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हरिद्वार। 11 अप्रैल। दिव्य प्रेम सेवा मिशन द्वारा अर्धकुम्भ मंथन के अन्तर्गत आयोजित व्याख्यानमाला की चतुर्थ शृंखला में 'भारतीय संस्कृति के विकास में गंगा का महत्व' विषय पर चर्चा की गई। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि गंगा हजारों वषार्ें से भारतीय संस्कृति का पुण्य प्रवाह है जो भारत को धार्मिक, सांस्कृतिक, वैचारिक एकता के सूत्र में बांधती है। भारत में आने वाले विश्व के दार्शनिकों, लेखकों ने गंगाजल को अमृत के समान बताया है। जो गंगा को धर्म, सम्प्रदाय तथा संकीर्ण मानसिकता से सवार्ेपरि सिद्घ करता है। गंगा जीवंतता और निरतंर गतिशील रहने का विचार देती है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बिहार के राज्यपाल श्री रामनाथ कोविद ने कहा कि मानव जीवन की सफलता इसी में है कि हम अच्छी बातों को अंगीकार करें। भारतीय संस्कृति के विकास में गंगा जहां पापनाशिनी है वहीं अर्थव्यवस्था और लोगों की आजीविका का साधन भी है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए केन्द्रीय मंत्री सुश्री उमाश्री भारती ने कहा कि गंगा राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्र के सांस्कृतिक प्रवाह, दर्शन का विषय है। गंगा जी का अस्तित्व बचाने के लिए सवा सौ करोड भारतीयों को प्रयास करना होगा। बिना जन सहभागिता के गंगा सुधार कार्य असम्भव है। संत विजय कौशल जी महाराज ने कहा कि जन्म से मरण तक गंगा हमारी साक्षी रहती है। भारत में गंगा के बिना तीर्थ स्थलों का अस्तित्व ही नहीं है। मिशन के अध्यक्ष आशीष गौतम व संयोजक संजय चतुर्वेदी ने विशिष्ट महानुभावों का स्वागत किया। संचालन श्री विजयपाल सिंह ने किया। इस अवसर पर सिने कलाकार मनोज जोशी, हरिद्वार के सांसद डॉ़ रमेश पोखरियाल निशंक, शिवप्रताप शुक्ला पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद मनोहरकान्त ध्यानी, पूर्व राज्य मंत्री अजेन्द्र अजय, पंकज सहगल, विमलकुमार, पूर्व सांसद अशोक चन्देल, पूर्व कुलपति डॉ़ महावीर अग्रवाल, गंगाशरण मददगार व विधायक प्रेमचन्द अग्रवाल सहित सैकडों प्रतिनिधि उपस्थित थे।ल्ल विसंके, देहरादून
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