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भारतीय खिलाडि़यों के लिए रियो ओलंपिक खेलों में पदक के बेहद करीब आकर भी फिसल जाने की चर्चा लंबे समय तक चलेगी। भारतीय खेलप्रेमी उन रोमांचक क्षणों को कुछ वैसे ही याद करेंगे जैसे अब तक उड़न सिख मिल्खा सिंह और पी टी ऊषा के लिए करते रहे हैं। पदक चूकने की टीस जैसे हम खेलप्रेमियों को है, कुछ वैसा ही हाल रियो ओलंपिक में जिम्नास्टिक में चौथे स्थान पर रहते हुए इतिहास रचने वाली दीपा करमाकर को भी है। दीपा कहती हैं, ''मैं हैरान हूं कि पदक न जीत पाने के बावजूद मुझे देश में इतना सम्मान और प्यार मिल रहा है। मैं इन गौरवमय क्षणों को कभी नहीं भूल पाऊंगी। लेकिन 0.15 अंक से कांस्य पदक चूक जाने का दुख मुझे तब तक रहेगा, जब तक मैं ओलंपिक खेलों में पदक न जीत लूं।'' प्रवीण सिन्हा की दीपा से हुई लंबी बातचीत के प्रमुख अंश प्रस्तुत हैं-
ल्ल अगरतला से रियो ओलंपिक और फिर खेल रत्न सम्मान पाने तक का सफर कैसा रहा ?
इसमें कोई शक नहीं कि मेरा यह सफर शानदार रहा। ओलंपिक खेलों की जिम्नास्टिक स्पर्धा में पहली भारतीय महिला के रूप में भाग लेना ही गौरव की बात है। उसके बाद वॉल्ट स्पर्धा में चौथे स्थान पर रहना एक यादगार पल था। लेकिन जैसे ही मुझे पता चला कि मैं दशमलव अंक से पदक से चूक गई तो फिर मेरा ऐसा रोना छूटा कि घंटों तक हाल बेहाल रहा। इस बीच, करोड़ों देशवासियों के मेरे प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैये से मुझे ताकत मिली। मैं अब दृढ़ निश्चय के साथ अगले ओलंपिक खेलों में उतरूंगी और देशवासियों के विश्वास को पूरा करूंगी।
जहां तक खेल रत्न सम्मान की बात है तो यह वाकई बहुत बड़ा सम्मान है। सबसे बड़ी बात यह है कि मेरे पदक की जगह मेरे प्रयासों को सराहा गया। इस सम्मान से मुझे भविष्य में और बेहतर करने की प्रेरणा मिली है। मैं इस सम्मान की गरिमा को बनाये रखते हुए अगले ओलंपिक में मुझे पदक विजेता मंच पर खड़ा होना चाहती हूं। इसके लिए मैं कड़ी मेहनत करूंगी क्योंकि ओलंपिक जैसे मंच पर पदक जीतने का कोई शॉर्टकट रास्ता नहीं होता।
ल्ल आप एक मुकाम हासिल कर चुकी हैं। इसका श्रेय किसको देंगी?
समस्त देशवासियों की हौसलाअफजाई के अलावा मैं अपने कोच (बिशेश्वर) नंदी सर और अपने पिता को यह श्रेय देना चाहूंगी। मैंने पांच वर्ष की उम्र में खेलना शुरू किया। अगरतला में खेलों की कोई समृद्ध परंपरा नहीं रही है। फिर भी मेरे पिता और कोच ने जिम्नास्टिक में डाला जिनकी मदद और विश्वास के कारण मैं इस मुकाम तक पहुंची जहां तक पहुंचने की शायद कभी सोच भी नहीं सकती।
ल्ल अगले ओलंपिक में पदक जीतने के लिए आप क्या खास करना चाहती हैं ?
सबसे पहले कड़ी मेहनत और निरंतर अभ्यास। मैं शुक्रगुजार हूं भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) की, जिन्होंने मुझे दिल्ली के आई जी स्टेडियम में हर वो सुविधा उपलब्ध कराई जो रियो में मौजूद थीं। मैं अपने कोच और सुविधाओं से पूरी तरह संतुष्ट हूं। हां, अब मैं प्रोडूनोवा से भी कहीं ज्यादा कठिन वॉल्ट मारने की कोशिश करूंगी ताकि ज्यादा से ज्यादा अंक बटोरे जा सकें। पहले प्रोडूनोवा को डेश वॉल्ट का नाम दिया गया। अब यह वॉल्ट मारना मेरी आदत सी हो गई है। मुझे खतरनाक वॉल्ट मारने से डर नहीं लगता। मेरी कोशिश होगी कि और खतरनाक वॉल्ट की कोशिश करूं जो न केवल मुझे ओलंपिक पदक दिलाए, बल्कि लोग उस वॉल्ट को मेरे नाम से जानें।
दीपा के इस दावे में दंभ नहीं, विश्वास झलका। उम्मीद है पांच फुट से कम कद की दीपा अपनी जांबाजी के दम पर उस शिखर को हासिल करेंगी जिसकी हम खेलप्रेमी उम्मीद भी नहीं कर सकते। शाबाश दीपा।
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