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सोमवार यानी 22 अगस्त को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने म्यांमार की राजधानी ने-पी-ताव में राष्ट्रपति यू हतिन क्याव और स्टेट कौंसिलर व विदेश मंत्री आंग सान सू की से भेंट की। 'म्यांमार भारत के खिलाफ किसी भी उग्रवादी संगठन को अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं करने देगा। म्यांमार साथ लगती सीमा पर शांति व सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।' पड़ोसी देश ने विदेश मंत्री को यह आश्वासन दिया है।
म्यांमार अपने सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं राजनीतिक कारणों से सदैव से भारत के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ा रहा है। यहां के लोगों को किरात कहा जाता था, जिनका वर्णन यजुर्वेद, अथर्ववेद, रामायण, महाभारत तथा संबंधित साहित्य में पाया जाता है। महाभारत में किरात लोगों को श्रेष्ठ श्रेणी के क्षत्रिय (लड़ाकू जाति) के रूप में वर्णित किया गया है। सीमावर्ती नागा-कोन्याक, सांग्तम, फोम, चिमचुंगर व पोचुरी जातियां म्यांमार के कचिन जाति से संबंध रखती हैं। उत्तरी चीन व दक्षिण पूर्व एशिया के देश म्यांमार, इंडोनेशिया, मलेशिया तथा कंबोडिया आदि भारत के ही अभिन्न अंग देश थे, ऐसा वे भी मानते हैं। ढाई हजार वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के माध्यम से इस सूत्र को मजबूती प्रदान की गयी। किन्तु इतिहास ने ऐसी करवट बदली कि सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो गया। आजादी के बाद हम भारतवासी ही दिग्भ्रमित हो गये। अपने-पराये का भान न रहा, शत्रु-मित्र की पहचान करने क्षमता खो बैठे। किन्तु इस बार जब भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज म्यांमार गईं तो इतिहास मानो उभर कर सामने आ गया। मानो दो सगी बहनें अथवा दो सगे भाई अथवा एक ही राष्ट्र से अलग हुए दो सहोदर देश आपस में गले लगे हों।
सोमवार को म्यांमार ने जब भारत की सुरक्षा का आश्वासन दिया तो भारत भी कहां पीछे रहने वाला था। विदेश मंत्री ने अपने एक बयान में कहा,''भारतवर्ष भी म्यांमार के चतुर्दिक विकास करने के लिए हर संभव मदद करेगा।'' इसके बाद म्यांमार की नई सरकार पर मजबूत पकड़ रखने वाली आंग सान सू की ने धन्यवाद दिया एवं अपनी प्रसन्नता प्रकट की।
राष्ट्रपति यू हतिन क्याव ने कहा,''भारत एक ऐसा देश है जिससे उनका देश लोकतंत्र का सही अर्थ सीख सकता है।'' ऐसा कह कर म्यामंार के राष्ट्रपति ने भारत के प्रति अपना सम्मान व्यक्त किया। सुषमा स्वराज ने वहां के राष्ट्रपति यू हतिन क्याव और आंग सान सू की दोनों को भारतवर्ष की यात्रा का निमंत्रण दिया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया ।
संयोग से सुषमा की यात्रा सू की की बहु-चर्चित चीन यात्रा (17-21 अगस्त) के तुरन्त बाद ही हुई है। वास्तव में 1 मई को ही विदेश मंत्री की म्यांमार यात्रा तय थी किन्तु किसी अपरिहार्य कारण से उसे 22 अगस्त यानी प्राय: पौने चार महीने बाद कर दिया गया। यदि यही यात्रा मई महीने में यानी आंग सान सू की की चीन यात्रा (17-21 अगस्त) से पहले हो जाती तो हमारी उपलब्धि कुछ और हो जाती। चीन में सू की को प्रधानमंत्री जैसा सम्मान मिला क्योंकि तकनीकी कारणों से ही वह राष्ट्रपति नहीं बन सकीं। फिर भी विदेश मंत्री व स्टेट कौंसिलर होते हुए भी राष्ट्रपति जैसा ही प्रभाव अपनी वर्तमान सरकार पर है। वहां सू की ने चीन के विदेश मंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से वार्ताएं की एवं अन्य राजनीतिक नेताओं और उद्योगपतियों से भी मिलीं। चीन म्यांमार से अपना चतुर्दिक संबंध स्थापित करने के लिए सब प्रकार के प्रयास कर रहा है। चीन का ऐसा प्रयास म्यांमार के पूर्व राष्ट्रपति थीन सेन के समय नहीं देखा गया था। सू की की यह चीन यात्रा दूसरी बार थी। जून, 2015 में जब वह विपक्षी संासद के रूप में चीन में थीं, तब चीनी राष्ट्रपति सी जिनपिंग ने उनकी आवभगत की थी। वास्तव में, चीन आंग सान सू की को एक प्रभावशाली नेता के रूप में देखना चाहता है जो सब समय क्षेत्रीय व अन्तरराष्ट्रीय मामलों में उसका पक्ष लेता रहे। सू की की चीन यात्रा के एक सप्ताह के अन्दर ही चीनी विदेश मंत्री वांग यी म्यांमार पहुंच गए। इस प्रकार वांग यी प्रथम विदेशी गणमान्य अधिकारी थे जो म्यांमार जाकर सू की तथा अन्य नए नेताओं से मिले। उसके बाद अनेक चीनी शीर्ष अधिकारी ने-पी-ताव आ चुके हैं।
गत सप्ताह चीन में सू की से वार्ता के समय लेन-देन के आधार पर समझौता हुआ जिसमें रणनीतियों तथा दीर्घकालीन परिकल्पना पर कार्य करने का निर्णय लिया गया तथा समग्र सामरिक सहयोग समझौते को कड़ाई से लागू करने का संकल्प लिया गया। चीन ने म्यांमार के आर्थिक विकास तथा राष्ट्रीय सौहार्द स्थापित करने में यथासंभव मदद करने का आश्वासन दिया। चीन ने एक क्षेत्र – एक मार्ग की संकल्पना को पूरा करने का वायदा किया है जिसे म्यांमार ने मान लिया है। यह चिन्ता का विषय है । बंगलादेश, चीन, भारत तथा म्यांमार को मिलाकर एक आर्थिक गलियारा बनाने के चीन के प्रस्ताव को भी म्यांमार मान गया है । बड़ी चालाकी से चीन ने इस अवसर पर दक्षिण चीन सागर समस्या को स्पर्श तक नहीं किया ।
म्यांमार की पूर्ववर्ती जुंटा सरकार (सैन्य शासन) के संविधान के मुताबिक सू की के राष्ट्रपति बनने पर प्रतिबंध है । देश की पहली नागरिक सरकार पर भी जुंटा (सेना) का कड़ा नियंत्रण है। सैन्य शासन द्वारा प्रतिपादित संविधान के अनुसार ऐसा व्यक्ति जिसके जीवन साथी या बच्चों ने विदेश में जन्म लिया है वह शीर्ष पद पर आसीन नहीं हो सकता । सू की ने ब्रिटिश नागरिक से शादी की है और उनके दो बेटे हैं । वे इसाई हैं । इतना ही नहीं, नई सरकार में भी सेना ने गृह, रक्षा और सीमावर्ती मामलों जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय अपने पास रखे हैं क्योंकि संसद की 25 प्रतिशत सीटें गैर-निर्वाचित सैनिकों के लिए आरक्षित हैं।
म्यांमार में पिछले साल संपन्न चुनाव में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू की (इसाई धर्मावलंबी) पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को भारी जीत मिली थी। पचास वषार्ें के सैन्य शासन के बाद मार्च, 2016 में नई अर्ध प्रजातांत्रिक सरकार का गठन हुआ और उसके बाद भारत की ओर से यह पहली उच्चस्तरीय यात्रा है। साथ में विदेश सचिव एस. जयशंकर और विदेश मंत्रालय के कई वरिष्ठ अधिकारी भी सुषमा के साथ थे। इस दौरान सुषमा ने राष्ट्रपति यू हतिन क्याव तथा स्टेट कौंसिलर व विदेश मंत्री आंग सान सू की से मुलाकात की।
चीन-म्यांमार की बढ़ती दोस्ती को गंभीरतापूर्वक लेते हुए भारत को अपनी योग्य नीति बनाकर तत्काल कार्यवाही करने की आवश्यकता है । म्यांमार के राष्ट्रपति यू हतिन क्वाव और स्टेट कौंसिलर तथा विदेश मंत्री आंग सान सू की आगामी कुछ सप्ताह के भीतर भारत आने की संभावना है। और उनकी यात्रा के बाद ही चीन-म्यांमार-भारत की तिकड़ी के जटिल संबंध पर काले बादल कुछ साफ होते नजर आएंगे। किन्तु एक बात तो स्पष्ट है कि चीन की चालाकी को मद्देनज़र रखते हुए भारत को म्यांमार के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ करने के लिए बहुआयामी प्रयास तत्काल करने होंगे। इस दिशा में मोदी सरकार ने एक्ट ईस्ट पॉलिसी (पूर्व को पूर्ण विकसित करने की नीति) पर पहले से ही कार्य प्रारंभ कर दिया है। लेकिन उसे और तीव्र गति देने की आवश्यकता है। -जगदम्बा मल्ल
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