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25 मार्च, 2008 को निखिल को मार दिया गया। वह केवल 22 वर्ष का था। वह ट्रक पर हेल्पर था और अपने परिवार में एकमात्र कमाने वाला था। परिवार में उसके पिता, मां और एक बहन है। उसके पिता अनिल कुमार बताते हैं, ''निखिल को पार्टी नेतृत्व की ओर से कई बार जान से मारने की धमकी मिल चुकी थी। माकपा के नेताओं ने मुझे धमकाया था कि वे उनके बेटे के हाथ और पैर काट देंगे। उस दिन निखिल जब वापस लौट रहा था तो माकपा के हथियारबंद गुंडों ने रास्ते में उसका पीछा किया और उसके पैर और सिर को काट दिया।'' आंसुओं में डुबी आंखों व भर्राए गले से निखिल के पिता ने दीवार की तरफ टंगी निखिल की तस्वीर की ओर इशारा किया और कहा, ''मेरे एक ही बेटा था, अब मेरी एक बेटी रह गई है। मैं वामपंथी था, लेकिन उन्होंने इसका भी लिहाज नहीं किया। जब भी वह हमें धमकाने आए तो मैं उनके सामने गिड़गिड़ाया, मैंने उनसे कहा कि मेरा पूरा परिवार वामपंथी है तो वे मेरे बेटे के पीछे क्यों पड़े हैं। वह अभी बहुत छोटा है।'' बात करते-करते वह अचानक आवेश में आ जाते हैं और गुस्से में कहते हैं, ''जब उन्होंने मेरे बेटे को मार डाला तो मेरे भाइयों ने, मेरे परिवार ने माकपा को छोड़ दिया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए।''
निखिल के बारे में बात करते हुए उसकी मां श्यामला गर्व से कहती हैं, ''वह बारहवीं करने के बाद इलेक्ट्रॉनिक्स का सर्टिफाइड कोर्स कर रहा था। बहुत अच्छा क्रिकेट खिलाड़ी था। कितनी ही ट्रॉफियां जीती थीं।'' वे बताती हैं, '' निखिल ने घर बनाने की पहल भी की थी। उसकी जिद थी कि नया घर बनाया जाना चाहिए। वह अपनी छोटी बहन के भविष्य को लेकर बहुत चिंतित रहता था। वह बहुत जिंदादिल था। वामपंथी परिवार होने के कारण निखिल का शाखा में जाने से मन परिवर्तन हुआ था। उसके अधिकांश दोस्त स्वयंसेवक थे। जब स्थानीय नेताओं को निखिल की स्वयंसेवकों से दोस्ती का पता चला तो उन्होंने हमारे परिवार को धमकाया। उसके बाद उन्होंने हमें सामाजिक तौर पर अलग-थलग करने की कोशिश की, लेकिन निखिल ने इसकी परवाह नहीं की और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य को नहीं छोड़ा।''
निखिल की हत्या के मामले में पुलिस ने आठ माकपा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है। न्यायालय को अभी इस मामले पर गौर करना हैं क्योंकि 2006 के अन्य मामले ही अभी तक लंबित पड़े हुए हैं। निखिल के शोक संतप्त माता-पिता न्याय का इंतजार कर रहे हैं।
अनिल कहते हैं, ''यह किन्हीं बाहरी लोगों का काम नहीं है इसके जिम्मेदार आसपास के लोग ही हैं। वह जानते थे कि निखिल मेरा बेटा था, वह मेरा एक ही बेटा था, जो बुढ़ापे में मेरा सहारा बनता। उन्होंने उसे मुझसे छीन लिया, उसे मार दिया। मैं उन्हें छोड़ूंगा नहीं। मैं उनसे अंतिम सांस तक लड़ूंगा।'' मां कहती हैं, ''उन्होंने एक को मारा लेकिन इस गांव से सैकड़ों उठ खड़े हुए हैं।''
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