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खुशी के मौकों पर अपने यहां पटाखे फोड़े जाते हैं लेकिन यह धमक तो कुछ ज्यादा ही तेज निकली! इटली की अदालत से भारत को ठगने वाले दलालों की खबरें, राज्यसभा में कुछ नए अच्छे चेहरों की दस्तक देश की मुख्य विपक्षी पार्टी के घर को धमाके की तरह थर्रा रही है।
जाहिर है, खुश होने के बावजूद लोग विस्फोटक खुलासों से आशंका और कयासों में घिर गए। ये पंक्तियां लिखते समय तक फेसबुक के अनगिनत पोस्ट और एक ट्विटर ट्रेंड इन आशंकाओं की मुनादी कर रहा है। हजारों लोगों को महसूस हो रहा है कि आफत में घिरा एक राजनीतिक दल अपने आकाओं पर से ध्यान हटाने के लिए देशभर में दंगे करा सकता है।
लोग इसके लिए तर्क दे रहे हैं, दंगोें के इतिहास से उस दल का रिश्ता बता रहे हैं।
दाग और दादागीरी का उस दल से पुराना रिश्ता है। इटली के माफिया-सी ठसक़.़ 2013 की दूसरी तिमाही में भ्रष्टाचारी मंत्रियों को कैबिनेट से बाहर करने की बजाय अभयदान की वह मुद्रा़.़ देश की सबसे बड़ी पंचायत में भी 'दादागीरी यूं ही चलेगी' की गुर्राहट का इतिहास।
सोशल मीडिया की ताजा हलचलों का तकाजा है कि आने वाले दिनों में समाज द्वारा सामूहिक और नागरिकों के स्तर पर अतिरिक्त व्यक्तिगत सावधानी और समझदारी बरती जाए।
किन्तु इसे सिर्फ आशंकित लोगों का 'डिजिटल डर' मानना गलत है। यह दुनिया के सबसे युवा देश की त्वरित, सटीक प्रतिक्रिया है। लोग अब झूठ-सच का फर्क समझते हैं। घोटालेबाजों के जहरीले षड्यंत्र पहले से पहले पकड़ना और चिनगारी को सुलगने से पहले बुझा देना जानते हैं। वक्त बदल चुका है। आज भारी-भरकम सौदों में संदिग्ध लेन-देन के लिए दलालों द्वारा दर्ज लाभान्वितों के कूट नाम से ज्यादा जटिल बच्चों के स्मार्टफोन के पासवर्ड और पैटर्न हैं।
वैसे, इतालवी में 'सिग्नोरा' हिंदी के 'श्रीमती' सरीखा संबोधन है। लेकिन किसी सिग्नोरा को घेरने घोटाले का भूत भी इटली से भारत चला आएगा, किसने सोचा था? देश की सबसे बुजुर्ग पार्टी के लोगों का आग्रह है कि इसे किसी खास नाम से जोड़ने या समझने की भूल न करें। लेकिन भूल तो इस हल्ले की धूल उठने से पहले ही कोई कर चुका है! किसी ने इस देश को दगा दिया है। कौन है?
घूस देने वाले जेल में हैं। घूस लेने वाले कौन हैं? अदालत, सरकार जो जब करे तब करे, जनता के सामने सिग्नोरा की यह पहेली उसी पार्टी को सुलझानी है जिसके माथे इटली की आफत पड़ी है।
ठहरिऐ, यह मुद्दा सिर्फ राजनीतिक रणनीतियों और न्यायपालिका की तारीखों से नहीं बिंध सकता। यह गंभीर बात है कि सिग्नोरा के साथ भारतीय राजनीति के उस पुरखे का उपनाम भी विदेशी अदालत में उछला जिसके लिए भारतीय समाज की भावनाओं को एक परिवार भुनाता रहा।
सात दशक के लोकतांत्रिक सफर में कुछ राजनीतिक दलों ने यह साबित कर दिया कि उनके लिए 'गांधी' सिर्फ वोट है। लेकिन इटली की अदालत से पता चला कि बात इससे भी घिनौनी है- सिग्नोरा के लिए गांधी सिर्फ नोट है। क्या गांधी वही थे जो 'सिग्नोरा गांधी' संबोधन से लिथड़ी करतूतों में नजर आते हैं?
जिस सरकार को भारत में लोग 'रिमोट कंट्रोल' वाली सरकार कहते थे, इटली में दलाली और दलालों के खुलते चिट्ठों में 'सिग्नोरा' को उस सरकार द्वारा किए जा रहे हेलिकॉप्टर सौदे में 'मुख्य कारक' बताया गया है। रिमोट कंट्रोल से और कहां क्या-क्या चल रहा था?
उस वक्त सत्ता की कमान थामने वाले हाथ आज किसका चेहरा ढकना चाहते हैं? यह सिग्नोरा है कौन? क्या वह पार्टी से बड़ी है? क्या वह गांधी से भी बड़ी है?
एक अजब-सा झीना परदा पड़ा है जिसके पार जनता सब देख रही है। तुम पाले रहो भ्रम लेकिन हकीकत यह है कि बात खुल चुकी है। इसलिए, सिग्नोरा तुम्हें सामने आना होगा, गांधी से अपना रिश्ता बताना ही होगा।
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