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जन गण मन
-तरुण विजय-
ल्जियम एक सुंदर यूरोपीय देश है, जहां यूरोपीय संघ की राजधानी भी है और दुनिया में हीरों के व्यापार का बड़ा केन्द्र एंटवर्प भी ब्रसेल्स से एक घंटे के रास्ते पर है। वहां की अर्थव्यवस्था यूरोपीय दृष्टि से धीमी चल रही है लेकिन प्रति व्यक्ति आय 47,000 डॉलर तथा न्यूनतम वेतन 1500 यूरो प्रतिमाह है। यह यूरोपीय संघ का सबसे छोटा देश होने के बावजूद आबादी की दृष्टि से 1.10 करोड़ की जनसंख्या वाला सबसे बड़ा देश है, जहां नाटो का सैन्य मुख्यालय भी स्थित है। लेकिन यह यूरोप की उसी मनोदशा का प्रतीक भी बन गया है जहां विलासिता और ऐश्वर्य की अधिकता के कारण साहस और साहित्य के क्षेत्र में निरंतर गिरावट आई और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता सर विद्यासागर नायपाल को लिखना पड़ा कि यूरोप आत्मिक मृत्यु की ओर बढ़ रहा है जहां धन की अतिशयता ने मन के उत्सव को समाप्त कर दिया है।
इस पृष्ठभूमि में पेरिस के बाद ब्रसेल्स में आईएसआईएस का बम विस्फोट आश्चर्यजनक नहीं। हर छोटे-बड़े काम के लिए यहां पाकिस्तान, बांग्लादेश, अल्जीरिया, मोरक्को तथा अन्य अरब देशों से बड़ी संख्या में नागरिक आकर बस गए हैं। जैसे भारत में बांग्लादेशी सस्ती दिहाड़ी पर ज्यादा काम कर एवं प्राय: सभी राजनीतिक दलों के सदस्य बनकर अपना रक्षाकवच खरीद लेते हैं, वैसे ही यूरोप में ये मुस्लिम युवा यूरोपीय समाज की सामान्य आवश्यकताओं को पूरा करने वाले मददगार बनकर उन्हें अपने विरुद्ध कार्रवाई से थोड़ा ढीला बना देते हैं। 'न्यूयार्क टाइम्स' में रुक्मिणी कालीमाची की जिहाद और यूरोप के संबंध में आंखें खोलने वाली खोजी रपटें छपी हैं। उन्होंने बताया है कि यूरोप में आईएसआईएस यूरोपीय सरकारों द्वारा दी गई फिरौती की बड़ी राशियों के आधार पर ही फलफूल रहा है। कुछ महीने पहले जब इस्लामी आतंकवादियों ने 32 यूरोपीय नागरिकों को बंधक बना लिया था तो जर्मनी ने उन्हें छुड़ाने के लिए 50 लाख यूरो की राशि खुफिया तरीके से अफ्रीकी देश माली के राष्ट्रपति की मदद से सहारा क्षेत्र में बैठे अलकायदा मुखियाओं को पहुंचायी थी। वास्तव में पूरे विश्व में यूरोपीय नागरिकों का अपहरण कर फिरौती में लाखों डॉलर तथा यूरो लेना अलकायदा तथा आईएसआईएस का प्रिय खेल बन गया है। उसने 2008 में 1.25 करोड अमेरिकी डॉलर फिरौती राशि के रूप में प्राप्त किए। सिर्फ यूरोपीय सरकारें ही फिरौती की राशि देने के लिए तैयार होती हैं हालांकि इन देशों में से आस्ट्रिया, फ्रांस, जर्मनी, इटली और स्विट्जरलैंड ने ऐसा करने से इनकार किया है। 2012 में अमेरिका के उप वित्त मंत्री डेविड कोहिन ने अपने वक्तव्य में कहा था कि फिरौतियों के लिए अपहरण करना आतंकवादियों की वित्त व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। 2003 में प्रति अपहृत नागरिक के लिए इस्लामी आतंकवादी दो लाख डॉलर मांगते थे, अब यह राशि प्रति नागरिक एक करोड़ डॉलर तक पहुंच गई है। ब्रसेल्स में भयानक बम विस्फोट और 30 से ज्यादा लोगों की मृत्यु के बावजूद भारत के राजनीतिक दल और अफजल गुरु के लिए चिराग जलाने वाले आईएसआईएस के विरुद्ध एकजुट निर्णायक कार्रवाई की मांग करने से वैसे ही पीछे हटे जैसे यूरोप की सरकारें। विश्व में इस्लामी आतंकवाद सबके लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है। अमानुषिक, पाशविक अत्याचार एवं सामान्य जनजीवन में घृणा फैलाने वाले आईएसआईएस और अलकायदा को समाप्त करने के लिए फौलादी फैसले लेने में समर्थ नेतृत्व चाहिए। इन जिहादी हमलों का सबसे बड़ा निशाना होने के नाते भारत को यह तय करना होगा कि वह कब तक निर्णायक प्रहार के लिए प्रतीक्षा करेगा। जो लोग भारत माता की जय तथा वंदेमातरम् के प्रति अनास्था दिखाते हुए संविधान और लोकतंत्र पर हमला करते हैं, वास्तव में जिहाद के अलकायदा और आईएसआईएस वाले संस्करणों के रक्षाकवच ऐसे ही तत्व बनते हैं।
लोकतंत्र, संविधान, उदारवाद एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उन लोगों के लिए होती है जो इन मूल्यों को जीते हैं। सभ्य समाज के ये विशेष उपहार उन बर्बर संगठनों के लिए नहीं होने चाहिए जिनका एकमात्र उद्देश्य हिंसा और घृणा के माध्यम से अव्यवस्था फैलाना एवं मजहबी दहशत का वातावरण बनाना है।
केरल से लेकर छत्तीसगढ़ तक वामपंथी आतंकवाद उसी तरह जड़ें जमा रहा है जैसे यूरोप में आईएसआईएस। वास्तव में दोनों वैचारिक दृष्टि से भले ही भिन्न हों लेकिन परिणाम की दृष्टि से सहोदर ही हैं। वामपंथी और इस्लामिक आतंकवाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। पेरिस और ब्रसेल्स के भारत के लिए विशेष सबक होने चाहिए। मुस्लिम समाज को अलग-थलग किए बिना उनमें विद्यमान सकारात्मक सोच के नेताओं को इस बर्बरता के विरुद्ध आगे लाना होगा और मजहबी विखंडनवादी ताकतों को परास्त करते हुए भारतीयता के सर्वसमावेशी तिरंगे की आन-बान-शान बनाए रखनी होगी। मोहम्मद बिन कासिम से आज तक इन आतंकवादी जिहादियों को भारत ने मिट्टी में मिलाया है। यह स्मृति बनाए रखते हुए भारतीय धरा से हर किस्म के आतंकवाद का अंत करने का वक्त आ गया है। तरुण विजय (लेखक राज्यसभा सांसद हैं)
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