आरोग्य मित्र : सेहत के रखवाले
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आजादी मिले सात दशक पूरे होने को हैं, लेकिन सबको स्वास्थ्य सेवा सुलभ कराना अभी तक एक स्वप्न है। देश के दूर-दराज क्षेत्रों में रहने वाले हजारों लोग समय पर प्राथमिक चिकित्सा तक न मिल पाने के कारण असमय काल का ग्रास बन जाते हैं। ऐसी स्थिति में दुर्गम अंचलों में प्राणपण से सेवारत 14,000 से अधिक आरोग्य मित्र एक उम्मीद की किरण जगा रहे हैं
-प्रमोद कुमार-
घटना 28 फरवरी, 2016 की है। सुबह के आठ बजे हैं। कंधमाल जिला केन्द्र से करीब 30 कि.मी. दूर पांड़पाड़ा गांव में ममिना राडूस (25) अपने घर के आंगन में बैठी 'धरित्री' अखबार पढ़ रही है। एक खबर पर जैसे ही उसकी नजर पड़ी, वह चौंककर खड़ी हो गई। खबर आठ माह की एक गर्भवती वनवासी महिला रजनी मुंडा के बारे में थी, जो चार दिन से कंधमाल के सरकारी अस्पताल के बरामदे में लेटी हुई थी। डॉक्टरों ने ऑपरेशन के लिए उससे 20,000 रुपये की मांग की, जो उसका परिवार देने में असमर्थ था। ममिना चार अन्य युवतियों को साथ लेकर अस्पताल पहंुच गई और मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी से उसके उपचार के बारे में जानकारी ली। उन्होंने बताया कि महिला के पेट में ट्यूमर है, इसलिए ऑपरेशन के लिए दवाइयों और रक्त की व्यवस्था करनी ही पडे़गी। ममिना ने कहा, ''दवाइयों और रक्त की व्यवस्था हम करते हैं, आप ऑपरेशन कीजिए।'' डॉक्टर ऑपरेशन के लिए तैयार हो गए। दवाइयां खरीदकर देने के अलावा उन्होंने उसी समय स्वयं ही रक्तदान भी कर दिया। ऑपरेशन से डेढ़ किलो का ट्यूमर तो निकल गया, लेकिन रजनी के गर्भ में पल रहा शिशु नहीं बच सका। वह एक दिन पूर्व ही दम तोड़ चुका था। पर रजनी की जान अवश्य बच गई। बांसपाला वनवासी अंचल की रहने वाली इस महिला की जान बचाने वाली वे पांचों युवतियां विश्व हिन्दू परिषद द्वारा संचालित चरक स्वास्थ्य सेवा की आरोग्य मित्र यानि स्वास्थ्य से सेविकाएं थीं, जो गांव में 'चरक दीदी' के नाम से मशहूर हैं। ममिना के आरोग्य मित्र बनने से पहले बुखार की दवा पेरासिटामॉल लेने के लिए भी गांववासियों को 30 कि.मी. दूर जाना पड़ता था। लेकिन आज उस गांव में किसी को भी प्राथमिक चिकित्सा के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता।
23 साल की पाबुनी लता भी कंधमाल के ही वनवासी बहुल गांव कोबारकिमा की रहने वाली है। वह भी आरोग्य मित्र है। गांव के बीमार लोगों का इलाज कराने के अलावा उसने अपने गांव में घर-घर शौचालय बनवाने का काम शुरू किया है। वह गांव में सत्संग और बाल संस्कार केन्द्र चलाने के साथ-साथ गंदे पानी की निकासी के लिए नालियां भी बनवा रही है। सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र गांव से 10 कि.मी. दूर है, जहां डॉक्टर होता है तो दवा नहीं और दवा होती है तो डॉक्टर नहीं। सड़क नहीं है इसलिए यातायात के लिए वाहन की सुविधा नहीं है। पैदल ही आना-जाना पड़ता है। ओडिशा के वनवासी जिलों में हिन्दू स्वास्थ्य सेवा से संबद्ध ऐसे 800 से अधिक कार्यकर्ता सक्रिय हैं, जो प्रशिक्षित चिकित्सकों की निगरानी में सेवा करते हैं। ओडिशा के पूर्वी प्रांत में यह योजना चरक नाम से संचालित है तो ओडिशा पश्चिम प्रांत में सुश्रुत नाम से।
असम के कोकराझार जिले में एक गांव है भूतबंगला। वहां दो आरोग्य मित्र युवतियां 'आरोग्यम्' चलाती हैं। एक का नाम है अनिता देवरी और दूसरी का नाम वंदना। आरोग्यम् आरोग्य मित्र योजना के तहत संचालित एक तरह का संस्कार केन्द्र है जहां बच्चों को स्वच्छता, देशभक्ति गीत, सुभाषित, खेल आदि के माध्यम से संस्कार प्रदान किये जाते हैं। वे बच्चों को स्वदेशी का महत्व भी बताती हैं। इसका असर यह हुआ कि गांव के छोटे बच्चे जब दुकान पर चॉकलेट लेने भी जाते हैं तो दुकानदार से पूछते हैं कि चॉकलेट स्वदेशी है या विदेशी। विदेशी है तो नहीं चाहिए। दुकानदार काफी समय से परेशान था कि आखिर गांव के बच्चों को यह बात किसने सिखाई। एक दिन वही दोनों आरोग्य मित्र संयोग से कुछ खरीदने के लिए उसी दुकानदार के पास पहंुचीं। ये युवतियां उसी गांव की निवासी नहीं थीं, इसलिए दुकानदार ने उनके बारे में जानकारी लेनी चाही। उन्होंने बताया कि वे गुवाहाटी से वहां अपनी सहेली से मिलने आई थीं। उसने पूछा कि क्या आप ही वह दीदी हो जो बच्चों को स्वदेशी के बारे में बताती हो? दुकानदार अपनी बिक्री घटने से परेशान नहीं था, बल्कि यह सोचकर आश्चर्यचकित था कि इतने दुर्गम गांव में भी स्वदेशी का भाव था और वह भी छोटे बच्चों में!
देश मंे स्वास्थ्य सेवा की हालत किसी से छिपी नहीं है। 60 प्रतिशत ग्रामीण जनता को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं। ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर मिलता है तो दवा नहीं और दवा होती है तो डॉक्टर नहीं। प्राइवेट डॉक्टरों तथा नर्सिंग होम का खर्च गरीब व्यक्ति तो छोडि़ए, मध्यम वर्ग के व्यक्ति के लिए भी वहन करना मुश्किल है। ऐसी स्थिति में सभी को स्वास्थ्य सेवा सुलभ कराने का सपना 69 वर्ष से सपना ही बना हुआ है। इन हालात में आरोग्य मित्र योजना के माध्यम से एक आशा की किरण दिखाई दी है। आरोग्य मित्र योजना का बीजारोपण 1982 में ठाणे की दो अति पिछड़ी तहसीलों, जवाहर और मोखड़ा, में हुआ लेकिन इसे गति मिली 1989 में जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहब देवरस ने 25 आरोग्य मित्रों को औषधि पेटी प्रदान कर इसका उद्घाटन किया। अनेक प्रकार की विविधता से भरपूर पूर्वोत्तर के दुर्गम क्षेत्रों में आरोग्य मित्र योजना ने लाखों लोगों को इलाज के अभाव में असमय काल का ग्रास बनने से बचाया है। अकेले पूवार्ेत्तर में आज 5,500 से अधिक आरोग्य मित्र प्रतिवर्ष छह लाख से अधिक लोगों की नि:शुल्क प्राथमिक चिकित्सा कर रहे हैं। हालांकि वहां प्रशिक्षित आरोग्य मित्रों की सूची 16,000 से अधिक है। वे दूसरे रोगियों की सेवा करने की बजाए अपने परिवारों को स्वस्थ रखने का काम तो कर ही रहे हैं। इस योजना के तहत दुर्गम गांव के ही युवक-युवतियों को होम्योपैथी में प्राथमिक चिकित्सा का प्रशिक्षण देकर 76 जरूरी दवाइयों का बॉक्स सेवा भारती पूर्वांचल द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। इससे वे अपने-अपने गांव में लोगों की प्राथमिक चिकित्सा करते हैं। गंभीर रूप से बीमार रोगियों को वे अस्पताल पहंुचाने में भी मदद करते हैं सभी आरोग्य मित्र प्रशिक्षित डॉक्टरों की सीधी निगरानी में लोगों की चिकित्सा करते हैं। यह सेवा पूरी तरह नि:शुल्क है। न मरीज से कुछ लेते हैं और न ही आरोग्य मित्र को किसी प्रकार का मानधन मिलता है। वे इस कार्य को सेवा स्वरूप करते हैं। वे दिनभर गांव में अपना दूसरा काम करते हैं और जरूरत पड़ने पर बीमार को दवा भी देते हैं। वे समय समय पर स्वास्थ्य शिविर भी आयोजित करते हैं, जहां प्रशिक्षित डॉक्टरों द्वारा रोगियों का इलाज किया जाता है।
आरोग्य मित्र इस बात का पूरा प्रयास करते हैं कि लोग बीमार ही न पड़ें। इसलिए उनका पूरा ध्यान स्वच्छता, उचित खान-पान, घरेलू उपचार के संबंध में जागरूक करने पर केन्द्रित रहता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह एवं इस योजना के प्रेरणा श्री भैयाजी जोशी बार-बार आग्रह करते हैं कि देश के सभी दुर्गम गांवों अथवा शहर की सेवा बस्तियों में आरोग्य मित्र तैयार किए जाएं ताकि जहां अभी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं, वहां रोगियों को अविलंब कम से कम प्राथमिक चिकित्सा मिल सके। आरोग्य भारती के राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री अशोक वार्ष्णेय बताते हैं कि देश के लगभग सभी राज्यों में आरोग्य मित्र काम कर रहे हैं। आरोग्य भारती के अलावा सेवा भारती, विश्व हिन्दू परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम आदि अनेक संस्थाओं द्वारा आरोग्य मित्र तैयार किए जा रहे हैं। सभी सेवा संस्थाओं एवं आरोग्य मित्रों को एक मंच पर इकट्ठा करने का काम किया है राष्ट्रीय सेवा भारती ने।
चूंकि आरोग्य मित्र योजना का लक्ष्य सभी को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना है, इसलिए देशभर में इससे जुडे़ विभिन्न आयामों पर नये-नये प्रयोग होे रहे हैं। हैदराबाद में आरोग्य भारती द्वारा चार मेडिकल छात्रों के माध्यम से 6 से 9वीं कक्षा में पढ़ने वाले स्कूली बच्चों को 'बाल मित्र' के रूप में प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण के बाद ये बाल मित्र अपनी-अपनी कक्षाओं में अपने सहपाठियों को प्राथमिक चिकित्सा व स्वास्थ्य जागरूकता का प्रशिक्षण देते हैं। बाद मेंे सभी बाल मित्र अपने-अपने घरों में स्वास्थ्य जागरूकता का काम करते हैं। इसके माध्यम से हजारों परिवार पूरी तरह नशामुक्त हो गए हैं। अपने परिवार के अलावा बाल मित्र अपनी बस्तियों में भी स्वच्छता एवं खान-पान को लेकर जागरूकता पैदा करते हैं।
इन दुर्गम क्षेत्रों में समस्या सिर्फ यही नहीं है कि लोगों को समय पर चिकित्सा नहीं मिलती, बल्कि समस्या यह भी है कि वे चिकित्सा सेवा का लाभ उठाने के लिए तैयार ही नहीं होते। इस समस्या का समाधान तलाशा आन्ध्र प्रदेश के नेल्लौर में सेवा भारती द्वारा संचालित अस्पताल ने। इसने सात वनवासी मंडलों में यह प्रयोग किया है। वनवासी समाज वहां अस्पताल में आकर इलाज कराने में बहुत संकोच करता था। इस कारण खासतौर से महिलाओं को गर्भ के दौरान अनेक जटिल समस्याओं का सामना करना पड़ता था। प्रसव के दौरान मां व बच्चे की मृत्युदर बहुत अधिक थी। इसलिए अस्पताल ने वनवासी समाज के ही कुछ लोगों को आरोग्य मित्र का प्रशिक्षण देकर अपने समाज में जागरूकता पैदा करने के लिए तैयार किया। इनमें कुछ आरोग्य मित्र तो पूरी तरह निरक्षर हैं। उन्हें बताया गया है कि वे अधिक से अधिक महिलाओं को प्रसव अस्पताल में कराने के लिए तैयार करें। धीरे-धीरे महिलाएं अस्पताल में आने लगीं तो पता चला कि कुछ महिलाओं में प्रसव के समय भी हेमोग्लोबिन का स्तर 3 और 4 था। इसलिए प्रसव से पूर्व अनेकों को रक्त चढ़ाना पड़ता था। चूंकि महिलाएं दवाइयां भी नहीं खातीं, इसलिए उन्हें सही भोजन ग्रहण करने के प्रति जागरूक किया गया, जिससे उनका हेमोग्लोबिन स्तर औसतन 6 से 10 के बीच में रहने लगा है। इस प्रयास से मां और शिशु की मृत्युदर पर प्रभावी रोक लगी है।
इसी प्रकार गुजरात में आरोग्य मित्र पाकिस्तान से सटे सीमावर्ती क्षेत्रों में समाज जागरण का कार्य कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के अलीराजपुर में डॉ. विनीत कायथ ने स्वच्छता पर जोर दिया और लोगों को स्वच्छता और साफ-सफाई से रहने के लिए प्रेरित किया। अमित पांडे अरुणाचल प्रदेश के आलोंग शहर में रहते हैं, लेकिन शहर के निकटवर्ती कुछ गांवों में जाकर आरोग्य मित्र के रूप में काम करते हैं। उन्होंने स्वच्छता जागरूकता पर अधिक ध्यान दिया है। केरल के अंगमाली में एम. के. शिवन ने कई हजार लोगों को योग में प्रशिक्षित किया है। अब वे योग के माध्यम से लोगों को मधुमेह मुक्त करने में जुटे हैं और स्कूलों में जाकर विद्यार्थियों को भी प्रशिक्षण देते हैं। इसी प्रकार पालघाट जिले के अट्टपड़ी में लक्ष्मणन वनवासी अंचल में लोगों को नशामुक्त करने पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। वे नशे के शिकार लोगों को स्वामी विवेकानन्द मेडिकल मिशन अस्पताल में भर्ती भी कराते हैं। वे अभी तक 25 गांवों के 200 से अधिक लोगों को नशामुक्त कर चुके हैं।
असम के होजाई जिले से 13 कि.मी. दूर स्थित रायकाटा गांव के दीपांकर बिस्वास 2004 में आरोग्य मित्र बने। इस समय वे आरोग्य मित्र योजना में विभाग संयोजक हैं और नौगांव, मोरिगांव और नागालंैंड सीमा से सटे कार्बिआंगलांग जिले के दुर्गम ग्रामों में घूमकर स्वास्थ्य जागरूकता का काम करते हैं। वर्ष 2008 की एक घटना को याद कर बिश्वास का चेहरा आज भी खिल उठता है। वे बताते हैं, ''मेरे गांव में एक छोटा बच्चा टिटनेस से पीडि़त था। डॉक्टरों ने कहा कि उसकी जान बचना मुश्किल है। परिवार की तंगहाली शहर के बड़े अस्पताल में ले जाकर उसका इलाज कराने की इजाजत नहीं दे रही थी। इसलिए मैंने सेवा भारती के एक डॉक्टर से परामर्श करके उसे होम्योपैथिक दवा दी। 24 घंटे में ही उसे आराम महसूस होने लगा और कुछ ही दिन में वह बच्चा पूरी तरह ठीक हो गया। आज वह 9वीं कक्षा में पढ़ रहा है।'' दवा के माध्यम से धर्म कैसे बदल जाता है इसका प्रत्यक्ष दर्शन कुछ साल पहले तक पूवार्ेत्तर के किसी भी राज्य में किया जा सकता था। लेकिन आज वहां कन्वर्जन में भारी कमी आई है। इसका श्रेय आरोग्य मित्रों को ही जाता है।
गुवाहाटी से 35 कि.मी. दूर स्थित क्षेत्री गांव की रहने वोली बबीता बैशोय 2005 में जब आरोग्य मित्र बनीं तब गांव में चिकित्सा की कोई सुविधा नहीं थी। लेकिन अब किसी को बीमारी की स्थिति में गांव से बाहर नहीं जाना पड़ता। कुछ समय पूर्व बबीता के पति की एक दुर्घटना में आकस्मिक मृत्यु हो जाने के कारण वे अपने मायके में ही आरोग्य मित्र के रूप में रहकर लोगों की सेवा कर रही हैं। समीप के ही एक गांव में चले कन्वर्जन के प्रयास बबीता ने गांववालों को साथ लेकर बंद करवा दिये। अब वे बच्चों के लिए एक आरोग्यम् भी चलाती हैं। गांव की महिलाओं के लिए एक मातृमंडली है जहां उन्हें स्वावलंबन का प्रशिक्षण दिया जाता है।
गोलाघाट जिले के नवजांग की रहने वाली उमावती कंवर आज आरोग्य मित्र योजना में पांच-छह ग्रामों को मिलाकर बने एक ईकाई की संपर्क प्रमुख हैं। 2006 में जब वे आरोग्य मित्र बनीं तो गांव के ही लोग दवा लेने में संकोच करते थे। लेकिन आज उनके पास सप्ताह में करीब 150 से 200 मरीज आते हैं। आज होम्यापैथिक इलाज से अनेक लोगों की गंभीर बीमारियां ठीक हो गई हैं। पिछले साल नागालैंड-असम सीमा पर स्थित 14 गांवों को जब कुछ आतंकवादियों ने जला दिया तो आरोग्य मित्रों ने वहां जाकर न केवल पीडि़तों का इलाज किया, बल्कि आपसी संघर्ष को कम भी किया। कुछ वर्ष पूर्व तक ऐसे झगडे़ पूवार्ेत्तर में आम थे, लेकिन गत कुछ वषार्ें से यदि इनमें कमी आई है तो इसका श्रेय भी कहीं न कहीं आरोग्य मित्रों को ही जाता है। उमावती कंवर बताती हैं कि पिछले साल हुए संघर्ष के बाद जब सेवा भारती की तरफ से वे पीडितों की मदद करने वहां गईं तो पुलिस ने सिर्फ उन्हीं को गांव में जाने की अनुमति दी।
ज्योत्सना सिन्हा सिल्चर के समीप स्थित न्यू भगतपुर गांव में आरोग्य मित्र के रूप में काम करती हैं। चूंकि वहां मलेरिया बहुत बड़ी समस्या है इसलिए उन्होंने गांव में नालियां बनवाकर बारिश व गंदे पानी की निकासी सुनिश्चित करने पर जोर दिया। गांव की महिलाओं को वे हस्तकला का प्रशिक्षण भी देती हैं। तिनसुकिया जिले में अरुणाचल की सीमा के निकट एक दुर्गम क्षेत्र है सदिया। वहां से करीब 25 कि. मी. दूर एक दुर्गम गांव है। इस क्षेत्र में आरोग्य मित्रों ने अनेक माओवादियों को मुख्यधारा से जोड़ने में सफलता हासिल की है। होम्यापैथी के चिकित्सक डॉ. अरुण बनर्जी पूवार्ेत्तर में आरोग्य मित्र योजना की रीढ़ कहलाते हैं। वर्ष 1998 के बाद से उन्होंने स्वयं को पूरी तरह इस योजना को ही समर्पित कर दिया है। आज वे 'मोबाइल डॉक्टर' के रूप में विख्यात हैं क्योंकि वे चौबीस घंटे अपने मोबाइल फोन पर ही आरोग्य मित्रों की मदद से कई सौ मरीजों का प्रतिदिन इलाज करते हैं। एक आरोग्य मित्र पर सालभर में दवा सहित करीब 4,000 रुपये खर्च होते हैं। सभी आरोग्य मित्र होम्यापैथी दवा देते हैं। वे बताते हैं, ''प्राथमिक चिकित्सा के अलावा आरोग्य मित्रों का मुख्य काम है परिवारों से संपर्क करना और बच्चों को आरोग्यम् के माध्यम से अच्छे संस्कार देना।''
किशोरी विकास के माध्यम से किशोर युवतियों की समस्याओं का समाधान किया जाता है। आरोग्य मित्रों के माध्यम से पूर्वोत्तर के दुर्गम क्षेत्रों में भी राष्ट्रवादी सोच रखने वाले युवाओं की एक बहुत बड़ी टीम खड़ी हो गई है। संपूर्ण पूवार्ेत्तर में समरसता का भाव जागृत करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। पिछले दो दशक में आरोग्य मित्रों को अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ी है, कुछ ने जान भी गंवायी है। कोकराझार में एक महिला को गांववालों ने जब डायन घोषित कर दिया तो आरोग्य मित्र ने उसका पुरजोर विरोध किया। लेकिन गांववालों ने उस महिला सहित आरोग्य मित्र युवती को भी मार दिया। आरोग्य मित्र ने अपने प्राणों की आहुति दे दी लेकिन गलत परम्परा का समर्थन नहीं किया। आरोग्य मित्रों के इस समर्पण भाव को देखकर अब विश्वास होने लगा है कि सभी को स्वस्थ रखने का लक्ष्य प्राप्त करना मुश्किल नहीं है। इस लक्ष्य को अभी तक इसलिए भी हासिल नहीं किया जा सका क्योंकि राज्य सरकारों का स्वास्थ्य को लेकर अलग-अलग एजेंडा रहता है। केन्द्र सरकार द्वारा पोषित एवं संचालित योजनाओं की अपनी सीमाएं हैं। आरोग्य मित्र योजना की सफलता इस बात का प्रमाण है कि समाज भी विकास में असरकारी भूमिका निभा सकता है। यदि सरकार और समाज मिलकर आगे बढ़ें तो सफलता का स्वाद और भी मीठा होगा।
आरोग्य मित्र योजना ठाणे के डॉ. अनन्त नारायण कुलकर्णी के दिमाग की उपज है। इसे मूर्त रूप प्रदान किया संघ के वर्तमान सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी ने जो 1980 के दशक में ठाणे में जिला प्रचारक थे। एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त करने के बाद डॉ. कुलकर्णी 1980 में ठाणे की अत्यंत पिछड़ी दो तहसीलों, जवाहर तथा मोखड़ा, में एक ट्रस्ट के माध्यम से सेवा करने लगे। वर्ष 1981 की एक घटना को याद करके डॉ. कुलकर्णी आज भी विचलित हो जाते हैं। वे बताते हैं, ''मैं अपने दवाखाने पर बैठा था। सुबह का वक्त था। एक वनवासी दंपती अपने बीमार बच्चे को लेकर हांफते हुए आए। जैसे ही मैंने अपना स्टेथोस्कोप उस बच्चे को लगाया तो पता चला कि उसमें प्राण ही नहीं हैं। मैंने उनसे पूछा कि बच्चे को लेकर घर से कब निकले थे। उन्होंने बताया कि करीब आधी रात को। आठ घंटे पैदल चलकर वे दवाखाने पहंुचे। लेकिन डिहाइडे्रशन की वजह से बच्चा रास्ते में ही दम तोड़ चुका था। इससे मुझे वहां के दूसरे लोगों की भी चिंता सताने लगी। फिर कई पहाड़ों को पार करते हुए हम छह घंटे बाद उस गांव में पहुंचे। हमने देखा कि हर झोंपड़ी में कोई न कोई व्यक्ति बीमार था, कई लोगों की मौत हो चुकी थी। वहां कोई डॉक्टर भी नहीं पहंुचा था। हमने सभी मरीजों को दवा दी। बीमारी के कारणों का पता किया तो मालूम हुआ कि गांव के लोग जिस कुएं से पानी पीते थे, वह बहुत गंदा हो गया था। इसलिए हमने गांव वालों को क्लोरिन पाउडर दिया और एक युवक की जिम्मेदारी लगाकर उस कुएं में एक अंतराल के बाद पाउडर डालने की व्यवस्था की। उसने वह काम अपनी अंत:प्रेरणा से किया। बाद में मेरे दिमाग में आया कि उस युवक के कारण उस गांव में बाद में कोई बीमार नहीं पड़ा। इसके बाद विचार आया कि यदि यह प्रयोग अन्य क्षेत्रों में किया जाए तो हम बहुत से लोगों को असमय मौत से बचा सकते हैं। 1982 में हमने पांच गांव चुने और युवकों को प्राथमिक चिकित्सा का प्रशिक्षण देकर दवाइयां दीं। उन्हें समझाया गया कि यदि एक या दो दिन दवा देने के बाद मरीज ठीक न हो तो उसे तुरंत दवाखाने पर लाएं। उस आरोग्य मित्र की दवा पेटी में एलोपैथिक दवाइयां भी होती थीं। कुछ तकनीकी कारणों से उन्हें हटाकर होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक दवाइयां रखनी शुरू की गईं।' डॉ. कुलकर्णी बताते हैं कि महाराष्ट्र में जिन स्थानों पर लोगों में पर्याप्त स्वास्थ्य जागरूकता पैदा हो गई है और चिकित्सा सुविधाएं भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं, वहां आज यह योजना बंद कर दी गई है और आरोग्य मित्रों को दूसरे काम में लगा दिया गया है। हालांकि संपूर्ण देश में यह स्थिति बनने में अभी वक्त लगेगा।
धन्वंतरि सेवा यात्रा अहम
पूर्वोत्तर के दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के मन में शेष देश के साथ एकात्म भाव जागृत करने में धन्वंतरि सेवा यात्रा की बहुत बड़ी भूमिका है। यह यात्रा वर्ष 2005 से प्रतिवर्ष आयोजित होती आ रही है और अभी तक 13 यात्राएं आयोजित हो चुकी हैं। 13वीं यात्रा इसी वर्ष 21 से 28 फरवरी तक आयोजित की गयी जिसमें गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, मणिपुर एवं अमेरिका तक से 75 चिकित्सकों एवं 76 मेडिकल छात्रों ने अपना खर्च स्वयं वहन कर भाग लिया। मणिपुर के आरआईएमएस से 34 चिकित्सकों ने अपना पूर्ण समय दिया। सभी चिकित्सकों की 25 टोलियां बनाकर 25 स्थानों पर भेजी गईं। इन टोलियों ने सातों राज्यों के 37 जिलों में 118 चिकित्सा शिविर लगाकर 282 गांवों के 20,965 मरीजों का नि:शुल्क इलाज किया। सेवा भारती पूर्बाञ्चल के संगठन मंत्री श्री नरेश कुमार विकल्प के अनुसार गत 12 यात्राओं में 390 चिकित्सकों एवं 396 मेडिकल छात्रों ने 865 चिकित्सा शिविरों के माध्यम से 2130 ग्रामों में 1,54,958 रोगियों का इलाज किया एवं दवाइयां वितरित कीं।
आरोग्य मित्र
देशभर में सेवारत आरोग्य मित्र 14,000
50,000 अभी तक प्रशिक्षण ले चुके हैं
अकेले पूर्वोत्तर के सात राज्यों में सेवारत आरोग्य मित्र 5,500
कौन चलाता है योजना: सेवा भारती पूर्वांचल, आरोग्य भारती, विश्व हिंदू परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम। इसके अलावा अलग-अलग प्रांतों में स्थानीय संस्थाएं जैसे जनकल्याण समिति महाराष्ट्र आदि भी प्रशिक्षित करती है आरोग्य मित्रों को। अखिल भारतीय स्तर पर आरोग्य मित्रों को एक मंच लाने का काम करती है राष्ट्रीय सेवा भारती।
क्या होता है आरोग्य मित्र: प्रशिक्षित चिकित्सकों और दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले अभावग्रस्त रोगियों के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी जो प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराती है।
क्या करता है आरोग्य मित्र: प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराने के साथ-साथ लोगों में इतनी स्वास्थ्य जागरूकता पैदा करना ताकि वे बीमार ही न पडें। इसके अलावा संस्कार केन्द्र, मातृमंडली, स्वयं सहायता समूह, स्वावलंबन हेतु प्रशिक्षण आदि का भी संचालन।
कौन उठाता है खर्च: आरोग्य मित्र पूर्ण रूप से नि:शुल्क सेवा करते हैं। दवा भी नि:शुल्क ही देते हैं। स्वयं किसी प्रकार का मानधन नहीं लेते। अपना कोई भी अन्य व्यवसाय अथवा खेती करते हुए सेवा स्वरूप यह काम करते हैं। दवा का खर्च वह संस्था उठाती है जिससे वे जुड़े होते हैं।
कौन देता है प्रशिक्षण: प्रशिक्षण के लिए एक व्यवस्थित तंत्र है। केंद्रीय टोली भी है जो प्रशिक्षण पर नजर रखती है। शुरू में दस दिन का प्रशिक्षण, उसके बाद एक महीने का प्रशिक्षण दिया जाता है।
क्या सिखाया जाता है प्रशिक्षण में: प्राथमिक चिकित्सा, कैसे दवा देनी है, कौन-सी दवा देनी है, कैसे रोग के लक्षण पहचानें, कैसे डॉक्टर से परामर्श करें, कैसे लोगों को स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित किया जाए।
ममिना राडूस, 25
गांव पांडपाड़ा, जिला कंधमाल, ओडिशा, 2008 से आरोग्य मित्र।
पेट में डेढ़ किलो का ट्यूमर और आठ माह का गर्भ लिये चार दिनों से जिला सरकारी अस्पताल में दर्द से कराह रही आठ माह की गर्भवती वनवासी महिला का अपने खर्च पर ऑपरेशन कराया और आरोग्य मित्र युवतियों के साथ रक्तदान किया।
लक्ष्मणन, 31
गांव अट्टपड़ी, जिला पालघाट, केरल 2009 से आरोग्य मित्र।
आसपास के 25 गांवों को नशामुक्त करने पर विशेष जोर। गंभीर लत के शिकार लोगों को स्वामी विवेकानन्द मेडिकल मिशन अस्पताल में भर्ती कराकर इलाज। अभी तक 25 गावों के 200 से अधिक लोगों को नशामुक्त कराया।
पाबुनी लता, 23
गांव कोबारकिमा, जिला कंधमाल, ओडिशा, 2013 से आरोग्य मित्र।
रोगियों को दवा देने के साथ साथ गांव के हर घर-घर में शौचालय का निर्माण और गंदे तथा बारिश के पानी की निकासी के लिए नालियांें का निर्माण। इसके अलावा सत्संग व बाल संस्कार केन्द्र भी चलाती हैं।
दीपांकर बिस्वास, 30
गांव रायकाटा, जिला होजाई, असम, 2004 से आरोग्य मित्र ।
टिटनेस से पीडि़त छह साल के जिस बच्चे को सरकारी अस्पताल ने यह कहकर घर ले जाने को कह दिया था कि अब वह नहीं बचेगा, उसका होम्योपैथी पद्धति से सफल इलाज किया। वह बच्चा आज नौवीं कक्षा में पढ़ रहा है।
बबीता बैशौय, 26
गांव खेत्री, जिला गुवाहाटी, असम 2005 से आरोग्य मित्र।
कन्वर्जन के कई प्रयास विफल किये। लोगों को प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराने के साथ-साथ महिला स्वावलंबन पर विशेष जोर। गांव की महिलाएं अब स्वयं पैसे कमाकर अपने परिवार की मदद कर रही हैं। उमावती कंवर,
उमावती कंवर, 25
गांव नवजांग, जिला गोलाघाट, असम 2004 से आरोग्य मित्र।
पिछले साल नागालैंड-असम सीमा पर स्थित 14 गांवों को जब कुछ आतंकवादियों ने जला दिया तो आरोग्य मित्रों को साथ लेकर न केवल पीडि़तों का इलाज किया बल्कि विवाद को शांत भी कराया।
डॉक्टर और रोगी के बीच एक सेतु हैं आरोग्य मित्र
राष्ट्रीय सेवा भारती के पालक अधिकारी एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सहसेवा प्रमुख श्री अजित महापात्रा कई वषार्ें से आरोग्य मित्र योजना से जुड़े हैं। यह योजना क्या है, यह समझने के लिए प्रस्तुत हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
आरोग्य मित्र होता क्या है?
हमारे देश में ऐसे अनेक दुर्गम स्थान हैं, जहां से अस्पताल कोसों दूर हैं। अक्सर देखने में आता है कि पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले मरीज को खाट पर लिटाकर पहाड़ के ऊपर से नीचे लाया जाता है और मरीज अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देता हैं। अगर मरीज को सही समय पर अस्पताल पहुंचा दिया जाए और उसे प्राथमिक चिकित्सा मिल जाए तो उसके जीवन की रक्षा हो सकती है। दूसरे मरीज को समय पर डॉक्टर के पास ले जाने के लिए भी समझ चाहिए। आरोग्य मित्र दुर्गम क्षेत्रों में बैठा हुआ ऐसा प्रशिक्षित व्यक्ति है जो लोगों का सही मार्गदर्शन कर उनकी जान बचाने का काम बिना पैसा लिये करता है।
आरोग्य मित्र क्या स्वास्थ्य जागरूकता संबंधी काम ही करता है अथवा कुछ और भी?
स्वास्थ्य संबंधी काम तो महज एक पहलू है। वह अकेला व्यक्ति पूरे परिवार और गांव के स्वास्थ्य की चिंता करता है। लोग बीमार ही न पड़ें इसके लिए वह आवश्यक जागरूकता पैदा करता है। एक घटना बताता हूं। मैं पूर्वोत्तर में प्रवास पर था। वहां एक आरोग्य मित्र के साथ एक परिवार में गया। उस परिवार में लोग सुबह ही काम पर चले जाते हैं। घर पर बच्चे ही होते हैं। एक बूढ़ी मां बीमार थी। उसकी स्थिति ऐसी थी कि उसे उठकर दवाई लेने में भी कष्ट होता था। आरोग्य मित्र ने बुजुर्ग महिला को दवा दी और पानी भी गर्म करके दिया। यदि घर में संपर्क नहीं होता तो वह पानी गर्म कैसे कर पाती? इस तरह उसका पूरे परिवार से अच्छा संबंध रहता है। आरोग्य मित्र ने बच्चों से पूछा कि वे स्कूल क्यों नहीं गए? बच्चों ने कहा कि आज छुट्टी है। आरोग्य मित्र ने कहा, छुट्टी है तो एक दो घंटा पढ़ाई करनी चाहिए। बच्चे जहां विद्यालय नहीं जाते वहां आरोग्य मित्र बच्चों को विद्यालय जाने के लिए समझाने का कार्य भी करते हैं। उस आरोग्य मित्र ने बच्चों को उनके आंगन में लगे औषधीय पेड़ों और पौधों और उनके गुणों के बारे में भी बताया। एक परिवार बकरी पालन करता था। आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उसे सारी बकरियां बेचनी पड़ीं। परिवार परेशान था, अब क्या करें। आरोग्य मित्र ने परिवार को बकरियां पालने के लिए ऋण दिलवाया। ऐसे बहुत से कार्य आरोग्य मित्र गांवों में करते हैं।
आरोग्य मित्र दवाइयां नि:शुल्क देते हैं अथवा कुछ पैसा भी लेते हैं?
दवा पूरी तरह नि:शुल्क दी जाती है, लेकिन कुछ गांवों में जहां लोगों को लगता है कि दवा नि:शुल्क नहीं लेंगे तो वे अपनी सामर्थ्य के अनुसार एक-दो रुपया दे देते। लेकिन जो पैसा वे देते हैं, वह भी उनके गांव में ही रहता है। उस पैसे से दवा खरीदकर गांव में ही मरीजों को दे दी जाती है।
तो फिर हजारों आरोग्य मित्रों द्वारा वितरित की जाने वाली दवा का खर्च कौन वहन करता है?
सारा खर्च सेवा भारती अथवा वे संस्थाएं वहन करती हैं जिनके द्वारा यह योजना चलती है। संस्थाएं भी समाज से धन लेती हैं।
आरोग्य मित्र के प्रशिक्षण की क्या व्यवस्था है?
इसके लिए सभी स्थानों पर एक व्यवस्थित तंत्र विकसित किया गया है। इसके अलावा हमारी एक केंद्रीय टोली है जो इस प्रकार की चिंता करती है। पूर्वोत्तर में हम इस संबंध में डॉक्टर बैनर्जी का नाम ले सकते हैं। दवाइयां कैसे देनी हैं? कौन सी दवा कब देनी है? इस प्रकार की जानकारी देने के लिए एक प्रांतीय टोली रहती है, जो दवा के बारे में भी प्रशिक्षण देती है। उसकी एक टीम जिले में भी बन गई है। वे भी कार्यकर्ता को प्रशिक्षण देते हैं। यह प्रशिक्षण कार्य हर महीने होता है। इसके अलावा कार्यकर्ता अपने अनुभव से भी सीखते हैं। साथ ही सभी आरोग्य मित्र किसी न किसी डॉक्टर के संपर्क में रहते हैं जिनसे बात करके ही वे रोगी को दवा देते हैं। आरोग्य मित्र डॉक्टर और मरीज के बीच एक सेतु हैं।
वर्तमान सरकारी नियमों के अनुसार क्या आरोग्य मित्र चिकित्सा कर सकते हैं?
हमारा सवाल सरकार से है। हर गांव, कस्बे तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने की जो व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए वह कर ले तो हम इस योजना को बंद कर देंगे। सरकारी अस्पतालों में केवल दवा मिलती है, लेकिन आरोग्य मित्रों का मुख्य प्रयास यह रहता है कि व्यक्ति बीमार ही न पड़े। लोग स्वयं को स्वस्थ रखें। हमारा लक्ष्य एक स्वस्थ समाज का निर्माण करना है। सुदूर कोने में मौजूद अथवा जंगल में रहने वाला व्यक्ति अगर स्वस्थ नहीं है तो फिर समाज कैसे स्वस्थ बन सकता है?
अभी देशभर में कितने राज्यों में आरोग्य मित्र सक्रिय हैं?
देश के सभी राज्यों में आरोग्य मित्र सक्रिय हैं। वे ऐसे सभी क्षेत्रों में काम कर रहे हैं, जहां उनकी आवश्यकता है।
पूरे देश में कितने आरोग्य मित्र होंगे?
करीब 14 हजार आरोग्य मित्र हैं। अभी तक 50 हजार से अधिक लोगों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। प्रशिक्षण लेने के लिए अधिक लोग आते हैं, लेकिन सभी लंबे समय तक सेवा नहीं कर पाते।
देश के सभी दुर्गम क्षेत्रों में आरोग्य मित्र तैयार करने के लिए क्या कोई योजना बनी है?
इस पर कार्यकर्ताओं के बीच मंथन चल रहा है। अखिल भारतीय बैठक में भी यह विषय सबके ध्यान में आया है। हम हर गांव तक जाएंगे, लेकिन इसमें थोड़ा समय लगेगा। पहले हर जिले तक हमारी पहुंच हो जाए। *
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