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भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग को नए आयाम देता लिमोआ समझौता एक रणनीतिक उपलब्धि ही बताया जा रहा है। तेजी से बदलते अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य के आलोक में यह समझौता भारत को विश्व मंच पर एक नई साख प्रदान करता है
पाञ्चजन्य ब्यूरो
भारत के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के हाल के अमेरिकी दौरे कई अर्थों में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पर्रिकर ने जहां अमेरिका के सैन्य प्रतिष्ठानों के कामकाज की शैली को नजदीक से देखा, समझा, वहीं उन्होंने वहां के रक्षा और खुफिया विभाग के शीर्ष नेतृत्व से भी अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर लंबी और दोनों देशों के लिए लाभकारी चर्चाएं कीं। लेकिन जो सबसे अहम चीज उस दौरे में हुई वह है भात-अमेरिका के बीच लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (लिमोआ) पर हस्ताक्षर। दुनिया भर में इस समझौते को लेकर उत्सुकता जगनी स्वाभाविक ही थी। विशेषकर इसलिए क्यों कि विश्वशक्ति माना जाने वाला अमेरिका अपने सैन्य हितों के साथ दूसरे किसी देश को तभी जोड़ता है जब दूसरा देश दुनिया में एक खास कद हासिल करके सैन्य सामर्थ्य में अपना सिक्का जमा लेता है। भारत में 2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में सरकार के सूत्र संभालने के बाद से रक्षा क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया और सबसे बड़ी बात यह हुई कि सरकार ने अब विदेशी हथियारों के बूते लड़ने की बजाए अपने देश में बने सैन्य साजो-सामान और उपकरणों को तरजीह देने का मन बनाया है। सिर्फ मन ही नहीं बनाया है बल्कि उस दिशा में तेजी से कदम भी बढ़ाए हैं। फिर चाहे लड़ाकू विमान तेजस हो या समंदर के नीचे निगरानी करती पनडुब्बी अरिहंत। भारत के मुख्य रक्षा अनुसंधान संस्थान डीआरडीओ ने भी कमर कसी हुई है कि भारत के पास दुनिया में अव्वल दर्जे की सैन्य तकनीकी और उपकरण हों। भारत के इस स्तर पर पहंुचने की ही वजह से दुनिया भर के राजनीतिक, कूटनीतिक मंचों पर उसकी बात को तरजीह दी जाने लगी है। रूस हो या इस्रायल, इंग्लैड हो या फ्रांस, इटली हो या आस्ट्रेलिया, हर देश भारत से अब सिर्फ कारोबारी ही नहीं, सैन्य क्षेत्र में भी सहयोग करने को आतुर है। ऐसे में अमेेरिका का भारत के साथ अपने सैन्य क्षेत्र का सबसे अहम समझौता करना बड़ी बात है। 30 अगस्त को भारत के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने अमेरिकी रक्षा मंत्री एश्टन कार्टन के साथ लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (लिमोआ) पर हस्ताक्षर करके दुनिया को एक संदेश दिया है कि युद्धक रणनीति और साजो-सामान के साथ तकनीकी में भारत अब किसी के सामने झुकने वाला नहीं है। बात बराबरी के स्तर पर ही होगी।
यूं तो अमेरिका से भारत को सबसे ज्यादा अस्त्र-शस्त्र मिलते रहे हंै। पी-91, सी-17, सी-130 जे, अपाचे, चिनहुक और एम777 जैसे उच्च कोटि के युद्धक विमान और हेलीकॉप्टरों के साथ ही अब लिमोआ समझौते ने दोनों देशों की सैन्य ताकत में साझेपन का अहसास तो भरा ही है, बल्कि भारत को ऐसी तकनीकी और सूचनाओं को हासिल करने का अवसर भी दिया है जिसे अमेरिका किसी देश के साथ साझा नही करता। सामरिक दृष्टि से देखें तो चीन के दक्षिण चीन सागर और हिन्द महासागर में बढ़ते दबदबे के चलते अमेरिका यूं भी खासा चिंतित दिखा है। भारत के साथ सहयोग करके वह कहीं न कहीं चीन के क्षेत्रीय रौब को कम करने का मौका भी देख रहा होगा। लेकिन लिमोआ दूरगामी समझौता है जो तात्कालिक कारणों से किया जाने वाला नहीं लगता। यह समझौता दोनों देशों का सामरिक व्याप और सामर्थ्य बढ़ाएगा। अमेरिकी हथियारों पर भारत को गीदड़ भभकियां देता आ रहा पाकिस्तान हतप्रभ है इस समझौते पर। उसका हैरान होना स्वाभाविक भी है क्योंकि वह अपने को अमेरिका की आंख का तारा समझता रहा है। उसके दिए पैसों से सेना को खाद-पानी देता रहा है। जॉन कैरी का पिछले दिनों नई दिल्ली प्रवास भी उसकी रातों की नींद खराब कर गया था जब अमेरिका-भारत-अफगानिस्तान का एक साझा सहयोग तंत्र बना था। पाकिस्तान यूं भी पिछले काफी समय से आतंकवाद को पोसने वाले देश के रूप में इतना ज्यादा निशाने पर रहा है कि अमेरिका के आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में अब उसे पाकिस्तान से इच्छित सहयोग मिलने की अपेक्षा खत्म होती जा रही है।
लिमोआ ने सैन्य मामलों में भारत के सदा रूस पर आश्रित रहने की एक परंपरा को ध्वस्त कर दिया है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं लगा लेना चाहिए कि गुट निरपेक्ष के सूत्रों से संचालित होती आ रही भारत की विदेश नीति में रूस की अहमियत किसी तरह कम हो जाएगी। उधर चीन ने भारत की तमाम नेकनीयती को नजरअंदाज ही किया है। चीन के राष्ट्रपति जिनपिन का भारत में जैसा स्वागत किया गया और आपसी सहयोग के कदम उठाए गए, उसके बावजूद चीन पाकिस्तान का प्रत्यक्ष या परोक्ष सहयोग देता रहा है।
चीन भारत से सटी सरहदों पर अपने पाले में भारत की लाख आपत्तियों के बावजूद सैन्य ठिकाने बनाता आ रहा है, अपनी कब्जाई भारत की जमीन पर अनधिकृत निर्माण करता आ रहा है, और पाकिस्तान द्वारा कब्जाए भारतीय भूभाग पर सैन्य प्रतिष्ठान खड़े करता आ रहा है, जिनकी हिफाजत के लिए उसने वहां उसने अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के 11,000 जवान छोड़ रखे हैं। स्टिंग ऑफ पर्ल्स अभियान से भारत को घेरने की उसकी योजना लंबे समय से गुपचुप चल रही है। भारत के साथ अमेरिका के लिमोआ समझौते पर हस्ताक्षर करने से चीन के रणनीतिकारों के भी कान खड़े हुए हैं।
अब वह भारत को अनदेखा करके नहीं चल सकता। उसे मालूम है कि सैन्य मामले में भारत अब वह देश नहीं रहा जो धोखा खाता जाएगा, अब उसकी ताकत कई गुना बढ़ चुकी है। ल्ल
यह है लिमोआ
भारत-अमेरिका के बीच द्विपक्षीय सामरिक सहयोग का यह अहम समझौता हुआ। इस लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (लिमोआ) पर गत 30 अगस्त को भारत के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और अमेरिका के रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने वाशिंग्टन में हस्ताक्षर किए। भारत के लिहाज से यह समझौता जहां इसकी रक्षा सामर्थ्य की बढ़ती स्वीकार्यता को रेखांकित करता है वहीं अमेरिका और भारत के बीच अन्य क्षेत्रों के अलावा रक्षा क्षेत्र में भी बढ़ते सहयोग की पुष्टि करता है।
उल्लेखनीय है कि अमेरिका जैसी विश्व शक्ति यह समझौता दुनिया में केवल उन्हीं देशों के साथ करती है जिन्हें वह शक्तिशाली और अपने समकक्ष खड़े होने लायक मानती है, जिनके आयुध भण्डार और लड़ने की ताकत का सम्मान करती है। इस दृष्टि से यह भारत के लिए दुनिया के ताकतवर देशों में अपना स्थान पक्का करने जैसी बात है। इस समझौते के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं-
- दोनों देश आपस में एक दूसरे के रक्षा उपकरण, सैन्य ठिकाने और आयुध साज-सामान का उपयोग कर पाएंगे।
- दोनों देश इस समझौते के तहत एक दूसरे के यातायात के साधनों, खान-पान, ईंधन, चिकित्सा सेवाओं, कपड़ों, यंत्रों, कल-पुर्जों आदि आपस में ले-दे पाएंगे।
- दोनों देशों के सैन्य बल आपस में एक दूसरे की जमीन, वायु सेना और नौसेना के अड्डों को आपूर्ति, रखरखाव और जवानों को आराम देने के लिहाज से उपयोग कर सकेंगे।
- समझौते से भारत अमेरिका से कई ऐसी सैन्य तकनीकियां हासिल कर सकता है जो उसके पास अभी नहीं हैं।
- दोनों देशों के लड़ाकू विमानों और पोतों को ईंधन की उपलब्धता आसानी से हो जाएगी। संयुक्त अभ्यास, प्रशिक्षण, लोगों की सहायता और आपदा राहत में दोनेां देशों की सुविधाओं और उपकरणों का इस्तेमाल किया जा सकेगा।
- दुनिया में और एशिया में चीन के बढ़ते दबदबे को कम करने की दिशा में यह भारत-अमेरिका सैन्य समझौता एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। दूसरी तरफ यह समझौता भारत के दुनिया में और एशिया में एक महाशक्ति के रूप में बढ़ती स्वीकार्यता को भी दर्शाता है।
- लिमोआ उन तीन बुनियादी समझौतों में से एक है जो दूसरे देशों के साथ रक्षा क्षेत्र में अमेरिका के उच्च तकनीकी सहयोग को सूत्र-संचालन करते हैं। बाकी के दो समझौते हैं कम्युनिकेशन्स इंटरऑपेरेबिलिटी एंड सिक्योरिटी मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (सिस्मोआ) और बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपेरेशन एग्रीमेंट फॉर जियो स्पेटिअल कोऑपेरेशन (बेका)। 'बेका' समझौता भारत और अमेरिका को सैन्य और नागरिक उपयोग के लिए भू-आकाशीय सूचनाओं को आदान-प्रदान सुगम बनाएगा।
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