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सुरेश कुमार संघ के सक्रिय कार्यकर्ता नहीं थे। वे संघ-भाजपा के सहयोगी संगठन बीएमएस के सदस्य थे। मार्क्सवादी हत्यारों ने उन्हें केवल इसलिए मार डाला क्योंकि वे माकपा के एक मंच से नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह की तारीफ कर रहे थे। वह एक पुराने वामपंथी पार्टी कार्यकर्ता नानू के सुपुत्र थे। नानू के अनुसार, ''मैं 1957 में कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य था। मेरा परिवार यानी मुंदोदी परिवार कम्युनिस्ट पार्टी का आधार था।''
कुठुपरंब का इरुवेट्टी गांव पार्टी का गढ़ है। इसलिए सुरेश कभी एक संघ कार्यकर्ता के तौर पर वहां नहीं आए थे, हालांकि वह संघ के पक्षधर थे। वह अपने परिवार के लिए शांतिपूर्ण जीवन चाहते थे। उनके पिता बताते हैं, 'मेरा बेटा निर्धन था। सब लोग उसके चरित्र से भलीभांति परिचित थे। वह टूरिस्ट टैक्सी चलाता था और अपने कार्य के अतिरिक्त उसकी कोई अन्य दुनिया नहीं थी।' सुरेश अपने पीछे दो बच्चे और पत्नी छोड़ गए हैं। नानू के अनुसार, ''जब एकेजी, पीआर नाम्बियार और सीएच कनरन कम्युनिस्ट पार्टी में शीर्ष पर होते थे, उन दिनों मैं पार्टी का संदेशवाहक हुआ करता था। उस दौरान मैं लगातार उनके संपर्क में रहता था। कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन के बाद, मेरा पार्टी पर से विश्वास हट गया और मैंने अपनी प्राथमिक सदस्यता छोड़ दी।''
सुरेश की हत्या घर लौटते समय हुई थी। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार हत्यारे पांच थे। नानू का विश्वास है कि यह काम वहां के स्थानीय गुंडों का था जिन्हें माकपा नेता पालते-पोसते हैं। सुरेश की मां नलिनी अपने आंसू पोंछते हुए कहती हैं, ''हत्या के पीछे सोची-समझी योजना थी।''
नानू बताते हैं, ''घटना से कुछ महीने पहले भाजपा-संघ कार्यकर्ताओं ने नरेंद्र मोदी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह का उत्सव मनाया था। मेरा बेटा भी उस आयोजन में शामिल हुआ था। उसने वहां पटाखे छोड़े और नारे लगाए जो माकपा के स्थानीय नेताओं को नागवार गुजरे थे। मेरा बेटा तभी से उनके निशाने पर था।''
हत्या के पांचों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। कुठुपरंब सर्किल निरीक्षक मामले की छानबीन कर रहे हैं। नानू के अनुसार वह उनसे इंसाफ के लिए कई बार मिले। पहली बार जब वह उनसे मिले तो निरीक्षक ने कहा कि घटना से जुड़ा कोई सबूत नहीं है और नानू से ही सबूत लाने को कहा। बीएमएस के एक स्थानीय कार्यकर्ता के अनुसार पुलिस विभाग में भीतर से ही जांच में रुकावट डालने का काम किया गया। नानू बताते हैं, ''हत्यारे माकपा के पाले-पोसे गुंडे थे। कन्नूर में पार्टी पूरी तरह इन गुंडों पर आश्रित है। हालांकि अब चुनावी बुखार जोरों पर है, लेकिन माकपा का कोई कार्यकर्ता हमारी दहलीज पर नहीं आया। सुरेश की मां बार-बार यही शब्द दोहराती हैं- ''मेरे बेटे ने कभी किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था। उसे क्यों मारा?''
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