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मजहबी आतंक – खून सने पेरिस में वे दो दिन…

by
Nov 23, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 23 Nov 2015 14:25:02

सपनों का शहर…फैशन का शहऱ…यूरोप का सबसे उदार शहर। ऐसी न जाने कितनी छवियां पेरिस को लेकर लोगों के दिलों में हैं…। यहां जिंदगी जैसे नई हिलोरें भरती है। नवंबर की गुलाबी ठंड में एक बार फिर पेरिस जाने का मौका मिला था।12 नवंबर को वहां पहंुचे तो मन में एक ही उम्मीद थी कि इस बार यूरोप के इस उदार शहर से और भी कुछ लेकर जाना है। लेकिन इस बार किस्मत में कुछ और ही लिखा था। खून की नदियां। उस शहर में जिसके निवासियों पर उपनिवेशवाद के दौर में भी कभी भारत में अंग्रेजी हुकूमत के दौर जैसे अत्याचार का आरोप नहीं लगा। लेकिन, उस डूप्ले के शहर पेरिस में इस बार कुछ ऐसा घटा कि लगा जैसे इस शांत, शालीन शहर की जिंदगी ही छीन ली हो किसी ने।
13 नवंबर की वह रात भूले नहीं भूलती। हम अपना काम खत्म करके भोजन की तलाश में निकले थे। कुछ साथी भारतीय साहित्यकारों के साथ हम उस शहर में भोजन के लिए जहां रात को भी कभी खतरे का अहसास नहीं होता। मशहूर इलाके सौजेलिजे की ओर। यह इलाका कुछ-कुछ दिल्ली के कनाट प्लेस जैसा है। खोज हुई किसी चीनी रेस्टोरेंट की, जो  नजदीक में ही दिख गया। चूंकि हम काफी थके हुए थे लिहाजा तय हुआ कि पेरिस घूमने की बजाय होटल लौटकर आराम किया जाय। अभी हम रास्ते में ही थे कि एक समाचार वेबसाइट के जरिए मुझे न्यूज अलर्ट मिला…'टेरर अटैक इन फ्रेंच कैपिटल पेरिस़'। खबर देखी ही थी कि हमारे एक फ्रेंच पत्रकार मित्र का फोन भी आ गया। दरअसल वे हमारी सलामती के लिए चिंतित थे। पेरिस चाहे कितना भी उदार हो, हमारे लिए तो परदेस ही था। सो सुरक्षा के लिहाज से हमने तत्काल होटल की तरफ जाने की तैयारी कर दी। टैैक्सी से हम आनन-फानन में होटल लौट आए। पेरिस के उस टैक्सी ड्राइवर को तब तक पता नहीं था कि ऐसा आतंकी हमला हो चुका था।
होटल के रिसेप्शन पर हम जैसे ही पहुंचे। होटल वालों ने राहत की सांस ली। हमारे जैसे ग्राहक के लिए भी पेरिस के उस होटल के कर्मचारी बेहद परेशान थे। एक ने कहा भी, अच्छा हुआ आप लोग होटल आ गए। होटल की लॉबी में ही बैठकर हमने खबरिया चैनलों को देखना शुरू कर दिया। चूंकि उस वक्त भारत में रात थी, लिहाजा हमने अपने कुशलक्षेम की जानकारी अपने परिवार को फोन पर देने की बजाय व्हाट्सएप का सहारा लिया। ़हमें यह पता था कि पेरिस पर हमले की खबर जैसे ही घरवालों को मिलेगी उनका घबराना लाजमी था। उधर भारत के कई खबरिया चैनलों ने हमसे संपर्क करना शुरू किया। मैंने पेरिस पर खूनी हमले की ताजा जानकारी दी। 
ऐसे मौकों पर हमारा मन अपने अतीत के अनुभवों के आधार पर ही भावी घटनाओं की चिंता में डूब जाता है। चूंकि हम भारत से थे और अपने यहां ऐसे मौकों पर अफरातफरी का माहौल हो जाता है़, इसके साथ ही अराजकता की हद तक अव्यवस्था फैल जाती है। पर उधर फ्रांस सरकार ने आपातकाल का एलान भी कर दिया था। हमें चिंता हुई कि खाना-पानी भी मिल पाएगा कि नहीं। सोच ही रहे थे कि अगली सुबह हमारा तय कार्यक्रम हो पाएगा या नहीं। लेकिन होटल वालों ने हमारी ये सारी आशंका निर्मूल साबित कर दी। साफ कर दिया कि खाने-पीने की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।
अगली सुबह का अनुभव हमारे लिए हैरत भरा ही रहा। फ्रांस में आपातकाल लागू होने के बावजूद कहीं भी अफरातफरी का कोई माहौल नहीं था। बेशक आतंकियों के खिलाफ पुलिस का तलाशी अभियान जारी था। हम डरते-डरते बाहर निकले। राष्ट्रपति फ्रास्वां ओलांद ने जिस लहजे में कहा था कि वे आतंकियों को चुन-चुन कर मारेंगे, उससे हमें आशंका थी कि पेरिस में जगह-जगह पुलिस के अवरोध होंगे, शहर को पुलिस ने अपने घेरे में ले लिया होगा। बाहर आकर टैक्सी वाले से अपने गंतव्य जाने के लिए पूछा तो वह तैयार हो गया। फिर भी हमें पेरिस में सहज जिंदगी की उम्मीद नहीं थी। हमने टैक्सी वाले से पूछ ही लिया कि माहौल कैसा है? जवाब सुनकर हमें बेहद सुकून मिला। उसका जवाब पारंपरिक फ्रांसीसी अंदाज में था-'एवरी थिंग इज फिनिश्ड'…यानी सब तमाम हो चुका है। शहर पटरी पर लौट आया है। जिहादी हमले से उबरने में फ्रांस की जनता ने तनिक देर नहीं लगाई, जबकि वहां की सरकार ने आतंकवादियों को सबक सिखाने का प्रण करके उन पर हमला बोल दिया। मुख्य साजिशकर्ता अबाउद को ढेर कर दिया।
पेरिस की प्रकृति और वहां के सुरक्षा बलों की कार्यशैली की बदौलत इस खूनी हमले के बाद भी हम अपने कार्यक्रम के मुताबिक और दो दिन पेरिस में रहे। अपना काम पूरा किया और अपने प्यारे वतन लौट आए।    
-मदन झा

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