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इशरत की असलियत पर झूठ और राजनीतिक फरेब का पर्दा डालकर यूपीए सरकार में गृह मंत्री रहे पी. चिदंबरम की आतंकी गुट लश्करे तैयबा को शह देने की हरकत अब बेपर्दा होने लगी है। 2004 में गुजरात में लश्कर की कथित आतंकी इशरत और उसके तीन साथियों को गुजरात पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था। लेकिन उसके बहाने केन्द्र की यूपीए-1 और यूपीए-2 सरकारों ने गुजरात में उस वक्त के मुख्यमंत्री (अब प्रधानमंत्री) नरेन्द्र मोदी पर कैसे-कैसे आरोप लगाए थे, उसे कोई भूला नही होगा। चिदंबरम गृह मंत्री थे। गृह मंत्रालय को पुख्ता सूचनाएं मिली थीं कि गुजरात में लश्कर के आतंकी वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं को खत्म करने का जाल बुन रहे थे। निशाने पर प्रमुख रूप से भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी और नरेन्द्र मोदी थे।
ताजा खुलासे चौंकाने वाले हैं।
चौंकाने वाली पहली बात तो यही थी कि यूपीए सरकार के तहत उसकी कठपुतली की तरह काम कर रही सीबीआई ने इस घटना पर दो आरोप पत्र जारी किए। पहला जुलाई 2013 में दायर किया। सात पुलिस अधिकारियों पर आरोप लगाए । सीबीआई का आरोप था कि मुठभेड़ फर्जी थी और यह गुजरात पुलिस और आईबी का संयुक्त अभियान था। दूसरा आरोप पत्र दायर हुआ फरवरी 2014 को। इसमें सीबीआई ने आईबी के विशेष निदेशक राजेंद्र कुमार के खिलाफ हत्या, आपराधिक षड्यंत्र, हत्या हेतु अपहरण, अनुचित कारागार एवं शस्त्र अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था। कांग्रेस सरकार द्वारा दायर दूसरे हलफनामे में इशरत जहां, प्रणेश पिल्लै उर्फ शेख, अमजद अली राणा और जीशान जौहर के लश्करे-ए-तैयबा के साथ संबंधों की जानकारी को हटाया गया था। आर.वी.एस. मणि का आरोप है कि दूसरा हलफनामा दाखिल करने का फैसला खुद चिदंबरम का था। पूर्व गृह सचिव जी़ के़ पिल्लै, पूर्व अवर सचिव (गृह) आरवीएस मणि एवं पूर्व आईबी विशेष निदेशक राजेंद्र कुमार ने साफ शब्दों में साजिश रची जाने की बात कही है। बताया है कि कैसे यूपीए सरकार ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि और प्रतिष्ठा को नष्ट करने के लिए तमाम तरह के गैरकानूनी तरीके अपनाए थे। क्यों? कांग्रेस ने ऐसा मोदी की लोकप्रियता को रोकने और उन्हें 2014 के आम चुनाव लड़ने से रोकने की मंशा से किया था।
चिदंबरम किसके कहने पर ऐसा कर रहे थे, यह समझने के लिए दिमाग पर ज्यादा बल नहीं डालने पडें़गे। चिदंबरम से ऊपर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे, जिनकी उस सरकार पर कितनी पकड़ थी, यह सब जानते हैं। उन्होंने चिदंबरम को कुछ ऐसा-वैसा करने को कहा होगा, इसमें सौ फीसद संदेह है। जाहिर है, 10 जनपथ के हाथ थी कमान। साफ है कि चिदंबरम के साथ सोनिया गांधी और राहुल गांधी की मिलीभगत पर भाजपा का संदेह बेमतलब नहीं है। मोदी के विरुद्ध जाल बुना ही इसलिए गया था क्योंकि भ्रष्टाचार विरोधी छवि वाले और हिन्दुत्व के सर्वधर्म समभाव में यकीन करने वाले मोदी के केन्द्र में प्रधानमंत्री पद पर आने के सपने कांग्रेस कुनबे की नींद हराम किए हुए थे। उस वक्त के सोनिया गांधी के बयान ख्ंागालें तो बात समझ आ जाएगी। कठपुतली की हैसियत से काम कर रहे ये वही चिदंबरम थे जिन्होंने 'भगवा आतंकवाद' जैसे विशेषणों को सही ठहराने की कोशिश की थी समझौता एक्सप्रेस विस्फोट में कर्नल पुरोहित को आरोपी बनाने के बाद। लेकिन चिदंबरम और सोनिया गांधी की उस मामले में भी बुरी तरह किरकिरी हुई है।
19 अप्रैल को 2007 के समझौता मामले में कर्नल पुरोहित को एनआईए ने क्लीन चिट दे दी क्योंकि 'उनके खिलाफ इस मामले में लिप्त होने का कोई सबूत ही नहीं मिला'। और तो और, जिस चश्मदीद कैप्टन नितिन दत्तात्रेय जोशी की गवाही पर उन पर आरोप लगाया गया था, उन्होंने भी महाराष्ट्र की तत्कालीन कांग्रेस सराकर की साजिश की धज्जियां उड़ाते हुए साफ कहा कि उन पर महाराष्ट्र एटीएस द्वारा दबाव डाला गया था कर्नल पुरोहित को इस मामले में फंसाने का। उनको धमकाकर कहलवाया गया था कि कर्नल पुरोहित के घर से आरडीएक्स बरामद हुआ, उन्होंने अवैध हथियार दिए। महाराष्ट्र की एटीएस ने कहा था कि कर्नल पुरोहित के घर से 60 किलो आरडीएक्स बरामद किया गया था। बस इसी के आधार पर सेकुलर मीडिया के मंच से हिन्दुओं को लांछित करने के लिए 'भगवा आतंकवाद' जैसे शब्द गढ़े गए ताकि पार्टी आलाकमान की शाबासी मिले।
इशरत और समझौता एक्सप्रेस, इन दोनों मामलों में सामने आए नए तथ्यों ने एक बार फिर कांग्रेस के उस चेेहरे को सामने किया है जो नेहरू के जमाने से चली आ रही तुष्टीकरण और सेकुलर के नाम पर हिन्दू अपमान की राजनीति का पहरुआ बना रहा है। ऐसे में कांग्रेस का मुंह छिपाना लाजिमी है। जवाब उसके पास है नहीं, क्योंकि सच उसके पास है नहीं, क्योंकि नैतिकता और राजनीतिक शुचिता उसके पास है ही नहीं। चेहरे के दाग छिपाए नहीं छिप सकते।
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