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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दूसरा अखिल भारतीय श्रृंग घोष शिविर 10 जनवरी को बेंगलूरु के रेवा विश्वविद्यालय परिसर में संपन्न हुआ। 7 जनवरी को शुरू हुए इस चार दिवसीय शिविर में देश के 41 प्रांतों से 2185 घोष वादकों ने भाग लिया जिनमें एक नेपाल के प्रतिभागी भी थे। वर्ष 2007 में पहला अखिल भारतीय शिविर दिल्ली में तब आयोजित किया गया था जब देशभर में द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी का जन्मशती वर्ष मनाया जा रहा था।
इसे 2008 में आयोजित प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण शिविर का परिणाम कहा जा सकता है। उस समय लगभग 300 प्रशिक्षकों ने इसमें भाग लिया था। इन सभी ने अपने-अपने प्रांतों में जाकर विभिन्न घोषवादकों को प्रशिक्षण दिया था। इस शिविर के आखिरी दिन बेंगलूरु में दो अलग-अलग स्थानों पर पथसंचलन आयोजित किये गये जिन्हें देखकर उपस्थित लोगों ने
खूब सराहा।
बेशक यह दूसरा अखिल भारतीय शिविर था और यह भी पहली बार हुआ कि कई नये वाद्ययंत्र और धुनें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बैंड में शामिल किए गए। नये वाद्ययंत्रों में- तूर्य, शरद, स्वरद, नागंग, गोमुख, महाशंख इत्यादि शामिल हैं। नयी धुनों और घोष वाद्ययंत्रों का परिचय देते हुए रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि आज हर क्षेत्र में नयापन और बदलाव हो रहा है। इसी प्रकार संगीत, स्वर और वाद्य भी एक देश विशेष के नही हैं। ये हम पर निर्भर करता है कि हम इन्हें एक बेहतर लक्ष्य के लिए कैसे प्रयोग करते हैं। हमारे पास ये परंपरा के रूप में विद्यमान हैं। रण संगीत अतीत में भी हमारे पास था। हमने इससे अपनी भारतीय आत्मा से जोड़ा। हमने सैक्सोफोन को नागंग, क्लेरियोनेट को स्वरद, यूफोनियम को गोमुख और ट्रम्पेट को तूर्य के रूप में ग्रहण किया है। हमारे लिए वे नाम भी ठीक हैं लेकिन हमने इनके साथ अपनी परंपरा को जोड़ दिया। वह इसलिए क्योंकि ये हमारे मूल्य हैं। विगत समय में कई बार ऐसा समय आया जब सेना ने हमारे धुनों को बजाया।'
सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. के.राधाकृष्णन ने कहा कि विज्ञान और तकनीक को अपना ध्यान बड़े और जटिल मुद्दों पर केन्द्रित रखना चाहिए। यह जरूरी है कि जीवनमूल्यों का संदेश समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंुचे। विश्वभर में बढ़ते तकनीक ज्ञान के साथ प्रभावी प्रबंधन की जरूरत है ताकि नई दिशाएं और नये समाधान सुलभ हो सके- 'अपने जीवन और लक्ष्य के विषय में हमारी दृढ़ सोच होनी चाहिए और हमें एक निश्चित मूल्य प्रणाली पर चलना चाहिए। इससे हमें अपनी जन्मभूमि के प्रति अपना कर्तव्य निभाने में सहायता मिलगी और हम मानवता को निष्काम कर्म के रूप में चरितार्थ कर सकेंगे। हममें से प्रत्येक आदमी कुछ अलग कर सकता है और जब इस दुनिया से विदा होंगे तो एक समृद्ध विरासत छोड़ सकते हैं।'
इससे पूर्व 7 जनवरी को रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय कुटुम्ब प्रबोधन के प्रमुख श्री एस रमन्ना ने इस शिविर का उद्घाटन किया। इस अवसर पर रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख श्री सुनील कुलकर्णी, दक्षिण मध्य क्षेत्र के संघचालक श्री वी. नागराज, अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख श्री मुकुंद सी.आर., अखिल भारतीय सह शारीरिक प्रमुख श्री जगदीश प्रसाद भी उपस्थित थे। -वि.सं.के. कर्नाटक
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