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वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री के रूप में डॉ. भीमराव आंबेडकर ने श्रमिक हितों को सर्वोपरि रखते हुए महत्वपूर्ण कार्य करते हुए उनमें स्वाभिमान और जागृति का भाव जगाया था
पवन कुमार
भारत में श्रम विभाग नवंबर 1937 में स्थापित किया गया था और डॉ़ भीमराव आंबेडकर ने जुलाई, 1942 में श्रम मंत्रालय का कार्यभार संभाला था। उस वक्त सिंचाई और विद्युत विकास के लिए नीति निर्माण और योजनाएं बनाना पहला काम था। श्रम विभाग ने डॉ. आंबेडकर के मार्गदर्शन में विद्युत प्रणाली के विकास, जल विद्युत केन्द्र स्थलों, पनविद्युत सर्वेक्षण, विद्युत उत्पादन की समस्याओं का विश्लेषण और थर्मल पावर स्टेशनों की समस्याओं की जांच-पड़ताल के लिए केंद्रीय तकनीकी विद्युत बोर्ड (सीटीपीबी) स्थापित करने का फैसला किया।
चाहे भारतीय रिजर्व बैंक के संस्थापक के दिशानिर्देश हों या अर्थव्यवस्था के किसी अन्य पहलू को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत, भारत को जो भी सबसे अच्छा मिल सकता था, डॉ. आंबेडकर ने दिया।
यह डॉ. आंबेडकर ही थे, जिन्होंने भारत में 14 घंटे से घटाकर 8 घंटे के कार्य दिवस की शुरुआत की। उन्होंने यह कार्य नई दिल्ली में भारतीय श्रम सम्मेलन के 7वें सत्र में 27 नवंबर, 1942 को किया था।
डॉ़ बाबासाहेब आंबेडकर ने भारत में महिला श्रमिकों के लिए कई कानूनों का निर्माण किया, जैसे कि 'खदान मातृत्व लाभ अधिनियम', 'महिला श्रमिक कल्याण निधि', 'महिला एवं बाल श्रमिक संरक्षण अधिनियम', 'महिला श्रमिकों के लिए मातृत्व लाभ' और 'कोयला खदानों में भूमिगत काम पर महिलाओं को रोजगार देने पर प्रतिबंध' की बहाली। कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) श्रमिकों को चिकित्सा देखभाल में, चिकित्सा छुट्टी, काम के दौरान घायल होने की वजह से शारीरिक विकलांगता में, कामगारों को क्षतिपूर्ति और विभिन्न सुविधाओं के प्रावधान के लिए मददगार होता है। पूर्वी एशियाई देशों में भारत ऐसा पहला राष्ट्र था, जिसने कर्मचारियों की भलाई के लिए बीमा अधिनियम बनाया था। 'महंगाई भत्ता' (डीए), 'अवकाश लाभ', 'वेतनमान का पुनरीक्षण' जैसे प्रावधान डॉ. आंबेडकर के कारण ही हैं।
'कोयला और माइका (अभ्रक) खान भविष्य निधि' की दिशा में भी डॉ़ आंबेडकर का महत्वपूर्ण योगदान था। उस काल में कोयला उद्योग हमारे देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
31 जनवरी, 1944 को डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने श्रमिकों के लाभ के लिए कोयला खान सुरक्षा संशोधन विधेयक अधिनियम बनाया। 8 अप्रैल, 1946 को उन्होंने अभ्रक खान श्रमिक कल्याण कोष का गठन किया, जो श्रमिकों के लिए आवास, जलापूर्ति, शिक्षा, मनोरंजन, सहकारी व्यवस्थाओं में मददगार रहा। इसके अलावा डॉ़ आंबेडकर ने बी़ पी़ अगरकर के मार्गदर्शन में श्रमिक कल्याण कोष से उत्पन्न होने वाले महत्वपूर्ण मामलों पर सलाह देने के लिए एक सलाहकार समिति का गठन किया। बाद में जनवरी, 1944 को उन्होंने इसे विधिवत तौर पर प्रस्थापित
कर दिया।
वायसराय की परिषद के श्रम सदस्य के तौर पर डॉ़ आंबेडकर ने श्रमिकों की उत्पादकता बढ़ाने, उन्हें शिक्षा और कार्य में बेहतर प्रदर्शन, आवश्यक कौशल उपलब्ध कराने, उनके स्वास्थ्य की देखभाल और महिला श्रमिकों के लिए मातृत्व प्रावधान उपलब्ध कराने के लिए कार्यक्रम शुरू किए। 1942 में डॉ़ आंबेडकर ने श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा उपायों की रक्षा की खातिर, श्रम नीति के निर्धारण में भागीदारी के लिए श्रमिकों और नियोक्ताओं को समान अवसर देने और ट्रेड यूनियनों की तथा श्रमिक संगठनों को अनिवार्य मान्यता शुरू करके श्रमिक आंदोलन को मजबूत बनाने के लिए त्रिपक्षीय श्रम परिषद की स्थापना की। डॉ़ आंबेडकर ने ऊर्जा क्षेत्र में ग्रिड प्रणाली के महत्व और आवश्यकता पर बल दिया, जो आज भी सफलतापूर्वक काम कर रही है। यदि आज विद्युत इंजीनियर प्रशिक्षण के लिए विदेश जाते हैं, तो इसका श्रेय भी डॉ़ आंबेडकर को ही जाता है, जिन्होंने श्रम विभाग के प्रमुख के तौर पर सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरों को विदेशों में प्रशिक्षित करने के लिए नीति तैयार की थी।
श्रम को संविधान की समवर्ती सूची में रखने, मुख्य और श्रम आयुक्तों को नियुक्त करने, श्रम जांच समिति का गठन करने आदि का श्रेय भी डॉ़ आंबेडकर को ही जाता है। न्यूनतम मजदूरी अधिनियम भी डॉ़ आंबेडकर के योगदान की वजह से बना था, और यही स्थिति महिला श्रमिकों को सशक्त बनाने वाले मातृत्व लाभ विधेयक की है। अगर आज भारत में रोजगार कार्यालय दिखाई देते हैं, तो ऐसा डॉ़ आंबेडकर की दूरदृष्टि के कारण है। यदि श्रमिक अपने अधिकारों के लिए हड़ताल पर जा सकते हैं, तो ऐसा बाबासाहेब आंबेडकर की वजह से है। उन्होंने श्रमिकों के हड़ताल करने के अधिकार को स्पष्ट रूप से मान्यता प्रदान की थी। 8 नवंबर, 1943 को डॉ़ आंबेडकर ने ट्रेड यूनियनों की अनिवार्य मान्यता के लिए इंडियन ट्रेड यूनियन (संशोधन) विधेयक पेश किया। डॉ़ आंबेडकर का बराबर मानना रहा कि दलित वगोंर् को इस देश के आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। यह बात निर्विवाद रूप से कही जा सकती है कि अगर भारत में मजदूरों के पास अधिकार हैं, तो ऐसा डॉ़ आंबेडकर की मेहनत और समर्पित श्रमिकों की ओर से उसके लिए लड़ी गई लड़ाई की वजह से है।
लेखक भारतीय मजदूर संघ, उत्तर क्षेत्र के
संगठन मंत्री हैं
भारत के श्रम मंत्री के नाते डॉ़ बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा दिया गया योगदान
फैक्टरी में काम के घंटों में कटौती (8 घंटों की ड्यूटी)
(आज भारत में प्रतिदिन काम की अवधि लगभग 8 घंटे होती है। कितने भारतीयों को यह बात पता है कि डॉ़ बाबासाहेब आंबेडकर भारत में मजदूरों के उद्धारकर्ता थे। उन्होंने भारत में काम के 8 घंटे तय करवाए। कामकाज का समय 14 से घटाकर 8 घंटे किया जाना भारत के श्रमिकों के लिए प्रकाशपुंज जैसा था। उन्होंने यह प्रस्ताव 27 नवंबर, 1942 को नई दल्लिी में भारतीय श्रम सम्मेलन के 7वें सत्र में प्रस्तुत किया।)
बाबासाहेब आंबेडकर ने भारत में महिला मजदूरों के लिए कई कानूनों का नर्मिाण किया-
खान मातृत्व लाभ अधिनियम,
महिला श्रमिक कल्याण कोष,
महिला एवं बाल श्रम संरक्षण अधिनियम,
महिला श्रमिकों के लिए मातृत्व लाभ
कोयला खदानों में भूमिगत काम पर महिलाओं के रोजगार पर प्रतिबंध की बहाली
भारतीय फैक्टरी अधिनियम
राष्ट्रीय रोजगार एजेंसी (रोजगार कार्यालय) का गठन
(रोजगार कार्यालयों को स्थापित करने में डॉ़ बाबासाहेब आंबेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दूसरे वश्वि युद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश इंडिया में बनी तात्कालिक सरकार में श्रम सदस्य के रूप में उन्होंने रोजगार कार्यालयों को गठित किया। इसी प्रकार ट्रेड यूनियनों, मजदूरों और सरकार के प्रतिनिधियों के माध्यम से श्रम मुद्दों को निबटाने के लिए त्रिपक्षीय पद्धति लागू की और सरकारी क्षेत्र में कौशल विकास पहल शुरू की। )
ल्ल कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई)
ईएसआई श्रमिकों को चिकत्सिा देखभाल में, चिकत्सिा अवकाश, काम के दौरान घायल होने की वजह से शारीरिक विकलांगता में, कामगारों को क्षतिपूर्ति और विभन्नि सुविधाओं के प्रावधान में मददगार होता है। डॉ. आंबेडकर ने इसे श्रमिकों के लाभ के लिए प्रस्तुत और अधिनियमित किया था। वास्तव में पूर्वी एशियाई देशों में 'बीमा अधिनियम' लाने वाला भारत सबसे पहला राष्ट्र था। इसका श्रेय डॉ. आंबेडकर को ही जाता है।
वत्ति आयोग की सभी रिपोटोंर् के लिए मूल संदर्भ स्रोत एक तरह से डॉ. आंबेडकर की पीएचडी थीसिस, ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वत्ति विकास पर आधारित हैं, जो उन्होंने 1923 में लिखी थी।
भारत की जल नीति और वद्यिुत योजना
सिंचाई और वद्यिुत के विकास के लिए नीति नर्मिाण और योजना बनाना उनकी चिंता का प्रमुख विषय था।
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