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बिहार के अनेक हिस्सों में अभी भी बाढ़ का पानी भरा हुआ है। अनेक स्वयंसेवी संगठनों के कार्यकर्ता जान हथेली पर धर बाढ़ पीडि़तों की मदद में लगे हुए हैं। उम्मीद है कि जनजीवन सामान्य होने में करीब एक महीने का समय लग जाएगा। सरकारी सुस्ती से लोग बेहद नाराज और आक्रोशित हैं
डॉ. आतिश पाराशर
बेगूसराय में बाढ़ का जायजा लेते समय रोंगटे खड़े हो जाते हैं। निचले इलाकों में तबाही का नजारा देखकर आंखें नम हो जाती हैं। रेहाना खातून ने जब अपनी व्यथा बताई तो सुनने वालों की आंखों में आंसू थे। शौहर के इंतकाल के बाद एक बच्चे के साथ किसी तरह गुजारा कर रही रेहाना जब बाढ़ में फंसी और खुद से पहले अपने बच्चे को बचाने की कोशिश में उसको कंधे पर बिठा कर चलने लगी तो उसके कंधे की हड्डी टूट गई। इतना ही नहीं, बच्चा भी ज्यादा समय तक पानी में रहने के कारण निमोनिया का शिकार हो गया। सामाजिक कार्यकर्ता आशुतोष पोद्दार 'हीरा' ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ स्वयंसेवकों की मदद से रेहाना अपने बच्चे को नाव के सहारे बेगूसराय ले आई और वहां सदर अस्पताल में दोनों का इलाज चल रहा है।
बाढ़ का पानी जैसे-जैसे उतर रहा है, वैसे-वैसे बिहार में तबाही का मंजर सामने आ रहा है। इंटरनेट की आभासी दुनिया में चटपटी खबरों का तड़का पसंद करने वाले लोग शायद बिहार में बाढ़ की विभीषिका को समझ न पाएं, लेकिन बेगूसराय से भागलपुर तक या यूं कहें कि समूचे उत्तर बिहार की जलमग्न धरती पर जिंदगी के लिए आपदा से जंग लड़ते लोग हर हाल में दुनिया को त्रासदी की खबरों से झकझोरना चाहते हैं। वैसे तो बिहार के लगभग 65 प्रतिशत भू-भाग पर बाढ़ का कहर रहा, परंतु उत्तर बिहार में बाढ़ का प्रकोप अन्य क्षेत्रों से ज्यादा दिखा। भागलपुर जिले का नवगछिया एक टापू में तब्दील हो गया। यहां जानो-माल का भारी नुकसान हुआ। नवगछिया निवासी रामसागर सिंह काफी परेशान हैं, कुछ समझ नहीं पा रहे हैं, क्या करें, किससे अपनी दास्तान कहें? वे कहते हैं, ''हालात इतने भयावह हैं कि एक महीने तक भी पानी कम होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। इसके कारण महिलाओं और बच्चों की स्थिति दयनीय बनी हुई है। गंदे पानी की वजह से मनुष्य और मवेशी दोनों ही बीमार हो रहे हैं। निमोनिया, पेचिश के अलावा मच्छर जनित बीमारियों का भंयकर प्रकोप है।''
अगर आप नवगछिया के किसी राहत शिविर का दौरा कर लें तो यकीन मानिए, तैरती हुई जिंदगी मौत के विकराल मुख से भागती हुई नजर आएगी। जब गाय, बैल, बकरी, कुत्ते, महिला, बुजुर्ग, बच्चे जिनमें कई विकलांग भी हैं, जीवन के लिए छटपटा रहे हों तो आपको पता चलेगा कि यहां कोई जाति विशेष का नहीं है, मजहब विशेष का नहीं है। यहां सभी मददगारों की राह देख रहे हैं। अनेक स्वयंसेवी संगठनों के कार्यकर्ता इनके मददगार बने हुए हैं। सेवा भारती, गंगा समग्र, विश्व हिन्दू परिषद्, वनवासी कल्याण आश्रम, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् आदि संगठनों के कार्यकर्ताओं ने बाढ़ पीडि़तों के लिए दिन-रात काम किया। इन कार्यकर्ताओं ने बाढ़ पीडि़तों तक खाना, पानी, कपड़े और दवाइयां पहुंचाकर अनुकरणीय कार्य किया। भागलपुर जिले के सबौर और गौराडीह प्रखंड में कार्यकर्ताओं ने जान हथेली पर रखकर बाढ़ पीडि़तों तक राहत सामग्री पहुंचाई। राहत कार्य के प्रभारी महादेव ने बताया, ''कार्यकर्ताओं ने प्रशासन से नाव और लाइफ जैकेट लेकर उन जगहों तक राहत सामग्री पहुंचाई जहां सरकारी राहत-कर्मी जाने को तैयार नहीं थे। कार्यकर्ताओं ने 15 से 20 फीट पानी में रहकर कई गांवों में फंसे लोगों की मदद की। लगभग 250 कार्यकर्ता इस काम में दिन-रात लगे रहे। किसी ने राहत सामग्री इकट्ठी की, तो किसी ने उसे बाढ़ पीडि़तों तक बांटने का काम किया।'' जिला भाजपाध्यक्ष अभय वर्मन ने बताया कि जहां भी पानी घट रहा है, वहां महामारी का प्रकोप है। सरकारी काम बहुत ही सुस्त है। गैर-सरकारी संगठनों के कार्यकर्ता सेवादूत बनकर काम कर रहे हैं। बाढ़ के प्रकोप से मुंगेर जिले के सुदूर गांवों का बहुत ही बुरा हाल है। खडि़या गांव के 55 वर्षीय गजानंद मंडल कहते हैं, ''जीवन में पहली बार ऐसी बाढ़ का सामना करना पड़ा। सब कुछ खत्म हो गया। लोगों को इस तबाही से उबरने में वर्षों लग जाएंगे।''
बेगूसराय के ही मधुरापुर प्रखंड का बाढ़ के चलते बुरा हाल है। यहां राहत कार्य का संचालन कर रहे कृष्णमोहन सिंह ने जो बताया उसे सुनकर पत्थर का भी दिल पिघल जाएगा। वे कहते हैं, ''जब कार्यकर्ता खाने का सामान बांट रहे थे तो लोगों ने कहा, हम लोग ठीक से खाना भी नहीं खा रहे, क्योंकि खाने के बाद शौच जाना होता है। पानी इतना ज्यादा है कि शौच जाना मुश्किल है, फिर भी अगर कोई चला जाए तो पानी में बह कर वह शौच घरों में ही पहुंच रहा है।''
बेगूसराय के सातों विधानसभा क्षेत्रों में बाढ़ का प्रकोप रहा। शहर में बांध के पार वाले सभी इलाके जलमग्न हो गए थे। शहर के संपन्न लोग एवं नागरिक मंचों की ओर से बचाव कार्य और राहत सामग्री वितरण में अच्छी सहभागिता है, परंतु जनप्रतिनिधियों एवं सरकार के प्रयास से लोग असंतुष्ट हैं। बीहट निवासी अमृत सिंह कहते हैं, ''स्थानीय विधायक और अन्य नेतागण आए थे और बाढ़ की सेल्फी लेकर चले गए।'' गया शहर में कुछ बुजुर्ग बताते हैं कि आजादी के बाद पहली बार यहां ऐसी बाढ़ आई, वरना गया तो बिना पानी की नदी के लिए जाना जाता था। इस बार की बाढ़ इतनी भयानक थी कि अंग्रेजों द्वारा बनाया गया लोहे का पुल भी टूट गया। रशीद मियां के दो बच्चे पुल टूटने वाले दिन शौच के लिए फल्गू नदी के किनारे गए थे। वे आज तक न लौटे हैं और न ही उनकी कोई खबर आई है। वे कहते हैं, ''आजादी के पहले एक बार बारिश के कारण शहर में बाढ़ आई थी। इस बार बारिश के विकराल रूप के कारण लोहे के पुल के टूटने के कारण भी तबाही मची है। ब्रिटिश काल में बने इस पुल के रखरखाव के लिए कुछ नहीं किया गया।''
भाद्रपद का पूरा महीना शेष है और आगे भारी बारिश की आशंका लोगों को और भयभीत कर रही है। जलजनित बीमारियों के बाद अब यहां मच्छरजनित बीमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है। 12 जिलों में पिछले 8 दिन में ढ़ाई लाख से ज्यादा लोग बीमार पड़ चुके हैं। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बताते हैं कि खगडि़या में 41,000, कटिहार में 35,000, भागलपुर में 30,000, मुंगेर में 29,000, वैशाली में 27,000, सारण में 19,000 और बेगूसराय में 21,000 लोग बीमार पड़ चुके हैं। बेगूसराय में समाजसेवी रामलखन सिंह कहते हैं,''सरकार की तरफ से बचाव और राहत कार्य सुस्त है, जबकि स्वयंसेवी संगठन दिन-रात काम कर रहे हैं। लेकिन आपदा इतनी बड़ी है कि सरकारी और स्वयंसेवी संगठनों को आपसी तालमेल के साथ और अधिक तेजी से काम करने की जरूरत है। अन्यथा आने वाले 15-20 दिन में जलजनित और मच्छरजनित बीमारियां महामारी का रूप ले सकती हैं। इस कारण स्थिति और भयावह हो सकती है।''
पटना में भी हाल बुरा है। लोगों में काफी रोष है, क्योंकि बचाव कार्य में सरकारी एजेंसियों की सुस्ती से सब परेशान हैं। लालू यादव के इस बयान ''गंगा मइया आपके घर आई हैं, आप सब खुशनसीब हैं'' से लोगों में काफी नाराजगी है। पटना के मुन्ना राय कहते हैं, ''बाढ़ पीडि़तों का मजाक उड़ाना यहां की सरकार को बहुत महंगा पड़ सकता है। लोग भूखे मर रहे हैं, बेघरबार हो गए हैं। उनका कुछ भी नहीं बचा है।'' सच में इस बार की बाढ़ ने बिहार को बर्बाद कर दिया है। लाखों लोग ऐसे हैं, जिनके पास केवल पहने हुए वस्त्र बचे हैं, बाकी सब कुछ खत्म हो गया है। इन लोगों के लिए सबसे बड़ी जरूरत है घर। लेकिन घर बने तो बने कैसे? हाथ में फूटी कौड़ी नहीं बची है। दशहरा के बाद सर्दी भी दस्तक दे देती है। ऐसे में बेघर लोगों का जीवन कितना मुश्किल होगा, इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती है। समाज इन लोगों की मदद के लिए आगे आए।
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