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26/11 के साजिशकर्ता हेडली की शिकागो जेल से मुम्बई की अदालत में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हुई गवाही में जो बातें सामने आई हंै वे वह पहले भी एनआईए को 2010 में बता चुका है। उसने कोई नई बात नहीं कही है। नई बात बस यह है कि पहली बार हमारे न्यायालय में किसी विदेशी आतंकी ने बयान दिया है जिसे वैध बयान माना जा सकता है। दूसरी चीज यह है कि बयान लेना तो ठीक, पर पाकिस्तान की हरकत हम जानते ही हैं कि वह हमारे हर सबूत को नकारने की ही कोशिश करता है। पाकिस्तान बार-बार कहता है, पठानकोट हमले की साझा जांच होनी चाहिए। वह टालने की कोशिश में लगा रहेगा। लेकिन जो बयान हेडली ने यहां दिया है वैसा ही बयान वह पाकिस्तान की अदालत में भी तो दे सकता है।
हेडली के बयान से साफ है कि पाकिस्तान की आईएसआई भारत के खिलाफ चलने वाले तमाम ऑपेरशन नियंत्रित करती है। लेकिन हेडली ने जिन मेजर इकबाल और मेजर समीर अली आदि के नाम लिए हैं तो लगता है, ये उनके असली नाम नहीं होंगे। लेकिन साबित हुआ है कि आईएसआई के मेजर इकबाल ने उसे 25 हजार डालर दिये थे, लश्करे तोएबा से प्रशिक्षण दिलाया था। हमने तो बार-बार कहा है कि लश्करे तोएबा को आईएसआई शरण दे रहा है, हाफिज सईद को बढ़ावा दे रहा है, पर अब हमें हेडली की जबानी यही चीज दुनिया के सामने रखनी चाहिए। ओसामा बिन लादेन ने किसी का खून नहीं किया था, स्वयं कोई हमला नहीं किया था, लेकिन हमले करवाये थे। ओसामा बिन लादेन को अमेरिका ने अपना दुश्मन नम्बर एक मानकर उसे खत्म भी किया। इसी हिसाब से हाफिज सईद लश्करे तोएबा का प्रमुख हो या न हो, जमात उद दावा का कुछ हो या न हो, पर वह भारत विरोधी उन्माद भड़काता रहा है, लोगों के दिमाग में भारत के खिलाफ जहर भरता रहा है। आत्मघाती हमलावर बनाता है। प्रत्यक्ष रूप से उसके हाथ खून से सने हुए भले न हों लेकिन उसके प्रशिक्षण से कसाब जैसे आतंकी पैदा होते हैं। हालांकि हमारी सरकार ने शायद कसाब को थोड़ा जल्दी फांसी दे दी, उसे तो बार-बार पाकिस्तान के सामने खड़ा करके कहना था कि यह है तुम्हारा बंदा। उसने खुद कई बार कहा कि वह फरीदकोट का था, उसे ट्रेनिंग दी गई थी। हम दुनिया को दिखाते कि ये हैं पाकिस्तानी तरीके और करतूत।
अब हेडली के दिए साक्ष्यों से हमें पाकिस्तान को दुनिया के सामने उजागर करना चाहिए। अफसोस कि आज भी कुछ लोग पाकिस्तान के साथ 'भाई-भाई' के नारे लगाते हैं। लेकिन हमें तो आईएसआई से पूछना चाहिए कि हेडली के बयानों पर वह क्या सोचती है। वे जानते हैं कि उनकी सेना अभी और मोर्चे नहीं खोलना चाहती। अभी वह तालिबान के खिलाफ लड़ रही है। वैसे, भारत के खिलाफ लश्करे तोएबा एक तरह से उसकी सेना का ही काम कर रहा है।
इस वक्त हमें सख्त रुख अपनाना पड़ेगा। उसके बहुत से तरीके हैं। हमें अमेरिका का राग छोड़कर ब्रिटेन, रूस और फ्रांस को विश्वास में लेकर पाकिस्तान की असलियत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उघाड़नी होगी। इन देशों के मन में इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ बिलकुल भी हमदर्दी नहीं है। रही बात अमेरिका की तो वह तब तक हमारी मदद नहीं करेगा जब तक उसे फायदा नहीं दिखेगा। कुछ समय तक पाकिस्तान के साथ दोस्ती बढ़ाने की बातें छोड़कर सख्त कदम उठाने होंगे। उसे बताना होगा कि जब तक ठोस कार्रवाई नहीं होगी तब तक मीठी-मीठी बात नहीं की जाएगी।
भारत को कुछ चीजों में बदलाव लाना होगा। पहला है, बिलकुल स्पष्ट रणनीति बनानी चाहिए। तय करना चाहिए कि क्या चीजें भारत को मंजूर हैं और क्या नहीं। आएदिन भारत के सैनिक मारे जा रहे हैं, हमले में जनहानि हो रही है, लेकिन फिर भी भारत को पाकिस्तान को दुश्मन कहने में शर्म आती है। दूसरे, विदेशी नीति में हर दो-तीन साल में बदलाव होना चाहिए क्योंकि सभी देशों के साथ आप समान संबंध नहीं रख सकते।
आपको हर देश के साथ संबंधों को अलग-अलग तरीकों से परिभाषित करना होगा, प्राथमिकता तय करनी होगी। जैसे शक्तिशाली राष्ट्रों के साथ संबंधों में अमेरिका, फ्रांस और रूस प्राथमिकता पर होने चाहिए। हम अभी तक संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका की ओर देखते रहे हैं कि वे पाकिस्तान को आतंकी राष्ट्र बताएं। अरे, क्या कभी इस्रायल उम्मीद करता है कि कोई दूसरा आकर उसका हाथ थामे? इस्रायल तो महज 8 करोड़ का देश है भारत तो 125 करोड़ का देश है, फिर भी हम उम्मीद करते हैं कि कोई आए और हमारा हाथ थामे।
एक कदम और भी उठाना चाहिए। जितनी भी विदेशी कंपनियां हैं उन्हें व्यापार लाइसंेस तब ही दें जब वे खुले रूप से कहें कि वे भारत के साथ हैं, पाकिस्तान के साथ नहीं। कुल मिलाकर भारत को अपनी नीतियों में काफी बदलाव करना होगा।
(लेखक आतंकवाद और पाकिस्तान
से जुड़े विषयों पर लिखते हैं)
– मारूफ रजा
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