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अस्सी के दशक में 2 सितंबर 1983 को उत्तराखंड का गांधी कहलाने वाले हिमालय गौरव स्व. इन्द्रमणि बडोनी ने तत्कालीन आयुक्त सुरेन्द्र सिंह पांगती के साथ वर्तमान उत्तराखण्ड राज्य के टिहरी जनपद की भिलंगना घाटी से ऐतिहासिक खतलिंग-सहस्रताल महायात्रा का श्रीगणेश किया था। बडोनी जी ने समस्त लोगों के साथ चर्चा-परिचर्चा कर प्राचीन रघुनाथ मंदिर, घुत्तू में पूरे भिलंग के देवी-देवताओं की डोलियों की पूजा अर्चना कर उन्हें साथ लेकर खतलिंग महादेव की ओर प्रस्थान किया था। इससे पूर्व श्री नवजीवन आश्रम घुत्तू विद्यालय में सारे भिलंग के विद्यार्थियों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता था। यात्रा का पहला पड़ाव गंगी गांव में होता था, जहां हजारों लोगों की गांव के लोग अपना आत्मीय अतिथि मानकर भरपूर सेवा करते थे। यात्रा पूरे सात दिन की होती थी। गंगी के पश्चात विरोद में भगवती रुद्रादेवी के मंदिर में सामूहिक पूजा अर्चना होती थी फिर दूसरा पड़ाव खरसोली का होता था। यहां से यात्री दो टोलियों में बंटते थे- कुछ तड़ीउडार होते हुए सुरम्य तालों और सरोवरों के दिव्यप्रांत सहस्रताल जाते थे तो कुछ खरसोली से ताम्रकुंड होते हुए दूध गंगा से आगे खतलिंग ग्लेशियर तक। लगभग 5 वर्षों तक यह महायात्रा निरंतर सामूहिक जनजागरण अभियान के रूप में जारी रही जिसमें प्रतिवर्ष स्व. बडोनी के आह्वान पर धर्म, अध्यात्म, पर्यटन, पर्यावरण और सामाजिक क्षेत्र के विशिष्ट लोगों के साथ विदेशी एवं देशी सैलानी तथा पर्वतीय क्षेत्र के लोग शामिल होते थे किन्तु 1987 के बाद बडोनी जी के अस्वस्थ होने के बाद यह महायात्रा घुत्तू विद्यालय में एक मेले के रूप तक सीमित हो गई।
पृथक उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद भी यह महायात्रा सत्ताधारी दल के नेताओं एवं कुछ स्वार्थी जनप्रतिनिधियों एवं स्थानीय आयोजकों के प्रचार का प्रतीक मात्र बनकर रह गई। स्व. बडोनी ने इस महायात्रा की कल्पना सुरम्य और मनोरम भिलंगना घाटी में विद्यमान पंवाली के माट्या बुग्याल, गंगी गांव और खतलिंग सहस्रताल को पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिए की थी। उल्लेखनीय है कि घुत्तू से पंवाली- त्रियुगीनारायण- कर्णप्रयाग तक लोकनिर्माण विभाग की पुरानी सड़क है जहां से आज भी तीर्थयात्री एवं सैलानी केदारनाथ और बद्रीनाथ तक भी जाते हैं। बडोनी जी का सपना इस क्षेत्र में पंवाली में शीतकालीन खेलों एवं साहसिक पर्यटन केन्द्र स्थापित करने के साथ आदिम व्यवस्था में जीने वाले गंगी गांव के लोगों को विकास से जोड़ने का था। देशभर के प्रबुद्ध लोग और इस क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता कई वर्षों से इस महायात्रा को पूरे यात्रा स्थल
तक पहुंचाने के साथ पर्यटन मान्यता देने की मांग कर रहे थे।
इस वर्ष प्रकृति, पर्यावरण और तीर्थाटन में रुचि लेने वाले दर्जनभर युवाओं ने दिल्ली, देहरादून से यात्रा में सहभागिता के साथ ही सोशल मीडिया के माध्यम से जबर्दस्त अभियान चलाया और 28 वर्ष बाद इन्होंने स्वर्गीय इन्द्रमणि बडोनी द्वारा प्रवर्तित ऐतिहासिक खतलिंग महायात्रा को पुनर्जीवित कर दिया। अब शायद यह क्षेत्र पर्यटन मानचित्र पर भी अपेक्षित स्थान प्राप्त कर सकेगा। *
खतलिंग-सहस्रताल देश के पर्यटन की दृष्टि से महत्व के स्थल हैं। स्व. इन्द्रमणि बडोनी को भिलंगना घाटी, गंगी गांव और पंवाली के प्रति असीम प्रेम था। वे यहां की सुन्दरता और प्राकृतिक समृद्धि से सारी दुनिया को परिचित कराना चाहते थे।
-टीकाराम, स्व. इन्द्रमणि बडोनी के सहयोगी, घुत्तू भिलंग
पंवाली दुनिया में हरियाली का सबसे सुन्दर बुग्याल है। घुत्तू से पंवाली और त्रियुगीनारायण लोक निर्माण विभाग का सैकड़ों वर्ष पुराना यात्रा मार्ग है। पंवाली को कभी उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार ने शीतकालीन खेलों के आयोजन स्थल हेतु चयनित किया था किन्तु प्रभावी जनप्रतिनिधियों के अभाव में यह सुअवसर हमारे हाथ से निकल गया।
-बिशन सिंह राणा, युवा उद्यमी, घुत्तू भिलंग
स्व. बडोनी जी ने खतलिंग महायात्रा को धार्मिक और सांस्कृतिक रंग देने के साथ इस दुर्गम क्षेत्र की आर्थिक प्रगति से जोड़ा था। दुर्भाग्य से तीस वर्ष बाद भी यह क्षेत्र राज्य सरकार द्वारा पूरी तरह उपेक्षित रखा गया है।
-अब्बल सिंह भंडारी, अध्यक्ष व्यापार मंडल-घुत्तू
गंगी गांव ही नहीं बदहाल हो गई पूरी भिलंगना घाटी का उद्धार तभी होगा जब यहां आईटीआई, पोलटेक्नीक अथवा युवा कौशल केन्द्र खुलेगा, इससे पलायन रोका जा सकता है।
-बद्री सिंह रौथान, पूर्व प्रधान जोगियाड़ा भिलंग
स्व. इन्द्रमणि बडोनी ने यहां शिक्षा के मंदिर भी खोले और दुनिया को पंवाली, खतलिंग और सहस्रताल से परिचित करवाया। आज ऐसे जनप्रतिनिधियों की जरूरत है जो देश को हमारी इन धरोहरों की ओर आकर्षित करवाएं और इस क्षेत्र के अंधकार को मिटाने का कार्य करें।
-समन सिंह धनाईं, पूर्व मेला व्यवस्थापक, खतलिंग
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