साक्षात्कार -  'इंसानियत के दुश्मन हैं आईएस के आतंकी'
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साक्षात्कार –  'इंसानियत के दुश्मन हैं आईएस के आतंकी'

by
Nov 23, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 23 Nov 2015 14:27:58

 

इराक में आईएसआईएस को स्थानीय स्तर पर ललकारने और इसकी भर्त्सना करने वाले शिया नागरिक सुरक्षा दल (सिविल डिफेंस) के सदस्य अब्बास नासिर सईद 'अबाकाती' हाल ही में भारत लौटे हैं। मूल रूप से लखनऊ में रहने वाले अब्बास इराक में शिया थियोलॉजी पर पीएच.डी कर रहे हैं। आईएस की दहशत को करीब से देख चुके अब्बास नासिर सईद से पाञ्चजन्य संवाददाता राहुल शर्मा ने की बातचीत। प्रस्तुत हैं इस वार्ता के प्रमुख अंश :
आप इराक में पढ़ाई के लिए गए और वहां आईएस के विरुद्ध मुहिम से जुड़ गए, कैसे?
देखिये विदेश में मेरी पहचान सबसे पहले एक भारतीय के रूप में है। मैं पहले भारतीय हूं उसके बाद मुसलमान हूं। मेरे दादाजी के बड़े भाई आजाद हिन्द फौज के सदस्य रहे थे। मेरे पिता अली नासिर सईद 'अबाकाती' आगा रूही से भी परिवार को शुरू से देशभक्ति की शिक्षा मिली। इसी वजह से आईएस के जुल्म का शिकार बने लोगांे के दर्द को देखकर मैं स्वयं इराक की सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली सिविल डिफेंस 'मोबिलाइजेशन फोर्स' का सदस्य बन गया। अल नजफ  में 'शिया इस्लामी वर्ल्ड' के मजहबी उस्ताद सैयद अली सिस्तानी ने खुद फतवा जारी कर कहा कि आईएस के लड़ाके आतंकवादी हैं और जो लोग हथियार उठाने में सक्षम हैं, उन्हें आगे बढ़कर इन दहशत फैलाने वालों का मुकाबला करना चाहिए। इसके बाद से बड़ी संख्या में युवा बढ़कर सिविल डिफेंस, अल बद्र सेना और हश्द अरशबी सेना में शामिल हो गये। मई-जून, 2014 में मुझे 'अलअसकरी शिरीन' की सुरक्षा करने वाले दल के साथ रहने का अवसर मिला। यह जगह अल नजफ से करीब 300 किलोमीटर दूर है और हर जगह सेना की तैनाती नहीं है। ऐसे में आईएस के आतंकी मौका पाकर कभी भी कहीं भी हमला करने से नहीं चूकते हैं और उनके हमला करने का डर बना रहता है।
अभी आपके इराक से लौटते समय वहां के क्या हालात थे और इराक में आईएस का किस हद तक सफाया हो पाया है?
इराक में 'ट्राइंगल ऑफ डेथ' यानी रमादी, फजुल्ला और तिरकित में आईएस ने सबसे अधिक कहर बरपाया था। अमरीका, रूस और इराकी सेना की मदद से तिरकित को उनके आतंक से मुक्त करा लिया गया है, लेकिन आज भी दिन के समय भी लोग स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं। आईएस के आतंकियों की कोई सीमा नहीं है और वे खुली जीप में आकर बम बरसाकर चले जाते हैं या निहत्थे लोगों को अपनी बंदूक की गोलियों से छलनी कर फरार हो जाते हैं। जिन इलाकों में उन्होंने तेल के कुआंे पर कब्जे किए हैं, उनका तेल बेचकर वे कमाई कर रहे हैं। इराक में आईएस के आतंकियों की दहशत कम नहीं हुई, वे सभी इंसानियत के दुश्मन हैं। कुरान में लिखा है कि जिसने एक इंसान की हत्या की उसने इंसानियत को मार दिया। इन लोगों ने भी इंसानियत को खत्म कर दिया है। आईएस की नाफरमानी करने वाले लोग उनके निशाने पर हैं। उन्हें न कहते ही सीधे मौत के घाट उतार दिया जाता है।
पेरिस में हुए हमले से स्पष्ट हो चुका है कि आईएस केवल सीरिया, इराक और तुर्की के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए खतरा बन चुका है। इस चुनौती को आप किस रूप में देखते हैं?
जिहादी आतंकी पूरे विश्व के लिए खतरा बनकर उभरने वाले हैं। पेरिस की घटना इसका ज्वलंत उदाहरण है। यदि समय रहते विश्व के शक्तिशाली देशों ने रणनीति बनाकर इनका दमन नहीं किया तो शायद ही कोई देश इनका शिकार बनने से बच पाएगा। आईएस के आतंकी पूरी ताकत से बेकसूर लोगों की नृशंस हत्या करने में जुटे हुए हैं। ये लोग दहशत फैलाने का कोई भी मौका नहीं चूकते। मासूम बच्चे हों या फिर महिलाएं, इनके दिल में किसी के लिए भी रहम नहीं है। आर्थिक स्थिति कमजोर होने पर ये महिला, बच्चे और सेना के जवानों का अपहरण कर फिरौती मांगते हैं। इन आतंकियों में 12 वर्ष की आयु से 50 वर्ष तक की आयु वाले विशेष प्रशिक्षण प्राप्त कमांडो शामिल हैं। महिलाओं को इराक के 'शंजार' में बेचा जाता था। हाल ही में इस जगह को आईएस  के आतंक से मुक्त करवाया गया है।
आप शिया मजहबी उस्तादों की छत्रछाया में रहकर अध्ययन कर रहे हैं, आपने यह लड़ाई बतौर शिया मुसलमान लड़ी या आप इसे किसी अन्य नजरिये से देखते हैं?
यह बिल्कुल सही है कि मैं शिया हूं, लेकिन आईएस के विरुद्ध लड़ाई में मैंने मानवता को ध्यान में रखकर ही कदम आगे बढ़ाया है। मैंने इराक में रहकर आईएस के लड़ाकों के हाथ निर्दयता से मारे गए लोगों की दशा देखकर मुहिम का हिस्सा बनने का फैसला किया। इसके पीछे मैंने मजहब या अन्य किसी पहलू को कभी ध्यान में नहीं रखा।
आपको क्या लगता है, आईएस के बढ़ते आतंक को कैसे रोका जा सकता है?
देखिये पर्दे के पीछे से आईएस को आर्थिक मदद करने वाले कुछ देशों को अपनी नीति बदलनी होगी। ये देश जब तक उनकी आर्थिक मदद करना बंद नहीं करेंगे तब तक आईएस के जिहादी शक्तिशाली बनकर उभरते रहेंगे। भारत सहित विश्व के सभी देशों को यह समझना होगा कि आईएस को खत्म करना इस समय बेहद जरूरी है। यदि आईएस पर अभी लगाम नहीं लगाई गई तो फ्रांस के बाद फिर किसी दूसरे देश में रहने वाले निर्दोष लोग आईएस के लड़ाकों का निशाना बनेंगे।

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