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''हमें चुप करा दिया गया, हमें बोलने की मनाही है''

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May 2, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 May 2016 12:29:16

तलास्सेरी के मुझाप्पिलांगड़़ में रहता था सूरज। सूरज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्यकर्ता था। पेशे से रिक्शा चालक सूरज शुरू के वर्षों में माकपा के काडर से जुड़ा था लेकिन बाद में माकपा की गलत नीतियों और उसमें व्याप्त बुराइयों से उसका मोह भंग हो गया।
2004 में उसकी हत्या का प्रयास किया गया। हमलावर उसके ऑटो में बैठे और सुदूर गांवों की यात्रा का बहाना बनाया। अचानक बीच में हमलावरों ने उस पर जानलेवा हमला कर दिया। लेकिन वह बच गया। उसके बाद अगले साल फिर हमला किया गया लेकिन इस बार किस्मत उसके साथ नहीं थी। उसकी मां कहती हैं,''हम उसके लिए दुलहन की तलाश में थे। 2004 में उसकी शादी का प्रस्ताव आया और सगाई लगभग तय थी, लेकिन उसके तुरंत बाद फिर से हमला हुआ। इसलिए हमने इस बात को आगे नहीं बढ़ाया।''
वह माकपा कार्यकर्ता के रूप में पार्टी के साथ बिताये गए अपने कटु अनुभवों को कई सार्वजनिक मंचों पर बयान कर चुके थे। उनके भाई सुधीर उसे एक साहसी व्यक्तित्व के रूप में याद करते हुए कहते हैं,''वे बहुत साहसी थे और उनके जीवन में भय का कोई स्थान नहीं था। शायद इसी कारण उन्हें अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा। उन्होंने माकपा की धमकियों के आगे कभी समर्पण नहीं किया।''
उनकी मां सती अपने बेटे को याद करते हुए कहती हैं,''मेरे बेटे में बहुत जीवटता थी। पहले हमले के प्रयास के बाद हम कई दिनों तक पुलिस के संरक्षण में रहे। मेरे बेटे और पति को भूमिगत होने के लिए विवश किया गया। मैं यहां अकेली रही। जब मैं उन दिनों को याद करती हूं तो मेरा रोम-रोम कांप  उठता है।''
2003-04 में आयोजित शोभा यात्रा को सूरज के भाई और दोस्त आज भी याद करते हैं। इसी घटना से वे माकपा की हिटलिस्ट में आया था।
उसके भाई कहते हैं, ''7 अगस्त, 2005 को सुबह सूरज हमेशा की तरह दूध लेने गए थे। हमारे घर के पास के ही किसी व्यक्ति ने माकपा के गिरोह को सूचना दे दी थी। उन्होंने उसे चारों ओर से घेर लिया और उस पर घात लगाकर हमला कर दिया। उसे बचाया नहीं जा सका।'' सूरज पर हमला करने से पहले इस गिरोह ने बम विस्फोट करके लोगों में दहशत पैदा करने के साथ भीड़ को तितर-बितर कर दिया था। पार्टी के ये खूनी हमलावर तलासेरी के पास के ही गांव कुट्टीमंगुनू  से बुलाये गए थे। यह माकपाइयों का स्थायी अपराधी समूह था जिसके नेता थे सहदेवन और मथाई सुन्नी।
सूरज की मां कहती हैं, ''यह पार्टी गांव है, यहां हम लोगों को बोलने की मनाही है।''
कम्युनिस्टों की घृणा सूरज की मौत के बाद भी खत्म नहीं हुई है। वे उसकी यादों को मिटाने की कोशिश करते रहते हैं।   

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