांकि सपा और अखिलेश सरकार आईसीयू में अंतिम सांसें गिन रही है। अब कोई टोना-टोटका और मंत्र से कुछ नहीं होने वाला।
— श्रीकांत शर्मा, सचिव, भाजपा
अखिलेश ने जिस बाहरी व्यक्ति का जिक्र किया वह मैं नहीं हूं। अखिलेश मेरे बेटे जैसे हैं तो मुलायम भाई जैसे। मैं मुलायमवादी हूं और अखिलेशवादी भी बनने के लिए तैयार हूं।
— अमर सिंह, नेता सपा
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