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केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने अपने दफ्तर के कमरे में एक बोर्ड पर कामों की लंबी सूची बनाई हुई है, जिनमें से कुछ पर सही का निशान है। पूछने पर उन्होंने बताया, ''ये वे लक्ष्य हैं जो मैंने अपने लिए तय किए हैं। मेरी कोशिश रहती है कि बेसहारा महिलाओं और बच्चों को यह महसूस न हो कि उनको सहारा देने वाला, उनकी तकलीफ दूर करने वाला कोई नहीं है। मैं जो काम हाथ में लेती हूं उसे पूरा करके ही दम लेती हूं।'' प्रस्तुत हैं श्रीमती मेनका गांधी से उनके मंत्रालय से जुड़े कामों पर पाञ्चजन्य के सहयोगी संपादक आलोक गोस्वामी एवं संवाददाता अश्वनी मिश्र की विस्तृत बातचीत के प्रमुख अंश:-
सरकार के दो वर्ष पूरे हुए हैं। इन 2 वर्षों में आपके मंत्रालय की उपलब्धियां क्या रहीं?
मैंने जब पदभार संभाला था तब मंत्रालय के पास दफ्तर तक नहीं था। पहले की यूपीए सरकार ने इसे एक पोस्ट ऑफिस जैसा बना छोड़ा था जो बस आंगनवाड़ी के चेक पर दस्तखत करके भेजने का काम करता था। कोई नीति, कोई कार्यक्रम नहीं था। मैंने मंत्रालय के काम के लिए यह दफ्तर लिया। पिछली सरकार में तो इस विभाग की मंत्री घर से काम करती थीं। मैं आई तो पहले मैंने इस मंत्रालय के 3 प्रमुख कार्य तय किए- महिला सुरक्षा, महिला रोजगार एवं आर्थिक सुदृढ़ता तथा महिलाओं एवं बच्चों का पोषण। महिला सुरक्षा में हमने कुछ नई चीजें की हैं जो लंबे समय के लिए कारगर साबित होंगी। महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए हम पहली बार एक 'पैनिक बटन' लाने वाले हैं। जनवरी, 2017 से हर मोबाइल पर यह बटन मौजूद होगा। जब संकट में फंसी कोई लड़की या महिला इस बटन को दबायेगी तो उसके आस-पास के 10 लोगों के फोन में अपने आप एक सायरन जैसा बजेगा, और उनको उस लड़की के खतरे में होने की जानकारी देगा। इससे काफी हद तक महिलाओं की सुरक्षा हो पाएगी।
किशोर न्याय अधिनियम पर कितना आगे बढ़ा गया है?
हमने किशोर न्याय अधिनियम-2015 पारित कराया। इसमें बलात्कार और अन्य अपराधों में 16 से नीचे की उम्र वाले को भी वयस्क अपराधी माना जाएगा।
बाल गृहों की बड़ी शिकायतें सुनाई देती थीं। उनमें क्या सुधार हुए हैं?
हमने इस काम को प्राथमिकता देते हुए पहली बार एक कानून बनाया है। पहले होता यह था कि बाल गृहों से बच्चे बेच दिए जाते थे, किसी को पता तक नहीं चलता था। अब देश भर में बच्चों की एक सूची होती है, इसके बाद गोद लेने की प्रक्रिया पूरी की जाती है। हमने एक और नई चीज शुरू की है 'फोस्टरिंग'। इसमें उन लोगों को सहूलियत दी जाती है जो बच्चे गोद तो लेना चाहते हैं, पर जिनके पास उन्हें पालने के लिए पैसे नहीं होते। उनको हम विभाग की तरफ से आर्थिक मदद देंगे।
महिलाएं अपने अधिकार जानें और समझें, इसके लिए क्या योजना है?
महिलाओं के साथ हमेशा से दोयम दर्जे का व्यवहार होता रहा है। हमने विवाहिताओं, विधवाओं और अविवाहित महिलाओं के संदर्भ में एक नीति बनाई है जिसमें बताया गया है कि इनके आर्थिक अधिकार क्या हैं, काम का समय कितना होना चाहिए, कार्यक्षेत्र में यौन उत्पीड़न कमेटी होनी चाहिए, वगैरह।
बाल उत्पीड़न रोकने के लिए और उनको तत्काल राहत दिलाने के लिए मंत्रालय क्या प्रयास कर रहा है?
हमने एक अनोखी चीज शुरू की है-चाइल्ड लाइन। इसमें करीब 14 लाख बच्चे हर महीने हमें फोन करते हैं। इसमें से 10 से 11 लाख बच्चे तो यही बताते हैं कि माता-पिता मारते हैं, वे घर छोड़ना चाहते हैं, आत्महत्या तक करना चाहते हैं, कोई बीमारी है पर बताने में डरते हैं, पड़ोसी परेशान करता है। सभी बच्चों की समस्याएं सुनी जाती हैं। इनमें से 3 लाख के करीब बच्चे ऐसे होते हैं जिनका अपहरण हुआ होता है और जो किसी तरह अपने घर जाना चाहते हैं। हम उनकी एक घंटे के अंदर मदद करते हैं।
यह मदद किस तरह की जाती है?
देश भर में हमारी करीब 750 टीमें हैं। यह चाइल्ड लाइन मैंने अटल बिहारी वाजपेेयी जी के नेतृत्व वाली पिछली राजग सरकार के दौरान शुरू की थी, पर तब कुछ कारणों से इसे वापस ले लिया था। इसके लिए मुझे 4 लाख पाउंड का अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था, जो मैंने इसे चलाने के लिए दान दे दिया था। इसका एक केन्द्र गुड़गांव में है जहां एक के बाद एक फोन आते हैं। इसका टोल फ्री नंबर है-1098। इस पर जो भी फोन आते हैं, उन पर पूरी तत्परता से काम किया जाता है। पीडि़त बच्चे इस नंबर पर संपर्क कर सकते हैं।
अब तक इससे कितने बच्चों को लाभ मिला है? किन क्षेत्रों के बच्चों के ज्यादा फोन आते हैं?
इससे करीब सवा करोड़ बच्चे लाभान्वित हुए हैं। इसमें ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के बच्चे हैं। हमने हर टे्रन की हर बोगी में चार-चार पोस्टर लगाएं हैं, जिन पर लिखा है कि अगर कोई अपहृत या लावारिस बच्चा या ऐसी कोई महिला दिखे तो 1098 नंबर पर फोन करें। हमने इस दृष्टि से देश के 20 सबसे बदनाम रेलवे स्टेशनों, जहां से छोटे बच्चों की तस्करी सबसे ज्यादा होती है, पर प्रशिक्षण की शुरुआत की है। अभी हमने इटारसी से 56 बच्चे छुड़ाए हैं। रेलवे स्टेशनों पर हम ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। हम एक मशीन बना रहे हैं। इसमें कोई भी बटन नहीं दबाना है, सिर्फ बच्चा बोल दे कि 'मैं मुसीबत में हूं', हम फौरन उस बच्चे तक पहुंंच जाएंगे।
विधवाओं की हालत किसी से छिपी नहीं है। ये महिलाएं दर-दर भटकने को मजबूर हैं। इनके लिए क्या कुछ खास कर रही हैं?
हम खासतौर पर बेसहारा विधवाओं के लिए वृंदावन में विधवागृह बना रहे हैं जिसकी क्षमता एक हजार होगी। यहां ये महिलाएं आत्मनिर्भर होना सीखेंगी। साथ ही हमारे यहां एक राष्ट्रीय महिला कोष था जिसमें बहुत साल से कुछ नहीं हुआ था। हमने इसमें पैसे डाले हैं जिससे स्वयंसेवी संगठनों और आम महिलाओं को 9 फीसद पर कर्ज देते हैं, ताकि वे कुछ व्यवसाय कर सकें। ऐसा 60 साल में पहली बार हुआ है।
अधिकतर बाल व महिलागृहों की हालत ठीक नहीं है। इनमें सुधार लाने के लिए मंत्रालय क्या कर रहा है?
बाल व महिलागृहों का निरीक्षण किया जा रहा है। कई बार शिकायत आती है कि इनमें मारपीट होती है, बच्चों के साथ ठीक ढंग से व्यवहार नहीं होता या अन्य जो भी समस्याएं हैं, इन सभी को हम देख रहे हैं और जल्द ही इसकी रिपोर्ट आएगी। साथ ही हमने बच्चों के लिए नेशनल चिल्ड्रन फंड में डेढ़ करोड़ रुपये जमा किए हैं। अनाथ आश्रमों या बालगृहों में रहकर पढ़ने वाले बच्चे अगर 70 प्रतिशत नंबर लाते हैं तो उन बच्चों को इस मद से छात्रवृत्ति दी जाएगी।
महिलाओं पर अत्याचार और उनके खिलाफ अपराध की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। आए दिन ऐसी दुखद खबरें देखने में आती हैं। ये सब कैसे थमेगा?
अगर किसी महिला से उसका पति मारपीट करता है, उसका कोई पीछा करता है, छेड़छाड़ करता है, बलात्कार की धमकी देता है, या ऐसा करता है, ऐसी पीडि़त महिलाएं पुलिस और न्यायालय जाने से डरती हैं क्योंकि उनके साथ बहुत सारी दिक्कतें जुड़ी होती हैं। इसे देखते हुए हमने 'वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर' बनाया है, सखी नाम से। इस साल के अंत तक देश के अलग-अलग स्थानों पर इसके 150 केन्द्र खुल जाएंगे। कुल लक्ष्य 650 केन्द्र बनाने का है। इसके तहत अगर कोई पीडि़त महिला 181 पर फोन करेगी, हम उसकी फौरन मदद करेंगे। वह चाहे तो हमारे साथ कुछ दिन तक रह भी सकती है। इस केन्द्र में नर्स, डॉक्टर, पुलिस, वकील और मनोवैज्ञानिक उपलब्ध रहेंगे। सबसे पहले रायपुर में इस केन्द्र की शुरुआत हुई है, जिसमें रोजाना करीब 200 पीडि़त महिलाएं आती हैं।
पुलिसबल में महिलाओं की बेहद कमी है, इस कमी को कैसे
दूर किया जाएगा?
मैंने पुलिस में 33 फीसद महिलाओं की भर्ती का उद्देश्य हाथ में लिया था जो 7 राज्यों और सभी केन्द्र शासित क्षेत्रों में शुरू भी हो गया है।
देश की तीन बेटियां फाइटर पायलट बनी हैं। क्या वे बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की रोल मॉडल हो सकती हैं?
मैं तो बहुत सारी ऐसी बेटियों को रोल मॉडल के रूप में देखना चाहती हूं। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के तहत हमने 100 जगह चुनीं जहां लड़कियों की संख्या बहुत ही कम थी। योजना की शुरुआत में हरियाणा में लड़कियों का अनुपात1000/830 था। आज रोहतक को छोड़कर सभी जिलों का अनुपात बढ़कर 907 से ऊपर आ गया है। पूरे हरियाणा में इस योजना से करिश्मा हुआ है। ऐसे ही 58 और स्थानों पर करिश्मा हुआ है।
वृद्ध और गरीब महिलाओं को किसी का आसरा न देखना पड़े, इसके लिए आपकी क्या योजना है?
हमने 60 वर्ष से ऊपर की महिलाओं के लिए बसों में मुफ्त सफर की योजना बनाई है जिससे उन्हें किराए के लिए किसी का मुंह न ताकना पड़े।
बाल मजदूरी कैसे रुकेगी?
कितने ही बच्चे हमें फोन करते हैं मदद के लिए, हम उनकी हर तरह से सहायता करते हैं। उनकी उचित व्यवस्था करते हैं।
विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों की उन महिलाओं के लिए क्या योजना है जो घर वालों की अनदेखी का शिकार होती हैं?
मैंने देखा है कि कई बार बीमार महिलाओं को अधमरी अवस्था में अस्पताल ले जाया जाता है। उसकी बीमारी को गंभीरता से नहीं लिया जाता। इसलिए हम चाहते हैं कि हर महिला को एक हेल्थ कार्ड मिले, उसमें उसकी साल में 6 से 7 चिकित्सकीय जांचें अनिवार्य रूप से दर्ज हों। अगर यह कार्ड नहीं होगा तो उसके आदमी को न मनरेगा में काम मिलेगा, न नौकरी मिलेगी, न ही बहुत सी सरकारी सुविधाओं का लाभ मिलेगा।
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