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हमलों के पीछे विस्तार का खेल
इसके पीछे एक खुला खेल है जिसके तहत अवैध तरीके से बड़ी संख्या में आए बंगलादेशी शरणार्थियों को हजारीबाग और झारखंड के अन्य क्षेत्रों में बसाने की योजना है
आभा भारती
भारत के स्वयंभू उदारवादियों और सेकुलर बुद्धिजीवियों के लिए दंगे हमेशा मनपसंद विषय रहे हैं और प्रदर्शन लोकतांत्रिक अधिकार, जबकि इन दंगों के भुक्तभोगी हिन्दुओं के प्रति उनका रवैया ढुलमुल ही रहता है। हिंदू न तो असहिष्णुता पर चिल्लाते हैं, न ही अपना सम्मान लौटाते हैं और न ही ये बता पाते हैं कि उनके प्रति बढ़ रही असहिष्णुता से उनकी पत्नी किस प्रकार असुरक्षित महसूस कर रही है। और इसी प्रकार सिलेब्रिटी न्यूज एंकर भी सुविधाजनक पत्रकारिता के तहत अपनी न्यूज स्क्रीन काली नहीं करते।'
इन गिरगिटिया बौद्धिकों की बौद्धिकता झारखंड के हजारीबाग के संदर्भ में फिर ताजा हो गई जहां पिछले 25 वर्षों से स्थानीय अल्पसंख्यक समुदाय के कट्टरपंथी तत्व हिन्दुओं के प्रति असहिष्णु बनकर रामनवमी के त्योहार और शोभायात्रा को दंगों, हत्याओं और कर्फ्यू में बदल देते हैं।
इस वर्ष भी कुछ अलग नहीं हुआ। हजारीबाग में अल्पसंख्यक समुदाय के उपद्रवियों की भीड़ द्वारा रामनवमी की शोभायात्रा पर हमला किया गया। इस हिंसक हमले में एक व्यक्ति की मौत हो गई और 500 घायल हो गए।
हजारीबाग के स्थानीय निवासी शिवेंदु कुमार कहते हैं, ''हजारीबाग सालभर एक शांत कस्बा रहता है लेकिन रामनवमी के समय असामाजिक तत्व इसे दो समुदायों के संघर्ष का विषय बना देते हैं। वे शोभायात्रा में शामिल लोगों पर पत्थर फेंकते हैं और एक प्रकार से अविश्वास और भय का माहौल बना देते हैं। बेशक सभी पर ऐसा आरोप नहीं लगाया जा सकता। ऐसा लगता है कि मुस्लिम समाज में जो सेकुलर और उदारवादी सोच वाले लोग हैं उनका इनके ऊपर नियंत्रण नहीं है। लोग उन्मादियों के हाथ का खिलौना बन रहे हैं।''
15 अप्रैल को हजारीबाग के लेपो रोड नामक प्रमुख क्षेत्र के तेवली क्लब में रामनवमी का त्योहार मनाया जा रहा था, उस पर उपद्रवियों ने पथराव शुरू कर दिया जो बाद में एक बड़े आपसी संघर्ष में बदल गया।
इस झड़प में लगभग 18 दुकानें, सात मोटरसाइकिलें, पांच चौपाया वाहन और कंक्रीट मशीन के साथ एक जनरेटर को नुक्सान पहुंचा। प्रशासन ने इसपर धारा 144 लगाई जो बाद में कर्फ्यू में बदल गई। पूरे कस्बे में अर्द्धसैनिक बल तैनात कर दिए गए।
जिला प्रशासन और पुलिस अधिकारी यह जानकर हैरान थे कि उन्मादी दंगा भड़काने की पूरी तैयारी के साथ आए थे। पुलिस सूत्रों ने बताया कि विस्फोट हबीब नगर नामक अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र में हुआ जहां ये लोग बम तैयार कर रहे थे। यह बम दुर्घटनावश फटा जिसमें पांच लोग मारे गए। पुलिस सूत्रों के अनुसार लगभग सात लोग बम तैयार करने में जुटे थे जिनमें से पांच की मौत विस्फोट स्थल पर ही हो गई। उनके पार्थिव शरीर को गोपनीय तरीके से रख दिया गया ताकि लोग इस घटना को सांप्रदायिक रंग न दे सकें। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि, ''हमने मोहम्मद इफ्तिखार और मोहम्मद इसान नामक दो लोगों को घायल अवस्था में गिरफ्तार किया। इसाान को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है। ये दोनों उन सात लोगों में शामिल हैं जो बम लगाने की योजना में शामिल थे।'' उन्होंने ही यह खुलासा किया कि इस विस्फोट में पांच लोग मारे गए लेकिन जबतक पुलिस को उनके शव नहीं मिल जाते, आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। पुलिस ने घटनास्थल से दस पेट्रोल बम बरामद किये हैं। घायलों का घरों पर बिना पुलिस हस्तक्षेप के इलाज चल रहा है।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि मोहम्मद इकराम विस्फोट के दौरान ही मर गया था। पुलिस इकराम के परिवार की सहायता से उसका मृत शरीर पहचानने की कोशिश में है जिसे पोस्टमार्टम और पहचान के लिए ले लिया गया है। पुलिस ने उनके मकान से अमोनियम नाइट्रेट, पोटेशियम कोलोराइड और अन्य केमिकल बरामद किए जो बम बनाने के लिए प्रयोग किए जाने थे। पुलिस ने अब तक दर्जन भर संदेहास्पद लोगों के खिलाफ जो सांप्रदायिक हिंसा फैलाने की योजना में थे, पांच प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज की हैं।
हबीबनगर का बम विस्फोट और रामनवमी शोभायात्रा पर किया गया हमला ऐसा गंदा खेल है जिसपर पुलिस अधिकारी भी कुछ कहने से बच रहे हैं। इसका मतलब भविष्य में फिर सांप्रदायिक तनाव बढ़ना ही नहीं है बल्कि हजारीबाग में जो बंगलादेशी घुसपैठिए आ गए हैं, वे भी इस षड्यंत्र का हिस्सा हैं। एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी का कहना है कि इसके पीछे एक खुला खेल है जिसके तहत अवैध तरीके से बड़ी संख्या में आए बंगलादेशी शरणार्थियों को हजारीबाग और झारखंड के अन्य क्षेत्रों में बसाने की योजना है।
खुफिया विभाग के विश्वस्त सूत्रों की मानें तो सरकार इस तथ्य से भलीभांति परिचित है कि हजारीबाग जिले से संदेहास्पद इस्लामिक एस्टेट से जुड़े आतंकी अपना पासपोर्ट बनवा रहे हैं। जैसे-जैसे हजारीबाग रामनवमी का प्रकरण राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आया, सभी स्वयंभू मानवाधिकार कार्यकर्ता, सेकुलर ब्रिगेड और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निशाना बनाने वाले एनजीओ ने अपने शस्त्रों की धार तेज करनी शुरू कर दी। इनमें वे सब शामिल थे जो मुंबई से दिल्ली तक गुजरात दंगों के सच को उघाड़ने की बात कर रहे थे और आतंकियों से जुड़ी इशरत जहां को एक भोलीभाली लड़की और स्थानीय पत्रकार के रूप में प्रस्तुत कर रहे थे और इशरत के साथ मारे गए दो लड़कों के अल्पसंख्यक समाज से जुड़े होने की बात कह रहे थे।
ऐसे सभी तत्वों की एक ही योजना है देश के राजनीतिक जनमत का ध्रुवीकरण किया जाए और एक राजनीतिक गठबंधन तैयार किया जाए जिसका लक्ष्य 'भारत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मुक्त करना' हो -जो विचार बिहार के बड़बोले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा छेड़ा गया है जो इस छद्म सेकुलर गिरोह के पोस्टर ब्वॉय हैं। जब इन छद्म बुद्धिजीवियों को यह पता चला कि हिंदुओं पर यह हमला मुसलमानों के एक समूह द्वारा योजनाबद्ध तरीके से किया गया जिन्होंने मुस्लिम-बहुल हबीबनगर में बम फैक्टरी चल रखी थी तो उन सबने तुरंत चुप्पी साध ली। झारखंड में तथाकथित सेकुलर दलों के नेताओं ने भी सबसे पहले इस मुद्दे को उठाने की योजना बनायी थी। लेकिन यह जानकर कि हजारीबाग के इस प्रकरण से उनका अल्पसंख्यक वोट बैंक और तुष्टीकरण की नीति फलीभूत नहीं होगी, उन्होंने मौन रहना ही उचित समझा।
हजारीबाग में रामनवमी मनाने की शताब्दियों पुरानी परंपरा है। लेकिन यह शहर 1989 में सांप्रदायिक हिंसा का पहला शिकार हुआ था जब अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने रामनवमी की शोभायात्रा पर हमला किया। उसके बाद से हजारीबाग में दोबारा असामाजिक तत्वों द्वारा हिंदू श्रद्धालुओं पर पत्थरबाजी के चलते रामनवमी कभी शांतिपूर्ण संपन्न होती नहीं देखी।
हजारीबाग के पूर्व सांसद यदुनाथ पांडे कहते हैं, ''कुछ लोगों को केवल राम नाम से ही बहुत बड़ी दिक्कत है इसलिए वे व्यवधान खड़ा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। शांति, सौहार्द और सहअस्तित्व की हजारीबाग की महान परंपरा रही है जो कुछ लोगों के कारण आज सवालों के घेरे में है।'' लेकिन जिला प्रशासन ने सांप्रदायिक झड़पों को कम करने के लिए भरपूर कोशिश की। 1973 में रामनवमी उत्सव को रोकने का सांप्रदायिक ताकतों ने प्रयास किया था जो दोबारा 1986 से शुरू हो गया।
पांडे बताते हैं कि हजारीबाग में 1988 में अचानक रामनवमी की शोभायात्रा पर रोक लगा दी गई थी जिसे उन्होंने 1989 में दोबारा शुरू किया। तथाकथित सेकुलर नेताओं और अल्पसंख्यक वोट के संरक्षकों ने उस समय कहा था कि रामभक्तों को बंगाल की खाड़ी में डुबा देना चाहिए। अब ऐसे उपद्रवी दुर्गापूजा के त्योहार को भी निशाना बनाने लग गए हैं। पिछले वर्ष देवी की प्रतिमा की झांकी के समय भी शोभायात्रा पर पत्थर फेंके गए थे।
पिछले साल भी रामनवमी की शोभायात्रा के दौरान हिंसा फैलाई गई थी जब अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ युवाओं ने शोभायात्रा पर पथराव किया था जिसमें 12 लोग घायल हो गए थे। जाहिर है, हजारीबाग में कट्टरपंथी मजहबी तत्वों पर रोक नहीं लगी तो कोई बड़ा हादसा हो सकता है। ल्ल
बिहार में हिंसक हमले
जब पूरे देश में हिंदुओं का पावन त्योहार रामनवमी पूरे उत्साह और शांतिपूर्ण ढंग से मनाया जा रहा था, उस समय रामनवमी की शोभायात्रा में बिहार के दो क्षेत्रों- गोपालगंज और सीवान में दो अलग-अलग घटनाओं में कम से कम 10 लोग घायल हो गए।
बताया गया है कि पुलिस ने शोभायात्रा के समय सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील सीवान जिले में आपस में झगड़ रहे दो समूहों को तितर-बितर करने के लिए हवा में गोलियां चलाईं। इस दौरान एक घायल व्यक्ति को उत्तर प्रदेश से लगे गोरखपुर जिले में बेहतर इलाज के लिए पहुंचाया गया। यहां आगजनी की घटनाओं में आधा दर्जन दुकानें, तीन मोटरसाइकिल और कई साइकिलों को आग के हवाले कर दिया गया।
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