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'स्वयंसेवकों ने विकसित किए 200 आदर्श ग्राम'

by
May 2, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 May 2016 14:26:41

 

 

पिछले दो दशक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने देशभर में युगानुकूल ग्रामीण पुनर्रचना के सराहनीय प्रयोग किए हैं जिनका असर एक हजार से अधिक गांवों में साफ देखा जा सकता है। स्वयंसेवकों द्वारा किए जा रहे इस काम को समझने के लिए ऑर्गेनाइजर के वरिष्ठ संवाददाता प्रमोद कुमार ने संघ के अखिल भारतीय ग्राम विकास प्रमुख डॉ. दिनेश से बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश:

केन्द्र सरकार ने 'ग्रामोदय से भारत उदय' अभियान शुरू किया है। इसे आप किस रूप में देखते हैं?

ग्राम विकास के लिए ईमानदारी से जो भी प्रयास होता है, उसका स्वागत किया जाना चाहिए। ग्राम विकास के विषय पर जो लोग अथवा संगठन लंबे समय से काम कर रहे हैं उन्हें नीति निर्माण में शामिल किया जाता है तो परिणाम और भी बेहतर हो सकते हंै।

देश में ऐसे कितने गांव हैं, जहां स्वयंसेवकों द्वारा किए जा रहे विकास कार्य का असर साफ दिखायी देता है?

करीब 200 गांव हैं, जहां विकास का अच्छा काम हुआ है। उनका आसपास के काफी ग्रामों पर असर हुआ है।

ग्राम विकास के संदर्भ में संघ की सोच क्या है?

हमारी सोच है युगानुकूल ग्रामीण पुनर्रचना। प्रकृति संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण। गांव से जुड़ीं मूलभूत चीजों का विकास ही गांव का विकास है। कृषि यानी भूमि की उर्वरा शक्ति, जल यानी सिंचाई एवं पेजयल, जैव संपदा, वनीकरण, ऊर्जा जिसमें सौर ऊर्जा, जल ऊर्जा, गोबर गैस शामिल हैं, जनसंपदा, रोजगार, स्वास्थ्य आदि ग्राम विकास की मूलभूत बातें हैं। ये चीजें नगरीय और ग्रामीण सभी क्षेत्रों के लिए समान रूप से जरूरी हैं।

विकास से अभिप्राय गांव को शहर बनाना है या गांव में शहर जैसी सुविधाएं प्रदान करना है?

बदलते वक्त के अनुसार जो जरूरी है, वह होना ही चाहिए। इसीलिए हम युगानुकूल ग्रामीण पुनर्रचना शब्द का प्रयोग करते हैं। ग्राम सड़क योजना के माध्यम से गांवों में बहुत बड़ा काम हुआ है। स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी मूलभूत चीजें तो चाहिए, लेकिन यह विकास गांव की आत्मा के अनुरूप होना चाहिए। हम प्रकृतिपूरक विकास चाहते हैं। इसमें गांव और शहरों में कोई अंतर नहीं है। कोयम्बटूर के माता अमृतानन्दमयी मठ में हुए वृक्षारोपण के कारण शहर की तुलना में मठ का तापमान प्राय: तीन डिग्री कम रहता है। वहां आने वाले सभी छात्रों के लिए वृक्षारोपण करना अनिवार्य है। यह शिक्षा के साथ पर्यावरण संरक्षण को जोड़ने का ही असर है।

यदि स्वयंसेवकों द्वारा विकसित शीर्ष 10 गांव की बात करें तो आप किन गांवों का नाम लेंगे?

असम के नलबाड़ी जिले में स्थित सांदाकुर्ची गांव शून्य लागत कृषि के कारण आसपास के दस गांवों का केन्द्र बना है। बडे़ पंचगव्य उत्पादों का निर्माण भी वहां पैमाने पर होता है। मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के मोहद गांव का असर आसपास के पांच गांवों पर है। वहां एक बडे़ ग्राम पुंज में जैविक कृषि, जलसंरक्षण, हर घर में शौचालय और स्वच्छता के सफल प्रयोग हुए हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में देवबंद के पास मिरगपुर गांव है, जहां वषार्ें से लोग किसी भी प्रकार का नशा नहीं करते। गोपालन और व्यसनमुक्ति को लेकर वहां देखने लायक काम है। उत्तराखंड में उत्तरकाशी जिले के मनेरी विकास खंड के 60 गांवों में सशक्त काम हुआ है। गुजरात में सूरत के पास देवगढ़ नामक वनवासी गांव है। वहां स्वावलम्बन का काम आसपास के 25 गांवों में है। राजस्थान के झालावाड़ जिले में मानपुरा गांव है, जहां जैविक कृषि का उल्लेखनीय काम हुआ है। आसपास के 20 गांवों पर इसका असर है। वहां की पैदावार पूरे देश में जाती है। बिहार के हाजीपुर जिले में मंडुवा गांव है जहां युवाओं को दिए गए प्रशिक्षण के कारण आसपास के 10 गांवों से 50 नौजवान सेना तथा रेलवे में भर्ती हुए हैं। पश्चिम बंगाल के तारकेश्वर जिले में ताजपुर गांव है, जहां शिक्षा प्रसार का काम हुआ है। दक्षिण भारत में ऐसे विकसित ग्रामों की श्रृंखला बहुत लंबी है। कर्नाटक में जैविक कृषि का बहुत विशाल काम हुआ है। तीर्थहल्ली और इदकिडु में अच्छा काम है। महाराष्ट्र के जालना जिले में दहीग्वाहण नामक गांव है, जहां गोबर गैस ऊर्जा और जल संरक्षण का प्रेरक प्रयोग हुआ है। आंध्र के वारंगल जिले में गंगदेवपल्ली नामक गांव है जहां एक ही जलस्रोत से सभी को पेयजल उपलब्ध कराने व जल के दुरुपयोग को रोकने का सराहनीय प्रयोग हुआ है। ओडिशा और तेलंगाना की सीमा पर बसे श्रीकाकुलम जिले में कडमू गांव है। वहां एक गांव के कारण दस गांवों में बाल संस्कार का बहुत अच्छा प्रयोग हुआ है।

आपका कहना है कि करीब 200 गांवों में दर्शनीय काम हुआ है। कुछ ऐसे भी गांव होंगे, जहां अच्छे प्रयास शुरू हुए हैं?

ऐसे करीब 700 गांव हैं। इन्हें हम 'उदय ग्राम' कहते हैं। जिन गांवों में शुरू हुए प्रयोगों को आसपास के गांवों में अपनाया गया है, उन्हें हम 'प्रभात ग्राम' कहते हैं। जहां ग्राम विकास को लेकर चिंतन शुरू हो गया है उन्हें हम 'किरण ग्राम' कहते हैं।

 ग्राम विकास के काम को गति प्रदान करने के लिए क्या कोई विशेष योजना बनी है?

हर विकास खंड में एक गांव और प्रत्येक जिले में कम से कम एक प्रभात ग्राम खड़ा करने के प्रयास हो रहे हैं। संस्थागत प्रयासों में दीनदयाल धाम मथुरा, दीनदयाल शोध संस्थान, ग्राम भारती आन्ध्र प्रदेश के द्वारा अच्छे प्रयास हुए हैं। गायत्री परिवार, आर्य समाज, स्वाध्याय परिवार ने भी काफी काम किया है। इसके अलावा स्वत: स्फूर्त कामों की गति भी बढ़ी है।

 

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