विद्या भारती विद्यालय प्रतिभा के पालने
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अश्वनी मिश्र
अच्छी शिक्षा एक बेहतर मनुष्य का निर्माण करती है, ऐसी शिक्षा के लिए जहां पाठ्य पुस्तकें जरूरी होती हैं वहीं जरूरी होता है उसका सर्वांगीण विकास। बात चाहे खेल की हो, योग-व्यायाम, स्वास्थ्य, वक्तृत्व कला को मांजने की, व्यक्तित्व को समाज के अनुसार निखारने की, सहपाठियों के साथ अच्छे तालमेल और सलीके की, इन सबके साथ उसे पाठ्य सामग्री का कितना गहरा ज्ञान है, एक छात्र की सफलता इन्हीं सब चीजों से तय होती है। सवाल यह है कि क्या हमारे ज्यादातर विद्यालय ऐसी शिक्षा दे रहे हैं? जवाब बहुत स्पष्ट है- नहीं। लेकिन इस सबके बावजूद पूरे भारत में विद्यालयों की एक ऐसी शृंखला मौजूद है जो शिक्षा के क्षेत्र में गुपचुप तरीके से एक क्रान्तिकारी परिवर्तन ला रही है, ऊपर जो मानक बताए गए हैं उन सब पर खरे उतरकर छात्रों के जीवन को समग्र रूप से संवारते-निखारते हुए ये संस्थाएं आदर्श नागरिक बनाने की ओर अग्रसर हैं। यह शृंखला है विद्याभारती के विद्यालयों की। इन विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र जहां अध्ययन के क्षेत्र में प्रवीण होते हैं, वहीं जीवन के अन्यान्य क्षेत्रों में भी खुद को प्रतिष्ठापित करने का माद्दा रखते हैं। पिछले कई वर्ष से मामला चाहे दसवीं बोर्ड परीक्षा का हो या फिर बारहवीं का या फिर खेल या समाज के अन्य क्रियाकलापों का, प्रत्येक क्षेत्र में इन छात्रों ने अपनी प्रवीणता सिद्ध करके
दिखाई है।
असम के शंकरदेव शिशु निकेतन में पढ़ने वाला सरफराज एक ऐसा ही छात्र है। वह विद्या भारती द्वारा संचालित गुवाहाटी के पास स्थित बेटकुची विद्यालय में पढ़ता है। अभी 1 माह पहले वह मीडिया की सुर्खियों में रहा। कारण, दसवीं की परीक्षा में पूरे प्रदेश में 600 में से 590 अंक पाकर उसने अव्वल दर्जा प्राप्त किया था। सरफराज से बात करने पर उसने बताया कि ऐसा स्वयं की मेहनत के अलावा अध्यापकों के अथक परिश्रम से संभव हो पाया है। सरफराज के पिता अजमल हुसैन अपने बेटे की उपलब्धि पर बेहद खुश हैं। वे कहते हैं,''मेरे बच्चे के लिए इस विद्यालय से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती थी क्योंकि यहां पर एक तरह से शिक्षा मुफ्त में दी जाती है। अपने कम वेतन में बेटे की पढ़ाई का खर्चा उठाना हमारे लिए मुश्किल था।'' वे आगे कहते हैं, ''आज मेरे बेटे ने जो भी उपलब्धि पाई है उसमें उसकी मेहनत के अलावा सिर्फ और सिर्फ सरस्वती शिशु मंदिर के अध्यापकों का ही योगदान है। विद्यालय का वातावरण, संस्कार, और विद्यालय में नियमित रूप से होने वाली सरस्वती वंदना से ही यह सब संभव हुआ है।''
अजमल गुवाहाटी के एक होटल में वेटर हैं और बड़े गर्व से यह बताते हैं कि उनके बच्चे को विद्यालय की सरस्वती पूजा समिति का सचिव बनाया गया था।
सरफराज राज्यभर में अव्वल दर्जा पाने से बेहद खुश है। अपनी उपलब्धि पर उसने कहा, ''विद्यालय में प्रवेश करते ही एक अलग तरह की ऊर्जा मिलती है। कक्षाएं शुरू होने से पहले सरस्वती वंदना मन को शान्ति और एकाग्रता प्रदान करती है। यही एकाग्रता हमें आगे बढ़ने और कुछ करने के लिए प्रेरित करती है। विद्यालय में संस्कारों पर जोर दिया जाता है, उसका हमें हर कदम पर लाभ मिलता है। इसीलिए यहां के छात्र अन्य स्कूलों के बच्चों से भिन्न नजर आते हैं।'' सरफराज ने बताया, ''तय समय में विभिन्न विषयों की पढ़ाई होती है। इस सबके बीच सप्ताह में एक दिन विभिन्न प्रतियोगिताएं भी होती हैं, जो हमारे व्यक्तित्व को निखारने में बड़ी सहायक सिद्ध होती हैं। यहां एक समृद्ध पुस्तकालय भी है जहां तरह-तरह की पुस्तकें पढ़ने को मिलती हैं। भारत के महापुरुषों से लेकर अंग्रेजों के दमनकारी शासन तक की। साथ ही हर तरह की 'एक्टिविटी' में हमें आगे बढ़ाया जाता है चाहे बात खेल की हो या भाषण प्रतियोगिता की। मुझे यह कहने में गर्व है कि सरस्वती शिशु मंदिर के बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में भी विशेष स्थान प्राप्त करते हैं।'' उसकी बात गलत नहीं है। मध्य प्रदेश के मंडला के सरस्वती उत्तर माध्यमिक विद्यालय की रमा देवी ने कुछ समय पहले 200 मीटर की दौड़ में अखिल भारतीय स्तर एवं राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में दूसरा स्थान हासिल किया था।
गुवाहाटी के बाहरी हिस्से में स्थित बेटकुची विद्यालय में 24 मुस्लिम छात्र हैं। इनमें से ज्यादातर छात्रों को विद्यालय में गीता पाठ की प्रतियोगिता में भी इनाम मिल चुका है। विद्यालय के प्रधानाचार्य अक्षय कालिटा कहते हैं,''हमारे लिए सभी बच्चे समान हैं, वह कोई भी क्यों न हों। हमारा जोर संस्कारों व शैक्षिक गुणवत्ता पर रहता है। हम भारतीय संस्कृति की मूल रूप से पहचान कराते हैं।''
कुछ लोग निजी और कॉन्वेंट स्कूलों के मुकाबले विद्याभारती द्वारा संचालित विद्यालयों के बच्चों को बड़ी हेय दृष्टि से देखते हैं। और ऐसा मानते हैं कि इन विद्यालयों में कुछ ही क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाता है जिससे बच्चे शैक्षणिक रूप से उतने परिपक्व नहीं हो पाते जितने निजी और कॉन्वेंट स्कूलों के बच्चे होते हैं। पर इस बार के बोर्ड के परिणामों ने ऐसे लोगों को आईना दिखाया है। अधिकतर राज्यों में विद्याभारती द्वारा संचालित विद्यालयों के बच्चों ने दसवीं और बारहवीं के परिणामों में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया है। आलोचना करने वालों के लिए ये परिणाम कल्पना से परे दांतों तले उंगली दबाने की तरह हैं।
हरियाणा के कुरुक्षेत्र के श्रीमद्भगवदगीता वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के रजत गुप्ता ने बारहवीं की परीक्षा में शीर्ष स्थान पाया है। रजत ने कला वर्ग में 98 फीसद अंक पाकर परिवार और अपने विद्यालय का नाम रोशन किया है। वह इस परिणाम से बेहद खुश है और आगे सिविल सेवा में जाना चाहता है। अपनी सफलता का पूरा श्रेय अपने माता-पिता और विद्यालय के अध्यापकों को देते हुए रजत ने कहा,''मैंने जो भी सफलता पाई है, उसमें संस्कार का महत्वपूर्ण योगदान है। निजी और कॉन्वेंट स्कूलों में इसका बेहद अभाव होता है। जीवन में श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण संस्कारों द्वारा ही होता है और संस्कार यहां पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं।''
एक से दस तक अव्वल
विद्याभारती के बच्चों ने मध्य प्रदेश में अपनी मेधा का डंका बजाया है। बोर्ड की 10वीं और 12वीं परीक्षा के परिणाम में कुल 21 बच्चों ने प्रदेश की प्रावीण्य सूची में स्थान पाया है। जहां सरस्वती उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, मंडला के सम्यक जैन ने 12वीं की परीक्षा में 96.60 अंक पाकर राज्य में पहला स्थान पाया वहीं 10वीं की परीक्षा में सरस्वती उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, पवई, पन्ना के अनुपम मिश्र ने 97.83 फीसद अंक पाकर राज्य में तीसरा स्थान पाया है। 10वीं की परीक्षा में क्रमश: प्रत्यूष मिश्र, बिरसिंगपुर-उमरियां ने चौथा, छापीहेड़ा राजगढ़ के अमन कारपेंटर ने पांचवां, सारंगपुर राजगढ़ की प्रिया गुप्ता ने छठा, खंडवा की कु.अंतिम राठौर ने सातवां, कु. प्रियांशी पटेल ने आठवां,आदर्श शुक्ला ने नौवां और नीरज त्रिपाठी ने दसवां स्थान पाया है।
राज्य में तीसरा स्थान पाने वाले अनुपम मिश्र कहते हैं,''हमारे विद्यालय में ऐसा माहौल और सारी व्यवस्था उपलब्ध है जो अन्य विद्यालयों में होती है। हमें हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत सभी कुछ सिखाई जाती है। साथ ही जितने अध्येता व ज्ञान के लिए जिज्ञासु यहां के शिक्षक हैं, शायद ही अन्य कहीं होंगे।''
बोर्ड की हायर सेकेंडरी परीक्षा में प्रदेश की प्रावीण्य सूची में 9 बच्चों ने स्थान पाया है। राज्य में पहला स्थान जहां सम्यक जैन ने पाया है वहीं अतिशय मोदी ने दसवां स्थान पाने में सफलता प्राप्त की है। सम्यक जैन इंजीनियर बनना चाहते हैं और उन्होंने भोपाल के एनआईटी में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में दाखिला लिया है। वे कहते हैं, ''यहां आए दिन जो 'एक्टिविटी' होती हैं उनसे हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। हर छात्र में कुछ न कुछ अलग प्रतिभा होती है, जिसे निखारने के लिए हमारे अध्यापक पूरी तत्परता के साथ लगे रहते थे। विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था पर वे कहते हैं, ''हमें हर विषय की अच्छी से अच्छी शिक्षा दी जाती है। लेकिन कुछ लोग फिर भी हमारे विद्यालयों को अलग दृष्टि से देखते हैं। पर अब उनकी सोच में इन परिणामों को देखकर जरूर बदलाव आएगा।''
कु. प्रतीक्षा गौर हरदा से हैं और उन्होंने राज्य में पांचवां स्थान पाया है। वे आईएएस बनना चाहती हैं, इसके लिए उन्होंने तैयारी शुरू कर दी है। आज की अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था पर वे कहती हैं, ''कुछ लोग अंग्रेजी विद्यालयों के बच्चों को पाते ही ऐसा भाव व्यक्त करते हैं जैसे ये महाज्ञानी हों। पर यह सत्य नहीं है। अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने में कोई बुराई नहीं है। हम अंग्रेजी शिक्षा जरूर लें पर अंग्र्रेज न बनें। पैर हमारे भारत की माटी पर ही हों और भारत के ही संस्कार हमारे व्यक्तित्व में झलकने चाहिए। आज के समय अंग्रेजी शिक्षा का ज्ञान ठीक है क्योंकि सभी चीजें ग्लोबल हो रही हैं, ऐसे में अंग्रेजी जानना बेहद जरूरी है।''
सौ फीसद रहा परिणाम
ओडिशा के ब्रह्मपुर जिले के नीलकंठनगर स्थित सरस्वती शिशु विद्यामंदिर का बोर्ड का परिणाम इस बार 100 फीसद रहा। कुल 231 छात्रों ने बोर्ड की परीक्षा में सफलता पाई है। 31 छात्रों ने 90 फीसद से अधिक अंक पाए हैं तो वहीं 45 छात्रों ने 70-79 फीसद अंक पाकर विद्यालय का नाम रोशन किया है। विद्यालय के प्रधानाचार्य एस.मोहनराव ने कहा कि मुझे बड़ी प्रसन्नता है कि हमारे बच्चों ने अच्छा प्रदर्शन किया। ऐसे ही रामहरि नगर के सरस्वती शिशु विद्यामंदिर का परिणाम भी सौ फीसद रहा है।
रजत को क्रिकेट और संगीत का बेहद शौक है। उसके पिता जगमोहन गुप्त कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन के अधीक्षक हैं और मां गृहिणी हैं। बेटे की सफलता से दोनों बेहद उत्साहित हैं और इसका पूरा श्रेय विद्यालय को ही देते हैं।
इसी विद्यालय के नॉन मेडिकल के छात्र यश कुलश्रेष्ठ ने भी प्रदेश में दसवां स्थान प्राप्त किया है। उसने हाल ही में आईआईटी मुख्य और एडवांस परीक्षा में भी सफलता पाई है। वह इंजीनियर बनना चाहता है। यश ने कहा, ''हमारी सोच ही हमें सफलता दिलाती है। जब मैं निजी और अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों के बच्चों के साथ मिलता हूं तो हम में और उनमें एक अंतर दिखाई देता है। अंतर यह होता है कि हमारे स्वभाव में संस्कार, आदर्श, दूसरों का सम्मान, राष्ट्र के प्रति राष्ट्रवादी सोच होती है, जबकि निजी और कॉन्वेंट स्कूलों के बच्चों में इसका कहीं न कहीं अभाव दिखाई देता है।''
यश अपनी सफलता का पूरा श्रेय अध्यापकों को देते हैं और कहते हैं कि उनकी कड़ी मेहनत से ही यह संभव हुआ है।। श्रीमद्भगवद्गीता विद्यालय के प्राचार्य अनिल कुलश्रेष्ठ बताते हैं कि विद्यालय की 12वीं कक्षा के 433 छात्रों ने परीक्षा दी थी। इनमें से 93 छात्रों ने 75 फीसद से अधिक अंक पाए हैं। 266 छात्रों ने प्रथम श्रेणी में परीक्षा पास की है। विद्यालय का परिणाम अच्छा आए, इसके लिए कोई खास तैयारी कराने के सवाल पर वे कहते हैं, ''हमारे विद्यालय में कोई विशेष श्रेणी के बच्चे आ रहे हों तो ऐसा बिलकुल नहीं है। यहां बेहद सामान्य परिवारों के बच्चे अध्ययन करते हैं। हां, हमारा सबसे ज्यादा ध्यान उनके व्यक्तित्व को निखारने पर रहता है। उनके अंदर जो प्रतिभा छिपी होती है हम उसे पहचानने की कोशिश जरूर करते हैं। उन्हें उनके भविष्य के प्रति जागरूक करते हैं। रही बात संस्कारों की तो सब जानते हैं कि हमारी पहचान संस्कारों से तो है ही, लेकिन गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लिए भी हमारी पहचान बनी है। ऐसा नहीं है कि हमारे बच्चे अंग्रेजी नहीं जानते, वह अच्छी अंग्रेजी जानते हैं लेकिन अंग्रेजियत में नहीं फंसते हैं बस।''
वैसे यह आम धारणा है कि निजी विद्यालयों में पढ़ाई बेहतर होती है। लेकिन छत्तीसगढ़, कोरबा के अनुराग कौशिक इस बात को सिरे से नकारते हैं। अनुराग ने दसवीं की परीक्षा में 97.83 अंक पाकर राज्य में दूसरा स्थान पाया है। वहीं मुंगेली के सोमनाथ यादव ने चौथा, बसना की एकता बेहरा ने छठा, चांपा के राहुल देवांगन ने सातवां, कोरबा की पूजा पटेल ने आठवां, चंद्रपुर के आलोक कुमार होता ने नौवां और रायगढ़ की श्रुति किरण प्रधान ने राज्य की प्रवीणता सूची में दसवां स्थान पाया है। कुल मिलाकर राज्य के 14 बच्चों ने बोर्ड की प्रवीणता सूची में स्थान बनाया है। इनमें से अधिकतर बच्चे बेहद सामान्य परिवार से हैं। निजी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की तरह इनके अंदर नाममात्र का दिखावा नहीं है। लेकिन जब बात कौशल और मेधा की आती है तो ये किसी से कम भी नहीं हैं।
दसवां स्थान पाने वाली श्रुतिकिरण प्रधान कहती हैं,''हम कम संसाधन में जब ये कर सकते हैं तो अगर हमें पर्याप्त संसाधन और सुविधाएं मिल जाएं तो क्या नहीं कर सकते।'' श्रुति की बात में दम है। ऐसे ही बारहवीं में भी छात्रों ने राज्य में उत्कृष्ट स्थान पाया है। बिलासपुर के शुभम बख्शी ने 96.6 अंक पाकर पहला स्थान पाया वहीं रंतिदेव राठौर ने दूसरा, रोहिणी साहू ने तीसरा और आयुष पाण्डेय ने चौथा और बिलासपुर के विकास नामदेव ने 94.2 फीसद अंक के साथ दसवां स्थान प्राप्त किया है। बिहार में भी कुछ इसी तरह का प्रदर्शन रहा है। आनंद राम ढांढानिया सरस्वती विद्यामंदिर, भागलपुर की निकिता कुमारी ने न सिर्फ 90 फीसद से अधिक अंक प्राप्त किये बल्कि उन्होंने हाल ही में आईआईटी की भी परीक्षा उत्तीर्ण की है। इस विद्यालय के 4 छात्रों को 90 फीसद से अधिक अंक मिले हैं। सर्वाधिक 93.6 अंक किशोर सौरभ ने प्राप्त किये। ऐसे ही एक और सरस्वती विद्यामंदिर, मुुंगेर (पुरानी गंज) के बच्चों ने भी शानदार प्रदर्शन किया है। तीन छात्रों ने 90 फीसद से अधिक अंक पाए हैं। 93 फीसद अंक पाकर प्रणव घोष इस विद्यालय में अब्वल रहा। देश के अधिकतर राज्यों में विद्याभारती के छात्र-छात्राओं ने इस बार की बोर्ड परीक्षा में शीर्ष दस में जगह बनाई है। इन छात्र-छात्राओं ने अपनी मेधा के दम पर सिद्ध किया है कि सरस्वती शिशु मंदिर में सिर्फ संस्कार ही नहीं मिलते, यहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा भी दी जाती है।
-साथ में पटना से संजीव कुमार एवं
ओडिशा से पंचानन अग्रवाल
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