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राजनीति की अंतिम पारी को सम्मानजनक ढंग से समाप्त करने की कशमकश में लगे ओबामा और अमरीका की प्रथम महिला राष्ट्रपति बनने के रंगीन सपने सजा रहीं हिलेरी क्लिंटन, दोनों की इच्छाएं आंच पर हैं। कैलीफोर्निया के सैन बर्नियाडो में हुए जिहादी आतंकी हमले को आतंकी हमला कहने में दोनों हिचक रहे हैं। नवंबर माह में पेरिस पर हुए बर्बर आतंकी हमले ने वैसे ही अमरीकी लोगों के मानस को आंदोलित कर रखा था। अब अमरीका की जमीन पर हुई इस दहशतगर्दी ने अमरीकियों के साथ-साथ इन दोनों के लिए भी दहशत का वातावरण बना दिया है। ओबामा ने इस घटना को अमरीका में बढ़ रही 'बंदूक संस्कृति' से जोड़कर लोगों के गुस्से की दिशा को मोड़नेे की कोशिश की, लेकिन एक आम अमरीकी 'बन्दूक संस्कृति' और 'जिहादी संस्कृति' का अंतर समझने लगा है। क्योंकि यदि इस आतंकी हमले को अमरीकी समाज में बढ़ रहे लाइसेंसी हथियारों से जोड़ा जाए तो फिर बगदादी और अल जवाहिरी के मुकाबले के लिए सैनिकों को भेजने की जगह मनोवैज्ञानिकों को मैदान में उतारना ठीक रहेगा। अपनी महत्वाकांक्षाओं के मद्देनजर हिलेरी क्लिंटन ने इस्लामिक स्टेट और विदेश नीति को लेकर हमले झेल रहे ओबामा से वैसे ही दूरी बनानी शुरू कर दी थी। अब वह भी शब्द खर्च करके कोई बड़ी कीमत चुकाने से बचना चाह रही हैं। लेकिन राहत न तो ओबामा को मिलती दिख रही है, न ही उनकी सरकार में विदेश मंत्री रहीं हिलेरी क्लिंटन को। 4 दिसम्बर को हिलेरी क्लिंटन ने ट्वीट किया कि 'हमलावरों का उद्देश्य जो भी रहा हो, हमें सुनिश्चित करना होगा कि वो ऐसा न कर सकें।' पेशे से वकील रहीं हिलेरी क्लिंटन अपराध और अपराध के उद्देश्य को अलग-अगल करके देखना चाह रही हैं। ये लचर तर्क है। पेरिस हमले के बाद, इस्लामिक स्टेट पर जारी अमरीका, फ्रांस और ब्रिटेन की वायु सेनाओं के हमलों के मद्देनजर, पश्चिम के बुद्धिजीवी वर्ग और राजनीतिक हलकों में सवाल उठना शुरू हो गया है कि दूर बैठे जिहादियों को खत्म करना तो ठीक है, लेकिन अपने ही समाज में पनप रही मनोवृत्तियों को कब तक नजरअंदाज किया जाएगा? जाहिर है कि हमलावरों का उद्देश्य जो भी रहा हो़़, अमरीकियों के गले नहीं उतरने वाला।
अमरीका की आंतरिक-बाह्य सुरक्षा के सन्दर्भ में ओबामा की विदेश नीति लम्बे समय से सवालों के घेरे में है। इस्लामी आतंकियों को अपने विरोधियों के खिलाफ मोहरा बनाना अमरीका के लिए कोई नई बात नहीं है। आखिरकार 80-90 के दशक में पाकिस्तान और सऊदी अरब के साथ मिलकर अमरीका ने ही अफगान जिहाद की नींव रखी थी, लेकिन आज से डेढ़ दशक पहले न्यूयार्क पर हुए 9/11 के हमले ने अमरीका को झकझोर दिया था। तत्कालीन बुश प्रशासन ने इस्लामी आतंकियों के विरुद्ध 'वार ऑन टेरर' का ऐलान किया था। आंतरिक सुरक्षा अमरीकियों के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गया। ऐसे में इस्लामिक स्टेट को खड़ा करने में ओबामा की प्राथमिक भूमिका बड़ा सवाल बनती जा रही है। 9/11 के हमले के बाद अगले नौ वर्ष तक राष्ट्रपति बुश ने आतंक के विरुद्ध लड़ाई को अपनी प्राथमिकताओं की सूची में सबसे ऊपर रखा। अफगानिस्तान और इराक में लम्बी लड़ाई लड़ी गई। अमरीका की आर्थिक दशा पहले ही गड़बड़ थी। खर्च बढ़ते गए। स्वास्थ्य सुविधाएं, सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक नीतियां बड़े मुद्दे बन गए। इन्हीं मुद्दों को आधार बनाकर ओबामा ने चुनाव लड़ा और जीते। ओबामा ने अपने चुनावी अभियान में 'वार ऑन टेरर' पर सवाल उठाए थे। अफगानिस्तान से अमरीकी सैनिकों की वापसी की बात की थी और आर्थिक नीतियों में बदलाव, सामाजिक क्षेत्र को प्राथमिकता और खचोंर् में कटौती पर जोर दिया था। आज इन सारे मोचोंर् पर अमरीकी नागरिक बहुत संतुष्ट नहीं दिखाई पड़ रहे हैं, जबकि आंतरिक सुरक्षा बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। 15 अप्रैल, 2013 को बोस्टन मैराथन के दौरान भी एक बम धमाका हुआ था। इस दौरान इस्लामी आतंकियों के अनेक षड्यंत्र भी सामने आते रहे। 9/11 के हमले के बाद से आज तक अमरीका में दर्जनों आतंकी हमलों के प्रयास हो चुके हैं। दिसंबर, 2001 में ही एक अमरीकी विमान को बीच यात्रा में बम से उड़ाने की साजिश पकड़ी गई थी। 2002 में पाकिस्तान से लौट रहे एक व्यक्ति को अमरीका में रेडियोएक्टिव धमाके की साजिश के लिए पकड़ा गया था। इसी प्रकार ब्रुकलिन ब्रिज को उड़ाने, न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज और न्यूयॉर्क सिटी सबवे, लॉस एंजेलिस पर हमले की योजना, न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी के बीच सुरंग को उड़ाने का षड्यंत्र, डलास में एक बहुमंजिला इमारत को ध्वस्त करने की योजना, डेट्रॉइट शहर के ऊपर बम गिराने की योजना, न्यूयॉर्क के टाइम स्क्वायर पर कार बम हमले का षड्यंत्र, राजधानी वाशिंगटन में आत्मघाती हमले की साजिश आदि सामने आ चुके हैं। 2011 में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने से ओबामा को कुछ राहत मिल सकती थी, परन्तु वास्तव में श्रेय उन्हें न मिल सका, क्योंकि वे स्वयं ही इन कार्रवाइयों पर सवाल उठा चुके थे।
विपक्ष ने ओबामा की विदेश नीति को इस्लामिक कट्टरवादियों के तुष्टीकरण से जोड़कर जनता के सामने रखना पहले ही शुरू कर दिया था। तालिबान के मृत नेता मुल्ला उमर और ओसामा बिन लादेन को छिपाकर अमरीका की आंखों में धूल झोंकने वाले पाकिस्तान को दी जा रही आर्थिक और सैन्य सहायता, सऊदी अरब के साथ हाथ मिलाकर सीरिया के राष्ट्रपति असद के खिलाफ बगदादी और उसके बर्बर गिरोह को खत्म करना, फिर बाद में उसी के खिलाफ युद्ध छेड़ना, मिस्र और उत्तरी अफ्रीका के देशों में इस्लामिक चरमपंथी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड को मान्यता देना और उसे एक राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित होने में सहायता देना, भविष्य में बड़े मुद्दे बन सकते हैं। कैलीफोर्निया के सैन बर्नियाडो पर हमला करने वाले सईद रिजवान फारूक और उसकी साथी तशफीन मलिक का पाकिस्तान से सम्बंध स्थापित हो चुका है। ओबामा प्रशासन में ऐसे लोगों की नियुक्ति, जिनके कट्टरवादियों से निकट के सम्बन्ध रहे हैं, भी एक बड़ी बहस को जन्म दे सकती है। अमरीकी सरकार ने अमरीकी मुसलमानों से संवाद बढ़ाने के लिए भी कुछ विशेष नियुक्तियां की थीं, लेकिन नियुक्त किए गए लोगों की कट्टरवादी पृष्ठभूमि पर प्रश्नचिन्ह लगाए गए थे। विवादित नियुक्तियों में हिलेरी की एक अत्यंत निकट सहयोगी का नाम भी शामिल है। हिलेरी विदेश मामले देखती थीं। इस्लामिक देशों के संगठन से बातचीत के लिए तैनात किया गया अमरीकी प्रतिनिधि भी इसी प्रकार के सवालों के घेरे में आया था। अपने चुनाव अभियान में भी हिलेरी इस्लामिक कट्टरवाद पर कुछ भी कहने से बचती रही हैं। इस बीच यूरोप से आ रही खबरें अमरीकी मीडिया में सुर्खियां बन रही हैं। और निश्चित रूप से ओबामा और हिलेरी की उलझनें भी बढ़ रही होंगी। खुफिया एजेंसियों ने खुलासा किया है कि इस्लामिक स्टेट आगामी हफ्तों में ब्रिटेन पर बड़ा आतंकी हमला करने की योजना बना रहा है। फ्रांस में जिहादी नेटवर्क को नष्ट करने के साथ इस्लामिक कट्टरवाद पर सख्ती से लगाम लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
दिसम्बर के प्रथम सप्ताह में सारे फ्रांस में छापेमारी हुई है और कट्टरवाद के प्रसार का केंद्र बन चुकी 160 मस्जिदों पर ताले लगाने की तैयारी हो चुकी है। इसमें फ्रांस की सबसे पुरानी मस्जिद भी शामिल है। यूरोप अपनी सुरक्षा को लेकर बेचैन है। अमरीकियों का यूरोपीय लोगों से रक्तसम्बन्ध भी है और उनके मानसिक तार भी आपस में जुड़े हैं। ऐसे में कैलीफोर्निया में हुआ हमला आग में 'पेट्रोल' का काम करने को तैयार है। ओबामा की शांति के साथ सेवानिवृत्ति और हिलेरी के सपने, दोनों खटाई में पड़ते दिख रहे हैं। -प्रशांत बाजपेई
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