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अंक संदर्भ- 13 मार्च, 2016
कांग्रेस की चाल
इशरत जहां मामले में डेविड हेडली के खुलासे ने कांग्रेस को शर्मसार ही नहीं किया है बल्कि एक ऐसा धब्बा लगाया है, जो कभी धुलने वाला नहीं है। ऐसा नहीं है कि कांगे्रस पर यह धब्बा पहली बार लगा है, कई ऐसे मामले हैं, जिनकी अगर कड़ाई और निष्पक्षता से जांच की जाए तो कांग्रेस की साख ही खतरे में राख हो जाएगी। कांग्रेस ने सदैव से द्वेष की राजनीति की। तमाम जांच एजेंसियों की रपटों को किनारे रखकर इशरत जहां मामले पर राजनीतिक रोटियां सेंकीं। यानी स्वयं के राजनैतिक अस्तित्व के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को भी ताक पर रख दिया। देश के दुर्भाग्यपूर्ण बंटवारे में भी इस पार्टी की बहुत बड़ी साजिश नजर आती है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के देश में वापस न आने के षड्यंत्र में भी कहीं न कहीं इसी पार्टी का हाथ रहा। हाल ही में नेताजी के संबंध में जो फाइलंे खुलीं उसने पं. जवाहर लाल नेहरू को कठघरे में खड़ा किया है।
इस पार्टी ने अपने फायदे के लिए सदैव की धज्जियां उड़ाईं। देश पर सदा कांग्रेस का ही एक छत्र राज रहे इसके लिए कांग्रेस और उसके नेताओं ने आए दिन कोई न कोई षड्यंत्र रचा। कश्मीर में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु आज भी संदेह के घेरे में है। इस पार्टी के विरुद्ध जो भी रोड़ा बनकर खड़ा हुआ, वह व्यक्ति क्यों न कितना ही खास हो कांग्रेस ने उसे किनारे लगाने में देर नहीं की। इशरत जहां के खुलासे ने एक बार फिर से कांग्रेस की गंदी राजनीति उजागर कर दी है। देश की जनता अब इन छद्म सेकुलरों को पहचान चुकी है और इनके बहकावे में अब नहीं आने वाली है।
—धनवीर चंद माहेश्वरी, सेक्टर.-5,14-गोल मार्केट,अंबाला (हरियाणा)
खत्म हुआ गतिरोध
फिर हरियाले हो रहे, सूखे हुए चिनार
जल्दी ही बन जाएगी, वहां नयी सरकार।
वहां नयी सरकार, रास्ता एक यही था
दोनों पार्टी मिलें, राज्य का तभी भला था।
कह 'प्रशांत' महबूबा का असमंजस छूटा
बना हुआ गतिरोध, अंतत: जाकर टूटा॥
—प्रशांत
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